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बुधवार, 31 मार्च 2010

क्या परमेश्वर को मेरी चिन्ता है?

एक दुखदायी वर्ष में एक के बाद एक करके मेरे तीन मित्रों की मृत्यु हो गई। पहले दो मित्रों की मृत्यु ने भी मुझे तीसरे मित्र की मृत्यु के आघात को झेलेने के लिये तैयार नहीं किया। मैं रोने के सिवाय कुछ नहीं कर सका।

मुझे एक अजीब सी शांति मिलती है यह जान कर कि जब यीशु ने दुख का सामना किया तो उसकी प्रतिक्रिया भी मेरी प्रतिक्रिया के समान ही थी। मुझे इससे सांत्वना मिलती है कि जब यीशु का मित्र लाज़र मरा तो यीशु रोया (युहन्ना ११:३२-३६)। यह इस बात का भी सूचक है कि जब मेरे मित्रों की मृत्यु हुई तो परमेश्वर ने कैसा अनुभव किया होगा, क्योंकि वह भी उनसे प्रेम करता था।

अपने क्रूस पर चढ़ाये जाने से पहले गत्सम्ने के बाग़ में, यीशु ने यह प्रार्थना नहीं की, "हे प्रभु मैं तेरा बहुत आभारी हूँ कि तू ने मुझे अपने निमित कष्ट उठाने को चुना है।" नहीं, ऐसा नहीं, वरन किसी भी साधारण मनुष्य की तरह उसने ऐसी परिस्थिती में स्वभविक रूप से होने वाले दुख, भय, अकेलेपन और घोर निराशा को अनुभव किया। इब्रानियों का लेखक कहता है, "(यीशु ने) ऊंचे शब्द से पुकार पुकार कर और आंसु बहा बहा कर उससे जो उसे मृत्यु से बचा सकता था, प्रार्थनाएं और विनती की" (इब्रानियों ५:७), परन्तु वह मृत्यु से बचा नहीं।

जब हम उसके क्रूस पर कहे गए भजन के गंभीर पद "हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया?" (भजन २२:१, मरकुस १५:३४) को पढ़ते हैं तो प्रतीत होता है कि यीशु भी शायद उसी प्रश्न का सामना कर रहा था जिसका हम करते हैं - "क्या परमेश्वर को मेरी चिन्ता है?"

लेकिन यीशु का वह भारी दुख एक अलौकिक शांति के साथ झेलना इस बात का प्रमाण है कि उसे अपने पिता पर पूरा भरोसा था कि हालात चाहे जैसे भी हों, परमेश्वर का प्रेम कभी न बदलने वाला और स्थिर प्रेम है। उसने इस विश्वास को प्रमाणित करके दिखाया कि इस प्रश्न "क्या परमेश्वर को मेरी चिन्ता है?" का केवल एक ही उत्तर है "हाँ, अवश्य है।" - फिलिप यैन्सी


जब हम विश्वास करेंगे कि परमेश्वर का हाथ हर बात में है, तब हम हर बात परमेश्वर के हाथ में सौंप सकेंगे।


बाइबल पाठ: मरकुस १४:३२-४२


(यीशु) बहुत अधीर और व्याकुल होने लगा। और उसने कहा: मेरा मन बहुत उदास है, यहाँ तक कि मैं मरने पर हूँ। - मरकुस १४:३३, ३४


एक साल में बाइबल:
  • न्यायियों ११, १२
  • लूका ६:१-२६

मंगलवार, 30 मार्च 2010

अशुद्ध? शुद्ध हो जाइये

जब मैं मरकुस १:४०-४५ पढ़ता हूँ तो मेरी कलपना में एक सम्भावित दृश्य उभरता है: उस भीड़ ने उस व्यक्ति को अपनी ओर आते देखा। वह उन्हें अपने हाथ हिला हिला कर दूर रहने को सावधान कर रह होगा, उसके मुँह और नाक को ढांपने वाले कपड़े से भीड़ ने उसे पहचाना होगा - वह एक कोढ़ी था, उसके कपड़े फटे थे और खाल गल कर उतर रही थी; वह अशुद्ध था।

कोढ़ी के यीशु के पास भागते हुए आने से लोग यीशु के पास से दूर हट गए, उन्हें डर था कि एक कोढ़ी के छुए जाने से वे भी अशुद्ध हो जाएंगे। उस समय में कोढ़ियों को समाज से और धार्मिक जीवन से बहिष्कर्त करके रखा जाता था। वे अपनी मौत का मातम तक सवयं ही मनाने को बाध्य थे।

परन्तु इस कोढ़ी ने यीशु के पैरों पर गिरकर उससे गिड़गिड़ा कर अपनी चंगाई और समाज में लौटाये जाने के लिये विश्वास से प्रार्थना की, "यदि तू चाहे तो मुझे शुद्ध कर सकता है" (पद ४०)। उसपर तरस खाकर यीशु ने उसे छुआ और कहा, "मैं चाहता हूँ, तू शुद्ध हो जा" (पद ४१)। यीशु ने उसे कोढ़ से चंगा किया और मंदिर के याजक को दिखाने के लिये कहा।

यीशु पाप में फंसे सब बेबस और निराश लोगों को शुद्ध, क्षमा और उन्हें पहले सा बहाल कर सकता है। उसपर विश्वास करें कि जब आप उसे पुकारेंगे तो वह आपसे भी कहेगा "मैं चाहता हूँ, तू शुद्ध हो जा।" - मार्विन विलियम्स


यीशु लोगों को बहाल करने का विशेषज्ञ है।


बाइबल पाठ: मरकुस १:४०-४५


यीशु ने उसपर तरस खाकर हाथ बढ़ाया और उसे छूकर कहा, "मैं चाहता हूँ, तू शुद्ध हो जा।" - मरकुस १:४१


एक साल में बाइबल:
  • न्यायियों ९, १०
  • लूका ५:१७-३९

सोमवार, 29 मार्च 2010

निर्णय

एक समय मैंने एक जैसे लगने वाले कुछ शब्दों के अर्थ अपनी कॉपी पर लिखकर रखे, अपने आप को याद दिलाते रहने के लिये कि उन सबका अर्थ एक ही नहीं है। वे शब्द हैं, "आशय, विचार, राय, अभिरुचि, विश्वास, निश्चय।" अपनी राय को एक निश्चय के स्तर तक उठाने का प्रलोभन प्रबल हो सकता है, परन्तु रोमियों १४ हमें सिखाता है कि ऐसा करना गलत है।

पहली शताब्दी में यहूदी व्यवस्था पर आधारित धार्मिक परंपराएं धार्मिक नेताओं की दृष्टि में इतनी महत्वपूर्ण थीं कि वे यीशु को, जो व्यवस्था का जीवित मनवीय प्रतिरूप था, पहचान नहीं सके। उनका ध्यान छोटी छोटी बातों पर इतना केंद्र्ति रहता था कि वे प्रधान बातों की उपेक्षा कर जाते थे (मत्ती २३:२३)।

बाइबल हमें सिखाती है कि हमें अपने विश्वासों और निश्चयों को भी प्रेम के नियम के आधीन करके रखना है (रोमियों १३:८-१०; गलतियों ५:१४; याकूब २:८) क्योंकि प्रेम ही सारी व्यवस्था की पूर्ति है और परस्पर मेल, शांति और एक दूसरे को उभारने का रास्ता बनाता है।

यदि हमारी अपनी राय अथवा पसन्द, हमारे लिये, परमेश्वर द्वारा कही गई और उसकी नज़र में मूल्यवान किसी भी बात से अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है तो समझ लें कि हमने अपने ’विश्वास’ की मूर्तियां अपने हृदय में स्थापित कर लीं हैं। मूर्ति पूजा एक बड़ा पाप है क्योंकि वह प्रथम और सबसे मुख्य आज्ञा को तोड़ता है: "तू मुझे छोड़ किसी दूसरे को ईश्वर करके न मानना" (निर्गमन २०:३)।

हम यह निश्चय करें और ठान लें कि हम अपने निज विचारों को परमेश्वर के विचारों से बढ़कर नहीं रखेंगे, ताकि हमारे विचार दूसरों के लिये ठोकर का कारण न बने और उनसे किसी के लिये यीशु के प्रेम को जानने में अवरोध न हो। - जूली ऐकरमैन लिंक


संसार में सबसे बड़ी शक्ति व्यवस्था कि मजबूरी नहीं, परन्तु प्रेम की करुणा है।


बाइबल पाठ: रोमियों १४:१-१३


तुम यह ठान लो कि कोई अपने भाई के सामने ठेस या ठोकर खाने का कारण न रखे। - रोमियों १४:१३


एक साल में बाइबल:
  • न्यायियों ७, ८
  • लूका ५:१-१६

रविवार, 28 मार्च 2010

दया का नाप

परमेश्वेर के महिमामय सिंहासन की ऊंचाई से कलवरी के क्रूस की गहराई तक की दूरी कितनी है? हमारे प्रति उद्धारकर्ता का प्रेम क्या नापा जा सकता है? फिलिप्पियों को लिखी अपनी पत्री में पौलुस वर्णन करता है यीशु के महिमा की ऊंचाईयों से उतरकर शर्मनाक यातना और मृत्यु की गहराईयों तक जाने की और वहाँ से उसके फिर वापस लौटने की (२:५-११)।

मसीह अनंत, सृष्टीकर्ता और समस्त सृष्टि का प्रभु है; इस पृथ्वी की सड़ाहट और गलाहट से ऊपर असीम ऊंचाई तक महिमित है। वह जीवन का स्त्रोत है, अनगिनित स्वर्गदूत उसकी आराधना करते रहते हैं और उसकी आज्ञा मानने को तत्पर रहते हैं। फिर भी, पाप में खोई हुई मानव जाति के प्रति अपने प्रेम से प्रेरित होकर, "उसने अपने आप को दीन किया और यहाँ तक आज्ञाकारी हुआ कि मृत्यु, हाँ क्रूस की मृत्यु भी सह ली" (पद ८)। वह हमारे इस छोटे से ग्रह पर आया, एक गोशाला की गन्दगी और बदबू में पैदा हुआ और एक असहाय नवजात शिशु के रूप में जानवरों के चारा खाने की चरनी में उसे रखा गया।

जब वह व्यसक हुआ, तो उसे बेघर होने का अनुभव झेलना पड़ा (मत्ती८:२०)। वह प्यासा हुआ, और एक व्यभिचारी स्त्री से पानी मांगना पड़ा (यूहन्ना ४:७-९)। थकान से चूर, तूफान में हिचकोले खाती नाव में ही सो गया (मरकुस ४:३७, ३८)। वह पाप से रहित था, एक दिन उसे बड़ी भीड़ ने सर-आंखों पर बैठाया (मत्ती २१:९) और फिर उसी भीड़ ने उसे एक अपराधी करार देकर रोमी क्रूस की अत्याधिक पीड़ा दायक मृत्यु दे दी।

