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शुक्रवार, 28 जून 2013

दृष्टिकोण

   विश्व के दो महाशक्तियों अमेरिका और उसके साथी देश, तथा रूस और उसके साथी देशों के बीच 1947 से 1991 तक एक लंबा शीत युद्ध चला जिसमें दोनों ही एक दूसरे से बढ़कर सैन्य क्षमता रखने वाले और एक दूसरे से बलवन्त रहने के प्रयास में लगे रहे। एक दूसरे पर शीर्षता पाने के लिए विकसित किए जाने वाले उनके हथियारों में प्रमुख स्थान था परमाणु हथियारों का। इस होड़ के दौरान प्रसिद्ध परमाणु वैज्ञानिक एल्बर्ट आईन्सटाइन ने एक बहुत अर्थपूर्ण बात कही जो आज तक भी बहुत प्रसिद्ध और उद्धरित होने वाली बात रही है; उन्होंने कहा, "मैं यह तो नहीं जानता कि तीसरा विश्वयुद्ध किस प्रकार के हथियारों से लड़ा जाएगा, लेकिन चौथा विश्वयुद्ध अवश्य ही लाठियों और पत्थरों से लड़ा जाएगा।" आईन्स्टाइन के लिए परमाणु हथियारों से युद्ध लड़े जाने के परिणामों का यह एक स्पष्ट भावी दृष्टिकोण का क्षण था। वह भलि-भाँति यह समझ सके कि चाहे परमाणु युद्ध लड़ने के कारण कोई भी हों, परिणाम संसार भर के लिए अति भीष्ण और अति विध्वंसकारी होंगे।

   दुर्भाग्यवश हम साधारणतया इतने स्पष्ट भावी दृष्टिकोण के साथ आते समय और परिणामों की ओर नहीं देखते। कभी कभी हमारे द्वारा किए गए चुनाव और निर्णयों के संभावित परिणाम आंकना कठिन होता है, और कभी कभी हम केवल अपने वर्तमान के बारे में ही सोच रहे होते हैं ना कि दूरगामी परिणामों के बारे में।

   परमेश्वर के वचन बाइबल के एक महानायक मूसा के विषय में इब्रानियों 11:24-26 में लिखी बात दिखाती है कि मूसा ने अपने निर्णय के लिए भावी दृष्टिकोण रखा और होने वाले संभावित परिणामों को ध्यान में रखते हुए अपने जीवन के लिए निर्णय लिया: "विश्वास ही से मूसा ने सयाना हो कर फिरौन की बेटी का पुत्र कहलाने से इन्कार किया। इसलिये कि उसे पाप में थोड़े दिन के सुख भोगने से परमेश्वर के लोगों के साथ दुख भोगना और उत्तम लगा। और मसीह के कारण निन्‍दित होने को मिसर के भण्‍डार से बड़ा धन समझा: क्योंकि उस की आंखे फल पाने की ओर लगी थीं" (इब्रानियों 11:24-26)।

   मूसा के लिए यह चुनाव सरल नहीं था लेकिन वह अपने उस चुनाव की खराई और सार्थकता को पहचान सका और इसीलिए उसने आते अनन्त समय के सुखद प्रतिफलों के लिए वर्तमान में दुख उठाना अधिक भला समझा। उसके भावी दृष्टिकोण ने ही उसे वर्तमान के कष्ट सहने में सहायता करी। क्या आज हम जो मसीही विश्वासी कहलाते हैं, मूसा के समान ऐसा ही भावी दृष्टिकोण रखते हुए, मसीह यीशु के लिए निंदित होने के लिए तैयार हैं? क्या परमेश्वर के साथ बिताए जाने वाले उस आते जीवन के अनन्त सुख के लिए हम वर्तमान जीवन में मसीह यीशु के कष्टों में संभागी होने के लिए सहमत हैं? पौलुस प्रेरित ने रोम के विश्वासीयों को लिखी अपनी पत्री में स्पष्ट लिखा है "... जब कि हम उसके साथ दुख उठाएं कि उसके साथ महिमा भी पाएं" (रोमियों 8:17)।

   आज आपका दृष्टिकोण और चुनाव क्या है? - बिल क्राऊडर


यदि हम हर बात के लिए मसीह यीशु पर निर्भर रहेंगे तो हर बात को सहने की सामर्थ भी पाते रहेंगे।

यह बात सच है, कि यदि हम उसके साथ मर गए हैं तो उसके साथ जीएंगे भी। - 2 तिमुथियुस 2:11

बाइबल पाठ: इब्रानियों 11:23-31
Hebrews 11:23 विश्वास ही से मूसा के माता पिता ने उसको, उत्पन्न होने के बाद तीन महीने तक छिपा रखा; क्योंकि उन्होंने देखा, कि बालक सुन्‍दर है, और वे राजा की आज्ञा से न डरे।
Hebrews 11:24 विश्वास ही से मूसा ने सयाना हो कर फिरौन की बेटी का पुत्र कहलाने से इन्कार किया।
Hebrews 11:25 इसलिये कि उसे पाप में थोड़े दिन के सुख भोगने से परमेश्वर के लोगों के साथ दुख भोगना और उत्तम लगा।
Hebrews 11:26 और मसीह के कारण निन्‍दित होने को मिसर के भण्‍डार से बड़ा धन समझा: क्योंकि उस की आंखे फल पाने की ओर लगी थीं।
Hebrews 11:27 विश्वास ही से राजा के क्रोध से न डर कर उसने मिसर को छोड़ दिया, क्योंकि वह अनदेखे को मानों देखता हुआ दृढ़ रहा।
Hebrews 11:28 विश्वास ही से उसने फसह और लोहू छिड़कने की विधि मानी, कि पहिलौठों का नाश करने वाला इस्त्राएलियों पर हाथ न डाले।
Hebrews 11:29 विश्वास ही से वे लाल समुद्र के पार ऐसे उतर गए, जैसे सूखी भूमि पर से; और जब मिस्रियों ने वैसा ही करना चाहा, तो सब डूब मरे।
Hebrews 11:30 विश्वास ही से यरीहो की शहरपनाह, जब सात दिन तक उसका चक्कर लगा चुके तो वह गिर पड़ी।
Hebrews 11:31 विश्वास ही से राहाब वेश्या आज्ञा ने मानने वालों के साथ नाश नहीं हुई; इसलिये कि उसने भेदियों को कुशल से रखा था।


एक साल में बाइबल: 
  • अय्युब 11-13 
  • प्रेरितों 9:1-21


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