क्या ऐसा हो सकता है कि हमारा मददगार होना मदद पाने वालों के लिए परेशानी का कारण बन जाए? क्या हमारी सहायता दूसरों के जीवन को और भी कठिन बना सकती है? जी हाँ, ऐसा संभव है; तब, जब हम सहायता करने के प्रयास में दूसरों के जीवनों में द्खलंदाज़ी करने लगते हैं, उन्हें नियंत्रित करने के प्रयास करने लगते हैं, उनकी स्वतंत्रता में बाधा बनने लगते हैं, उन्हें सीखने और पनपने के अवसर देने की बजाए उन्हें दबाए रखने लगते हैं। यदि जो सहयाता हम देने का प्रयास कर रहे हैं वह केवल हमारी चिन्ता से प्रेरित होकर है, तो हम अपने स्वार्थ के कारण दूसरों के लिए कठिनाई पैदा करने वाले बन जाते हैं।
तो फिर हम कैसे पहचान सकते हैं कि जो सहायता हम करना चाह रहे हैं और हमारे मन के भाव वास्तव में परमेश्वर के निस्वार्थ प्रेम से प्रेरित हैं? परमेश्वर का वचन बाइबल हमें बताती है कि हम शुद्ध और निस्वार्थ मन से प्रेम कैसे कर सकते हैं - अपने मनों और विचारों को परमेश्वर को समर्पित रखने तथा उससे मार्गदर्शन पाने के द्वारा: "हे ईश्वर, मुझे जांच कर जान ले! मुझे परख कर मेरी चिन्ताओं को जान ले! और देख कि मुझ में कोई बुरी चाल है कि नहीं, और अनन्त के मार्ग में मेरी अगुवाई कर! " (भजन 139:23-24)।
हम प्रार्थना में अपने परमेश्वर पिता से माँग सकते हैं कि वह हमें दिखाए और बताए कि कहीं अनजाने में ही हम दूसरों के मार्गों की बाधा और उनके लिए कष्ट का कारण तो नहीं बन रहे हैं। हम प्रार्थना में यह भी कह सकते हैं कि परमेश्वर पिता हमें वह प्रेम करना और दिखाना सिखाए जो उसके वचन और स्वभाव के अनुरूप है: "प्रेम धीरजवन्त है, और कृपाल है; प्रेम डाह नहीं करता; प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं। वह अनरीति नहीं चलता, वह अपनी भलाई नहीं चाहता, झुंझलाता नहीं, बुरा नहीं मानता" (1 कुरिन्थियों 13:4-5)।
दूसरों, विशेषकर जिनसे हम प्रेम करते हैं, की सहायता करने के हमारे प्रयास कभी भी चिन्ता से पूर्णतः मुक्त तो नहीं हो सकेंगे, लेकिन परमेश्वर पिता की सहायता और उसके वचन की आज्ञाकारिता से हम वैसा ही निस्वार्थ प्रेम दिखाना सीख सकते हैं जैसा परमेश्वर पिता ने स्वयं हम से किया है तथा सही रीति से सहायता करने वाले बन सकते हैं। और इस प्रेम तथा सहायता के निस्वार्थ होने की पहचान है होगी कि हम लोगों से उस प्रेम के प्रतिफल पाने की या प्रशंसा की कोई इच्छा नहीं रखेंगे। पिता परमेश्वर हमें यह सामर्थ दे कि हम शुद्ध मन और उद्देश्यों से दूसरों की भलाई के लिए प्रेम करें, सहायता करें और बदले में उनसे कुछ पाने की कोई उम्मीद नहीं रखें। - डेविड रोपर
शुद्ध मन और उद्देश्यों से दूसरों की सहायता करने के लिए निस्वार्थ प्रेम करना भी आवश्यक है।
हम अपने चालचलन को ध्यान से परखें, और यहोवा की ओर फिरें! - विलापगीत 3:40
बाइबल पाठ: 1 कुरिन्थियों 13:1-8
1 Corinthians 13:1 यदि मैं मनुष्यों, और सवर्गदूतों की बोलियां बोलूं, और प्रेम न रखूं, तो मैं ठनठनाता हुआ पीतल, और झंझनाती हुई झांझ हूं।
1 Corinthians 13:2 और यदि मैं भविष्यद्वाणी कर सकूं, और सब भेदों और सब प्रकार के ज्ञान को समझूं, और मुझे यहां तक पूरा विश्वास हो, कि मैं पहाड़ों को हटा दूं, परन्तु प्रेम न रखूं, तो मैं कुछ भी नहीं।
1 Corinthians 13:3 और यदि मैं अपनी सम्पूर्ण संपत्ति कंगालों को खिला दूं, या अपनी देह जलाने के लिये दे दूं, और प्रेम न रखूं, तो मुझे कुछ भी लाभ नहीं।
1 Corinthians 13:4 प्रेम धीरजवन्त है, और कृपाल है; प्रेम डाह नहीं करता; प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं।
1 Corinthians 13:5 वह अनरीति नहीं चलता, वह अपनी भलाई नहीं चाहता, झुंझलाता नहीं, बुरा नहीं मानता।
1 Corinthians 13:6 कुकर्म से आनन्दित नहीं होता, परन्तु सत्य से आनन्दित होता है।
1 Corinthians 13:7 वह सब बातें सह लेता है, सब बातों की प्रतीति करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है।
1 Corinthians 13:8 प्रेम कभी टलता नहीं; भविष्यद्वाणियां हों, तो समाप्त हो जाएंगी, भाषाएं हो तो जाती रहेंगी; ज्ञान हो, तो मिट जाएगा।
एक साल में बाइबल:
- 2 राजा 4-6
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