यह है परमेश्वर के सिंहासन से कलवरी तक की वह दूरी! यह है उसके अनुग्रह, करुणा और दया का नाप! - वेर्नन ग्राउंड्स


परमेश्वर मानवीय इतिहास में अनंत उद्धार की भेंट देने आया।


बाइबल पाठ: फिलिप्पियों २:५-११


तुम्हारा छुटकारा नाशमान वस्तुओं से नहीं...वरन मसीह के बहुमूल्य लहू से हुआ है। - १ पतरस १:१८, १९


एक साल में बाइबल:
  • न्यायियों ४-६
  • लूका ४:३१-४४

शनिवार, 27 मार्च 2010

मैं निर्दोष हूँ

फ्लोरिडा के एक स्कूल के सभी २५५० छात्रों को मुसीबत झेलनी पड़ी। स्कूल के सन्देश देने की प्रणाली द्वारा सभी छात्रों के अभिभावकों को सूचना भेजी गई कि अशिष्ट व्यवाहार करने की सज़ा भुगतने के लिये उस सप्ताहान्त उन्के बच्चे स्कूल में ही रोके जायेंगे। अधिकांश बच्चों ने अपने निर्दोष होने की दुहाई अपने अभिभावकों को दी, लेकिन फिर भी कुछ अभिभावकों ने अपने बच्चों को सज़ा भुगतने को सप्ताहान्त पर स्कूल भेजा। एक माँ, एमी ने यह स्वीकार किया कि अपने बेटे को सज़ा भुगतने को भेजने के लिये उसे काफी ज़ोर से डांटना भी पड़ा।

बाद में २५३४ छात्रों पर से एक बड़ा बोझ उतरा जब मालूम पड़ा कि वह सूचना केवल १६ छात्रों के लिये थी, किंतु स्वचलित सन्देश प्रणाली में हुई गलती के कारण सन्देश पूरे स्कूल के सभी छात्रों के लिये चला गया। अपने बच्चों पर विश्वास न करने के कारण कई अभिभावकों को शर्मिंदा होना पड़ा। एमी को भी बहुत बुरा लगा कि उसने अपने बेटे की बात नहीं मानी और उसपर विश्वास नहीं किया। प्रायश्चित के लिये वह उसे बाहर भोजन कराने ले गई।

हम सबके पास ऐसे अनुभव होंगे जिनमें हमने सीखा होगा कि हमें बोलने से पहले ध्यान से सुन लेना चाहिये। हम स्वाभाविक रूप से तुरन्त निर्णय लेते हैं और क्रोध भरी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। याकूब की पत्री हमें जीवन की तनावपूर्ण परिस्थितियों का सामना करने के लिये तीन व्यावाहरिक बातें सिखाती है: "हर एक मनुष्य सुनने के लिये तत्पर, बोलने में धीरा और क्रोध में धीमा हो" (याकूब १:१९)।

जीवन के तनावों में, हम "वचन पर चलने वाले" (पद २२) बनें। आज, हम सुनने वाले और अपने शब्दों तथा क्रोध पर नियंत्रण रखने वाले बनें। - ऐनि सेटास


पहले सुनो, फिर समझो उसके बाद ही प्रेम सहित प्रतिक्रिया करो।


बाइबल पाठ: याकूब १:१९-२४


वचन पर चलने वाले बनो। - याकूब १:२२


एक साल में बाइबल:
  • यहोशु १-३
  • लूका ४:१-३०

शुक्रवार, 26 मार्च 2010

हर बात में विश्वासयोग्यता

अगस्त २००७ में अमेरिका के एक शहर मिनियापोलिस का एक बड़ा पुल टूटकर मिसिसिपी नदी में गिर गया। इस हादसे में १३ लोगों की जान गई। इस दुर्घटना के कई हफ्तों बाद तक जब भी मैं किसी पुल पर से गुज़रती थी तो मुझे यह हादसा याद आ जाता था।

कुछ समय बाद मैं डिस्कवरी चैनल पर एक कार्यक्रम ’डर्टी जॉब्स’ (गन्दे कार्य) देख रही थी। इस कार्यक्रम का सन्चालक माइक रो एक औद्यौगिक रंगकार से उसके काम के बारे में बातें कर रहा था। माइक ने उससे पूछा "मुझे नहीं लगता कि तुम्हारे इस काम में तुम्हारे लिये कोई ख्याति है?" उस रंगकार ने सहम्ति जताते हुए कहा, "नहीं, लेकिन फिर भी यह ऐसा कार्य है जिसे करना अनिवार्य है।"

आपकी जानकारी के लिए, वह रंगकार उत्तरी मिचिगन के मैकिनैक पुल के स्तंभों के भीतरी हिस्से के फौलाद को रंगता था कि उस पर ज़ंग न लगे, जो पुल को खतरे में डाल देता और कमज़ोर कर देता। उस पुल को ज़ंग से बचाना उसकी ज़िम्मेदारी थी। प्रतिदिन लगभग १२,००० लोग उस पुल को पार करते थे और इस बात से सर्वथा अनभिज्ञ थे कि उनकी सुरक्षा माईक जैसे काम करने वालों पर निर्भर है, जिन्हें कोई जानता नहीं और न ही कोई उनकी प्रशंसा करता है, लेकिन वे विश्वासयोग्यता से अपनी ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं, ताकि दूसरे सुरक्षित रह सकें।

परमेश्वर भी हमारे कामों में हमारी विश्वासयोग्यता को देखता है। भले ही हम सोचें कि हमारे काम, छोटे या बड़े, किसी के द्वारा देखे और सराहे नहीं जाते, परन्तु एक है, जो उन्हें देखता रहता है; और हमारे प्रति उसकी सोच का महत्व ही सबसे महत्वपूर्ण है। हमें जो भी ज़िम्मेदारी आज सौंपी गई है, हम उसे प्रभु यीशु के नाम और उसकी महिमा के लिये करें (कुलुसियों ३:१७)। - सिंडी हैस कैस्पर


प्रतिदिन का साधारण कार्य भी यदि परमेश्वर के लिये किया जाय तो अनन्त मूल्य का हो जाता है।


बाइबल पाठ:कुलुसियों ३:१२-१७


वचन से या काम से जो कुछ भी करो सब प्रभु यीशु के नाम से करो। - कुलुसियों ३:१७


एक साल में बाइबल:
  • यहोशु २२-२४
  • लूका ३

गुरुवार, 25 मार्च 2010

प्रतिदिन प्रतिपल

जब यीशु ने अपने शिष्यों को संसार में भेजा तो उन्हें यह प्रतिज्ञा दी कि "मैं जगत के अन्त तक सदैव तुम्हारे साथ हूँ" (मत्ती २८:२०)। जिस शब्द का अनुवाद "सदैव" हुआ है, मूल युनानी भाषा में उसका अर्थ होता है "हर एक दिन"।

यीशु ने सामजिक रीति पर बात कहने के हलके से रूप में सदैव उनके साथ रहने का उन्हें आश्वासन नहीं दिया, बल्कि "हर एक दिन" में। "हर एक दिन" की इस प्रतिज्ञा में हमारे जीवन के हर एक दिन की हर अच्छी-बुरी परिस्थिति, हर एक कार्य, दिन का हर एक उत्तरदायित्व, हर दिन में होने वाली हर एक भलाई या बुराई, सब में उसकी सह-उपस्थिति निहित है।

चाहे दिन हमारे लिये कुछ भी लेकर आये, हमारा प्रभु हमारे साथ उन सभी परिस्थितियों मे उपस्थित है, चाहे वह आनन्द का दिन हो या दुख का, बिमारी का या स्वास्थ्य का, सफलता का या असफलता का। हमारे साथ चाहे कुछ भी हो, हमारा प्रभु हमारे साथ चल रहा है, हमें सामर्थ देते, हमें प्रेम करते, हमें विश्वास, आशा और प्रेम से परिपूर्ण करते हुए। जब वह अपनी शांति और सुरक्षा से हमें ढांप देता है तो हमारे बैरी, हमारे भय, हमारे संकट और सन्देह सब पीछे हट जाते हैं। हम हर परिस्थिति का सामना निडर होकर कर सकते हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि प्रभु हमारे साथ है, जैसे उसने पौलुस को कहा "मैं तेरे साथ हूँ" (प्रेरितों १८:१०)।

अपने व्यस्त दिन में कुछ क्षण रुककर प्रार्थना करें कि आप उस अदृश्य परमेश्वर का अनुभव और उस के दर्शन हर स्थान पर पा सकें; अपने आप से कहें, "प्रभु मेरे साथ यहां है" और अपने साथ परमेश्वर की उपस्थिति होने का अभ्यास डालें। - डेविड रोपर


जब तक यहोवा मिल सकता है तब तक उसकी खोज में रहो, जब तक वह निकट है, तब तक उसे पुकारो - यशायाह ५५:६


बाइबल पाठ: प्रेरितों १८:९-११


देखो मैं जगत के अन्त तक सदैव तुम्हारे संग हूँ। - मत्ती २८:२०


एक साल में बाइबल:
  • यहोशु १९-२१
  • लूका २:२५-५२

बुधवार, 24 मार्च 2010

साधारण दिन

एक लेखिका अनीता ब्रेक्बिल एक पत्रिका में लिखती है कि "अकसर परमेश्वर के वचन का प्रकाशन किसी व्यक्ति के पास जीवन के साधारण कर्तव्यों का पालन करते हुए ही आता है।" वह परमेश्वर के वचन में से दो उदाहरण देती है - ज़कर्याह अपने याजक होने के काम को कर रहा था, और चरवाहे अपनी भेड़ों की रखवाली कर रहे थे। वे रोज़ की तरह ही अपने अपने कामों में लगे थे, इस बात से अन्जान कि उस दिन परमेश्वर उन्हें कोई सन्देश भेजने वाला है।

लूका उनकी उस समय की दिनचर्या का वर्णन करता है, जब परमेश्वर का वचन उनके पास आया: "जब (ज़कर्याह) अपने दल की पारी पर परमेश्वर के सामने याजक का काम करता था,...तब एक स्वर्गदूत...उसको दिखाई दिया" (लूका १:८,११)। "चरवाहे मैदान में रहकर अपने झुंड का पहरा देते थे...तब प्रभु का एक दूत उनके पास आ खड़ा हुआ, प्रभु का तेज उनके चारों ओर चमका" (लूका २:८,९)।

