परमेश्वर के वचन बाइबल में मरकुस रचित सुसमाचार में हम एक प्रचण्ड तूफान के बारे में पढ़ते हैं। शिष्य प्रभु यीशु के साथ थे, और वे नाव द्वारा गलील के सागर के पार जा रहे थे, कि वे एक बड़ी आँधी में फंस गए। उन शिष्यों में से कुछ अनुभवी मछुआरे भी थे, परन्तु वे भी आँधी के वेग को देख कर डर गए (मरकुस 4:37-38)। उन शिष्यों के मनों में विचार उठने लगे, क्या परमेश्वर को हमारी कोई चिंता नहीं है? क्या वे प्रभु यीशु द्वारा चुने और नियुक्त किए हुए तथा प्रभु के करीबी नहीं थे? क्या झील के पार जाने में वे प्रभु की आज्ञा का पालन नहीं कर रहे थे? तो फिर उन्हें ऐसी बड़ी आँधी-तूफान का सामना क्यों करना पड़ रहा था?
जीवन में आँधी-तूफान के अनुभव से कोई अछूता नहीं है। परन्तु जैसे वे शिष्य पहले आँधी से डरे परन्तु फिर उस आँधी के अनुभव के कारण ही प्रभु यीशु के प्रति उनकी श्रद्धा और भी अधिक बढ़ गई, उसी प्रकार जब हम अपने जीवनों में आँधी-तूफानों का सामना करते हैं, तो परमेश्वर और उसके कार्यों के प्रति हमारी समझ और गहरी हो जाती है। उन शिष्यों के मन में कौतहूल था, "यह कौन है, कि आन्धी और पानी भी उस की आज्ञा मानते हैं?" (मरकुस 4:41)। हमारे जीवनों में आने वाले आँधी-तूफानों से हम सीख सकते हैं कि हमारे जीवन का कोई आँधी-तूफान प्रभु परमेश्वर को अपनी इच्छा पूरी करने से नहीं रोक सकता है (मरकुस 5:1)।
चाहे हम यह नहीं समझ पाएं कि प्रभु परमेश्वर हमारे जीवनों में आँधी-तूफानों क्यों आने देता है, परन्तु हम उसके धन्यवादी हो सकते हैं कि उन में हो कर हम उसके बारे में और अधिक सीख सकते हैं। हर परिस्थिति हमें सिखाती है कि हमारा प्रभु परमेश्वर सदा हमारा ध्यान रखता है, हमारी देखभाल करता है, और हमारी भलाई ही के लिए कार्य करता है। - एल्बर्ट ली
हमारे जीवन के लंगर की सामर्थ्य आँधी-तूफानों में ही प्रकट होती है।
और इस कारण तुम मगन होते हो, यद्यपि अवश्य है कि अब कुछ दिन तक नाना प्रकार की परीक्षाओं के कारण उदास हो। और यह इसलिये है कि तुम्हारा परखा हुआ विश्वास, जो आग से ताए हुए नाशमान सोने से भी कहीं, अधिक बहुमूल्य है, यीशु मसीह के प्रगट होने पर प्रशंसा, और महिमा, और आदर का कारण ठहरे। - 1 पतरस 1:6-7
बाइबल पाठ: मरकुस 4:35-5:1
Mark 4:35 उसी दिन जब सांझ हुई, तो उसने उन से कहा; आओ, हम पार चलें,।
Mark 4:36 और वे भीड़ को छोड़कर जैसा वह था, वैसा ही उसे नाव पर साथ ले चले; और उसके साथ, और भी नावें थीं।
Mark 4:37 तब बड़ी आन्धी आई, और लहरें नाव पर यहां तक लगीं, कि वह अब पानी से भरी जाती थी।
Mark 4:38 और वह आप पिछले भाग में गद्दी पर सो रहा था; तब उन्होंने उसे जगाकर उस से कहा; हे गुरू, क्या तुझे चिन्ता नहीं, कि हम नाश हुए जाते हैं?
Mark 4:39 तब उसने उठ कर आन्धी को डांटा, और पानी से कहा; “शान्त रह, थम जा”: और आन्धी थम गई और बड़ा चैन हो गया।
Mark 4:40 और उन से कहा; तुम क्यों डरते हो? क्या तुम्हें अब तक विश्वास नहीं?
Mark 4:41 और वे बहुत ही डर गए और आपस में बोले; यह कौन है, कि आँधी और पानी भी उस की आज्ञा मानते हैं?
Mark 5:1 और वे झील के पार गिरासेनियों के देश में पहुंचे।
एक साल में बाइबल:
- यिर्मयाह 20-21
- 2 तिमुथियुस 4
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