मसीही विश्वासी के प्रयोजन (7) - प्रचार
के लिए तैयार (2)
प्रभु यीशु मसीह का, मरकुस 3:14-15 में, अपने शिष्यों के लिए दूसरा प्रयोजन था “वह उन्हें भेजे, कि प्रचार करें”, और हमने इसके तीसरे भाग, शिष्य “प्रचार करें” को पिछले लेख में देखना आरंभ किया।
अपने स्वर्गारोहण के समय प्रभु ने अपने शिष्यों को प्रचार करने के बारे में जो
निर्देश दिए, वे हमें मत्ती 28:18-20, मरकुस
16:15-19, और प्रेरितों 1:8 में मिलते
हैं। इन तीनों खण्डों में दिए गए प्रभु के निर्देशों के अनुसार प्रचार का कार्य
करने से, बहुत विरोध, कठिनाइयों,
और बाधाओं के बावजूद वे शिष्य सुसमाचार प्रचार बहुत प्रभावी और सफल
रीति से कर सके, जिससे दो दशक के भीतर ही उनके लिए ये कहा
जाने लगा कि “...ये लोग जिन्होंने जगत को उलटा पुलटा कर
दिया है...” (प्रेरितों 17:6)।
अर्थात, प्रभु द्वारा उन्हें दिए गए इन निर्देशों में वह
सामर्थी कुंजी है, जो संसार भर में प्रभावी और सफल सुसमाचार
प्रचार का मार्ग बताती है। आज हम अनेकों प्रकार के आधुनिक साधन और सहूलियतों के
होने बावजूद, अपने मानवीय तरीकों से उतना प्रभावी और सफल
सुसमाचार प्रचार नहीं करने पाते हैं, जितना उन आरंभिक दिनों
में उन शिष्यों ने कर दिखाया था। यद्यपि सुसमाचार प्रचार से संबंधित बहुत सी
शिक्षाएं प्रेरितों के काम की पूरी पुस्तक और नए नियम की अन्य पत्रियों में दी गई
हैं, हम यहाँ पर केवल प्रभु के स्वर्गारोहण से संबंधित
उपरोक्त तीनों खंडों में प्रभु द्वारा दिए गए इन निर्देशों में क्या विशेष था,
जिससे वे शिष्य इतने प्रभावी हो सके, केवल उसे
ही देखेंगे:
प्रभु ने ये
निर्देश अपने प्रति समर्पित और प्रतिबद्ध शिष्यों को दिए थे। अर्थात, यह कार्य यरूशलेम से आरंभ कर के सारे संसार भर में (प्रेरितों 1:8),
उनके द्वारा किए जाने के लिए था जिन्होंने सच्चे मन से प्रभु यीशु
को अपना उद्धारकर्ता ग्रहण कर लिया था, और उसके कहे को करने
के लिए प्रतिबद्ध थे। ये शिष्य प्रभु द्वारा इस कार्य के लिए तैयार किए तथा प्रभु
के अधिकार (मत्ती 28:18) के साथ भेजे गए थे; किसी मनुष्य अथवा मानवीय विधि के द्वारा नहीं। सुसमाचार प्रचार के लिए
इनकी योग्यता किसे कॉलेज अथवा सेमनरी से मिली डिग्री नहीं, वरन
प्रभु की शिष्यता थी। उन शिष्यों ने यह कार्य अपने प्रभु के लिए किया था, न कि किसी नौकरी की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए। उन्होंने यह प्रचार
प्रभु के कहे के अनुसार, उसकी आज्ञाकारिता में, उसे प्रसन्न करने के लिए किया था, न कि किसी मत (denomination)
या समुदाय की मान्यताओं के अनुसार अथवा उसके अधिकारियों की संतुष्टि
के लिए।
उन शिष्यों को न तो किसी धर्म का प्रचार
करना था, और न
ही किसी का धर्म परिवर्तन करना था। उन्हें प्रभु यीशु के कहे के अनुसार मसीह यीशु
के शिष्य बनाने थे, और फिर जो स्वेच्छा से शिष्य बन जाए,
उसे बपतिस्मा देना था और प्रभु की बातें सिखानी थीं (मत्ती 28:19-20); यह सभी प्रचारकों और उपदेशकों के लिए जाँचने की बात है कि क्या वे प्रभु
द्वारा दिए गए इस क्रम और निर्देश का पालन कर रहे हैं? उन्हें लोगों को लुभाना
नहीं था, न ही कोई ऐसे आश्वासन देने थे जिनका प्रभु ने न तो
कोई उल्लेख किया और न ही कोई निर्देश दिया। उनके द्वारा सुसमाचार प्रचार पापों के
पश्चाताप के आह्वान के साथ होना था न कि सांसारिक बातों और भौतिक सुख-समृद्धि तथा
शारीरिक चंगाइयों के प्रलोभन देने के द्वारा। न ही उन्हें किसी अन्य के धर्म या
विश्वास को नीचा दिखाने, उसकी आलोचना करने के लिए कहा गया था;
उन्हें केवल अपने व्यक्तिगत जीवन और व्यवहार एवं वार्तालाप से प्रभु
यीशु मसीह और उसके कार्य को संसार के लोगों के सामने ऊंचे पर उठाना था, शेष कार्य परमेश्वर पवित्र आत्मा ने करना था।