ओस्वॉल्ड चैम्बर्स अपनी एक पुस्तक में लिखते हैं: "बहुत कम ऐसा होता है कि यीशु हमारी आशा अथवा इच्छा के अनुसार हमारे पास आता है; लेकिन अकसर वह तब आ जाता है जब हमें उसकी आशा भी नहीं होती, या हमारी समझ के अनुसार परिस्थितियाँ उसके आने के अनुरूप नहीं होतीं। परमेश्वर का सेवक, परमेश्वर के प्रति खरा तभी रह सकता है जब वह उसके अनायास आगमन के लिये सदा तैयार रहे।"

यदि आप सुनने और मानने को तैयार हैं, तो आज आपकी साधारण दिनचर्या के निर्वाह में भी प्रभु प्रोत्साहन, मार्गदर्शन या निर्देश का कोई वचन आपको दे सकता है। - डेविड मैककैसलैंड


परमेश्वर उनसे बातें करता है जो उसके सामने शाँत रहते हैं।


बाइबल पाठ: लूका २:८-२०


प्रभु का एक दूत उनके पास आ खड़ा हुआ और प्रभु का तेज उनके चारों ओर चमका - लूका २:९


एक साल में बाइबल:
  • यहोशु १६-१८
  • लूका २:१-२४

मंगलवार, 23 मार्च 2010

स्मृति-चिन्ह

सन १८७६ में अमेरिका के डकोटा प्रांत में वहाँ के मूल निवासियों के एक काबाइली नेता ’क्रेज़ी हौर्स’ ने एक और नेता ’सिटिंग बुल’ के साथ मिलकर अमेरीकी सेनापति क्लस्टर की सेना को मात दी। लेकिन कुछ समय बाद भुखमरी ने क्रेज़ी हौर्स को सेनापति क्लस्टर के सामने समर्पण करने की स्थिति में ला दिया और जान बचाने के प्रयास में वह मारा गया। जीवन के दुखद अन्त के बावजूद वह खतरे में पड़े लोगों के लिये एक साहसी नेतृत्व का प्रतीक बन गया।

आज दक्षिण डकोटा प्रांत के ब्लैक हिल्स में पहाड़ तराशकर क्रेज़ी हौर्स का एक विशाल स्मारक बनाया जा रहा है जो पूरा होने पर ६४१ फुट लम्बा और ५६३ फुट चौड़ा होगा और क्रेज़ी हौर्स को दौड़ते घोड़े पर बैठे अपने लोगों को आगे बढ़ने की राह दिखाते हुए दर्शाएगा।

हज़ारों साल पहले, शमुएल नबी ने एक महत्वपूर्ण बात के लिये, एक छोटी चट्टान का एक स्मारक बनाया। पलिश्ती सेना से हो रहे इस्त्राएली सेना के एक बहुत महत्वपूर्ण युद्ध में शमुएल ने परमेश्वर से इस्त्राएल के लिये प्रार्थना करी। परमेश्वर ने उसकी प्रार्थना सुनी और इस्त्राएलियों को विजयी किया (१ शमुएल ७:१०)। कृतज्ञता से भरे शमुएल ने एक पत्थर खड़ा किया और उसका नाम ’एबेनज़र’ रखा, जिसका अर्थ है "यहाँ तक परमेश्वर ने हमारी सहायता करी है" (पद १२)।

शमुएल ने हमारी आत्मिक यात्रा के लिये एक उदाहरण स्थापित किया है। परमेश्वर की आराधना और सेवा करने में सहायता करने के लिए हम भी अपने लिये स्म्रूति-चिन्ह रख सकते हैं, जो हमारे जीवन में रही उसकी विश्वासयोग्यता हमें याद दिलाते रहें। इस बात को याद रखना कि "यहाँ तक यहोवा ने हमारी सहायता की है" हमेशा अच्छा रहेगा। - डेनिस फिशर


कृतज्ञता एक आनन्दित मन का स्मृति-चिन्ह है।


बाइबल पाठ: १ शमुएल ७:३-१२


शमुएल ने एक पत्थर लेकर....यह कहकर उसका नाम एबेनज़र रखा, कि यहाँ तक यहोवा ने हमारी सहायता की है। - १ शमुएल ७:१२


एक साल में बाइबल:
  • यहोशु १३-१५
  • लूका १:५७-८०

सोमवार, 22 मार्च 2010

परछाईं डालना

कहा जाता है कि महान चित्रकार माईकलएन्जेलो, चित्र बनाते समय एक हाथ में मोमबत्ती और दूसरे में कूची रखता था, ताकि उसकी महान कृति पर उसकी अपनी ही परछाईं न पड़ने पाये।

यदि अपने जीवन के पटल पर हम परमेश्वर की महिमा दिखाना चाहते हैं तो हमें भी ऐसी ही प्रवृति रखनी चाहिये। किंतु दुर्भाग्य की बात है कि हमारी जीवन शैली अक्सर लोगों को हमारी ही तरफ आकर्शित करने का प्रयास होती है। हमारी मोटरगाड़ियाँ, हमारे कपड़े, हमारी नौकरी, हमारा पद, हमारी कुशलता हमारी सफलता, आदि। अगर ज़िंदगी अपने आप ही से संबन्धित है, तो फिर हममें यीशु को देख पाना लोगों के लिये कठिन है। हमारा उद्धार करके, यीशु ने चाहा कि हम उसकी महिमा को औरों को दिखाएं (रोमियों ८:२९)। लेकिन अगर हम अपने ही लिये जीते हैं तो हमारी अपनी परछाई हमारे जीवन में उसकी उपस्थिति पर पड़ती है।

जब कुरिन्थ के विश्वासी अपने ही में मगन थे तो पौलुस ने उनको चिताया कि "कोई प्राणी परमेश्वर के सामने घमंड न करने पाये" (१ कुरिन्थियों १:२१), और उन्हें यर्मियाह नबी के शब्द याद दिलाये कि, "जो घमंड करे वह प्रभु में घमंड करे" (पद ३१; यर्मियाह ९:२४)।

अपने जीवन को एक ऐसे चित्रपटल के समान जानिये जिस पर चित्रकार अभी चित्र बना रहा है। चित्र पूरा होने पर आप क्या चाहेंगे कि लोग देखने पाएं - यीशु की एक महान मनोहर कृति या आपकी अपनी बेरंग परछाईं? एक महान चित्र की रचना में बाधा न बनें; ऐसे जीएं कि लोग आप में यीशु को देख सकें। - जो स्टोवैल


एक मसीही का जीवन वह चित्रपटल है जिस पर लोग यीशु को देख सकते हैं।


बाइबल पाठ: १ कुरिन्थियों १:१८-३१


कोई प्राणी परमेश्वर के सामने घमंड न करने पाए। - १ कुरिन्थियों १:२१


एक साल में बाइबल:
  • यहोशु १०-१२
  • लूका ९:३९-५६

रविवार, 21 मार्च 2010

टेढ़ा घर

जब रॉबर्ट क्लौस एक १०० साल पुराने मकान में रहने पहली बार गया, तो वहाँ आने वाली अजीब आवाज़ों ने उसे बेचैन किया। एक बढ़ई ने उसे बताया कि घर की बनावट में टेढ़ापन है। क्लौस ने यह स्वीकार किया, "मैं उसका टेढ़ापन उसके फर्श, छत, दीवार, दरवाज़ों और खिड़कियों में देख सकता था। फर्श पर एक गेंद डालो तो वह लुढ़कती हुई ग़ायब हो जाती थी। अब १७ साल बाद भी उस मकान का टेढ़ापन वैसा ही है, क्लौस उसमें रहने का आदी हो गया है और अब उससे प्रेम भी करने लगा है।

’प्रकाशितवाक्य’ में प्रभु यीशु एक कलीसिया को टोकता है, जो आत्मिक टेढ़ेपन में चली गई थी और अपने अन्दर की अनुचित बातों को पसन्द करने लगी थी। लौदीकिया एक सम्पन्न शहर था। उसकी सम्पन्नता ने उसमें अपने आप में परिपूर्ण होने की गलतफ्हमी और घमन्ड उत्पन्न कर दिया था। यही भावना वहाँ की कलीसिया में भी घर बना रही थी। उस कलीसिया में भी आत्मिक टेढ़ापन आने लगा था और वे मानने लगे थे कि ’हमें यीशु की ज़रूरत नहीं है।’ प्रभु यीशु ने उन विश्वासियों को डांटा, उन्हें कहा कि वे गुन्गुने (न ठंडे न गरम),...अभागे, तुच्छ, कंगाल, अन्धे और नंगे हैं (प्रकाशितवाक्य ३:१६, १७)। क्योंकि वह उन्हें प्रेम करता था और उन के साथ एक गहरा रिशता चाहता था, इसलिये उसने उन्हें सुधारने के लिये उसने उन्हें डांटा। उसने उन्हें मन फिराने का एक अवसर दिया (पद १९)।

यदि किसी कारण से आप में भी ऐसे ही अपने आप में परिपूर्ण होने की गलतफ्हमी या घमन्ड, और उसके फलस्वरूप प्रभु यीशु के साथ आपकी सहभागिता में टेढ़ापन आ गया है, तो मनफिराव द्वारा उसे सीधा कर लें और उसके साथ अपनी सहभगिता को नया बना लें। - मार्विन विलियम्स


पश्चाताप टेढ़े को सीधा करने का परमेश्वर द्वारा दिया गया मार्ग है।


बाइबल पाठ: प्रकाशितवाक्य ३:१४-२०


मैं जिन जिन से प्रीति रखता हूँ, उन सबको उल्हाना और ताड़ाना देता हूँ, इसलिए सरगर्म हो और मन फिरा। - प्रकाशितवाक्य ३:१९


एक साल में बाइबल:
  • यहोशु ७-९
  • लूका १:२१-३८

शनिवार, 20 मार्च 2010

बहुत बूढ़े? कभी नहीं!

