मेरी बेटी अब बोलने लगी है, तथा उसने एक शब्द सीख लिया है जो उसे बहुत प्रीय है - ’और’। वो हर बात जो उसे पसन्द है उसके लिए वह कहती है ’और’; जैसे, ’और’ कहते हुए वह टोस्ट और जैम की ओर इशारा करेगी, मेरे पति ने हाल ही में उसकी गुल्लक में डालने के लिए उसे कुछ सिक्के दिए तो उसने हाथ फैला कर उनसे कहा ’और’। एक प्रातः जब मेरे पति काम के लिए निकले तो वो पीछे से पुकारने लगी ’और पापा’।
जैसे मेरी वह छोटी बेटी करती है वैसे ही हम व्यसक भी प्रायः अपने चारों ओर की वस्तुओं या किसी अन्य के पास की चीज़ों को देखकर कहते रहते हैं, ’और’; दुर्भाग्यवश हमारे लिए पर्याप्त कभी पर्याप्त नहीं होता, हमें भी हर चीज़ अधिक, और अधिक ही चाहिए होती है। सांसारिक बातों की इस लालसा और लालच की मनसा से बच पाने की सामर्थ केवल प्रभु यीशु में होकर ही हमें मिल सकती है। जैसा प्रेरित पौलुस ने अपने अनुभव के आधार पर कहा, "यह नहीं कि मैं अपनी घटी के कारण यह कहता हूं; क्योंकि मैं ने यह सीखा है कि जिस दशा में हूं, उसी में सन्तोष करूं" (फिलिप्पियों 4:11) वैसे ही हमारे लिए भी यही सामर्थ पौलुस के समान ही उप्लब्ध है।
जब पौलुस कहता है कि "मैं ने यह सीखा है" तो इससे मैं समझती हूँ कि पौलुस के लिए परिस्थितियाँ सरल अथवा सहज नहीं थी। हम जानते हैं कि उसे अपने मसीही विश्वास के जीवन में अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ा; यह सन्तोष करना सीखने के लिए उसे अभ्यास आवश्यक था। जब हम पौलुस के जीवन को परमेश्वर के वचन बाइबल में देखते हैं तो पाते हैं कि उसके जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव आए; वह कठिनाईयों में रहा, सांप से भी डसा गया, झूठे आरोपों का शिकार हुआ, मारा-पीटा भी गया, तिरस्कृत भी हुआ इत्यादि लेकिन वह आत्माओं को बचाने और मसीही विश्वासियों की मण्डलियाँ स्थापित करने में लगा ही रहा और इन सब कठिनाईयों में कहता रहा कि उसकी आत्मा की तृप्ति का स्त्रोत प्रभु यीशु ही है। उसने प्रभु यीशु के सन्दर्भ में कहा, "जो मुझे सामर्थ देता है उस में मैं सब कुछ कर सकता हूं" (फिलिप्पियों 4:13)। प्रभु यीशु ने उसे वह आत्मिक बल दिया था जो उसे कठिनाईयों के समयों में संभालता था और बहुतायत तथा समृद्धि के समयों के फंदों से बच कर निकलना भी सिखाता था।
यदि आप भी अपने जीवन में ’और’, ’और’, ’और’ की लालसा को कार्य करते हुए पाते हैं तो पौलुस के उदाहरण पर ध्यान कीजिए और स्मरण रखिए कि वास्तविक सन्तुष्टि प्रभु यीशु में अधिकाई से बने रहने में ही है ना कि सांसारिक वस्तुओं की बहुतायत के होने से। - जेनिफर बेनसन शुल्ट
सच्ची सन्तुष्टि इस नश्वर संसार की किसी वस्तु भी वस्तु पर निर्भर ना रहने में है।
और उस[प्रभु यीशु]ने उन से कहा, चौकस रहो, और हर प्रकार के लोभ से अपने आप को बचाए रखो: क्योंकि किसी का जीवन उस की संपत्ति की बहुतायत से नहीं होता। - लूका 12:15
बाइबल पाठ: फिलिप्पियों 4:10-20
Philippians 4:10 मैं प्रभु में बहुत आनन्दित हूं कि अब इतने दिनों के बाद तुम्हारा विचार मेरे विषय में फिर जागृत हुआ है; निश्चय तुम्हें आरम्भ में भी इस का विचार था, पर तुम्हें अवसर न मिला।
Philippians 4:11 यह नहीं कि मैं अपनी घटी के कारण यह कहता हूं; क्योंकि मैं ने यह सीखा है कि जिस दशा में हूं, उसी में सन्तोष करूं।
Philippians 4:12 मैं दीन होना भी जानता हूं और बढ़ना भी जानता हूं: हर एक बात और सब दशाओं में तृप्त होना, भूखा रहना, और बढ़ना-घटना सीखा है।
Philippians 4:13 जो मुझे सामर्थ देता है उस में मैं सब कुछ कर सकता हूं।
Philippians 4:14 तौभी तुम ने भला किया, कि मेरे क्लेश में मेरे सहभागी हुए।
Philippians 4:15 और हे फिलप्पियो, तुम आप भी जानते हो, कि सुसमाचार प्रचार के आरम्भ में जब मैं ने मकिदुनिया से कूच किया तब तुम्हें छोड़ और किसी मण्डली ने लेने देने के विषय में मेरी सहयता नहीं की।
Philippians 4:16 इसी प्रकार जब मैं थिस्सलुनीके में था; तब भी तुम ने मेरी घटी पूरी करने के लिये एक बार क्या वरन दो बार कुछ भेजा था।
Philippians 4:17 यह नहीं कि मैं दान चाहता हूं परन्तु मैं ऐसा फल चाहता हूं, जो तुम्हारे लाभ के लिये बढ़ता जाए।
Philippians 4:18 मेरे पास सब कुछ है, वरन बहुतायत से भी है: जो वस्तुएं तुम ने इपफ्रुदीतुस के हाथ से भेजी थीं उन्हें पाकर मैं तृप्त हो गया हूं, वह तो सुगन्ध और ग्रहण करने के योग्य बलिदान है, जो परमेश्वर को भाता है।
Philippians 4:19 और मेरा परमेश्वर भी अपने उस धन के अनुसार जो महिमा सहित मसीह यीशु में है तुम्हारी हर एक घटी को पूरी करेगा।
Philippians 4:20 हमारे परमेश्वर और पिता की महिमा युगानुयुग होती रहे। आमीन।
एक साल में बाइबल:
- गिनती 34-36
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