क्योंकि ये शिष्य प्रभु के अधिकार के साथ, और प्रभु के निर्देशों
के अंतर्गत, पवित्र आत्मा की सामर्थ्य प्राप्त करने के साथ
सुसमाचार प्रचार के लिए भेजे गए थे, इसलिए आवश्यकता के
अनुसार, उनके प्रचार के दौरान, उनके
प्रचार के साथ ही उनके द्वारा ईश्वरीय सामर्थ्य के कार्य भी हो जाने, और खतरों में भी प्रभु द्वारा सुरक्षित रखे जाने का आश्वासन उनके साथ था
(मरकुस 16:15-18)। यहाँ यह ध्यान रखने की बात है कि प्रभु ने
उन्हें आश्चर्यकर्म करके लोगों को प्रभावित करने और लुभाने, इन बातों के
द्वारा अपने नाम को ऊंचा दिखाने के लिए नहीं भेजा था। जैसे प्रभु यीशु की
पृथ्वी की सेवकाई के दौरान था, वैसे ही उन शिष्यों का प्राथमिक कार्य सुसमाचार प्रचार था।
जैसे प्रभु ने आश्चर्यकर्म सुसमाचार प्रचार के दौरान आवश्यकतानुसार किए, उसी प्रकार इन शिष्यों को भी करना
था। न प्रभु ने आश्चर्यकर्मों को लोगों को आकर्षित करने के लिए प्रयोग किया,
और न ही इन शिष्यों को ऐसा करना था। तात्पर्य यह कि अद्भुत काम और
आश्चर्यकर्म प्राथमिक नहीं थे; सुसमाचार और पापों से
पश्चाताप करना तथा उद्धार पाना प्राथमिक था; यही करना था,
और शेष बातें समय और आवश्यकता के अनुसार स्वतः ही होनी थीं।
आज लोग सच्चे सुसमाचार के प्रचार में
बहुत कम, और प्रभु यीशु
मसीह के नाम में अपने मत या समुदाय की बातों के प्रचार में, या सांसारिक बातों, भौतिक समृद्धि, और शारीरिक चंगाइयों के प्रचार और
प्रदर्शन में बहुत अधिक लगे हुए हैं। आज के प्रचारक प्रभु यीशु को प्रसन्न करने की
बजाए, अपने द्वारा किए गए कार्यों के आँकड़े (statistics)
अपने अधिकारियों और संसार के लोगों के सामने रखने में अधिक रुचि रखते
हैं। हम जगत के अंतिम दिनों में रह रहे हैं; प्रभु यीशु मसीह ने कहा था, “...देखो,
मैं तुम से कहता हूं, अपनी आंखें उठा कर खेतों
पर दृष्टि डालो, कि वे कटनी के लिये पक चुके हैं”
(यूहन्ना 4:35); “...पके खेत बहुत हैं;
परन्तु मजदूर थोड़े हैं: इसलिये खेत के स्वामी से बिनती करो, कि वह अपने खेत काटने को मजदूर भेज दे” (लूका 10:2)। आज प्रभु यीशु मसीह को किसी मत या समुदाय की नौकरी करने वाले प्रचारकों
की नहीं, उसका शिष्य बनकर सच्चे समर्पण और आज्ञाकारिता तथा
प्रतिबद्धता के साथ सुसमाचार प्रचार करने वालों की बहुत आवश्यकता है। क्या आप
प्रभु के लिए यह निर्णय करेंगे, और अपने आप को उसकी सेवकाई
के लिए समर्पित करेंगे?
जहाँ प्रभु की
आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है,
वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। यदि आपने प्रभु की शिष्यता को
अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और
स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी उसके पक्ष में अपना निर्णय कर
लीजिए। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा
से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और
स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु
मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना
जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी
कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने
मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े
गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें।
मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और
समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए
स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल
पढ़ें:
- यिर्मयाह
1-2
- 1 तिमुथियुस 3
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