’ब्राउन मैनर’ ऐसी बुज़ुर्ग महिलाओं के लिये एक वृधालय था जो अपने परिवार और कार्यों की ज़िम्मेदारियों से मुक्त होकर अब अकेले अपने आप नहीं रह पातीं थीं। एक तरह से यह उनके इस दुनिया से कूच करने से पहले का आखिरी विश्राम स्थान था। वे एक दूसरे की संगति में खुश रहतीं थीं लेकिन कभी कभी अपने अब किसी योग्य न होने की भावना उन्हें सताती थी, और उनके मनों में यह प्रश्न भी उठता था कि परमेश्वर उन्हें बुलाने में इतनी देर क्यों लगा रहा है।

उनमें से एक महिला जो सालों तक प्यानो बजाती रही थी, अक्सर मैनर के प्यानो पर भजन बजाती थी और दूसरी स्त्रियाँ उसके साथ भजन गाया करतीं और परमेश्वर की स्तुती करती थीं।

एक दिन उनके इस तरह स्तुती और आराधाना करते समय एक सरकारी अफसर वहाँ के हिसाब-किताब की जाँच पड़ताल के लिये आया। उसने उनका भजन "आप यीशु से क्या कहोगे?" सुना, और परमेश्वर के पवित्र आत्मा ने उसके दिल को छुआ। उसे स्मरण आया कि बचपन में वह यह भजन गाता था और उसे एहसास हुआ कि अब वह यीशु से बहुत दूर हो गया है। उस दिन परमेश्वर ने उससे फिर बात करी, उसे मन फिराने का एक और अवसर दिया, और उसने ऐसा ही किया।

ब्राउन मैनर की बुज़ुर्ग स्त्रियों की तरह, सारा ने भी सोचा था कि वह परमेश्वर के कार्य के लिये अब बहुत बूढ़ी हो गई है (उत्पत्ति १८:११)। लेकिन परमेश्वर ने उसे बुढ़ापे में एक पुत्र दिया जो प्रभु यीशु का पूर्वज हुआ (उत्पत्ति २१:१-३; मत्ती १:२,१७)। जैसे सारा और ब्राउन मैनर की महिलाएं, हम भी परमेश्वर के लिये उपयोगी होने के लिये कभी ’बहुत बूढ़े’ नहीं होंगे। - जूली ऐकरमैन लिंक


अगर आप में इच्छा है, तो परमेश्वर किसी भी उम्र में आपका उपयोग कर सकता है।


बाइबल पाठ: उत्पत्ति १८:१-१५


क्या यहोवा के लिये कोई काम बहुत कठिन है? - उत्पत्ति १८:१४


एक साल में बाइबल:
  • यहोशू ४-६
  • लूका १:१-२०

शुक्रवार, 19 मार्च 2010

परवाह से भरा हृदय

अमेरिका के उत्तरी कैरोलीना विश्वविद्यालय के चैपल हिल कैंपस में एक जवान जैसन रे आनन्द की किरण था। तीन सालों तक वह एक बड़े से मेढ़े "रैमसिस" का, जो उस विश्वविद्यालय का पहचान चिन्ह था, अभिनय करता रहा। कभी खेल प्रतियोगिताओं में दर्शकों को प्रसन्न करने, तो कभी अस्पताल में बच्चों से मिलने और उन्हें आनन्दित करने के लिये, वह उस मेढ़े का बड़ा सा मुखौटा और कपड़े पहने आता था। फिर अचानक मार्च २००७ में, जब वह अपनी बास्केटबाल टीम के साथ जा रहा था, तो २१ वर्षीय जैसन एक मोटर दुर्घटना का शिकार हो गया। उसके परिवार के देखते देखते ही अस्पताल में उसकी मृत्यु हो गई।

लेकिन जैसन की कहानी यहीं समाप्त नहीं होती। मरने से दो साल पहले ही जैसन ने अपने मरणोप्रांत अपने अंगों और शरीर के भागों को दान करने से संबंधित कानूनी कागज़ तैयार करवा लिये थे। समय रहते किये गये उसके इस दयालुता के कार्य के कारण चार लोगों का जीवन बच सका और दर्जनों लोगों को सहायता मिली। एक जवान, अपने जीवन के सबसे अच्छे समय में, अपने भविष्य को संवारने की चिंता करने के स्थान पर न केवल दुसरों के सुख के लिये चिंतित था, वरन उसने उसके अनुरूप कार्यवाही भी की। वे सारे लोग और उनके परिवार जिन्हें जैसन की इस दयालुता से सहायता मिली उसके कृतज्ञ हैं।

जैसन का यह कार्य फिलिप्पियों को लिखी पत्री के दूसरे अध्याय में पौलुस द्वारा दी गई सलाह की याद दिलाता है। वह उन्हें कहता है कि केवल अपनी ही नहीं वरन दुसरों के हितों की भी चिंता करो।

एक दिल जो दूसरों की भलाइ के लिये उन तक पहुँचने का प्रयास करता है, वासतव में एक स्वस्थ दिल है। - बिल क्राउडर


दुसरों की ज़रूरतों का ध्यान रखना मसीह को आदर देता है।


बाइबल पाठ: फिलिप्पियों २:१-११


एक दुसरे को अपने से अच्छा समझो। हर एक अपनी ही हित की नहीं, वरन दुसरों के हित की भी चिंता करे। - फिलिप्पियों २:३,४


एक साल में बाइबल:
  • यहोशु १-३
  • मरकुस १६

गुरुवार, 18 मार्च 2010

एक नाम में क्या रखा है?

मेरा चीनी पारिवारिक नाम दूसरे पारिवारिक नामों के लोगों से मुझे अलग करता है। वह मुझे एक पारिवारिक ज़िम्मेदारी भी देता है। मैं ’हिया’ परिवार का हूँ। उस कुटुँब का होने के नाते मुझसे उस कुटुँब को आगे चलाने और अपने पूर्वजों का सम्मान बनाए रखने की उम्मीद की जाती है।

यीशु मसीह के लहु से उद्धार पाये हुए विश्वासियों के आत्मिक कुटुँब का भी एक अलग नाम है। वे ’मसीही’ कहलाते हैं।

नये नियम में यह ’मसीही’ नाम सबसे पहले अन्ताकिया में, वहाँ के निवासियों ने प्रभु यीशु मसीह के चेलों को दिया (प्रेरितों ११:२६), जब उन लोगों ने चेलों के आचरण को देखा। उन आरंभिक विश्वासियों में दो विशिष्ट बातें देखीं गईं। वे जहाँ भी जाते थे, प्रभु यीशु के सुसमाचार को सुनाते थे (पद २०); और वे बड़ी लगन से परमेश्वर के वचन को सीखते थे, पौलुस तथा बरनबास साल भर उन्हें पवित्र शास्त्र सिखाते रहे (पद २६)।

’मसीही’ नाम का अर्थ है मसीह में बने रहने वाला, वह जो हर परिस्थिति में मसीह से लिपटा रहता है। आज कई लोग अपने आप को मसीही कहते हैं, परन्तु क्या उन्हें ऐसा कहना चाहिये? क्या उनके आचरण इस नाम के योग्य हैं?

यदि आप अपने आप को ’मसीही’ कहते हैं तो क्या आपका जीवन दूसरों पर मसीह को प्रकट करता है? क्या आप में परमेश्वर के वचन के लिये भूख और प्यास है? आपके व्यवाहार से मसीह के नाम को आदर मिलता है या निंदा?

एक नाम में क्या रखा है? यदि वह नाम ’मसीही’ है, तो वाकई में उस में बहुत कुछ है! - सी. पी. हिया


एक सच्चा मसीही प्रभु यीशु मसीह ही को प्रतिबिंबित करता है।


बाइबल पाठ: प्रेरितों के काम ११:१९-२६


जिस बुलाहट से तुम बुलाए गये हो उसके योग्य चाल चलो। - इफिसियों ४:१


एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण ३२-३४
  • मरकुस १५:२६-४७

बुधवार, 17 मार्च 2010

एक कदम बढ़ाईये

इंगलैंड के कोवैन्ट्री शहर में कुछ शोधकर्ताओं ने एक स्थान पर कुछ आकर्षक विज्ञापन लगा दिये "सीढ़ीयों का उपयोग आपके हृदय के लिये लाभदायक है।" ६ सप्ताह के समय में ही निकट लगी स्वचलित सीढ़ीयों (एस्केलेटर) का प्रयोग करने वाले लोगों से दुगने से भी अधिक लोग साधारण सीढ़ीयों का प्रयोग करने लगे। शोधकर्ताओं का कहना है कि हर कदम का महत्त्व है, और लोगों की पृवत्ति में स्थाई बदलाव के लिये उन्हें बार बार याद दिलाया जाना ज़रूरी है।

बाइबल में अनेक ऐसे ’चिन्ह’ हैं जो हमें परमेश्वर के सच्चे अनुयायी होने और मन लगाकर उसकी आज्ञा मानने का निर्देश देते हैं। इस्त्राएलियों के वायदा किये हुए देश में प्रवेश करने के पहले, यहोवा ने उन से कहा, "आज मैंने तुझको जीवन और मरण, हानि और लाभ दिखाया है।....तू जीवन ही को आपना ले कि तू और तेरा वंश दोनो जीवित रहें; इसलिये अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम करो और उसकी बात मानो और उससे लिपटे रहो; क्योंकि तेरा जीवन और दीर्घायु यही है।" (व्यवस्थाविवरण ३०:१५,१९,२०)।

अक्सर हम सोचते हैं कि विश्वास की किसी लंबी छलांग से, या किसी एक महत्त्वपूर्ण निर्णय द्वारा, या कोई महान सेवा का कार्य करके हमारे जीवन में अचानक परिवर्तन आ जायेगा। परन्तु वास्तविकता यह है कि बदलाव छोटे छोटे कदम बढ़ाने से ही होता है और हर कदम महत्त्वपूर्ण है।

आज हम बाइबल के निर्देशक चिन्हों को गम्भीरता से लें और प्रभु के आज्ञाकारी होने के लिये सच्चे मन से कदम उठाएं। - डेविड मैकैस्लैंड


आज्ञाकारिता में उठाया एक छोटा सा कदम आशीश की ओर एक बहुत बड़ा कदम है।


बाइबल पाठ: व्यवस्थाविवरण ३०:१५-२०


अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम करो और उसकी बात मानो और उससे लिपटे रहो; क्योंकि तेरा जीवन और दीर्घायु यही है। - व्यवस्थाविवरण ३०:२०


एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण ३०,३१
  • मरकुस १५:१-२५

मंगलवार, 16 मार्च 2010

थोमा (सन्देह) का समय

एक युवक अपने विश्वास को लेकर बहुत संघर्ष में था। वह अपने परिवार में स्नेह और धार्मिकता के साथ पला बड़ा हुआ। लेकिन अपने जीवन में लिये गलत फैसलों और उनसे बनी परिस्थितियों के कारण वह प्रभु से दूर हो गया। बचपन में वह प्रभु को जानने का दावा करता था, पर अब अविश्वास में संघर्ष कर रहा था।

एक दिन उससे बात करते हुए मैंने उससे कहा, "मैं जानता हूँ कि तुम एक लम्बे समय तक प्रभु यीशु मसीह के साथ चले हो, परन्तु अब तुम्हारे मन में प्रभु और विश्वास को लेकर सन्देह है। क्या मैं इसे तुम्हारे जीवन में ’थोमा का समय’ कहकर बुला सकता हूँ?"

वह जानता था कि थोमा यीशु के १२ चेलों में से एक था और उसने कई साल तक प्रभु पर खुले तौर पर विश्वास किया था। मैंने इस जवान को याद दिलाया कि यीशु की मृत्यु के बाद थोमा को उसके पुनः जी उठने पर विश्वास नहीं हुआ। लेकिन अपने पुनुरुथान के ८ दिन बाद प्रभु थोमा के समक्ष आया, उसे अपने शरीर के घाव दिखाये और उससे कहा "अविश्वासी नहीं परन्तु विश्वासी हो।" आखिरकर अपने अविश्वास को छोड़कर थोमा ने कहा "हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर!" (युहन्ना२०: २४-२८)।

मैंने उस युवक से कहा, "यीशु ने थोमा का इंतिज़ार किया, और थोमा लौट आया। मुझे लगता है कि तुम भी लौटोगे। मैं प्रार्थना कर रहा हुँ कि तुम भी एक दिन यीशु से फिर कहो ’हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर!’ "

हो सकता है कि आप भी "थोमा के समय" से होकर निकल रहें हों; जब आपको अपने यीशु के निकट होने में सन्देह हो, या यीशु पर ही सन्देह हो रहा हो। यीशु आपकी भी प्रतीक्षा कर रहा है। आपकी तरफ बढ़े हुए उसके कील से छिदे हाथों कि ओर आप अपने हाथ बढ़ाईये तो सही। - डेव ब्रैनन


परमेश्वर के घर में उसकी सन्तान का सदा स्वागत होता है।


बाइबल पाठ: युहन्ना २०:२४-२९


थोमा ने उत्तर दिया "हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर!" - युहन्ना२०:२८


एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण २८,२९
  • मरकुस १४:५४-७२

सोमवार, 15 मार्च 2010

स्वर्ग की ओर हाथ बढ़ाना

जब मैं बच्चों को देखता हूँ जो अपनी माताओं का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिये उनकी ओर अपने हाथ बढ़ाते हैं तो यह मुझे प्रार्थना में परमेश्वर की ओर जाने के अपने प्रयत्न की याद दिलाता है।

परमेश्वर की प्रारंभिक मंडली में शिक्षा थी कि बुज़ुर्गों को प्रेम और प्रार्थना के पाठ में लगे रहना चाहिये। इन दोनो बातों में, प्रेम करना मुझे बहुत कठिन लगता है और प्रार्थना करना मुझे बहुत चकरा देता है। मेरी परेशानी होती है कि मैं किस बात के लिये विशेष रूप से प्रार्थना करूं - कि लोगों समस्याओं से निकल सकें, या उन्हें समस्याओं में रहते हुए भी स्थिर बने रहने की सामर्थ मिल सके।

ऐसे में मुझे पौलुस के शब्द " आत्मा तो हमारी दुर्बलताओं में हमारी सहायता करता है" (रोमियों ८:२६), ढाढ़स देते हैं। इस वाक्य में पौलुस ने जो शब्द प्रयोग किया है, मूल भाषा में उसका अर्थ है "किसी के प्रयत्न म्रें सम्मिलित होकर उसकी सहायता करना।" परमेश्वर का आत्मा हमारी प्रार्थनाओं में हमारे साथ मिलकर निवेदन करता है। वह "आहें भर भर कर जो बयान से बाहर हैं, हमारे लिये विनती करता है।" वह हमारे कष्टों में हमारे साथ दुखी होता है, उसे हमारी चिंता हम से भी अधिक रहती है और वह, आहों के साथ हमारे लिये प्रार्थना करता है, ऐसी प्रार्थना जो परमेश्वर की इच्छानुसार हो। वह जानता है कि प्रार्थना में क्या कहना उचित है।

इसलिये मुझे प्रार्थना में शब्दों के उचित होने की चिंता करने की आवश्यक्ता नहीं है। मुझे केवल परमेश्वर के लिये भूखा होना है और उसकी ओर हाथ बढ़ाने हैं, आश्वस्त होकर कि वह मेरी सुधि रखता है। - डेविड रोपर


प्रार्थना में परमेश्वर के समक्ष एक शब्दरहित हृदय लेकर आना, हृदयरहित अनेक शब्द लेकर आने से कहीं भला है।


बाइबल पाठ: रोमियों ८:१८-२७


आत्मा आप ही ऐसी आहें भर भर कर जो बयान से बाहर हैं, हमारे लिये विनती करता है। - रोमियों ८:२६


एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण २६-२७
  • मरकुस १४:२७-५३

रविवार, 14 मार्च 2010

कबाड़ा हटाओ

घर में जिन वस्तुओं को रखने की जगह नहीं होती वे सब मैं अपने गैरेज में डाल देता हूँ। वह मेरे व्यर्थ वस्तुएं जमा करने का स्थान हो गया है। ऐसे जमा हुए व्यर्थ सामान के ढेर के कारण मुझे गैरेज का दरवाज़ा दूसरों के सामने खोलने में शर्म आती है, कि कोई देख न ले। इसलिये, मैं कभी कभी उसे साफ करने के लिये एक दिन निर्धारित कर लेता हूँ।

हमारे मन और दिमाग़ में भी ऐसे ही बहुत कूड़ा-करकट जमा होता रहता है। इस संसार के प्रभाव से जाने-अनजाने कई अधार्मिक विचार और प्रवृतियां हमारे मन में घर कर लेती हैं, जैसे स्वार्थी होकर सोचना, अपने हकों की मांग अनुचित रीति से करना, हमारी हानि करने वाले के प्रति कठोर प्रवृति दिखाना आदि। ऐसे व्यवहार के कारण बहुत जल्दी हमारे मन अशुद्ध और अपवित्र हो जाते हैं। हमें लगता है कि हम अपनी दुर्भावनाएं को छिपा कर रख सकेंगे, परन्तु वे प्रकट हो ही जाती हैं।

पौलुस पूछता है, "क्या तुम नहीं जानते कि तुम्हारी देह पवित्र आत्मा का मन्दिर है?" (१ कुरिन्थियों ६:१९)। मेरा विचार है कि शायद परमेश्वर को भी हमारे अन्दर निवास करना, फूहड़पन से जमा किये हुए बेकार सामान से भरे गैरेज में रहने के जैसा ही लगता होगा।

हमें मन से बुराईयों को हटाने का निश्चय कर, परमेश्वर की सहयता से अपने अन्दर की सफाई करनी चाहिये। बैर, द्वेष, वासना आदि सभी कूड़े को मन से निकाल कर, अपने विचारों और प्रवृतियों को परमेश्वर की ओर संगठित करके, और परमेश्वर के वचन के सौन्दर्य को अपने मन में भर लेने से ही हम अन्दर से भली भांति स्वच्छ होंगे। तब हम निसंकोच होकर अपने दिल के दरवाज़े किसी के भी अन्दर देखने के लिए खुले छोड़ सकते हैं। - जो स्टोवैल


परमेश्वर के आत्मा को कबाड़ से भरे मन में मत रखो, आज ही समय निकालकर अपने मन को साफ करो।


बाइबल पाठ: १ कुरिन्थियों ६:१२-२०


क्या तुम नहीं जानते कि तुम्हारी देह पवित्रात्मा का मन्दिर है, जो तुममें बसा हुआ है और तुम्हें परमेश्वर की ओर से मिला है, और तुम अपने नहीं हो? - १ कुरिन्थियों ६:१९


एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण २३-२५
  • मरकुस १४:१-२६

शनिवार, 13 मार्च 2010

होना है या नहीं होना है

बचपन में मेरे मित्र खेल के मैदान में मज़ाक में शेक्सपियर का यह प्रसिद्ध वाक्य कहा करते थे: "होना है या नहीं, यही प्रश्न है" (To be or not to be - that is the question)। हम उस समय में उस वाक्य का वास्तविक अर्थ नहीं जानते थे। बाद में मैंने जाना कि यह शब्द शेक्सपियर के प्रसिद्ध नाटक हैमलेट के हैं। हैमलेट एक दुखी राजकुमार था, क्योंकि उसे मालूम पड़ा कि उसके चाचा ने उसके पिता की हत्या करवा के उसकी माँ से शादी कर ली। उसे इस सच्चाई की भयानकता इतना व्याकुल करती थी कि वह अत्महत्या करने की सोचता था। उसके सामने यही प्रश्न रहता था कि "होना है" (जीवित रहना चाहिये) "या नहीं होना है" (आत्महत्या करनी चाहिये)।

कभी कभी दुख जीवन में इतने असहनीय हो जाते हैं कि हम बहुत निराश हो जाते हैं। प्रेरित पौलुस ने कुरिन्थियों से कहा कि एशिया के इलाकों में उसे इतनी कठोर ताड़ना और पीड़ा सहनी पड़ी कि वह जैसे "जीवन से ही हाथ धो बैठा" (२ कुरिन्थियों १:८)। परन्तु जब उसने जीवन के रक्षक परमेश्वर पर ध्यान लगाया, तब उसकी निराशा का बादल छंट गया, उसका मन विश्वास में दृढ़ हुआ और उसने सीखा कि हम अपने पर भरोसा न रखें, वरन परमेश्वर पर रखें (पद ९)।

क्लेशों में कई दफा जीवन जीने योग्य नहीं लगता, लेकिन केवल अपनी ओर ध्यान करना निराशा ही लाता है। परन्तु परमेश्वर पर भरोसा करना हमारा दृष्टीकोण बदल देता है। हम निश्चित रह सकते हैं कि हमारा सर्वशक्तिमन परमेश्वर जीवन भर हमारी रक्षा करेगा, और उसके अनुयायी होने के कारण हमारे जीवन का सदा एक दिव्य लक्ष्य होगा। - डैनिस फिशर


क्लेश में हम सोच-विचार करते हैं, सोच-विचार हमें समझ-बूझ देते हैं; समझ-बूझ से जीवन लाभान्वित होता है।


बाइबल पाठ: २ कुरिन्थियों १:३-११


हम...ऐसे भारी बोझ से दब गए थे जो हमारी सामर्थ से बाहर था, यहाँ तक कि जीवन से भी हाथ धो बैठे थे। - २ कुरिन्थियों १:८


एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण २०-२२
  • मरकुस १३:२१-३७८

शुक्रवार, 12 मार्च 2010

अधूरा

जब मैं छोटी लड़की थी, तब मेरे माँ-बाप ने अपना पहला मकान खरीदा। एक दोपहर को परिवार के सब लोग कार में बैठकर उस मकान को देखने गये।

मकान की दशा देखकर मुझे विश्वास ही नहीं हुआ; उस घर में न खिड़कियाँ थी और न दरवाज़े, वहाँ एक अजीब दुर्गन्ध भी थी, फर्श की बड़ी दरारों में से नीचे का तहखाना दिखाई पड़ता था। तहखाने में पहुँचने के लिये लकड़ी की एक कच्ची सीढ़ी थी।

उस रात मैंने अपनी माँ से पूछा कि वह ऐसे घर क्यों में रहना चाहती थी? माँ ने समझाया कि मकान बनाने वाले ने अभी मकान पूरा नहीं किया है, काम चल रहा है, कुछ इंतिज़ार करो, जब वह पूरा हो जाएगा तब तुम्हें अवश्य पसन्द आएगा।

फिर हमने उस मकान में कई परिवर्तन होते देखे। खिड़कियाँ और दरवाज़े बने और लगे, नई लकड़ी की दुर्गन्ध गायब हुई, फर्श की दरारें पाट दी गईं, तहखाने तक जाने के लिये अच्छी पक्की सीढ़ीयाँ बनी, दीवारों पर रंग की पुताई हुई। माँ ने खिड़कियों पर परदे और दीवारों पर तस्वीरें टांगीं। उस मकान के बनने में समय लगा, परन्तु वह अधूरा मकान अब पूरा होने के बाद, सुंदर लग रहा था।

हम मसीही भी ऐसे ही धीरे धीरे बढ़ कर परिपक्व होते हैं। हमारे मन परिवर्तन के समय हममें नये जीवन की नींव पड़ती है, परन्तु हमारे पूर्ण्ता की ओर बढ़ने की प्रक्रिया जीवन भर चलती रहती है। जैसे जैसे हम अपने "विश्वासकर्ता और सिद्ध करने वाले" (इब्रानियों १२:२) यीशु मसीह का अनुसरण करते और उसकी आज्ञाओं को मानते हैं, हम भी सिद्धता की ओर बढ़ते हैं और एक दिन उसके समान सिद्ध होंगे। - सिंडी हैस कैस्पर


धीरज रखिये, परमेश्वर का मुझे बनाना अभी पूरा नहीं हुआ है।


बाइबल पाठ: फिलिप्पियों १:३-११


जिसने तुममें अच्छा काम आरंभ किया है, वही उसे यीशु मसीह के दिन तक पूरा करेगा। - फिलिप्पियों १:६


एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण १७-१९
  • मरकुस १३:१-२०

गुरुवार, 11 मार्च 2010

निराशा में आशा

जेम्स टेलर १९७० के प्रारम्भ में अंग्रेज़ी संगीत की दुनिया में अपने गाने ’फायर एंड रेन’ के कारण एक बड़ी कामयाबी के साथ आए। इस गीत में उसने जीवन की निराशाओं का वर्णन किया, मानों वे "टुकड़े टुकड़े होकर ज़मीन पर बिखरे हवा में उन्मुक्त उड़ान भरने के यंत्र तथा ऐसे ही टूटे हुए मधुर सपने हों।" इन पंकतियों में टेलर की भूतपूर्व संगीत मंडली "फ्लाइंग मशीन्स" की ओर संकेत है, जो असफल रही थी और फलस्वरूप टेलर के मन में संदेह आया कि वह कभी संगीत की दुनिया में अपनी पहचान बनाने के अपने सपने को साकार होते देखेगा या नहीं। उन टूट कर बिखरी हुई इच्छाओं ने टेलर को निराशा से और विफलता के नुकसान की आशंका से भर दिया।

भजन कर्ता दाऊद ने भी ऐसी निराशा का अनुभव किया। उसने जीवन की अपनी पराजयों से संघर्ष किया, दूसरों के ताने सहे। हताशा में वह आंसु बहाता रहा (भजन ६:६)। उसके दुख और विफलता ने उसे भयंकर दर्द दिया, परन्तु उस असहनीय पीड़ा में दाऊद ने यहोवा की सांत्वना में आश्रय लिया। दाऊद की टूटी "फ्लाइंग मशीन्स" ने उसे परमेश्वर की देख-रेख का निश्चय दिया। उसने कहा, "यहोवा ने मेरा गिड़गिड़ाना सुना है; यहोवा मेरी प्रार्थना को ग्रहण भी करेगा" (पद ९)।

हमारी निराशाओं में हम परमेश्वर में सांत्वना पा सकते हैं; वह हमारे टूटे हृदय की परवाह करता है। - बिल क्राउडर


परमेश्वर की सांत्वना की फुस्फुसाहट हमारे कष्टों के शोर को शांत करती है।


बाइबल पाठ: भजन ६


मैं कराहते कराहते थक गया; मैं अपनी खाट को आंसुओं से भिगोता हूँ, प्रति रात मेरा बिछौना भीगता है। - भजन ६:६


एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण १४-१६
  • मरकुस १२:२८-४४

बुधवार, 10 मार्च 2010

पक्षियों के लिये

पक्षियों को दाना खिलाने का एक डब्बा मेरे दफ्तर की खिड़की पर लगा है। गिलहरियाँ उसके पास पहुँच नहीं सकतीं। परन्तु एक गिलहरी ने चिड़ियों को दिये जाने वाले दाने को खाने की ठानी। चिड़ियों को मज़े से दाना खाते देख गिलहरी उसी खुशी के लिये तरसती थी। उसने हर दिशा से उस डिब्बे तक पहुँचने की कोशिश करी। खिड़की पर से, पास की झाड़ियों पर से कूदकर, परन्तु उसका हर प्रयत्न निष्फल हुआ। वह हर बार नीचे गिरती थी।

उन दानों को खाने के लिये जो उसके लिये नहीं रखे गये थे, गिलहरी की ये बेकार कोशिशें और उनके फलस्वरूप उसका गिरना, उस प्रथम स्त्री-पुरुष की याद दिलाती है जो वह खाने के प्रयास में जो उनके लिये नहीं रखा गया था गिर गये। उनका पतन सारी मानव जाति के पतन का कारण हुआ। क्योंकि वे अनाज्ञाकारी हुए और परमेश्वर द्वारा मना किया हुआ फल खाया, परमेश्वर ने उन्हें दण्ड दिया और एसी जगह भेजा जहाँ से वे उस फल के पास पहुँच नहीं सकते थे।

परमेश्वेर ने मनुष्य को प्रारंभ में जो भोजन बिना परिश्रम किये उपहार के रूप में दिया था, अब उसे बहुत परिश्रम करके वही भोजन जुटाना पड़ा (उतपत्ति २,३ देखिये)।

परमेश्वर द्वारा मना की गई वस्तु पाने की हमारी लालसा, हमें उन वस्तुओं को पाने के आनन्द से वंचित न करे, जो उसने हमें दीं हैं (इब्रानियों १३:५)। - जूली ऐकरमैन लिंक


सन्तोष सहित भक्ति बड़ी कमाई है। - १ तिमुथियुस ६:६


बाइबल पाठ: इब्रानियों १३:५-१६


तू किसी वस्तु का लालच नहीं करना। - निर्गमन २०:१७


एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण ११-१३
  • मरकुस १२:१-२७

मंगलवार, 9 मार्च 2010

आप यह नहीं कह सकते!

व्यवसाय में उन्नति संबंधी एक वैब्साईट के अनुसार नौकरी में कुछ बातों का प्रयोग करने से बचना चाहिए। अगर कोई अधिकारी आपसे किसी प्रयोजना पर कार्य करने को कहे और आप उसे करने की इच्छा नहीं रखते या पूरा नहीं कर पाएंगे तो यह कहकर आश्वासन मत दिजिये कि "अवश्य, इसमें कोई समस्या नहीं है।" ऐसा कहेंगे और करेंगे नहीं तो आप विश्वास्योग्य नहीं माने जाएंगे। यह भी नहीं कहना है कि, "यह मेरा काम नहीं है" क्योंकि भविष्य में आपको उस व्यक्ति की मदद की ज़रूरत हो सकती है। अगर आपका अधिकारी आपके पास किसी समस्या के कारण आता है तो "यह मेरी गलती नहीं है" कहकर दूसरे पर दोष नहीं डालना चाहिये।

आदम और हव्वा ने परमेश्वर को यही बहाना दिया। उन्हें भले या बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल नहीं खाने की आज्ञ दी गई थी (उत्पत्ति २:१६,१७)। जब उन्होंने आज्ञा तोड़ी और परमेश्वर ने उन्से पूछा तो आदम ने परमेश्वर पर और हव्वा पर, और हव्वा ने सर्प पर इसका दोष लगाया (उत्पत्ति ३:९-१९)। उनकी बातों का सार था कि "यह मेरी गलती नहीं है।"

परमेश्वर जब हमें कुछ करने की आज्ञा देता है तो सम्भवत: कुछ बातें हमें परमेश्वर से कहना उचित नहीं हैं। उदहरण के लिये वह १ कुरिन्थियों १३ में हमें मसीह के जैसे आचरण करने के विशेष निर्देश देता है। हमें आनाकानि स्वरूप परमेश्वर से यह कहने का प्रलोभन हो सकता है कि "मैं इस बात से कायल नहीं हूँ" अथवा "यह मेरा वरदान नहीं है।"

परमेश्वर आज आपको क्या आज्ञा दे रहा है? आप का उत्तर क्या होगा? क्या आप कहेंगे "हाँ प्रभु।" - एनी सेटास


परमेश्वर की आज्ञाकरिता के लिये सबसे शेष्ठ प्रेरणा उसे प्रसन्न करने की इच्छा रखना होनी चाहिये।


बाइबल पाठ: उतपत्ति ३:१-१९


हे प्रभु आप क्या चाहते हैं कि मैं करूँ? प्रेरितों ९:६


एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण ८-१०
  • मरकुस ११:१९-३३

सोमवार, 8 मार्च 2010

ऐसा वक्त आयेगा

अमेरिका की एक पत्रिका में एक लेखक बताता है कि कैसे आजकल कुछ माँ-बाप अपने बच्चों को सब धर्मों का समान परिचय देना चाहते हैं। एमा ड्रॉइलार्ड, जो धार्मिक रीतियाँ करवाती हैं, के पास एक दम्पति आये, और अपनी बच्ची ग्रियर के लिये एक प्र्कार की रीति करवाने की इच्छा व्यक्त की। माँ ने कहा कि हम चाहते हैं कि कोई विशाल आत्मा हमारी बेटी का मार्गदर्शन करे। एक विशेष विश्वास पर ज़ोर न दिया जाये। मसीही विश्वास का एक बहुत हल्का रूप एक सामन्य नीतिबोध ही उसे देना है, जिसमें स्वर्गदूत, परियों, प्रेत आत्माओं और सान्ताक्लास पर विश्वास होता हो।"

यह आज की हमारी संस्कृति में आत्मिक सत्यों को बहुत कम महत्त्व देने वाली प्रवृति का उदहरण है।

प्रेरित पौलुस ने तिमुथियुस को सावधान किया कि एक समय आयेगा, जब लोग ’हल्के’ आत्मिक भोजन चाहेंगे और "खरा उपदेश न सह सकेंगे" (२ तिमुथियुस ४:३,४)। उसने पहले से चिता दिया कि झूठे उपदेशों की भरमार होगी और ऐसे उपदेश ही लोगों को ग्रहण योग्य होंगे, क्योकि वे लोगों की शारीरिक अभिलाषाओं को तृप्त करने वाले होंगे। वे खराई नहीं अपितु मनोरन्जन चाहते हैं और अपने को अच्छा बताने वाले उपदेश सुनना चाहते हैं।

पौलुस ने तिमुथियुस को सचेत किया कि उसे परमेश्वर के वचन पर निरभर होकर और परमेश्वर के वचन के खरे सिद्धांत सिखाकर ही इस प्रवृति का सामना करना है। ऐसे खरे उपदेश का लक्षय होना चाहिये सही शिक्षा देना, डांटना और समझाना (पद २)।

विश्वासियों को चाहिये कि वे परमेश्वर के वचन को सिखाएं और मानें, केवल प्रचलित संस्कृति की खुजली न करें। - मार्विन विलिअम्स


परमेश्वर के वचन पर स्थिर रहो तो गलत सिद्धांतों के फंदे में नहीं पड़ोगे।


बाइबल पाठ: २ तिमुथियुस ४:१-८


ऐसा समय आयेगा कि लोग खरा उपदेश न सह सकेंगे। - २ तिमुथियुस ४:३


एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण ५-७
  • मरकुस ११:१-१८

रविवार, 7 मार्च 2010

परमेश्वर का प्रेम और हमारा

फ्रैंकलिन ग्राहम को अब पछतावा है कि वह एक उग्र और उद्‍दंड स्वभाव वाला युवक हुआ करता था। एक दिन अपने पिता से पैसे मांगने वह अपनी मोटर साईकिल पर सवार धड़धड़ाते हुए उनके घर पहुँचा। बढ़ी हुई दाढ़ी और चमड़े के कपड़े पहिने, रास्ते की धूल से भरा वह अपने पिता के कमरे में बिना खटखटाए ही घुस गया, वहाँ बिली ग्राहम की कार्यकारी समिती की सभा चल रही थी।

बिना हिचके बिली ग्राहम ने उसे पुत्र होने का आदर दिया और समिती के हर सदस्य से उसका परिचय गर्व से कराया। बिली ने बिना किसी लज्जा या अपराध-बोध प्रकट किये, अपने बेटे का स्वागत किया। बेटे के आचरण के लिये किसी से क्षमा भी नहीं मांगी। फ्रैंकलिन ने बाद में अपनी आत्मकथा "रैबैल विद अ कौज़" में लिखा कि उस दिन उसके पिता ने जो प्रेम और आदर उसे दिया, उसका प्रभाव सारे जीवन भर उसके साथ रहा, उसके उद्‍दंडता के दिनों में भी।

हमारे बच्चों को हमारा प्रेम कमाना नहीं है। अपनी स्वार्थ सिद्धी के लिये उन्हें उस प्रेम से वंचित रखना परमेश्वर का नहीं, शैतान का कार्य है। परमेश्वर का प्रेम हमारे लिये असीम है, हमारी कोई भलाई हमें उसे पाने के ’योग्य’ नहीं बनाती और हमने उसे ’कमाने’ के लिये कुछ नहीं किया है। "जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा" (रोमियों ५:८)। अपने सब संबंधों में, विषेषकर अपने बच्चों के साथ संबंध में हमें उसी तरह के प्रेम को दर्शाना है।

परमेश्वर से हमें निर्देश हैं कि हमें अपने बच्चों तथा सब लोगों से प्रेम और आदर का व्यवहार करना है। यह हमें स्मरण दिलाता है कि हमारी कैसी पापमय स्थिति थी जब मसीह ने हमसे प्रेम किया और हमारे लिये अपनी जान दी। - Dave Egner


परमेश्वर का प्रेम उड़ाउ पुत्रों को बहुमूल्य संतों में बदल देता है।


बाइबल पाठ: रोमियों ५:१-११


जब हम पापी ही थे, तभी मसीह हमारे लिये मरा। - रोमियों ५:८


एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण ३,४
  • मरकुस १०:३२-५२

शनिवार, 6 मार्च 2010

तुम भुलाए नहीं गए हो

इंगलैंड के सबसे बुज़ुर्ग मनुष्य, हेनरी अलिंघम, के १११वें जन्मदिवस के अवसर पर उसे शुभकमनाएं देने के लिये, अंग्रेज़ी सेना के प्रतिशठित ’रॉयल मरीनस’ बैंड ने ’हैप्पी बर्थडे’ गीत बजाया और उसके सम्मान में पुराने हवाई जहाज़ों ने उसके सम्मुख उड़ान भरी। लोगों द्वारा उसे अपना इतना आदर किये जाने पर बड़ा विस्मय हुआ।

छः साल पूर्व तक उसने ८६ साल पूर्व खाईयों में सही गई गोलीबारी और बमबारी की उन भयंकर यादों को गुप्त रखा था जो प्रथम विश्वयुद्ध के दिनों की थीं। जब प्रथम विश्वयुद्ध के वीरों की समिती ने उसे उसके बुढ़ापे में ढूंढ निकाला, तब ही अपने देश के लिये सहे गये उन कष्टों की जानकारी लोगों को मालूम पड़ी और उनके लिये इस वृद्ध ने सम्मान पाया।

बाइबल की कई कहनियाँ इस बुज़ुर्ग हेनरी के अनुभव के समान हैं। परमेश्वर का वचन हमें सिखाता है कि जो परमेश्वर की सेवा में युद्ध करते हैं, वे घायल होते हैं, कैदी बनते हैं और कभी मारे भी जाते हैं।

कोई छोटी प्रवर्ति का व्यक्ति, इन जीवनों को देखने के बाद, मन को सांत्वना देने के लिये, केवल इतना ही सोच पायेगा कि भले काम का प्रतिफल शायद, कभी तो मिलेगा। लेकिन इब्रानियों की पत्री का लेखक इससे भी बढ़कर एक भव्य भविष्य देखता है। वह हमें आश्वासन देता है कि विश्वास और प्रेम में किये गए हमारे हर काम के लिये परमेश्वर एक दिन हमें अवश्य सम्मानित करेगा।

क्या आप निराश हैं? क्या स्वयं को तुच्छ समझते हैं? परमेश्वर की सेवा करने के बाद भी आप अपनी उपेक्षा महसूस कर रहे हैं? यदि हाँ तो आशव्स्त हों निराशा नहीं, क्योंकि परमेश्वर उस सेवा को कभी नहीं भूलता, जो आपने उसके लिये करी अथवा उसके कारण दूसरों के लिये करी। - Mart DeHaan


हम अपनी भलाई चाहे भूल जाएं, परमेश्वर हमारी भलाई हमेशा स्मरण रखता है।


बईबल पाठ: इब्रानियों ११:२४-४०


परमेश्वर अन्यायी नहीं कि तुम्हारे काम और उस प्रेम को भूल जाये, जो तुमने उसके नाम के लिये इस रीति से दिखाया, कि पवित्र लोगों की सेवा की। - इब्रानियों ६:१०


एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण १,२
  • मरकुस १०:१-३१

शुक्रवार, 5 मार्च 2010

हृदय में मूर्तियाँ

मेरे पति और मैं जब मिशनरी होकर निकले, तब हम अपने समाज में बढ़ते भौतिकवाद के बारे में चिंतित थे। मैंने यह कभी नहीं सोचा था कि मैं खुद भी भौतिकवादी हो सकती हूँ। आखिरकर, क्या हम बड़े अभाव की स्थिति में रहकर एक दूसरे देश में सेवा करने के लिये नहीं निकले थे? क्या हमने एक छोटे से घर में, बिना किसी सहूलियत या सजावट की वस्तुओं के होते हुए, सेवा करने और जीवन बिताने से संकोच किया? ऐसे में भौतिकतावाद हमें कैसे छू भी सकता था?

तो भी धीरे धीरे मेरे मन में अपनी हालत पर असंतुष्टि जड़ पकड़ने लगी और उन वस्तुओं की लालसा मेरे अंदर पनपने लगी और उनके अभाव में मैं मन ही मन कुंठित होने लगी।

तब एक दिन परमेश्वर के आत्मा ने मेरी आँखें खोलीं और मुझे यह मूल बात समझाई कि भौतिकता वाद केवल एश्वर्य के साधन पाना ही नहीं, उनकी लालसा रखना भी है। अनजाने में ही, बिना समझे, मैं भी भौतिकतावादी होने की गलती करने लग गई थी। परमेश्वर ने मेरे मन में पनप रही असंतुष्टि को उसके वास्तविक रूप में मुझ पर प्रकट कर दिया - मेरे मन में बसी एक मूरत। उस दिन मैंने अपने इस हल्के से दिखने वाले लेकिन बहुत बड़े पाप से पश्चाताप किया, उस मूरत को हटाया और परमेश्वर ने फिर मेरे मन में सर्वोपरि आदर पाया। ऐसा करने के बाद मेरे मन में एक गहरी संतुष्टि आई, ऐसी संतुष्टि जो संसार की वस्तुओं की प्राप्ति पर आधारित नहीं होती, वरन परमेश्वर पर विश्वास रखने से आती है।

यहेजेकेल के ज़माने में परमेश्वर ने ऐसी छिपी मूर्तीपूजा के विरुद्ध कठोर व्यवहार किया। उसका सिंहासन हमेशा से उसके लोगों के हृदय में ही रहा है, इसलिये हमें मन से उन सब विचारों को हटाना है जो उसके साथ हमारी सहभागिता और उसमें मिलने वाले संतोष को नष्ट करते हैं। - Joanie Yoder


मूरत वह है जो परमेश्वर का स्थान छीन लेती है।


बाइबल पाठ: यहेजेकेल १४:१-८


हे मनुष्य की सन्तान, इन पुरुषों ने तो अपनी मूरतें अपने मन में स्थापित की हैं। - यहेजेकेल १४:३


एक साल में बाइबल:
  • गिनती ३४-३६
  • मरकुस ९:३०-५०

गुरुवार, 4 मार्च 2010

स्याही का महासमुद्र

एक भक्तिगीत ’दि लव ऑफ गौड’ शब्द चित्र के द्वारा परमेश्वर के प्रेम की अद्भुत महानता प्रकट करता है - "अगर समुद्र का सारा पानी स्याही बन जाए, सारा आकाश कागज़, भूमि की हर डंठल कलम और सारे मनुष्य लेखक हों, तो भी परमेश्वर के प्रेम का वर्णन करते करते सारी स्याही खत्म हो जायेगी, आकाश के छोर से छोर तक फैलाने पर भी काग़ज़ फैलाने के लिये जगह कम रहेगी; फिर भी उसके प्रेम का वर्णन अधूरा ही रहेगा।"

परमेश्वर के प्रेम के विष्य में पौलुस का विचार भी ऐसा ही था। उसने प्रार्थना थी कि विश्वासी दूसरे सब पवित्र लोगों के साथ मसीह के प्रेम को, जो ज्ञान से परे है जान सकें। वे उसकी चौड़ाई, लंबाई, ऊंचाई और गहराई के बारे में जान सकें, (इफिसियों ३:१८,१९)। कुछ बाइबल के विद्वान इन पदों में परमेश्वर के प्रेम की ’चौड़ाई’ का अर्थ समस्त संसार को अपने प्रेम में समेट लेने को बताते हैं (यूहन्ना ३:१६); ’लंबाई’ से वे हर युग में विद्यमान उसके अस्तित्व को मानते हैं (इफिसियों ३:२१); ’गहराई’ का अर्थ उसका गहरा ज्ञान मानते हैं (रोमियों ११:३३) और ’ऊंचाई’ का अर्थ, पाप के ऊपर विजय पाकर स्वर्ग का मार्ग खोलने की उसकी शक्ति को समझते हैं (इफिसियों ४:८)।

यद्यपि हमें इस अद्भुत प्रेम और उसके महत्त्व को पहचानने के लिये प्रयासरत रहने को कहा गया है, तो भी जैसे जैसे हम परमेश्वर के प्रेम को समझने के प्रयास में अग्रसर होते हैं, हमें एहसास होता है कि उसकी संपूर्ण विशालता हमारी बुद्धी के परे है। सारे समुद्र का पानी स्याही बनाया जाये, तो भी परमेश्वर के प्रेम का वर्णन लिख पाने को पर्याप्त नहीं होगा। - Dennis Fisher


परमेश्वर के प्रेम का वर्णन नहीं किया जा सकता, उसका अनुभव ही किया जा सकता है।


बाइबल पाठ: इफिसियों ३:१८,१९


मसीह के उस प्रेम को जान सको जो ज्ञान से परे है। इफिसियों ३:१९


एक साल में बाइबल:
  • गिनती ३१-३३
  • मरकुस ९:१-१२

बुधवार, 3 मार्च 2010

हम किस पर निर्भर हैं?

टोल्कीन की प्रसिद्ध रचना "दि लॉर्ड ओफ दि रिनग्स" तीन भागों में लिखा गया एक उपन्यास है, जिसपर एक फिल्म भी बनी है। इस रचना के दुसरे भाग में नायक फ्रोडो निराशा की परकाष्ठा पर पहुँचा और उसने अपने मित्र सैम से कहा "मैं यह नहीं कर सकता।" सैम ने उसे एक उत्साहवर्धक व्यख्यान दिया: "महान कथाओं में जैसे बताया गया है....लोग अंधेरों और खतरों में रहे...इन कहानियों के पात्रों को पीछे मुड़ने के बहुत अवसर थे, परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया। क्योंकि वे किसी सिद्धाँत पर अटल थे, इसलिये आगे बढ़ते रहे।" फ्रोडो सैम से पूछता है, "सैम, हम किस सिद्धाँत पर निर्भर रहते हैं?"

यह एक महत्त्वपूर्ण प्रशन है, जिसे हमें स्वयं से पूछना है। एक पतित और टूटते हुए संसार में रहने के कारण कभी कभी हमें लगता है कि हम अंधकार की शक्तियों से हारते जाते हैं। परन्तु जब निराशा से अभिभूत होकर ज़िम्मेदारी से पीछे हटने की स्थिति पर आते हैं, तब हमें पौलूस की सलाह पर अमल करना चाहिये: "विश्वास की अच्छी कुश्ती लड़, और उस अनन्त जीवन को थाम ले (१ तिमुथियुस ६:१२)।

जीवन के संघर्षों में हम इस विश्वास पर दृढ़ रहें कि अन्त में बुराई पर भलाई की जीत होगी और हम अपने प्रभु को आमने सामने देखेंगे और उसके साथ अनन्तकाल तक राज्य करेंगे। हर संघर्ष में भी आप इस महान विजयगाथा के पात्र हो सकते हैं; यदि आपने अपने उद्धार के लिये प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास किया है तो आपकी विजय निश्चित है। - Joe Stowell


स्वर्ग की महान सफलताओं की तुलना में संसार की परीक्षाएं बहुत छोटी हैं।


बाइबल पाठ: १ तिमुथियुस ६:११-१६


विश्वास की अच्छी कुश्ती लड़ और उस अनन्त जीवन को थाम ले। - १ तिमुथियुस ६:१२


एक साल में बाइबल:
  • गिनती २८-३०
  • मरकुस ८:२२-३८

मंगलवार, 2 मार्च 2010

अपनी बुलाहट का पता लगाना

मसीह का अनुसरण करने के निरंतर प्रयास में हम मसीहियों का एक संघर्ष है अपनी जीवन की बुलाहट पहचान लेना। हम इसे अपने व्यवसाय और स्थान के संदर्भ में सोचते हैं, परन्तु इससे भी ज़्यादा ज़रूरी है हमारा चरित्र, जो हमारे हर कार्य पर अपनी छाप छोड़ता है। "प्रभु आप मुझे कैसा देखना चाहते हैं?"

इफिसियों को लिखी अपनी पत्री में पौलूस विनती करता है कि हम अपनी बुलाहट के योग्य जीवन बिताएं (इफसियों ४:१)। इस ’योग्य जीवन’ के लिये वह कुछ बा्तों की अनिवार्यता को बताता है - दीन, नम्र और धैर्यवान होकर प्रेम से एक दूसरे की सहना (पद २)। पौलूस ने यह पत्र जेल से लिखा था, एक बहुत कठोर स्थान, लेकिन वहाँ पर भी वह परमेश्वर से मिली अपनी बुलाहट के अनुरूप जीवन जी रहा था।

ओस्वॉल्ड चैम्बर्स ने कहा है, "अर्पण केवल हमारे जीविका के कार्य को परमेश्वर को अर्पित करना नहीं है, परन्तु दूसरे सब कार्यों को छोड़कर अपने आप को परमेश्वर को समर्पित करना है, उसकी इच्छा के अनुसार उसके निश्चित स्थान पर रहना है, चाहे वह कारोबार, वकालत, विज्ञान, कारखाना, राजनीति या भारी परिश्रम में हो। हमें परमेश्वर के राज्य के नियम और सिद्धांतों के अनुसार उस स्थान पर रहकर काम करना है।"

जब हम परमेश्वर के सामने सही लोग होते हैं, तब जहाँ वह रखे हम वहाँ रहकर उसके द्वारा दिया गया कार्य कर सकते हैं। ऐसा करके हम अपने लिये परमेश्वर की बुलाहट पता लगाते और दृढ़ करते हैं। - David McCasland


तुम्हारे कार्य से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण, तु्म्हारा चरित्र है।


बाइबल पाठ: इफसियों ४:१-१६


सो मैं जो प्रभु का बन्धुआ हूँ, तुमसे विनती करता हूँ कि जिस बुलाहट से तुम बुलाए गये थे, उसके योग्य चाल चलो। - इफिसियों ४:१


एक साल में बाइबल:
  • गिनती २६,२७
  • मरकुस ८:१-२१

सोमवार, 1 मार्च 2010

पोषण की आवश्यकता

हमारा पोता कैमरौन वक्त के छः हफ्ते पहले पैदा हुआ था, इसलिये वह छोटा था और उसकी जान खतरे में थी। दो हफ्तों तक उसे अस्पताल के नवजात शिशुओं के कक्ष में रखा गया और उसकी देखभाल की गई, जब तक वह घर ले जाने लायक नहीं हो गया। उसकी सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि भोजन अंदर लेने और पचाने के लिये उसके शरीर को, भोजन से मिलने वाले पोषण की शक्ति से अधिक शक्ति खर्च करनी पड़ती थी। यह उसके विकास में बाधा थी। ऐसा लगता था कि मानो अपने विकास में वह एक कदम आगे लेता तो दो कदम पीछे।

उसकी हालत सुधारने के लिये कोई दवा या चिकित्सा की नहीं वरन केवल उचित शक्तिदायक पोषण देने की ज़रूरत थी।

इस पतित जगत के जीवन की चुनौतियों के सामने हम मसीहियों की भावनात्मक और आत्मिक शक्ति का नाश होता जाता है। इन अवसरों पर हमें स्फूर्तिदायक पोषण की ज़रूरत है। भजन ३७ में दाऊद हमें सिखाता है कि आत्मा को पोषित रखकर ही हम मन को मज़बूत रख सकते हैं। वह भलाई करने, देश में बने रहने, परमेश्वर पर भरोसा रखने और उसकी सच्चाई में मन लगाए रखने का प्रोत्साहन देता है (पद ३)।

जब हम कमज़ोर पड़ते हैं, तब परमेश्वर की अटूट विश्वासयोग्यता का निश्चय हमें उसके नाम से आगे बढ़ने की शक्ति देती है। उसका नाम और उसकी सच्ची देख-रेख का पोषण ही हमारी सबसे बड़ी ज़रूरत है, जैसे गीतकार कहता है, "तेरी सच्चाई महान है, आज के लिये सामर्थ और कल के लिये प्रकाशमान प्रत्याशा।" - Bill Crowder


आवश्यक शक्ति पाने के लिये परमेश्वर की सच्चाई का पोषण पाओ।


बाइबल पाठ: भजन ३७:१-११


यहोवा पर भरोसा रख और भला कर; देश में बसा रह, और उसकी सच्चाई में मन लगाए रह। - भजन ३७:३


एक साल में बाइबल:
  • गिन्ती २३-२५
  • मरकुस ७:१४-३७