मसीह यीशु की कलीसिया या मण्डली – 98
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अन्य-भाषाएं - परमेश्वर से बातें करना नहीं है (1)
हम पिछले लेखों से देखते आ रहे हैं कि बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों की एक पहचान यह भी है कि वे बहुत सरलता से भ्रामक शिक्षाओं द्वारा बहकाए तथा गलत बातों में भटकाए जाते हैं। इन भ्रामक शिक्षाओं को शैतान और उस के दूत झूठे प्रेरित, धर्म के सेवक, और ज्योतिर्मय स्वर्गदूतों का रूप धारण कर के बताते और सिखाते हैं (2 कुरिन्थियों 11:13-15)। ये लोग, और उनकी शिक्षाएं, दोनों ही बहुत आकर्षक, रोचक, और ज्ञानवान, यहाँ तक कि भक्तिपूर्ण और श्रद्धापूर्ण भी प्रतीत हो सकती हैं, किन्तु साथ ही उनमें अवश्य ही बाइबल की बातों के अतिरिक्त भी बातें डली हुई होती हैं। जैसा परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस के द्वारा 2 कुरिन्थियों 11:4 में लिखवाया है, यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता, इन भ्रामक शिक्षाओं और गलत उपदेशों के, मुख्यतः तीन विषय, होते हैं - प्रभु यीशु मसीह, पवित्र आत्मा, और सुसमाचार। साथ ही इस पद में सच्चाई को पहचानने और शैतान के झूठ से बचने के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी दी गई है, कि इन तीनों विषयों के बारे में जो यथार्थ और सत्य हैं, वे सब वचन में पहले से ही बता और लिखवा दिए गए हैं। इसलिए बाइबल से देखने, जाँचने, तथा वचन के आधार पर शिक्षाओं को परखने के द्वारा सही और गलत की पहचान करना कठिन नहीं है।
पिछले लेखों में हमने इन गलत शिक्षा देने वाले लोगों के द्वारा, प्रभु यीशु से संबंधित सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं को देखने के बाद, परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित सामान्यतः बताई और सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं की वास्तविकता को वचन की बातों से देखना आरंभ किया है। हम देख चुके हैं कि प्रत्येक सच्चे मसीही विश्वासी के नया जन्म या उद्धार पाते ही, तुरंत उसके उद्धार पाने के पल से ही परमेश्वर पवित्र आत्मा अपनी संपूर्णता में आकर उसके अंदर निवास करने लगता है, और उसी में बना रहता है, उसे कभी छोड़ कर नहीं जाता है; और इसी को पवित्र आत्मा से भरना या पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाना भी कहते हैं। वचन स्पष्ट है कि पवित्र आत्मा से भरना या उससे बपतिस्मा पाना कोई दूसरा या अतिरिक्त अनुभव नहीं है, वरन उद्धार के साथ ही सच्चे मसीही विश्वासी में पवित्र आत्मा का आकर निवास करना ही है। इन गलत शिक्षकों की एक और बहुत प्रचलित और बल पूर्वक कही जाने वाले बात है “अन्य-भाषाओं” में बोलना, और उन लोगों के द्वारा “अन्य-भाषाओं” को अलौकिक भाषाएं बताना, और परमेश्वर के वचन के दुरुपयोग के द्वारा इससे संबंधित कई और गलत शिक्षाओं को सिखाना। इसके बारे में भी हम देख चुके हैं कि यह भी एक ऐसी गलत शिक्षा है जिसका वचन से कोई समर्थन या आधार नहीं है। प्रेरितों 2 अध्याय में जो अन्य भाषाएं बोली गईं, वे पृथ्वी ही की भाषाएं और उनकी बोलियाँ थीं; कोई अलौकिक भाषा नहीं। हमने यह भी देखा था कि वचन में इस शिक्षा का भी कोई आधार या समर्थन नहीं है कि “अन्य-भाषाएं” प्रार्थना की भाषाएं हैं। इस गलत शिक्षा के साथ जुड़ी हुई इन लोगों की एक और गलत शिक्षा है कि “अन्य-भाषाएं” बोलना ही पवित्र आत्मा प्राप्त करने का प्रमाण है, जिसके भी झूठ होने और परमेश्वर के वचन के दुरुपयोग पर आधारित होने को हमने पिछले लेखों में देखा है। पिछले लेखों में हमने यह भी देखा था कि उन लोगों के सभी दावों के विपरीत, न तो प्रेरितों 2:3-11 का प्रभु के शिष्यों द्वारा अन्य-भाषाओं में बोलना कोई “सुनने” का आश्चर्यकर्म था; न ही अन्य भाषाएं प्रार्थना करने की गुप्त भाषाएँ हैं; और न ही ये पृथ्वी की ही अन्य स्थानों की भाषाएँ किसी को भी यूं ही दे दी जाती हैं, जब तक कि व्यक्ति की उस स्थान पर सेवकाई न हो, जहाँ की भाषा बोलने की सामर्थ्य उसे प्रदान की गई है। आज हम अन्य-भाषाएं बोलने से संबंधित कुछ अन्य गलत शिक्षाओं के बारे में देखेंगे।
क्या अन्य-भाषा में बोलना परमेश्वर से सीधे बात करना है?
पवित्र आत्मा और अन्य-भाषा बोलने से संबंधित एक अन्य गलत और पूर्णतः निराधार एवं झूठी शिक्षा यह भी कही जाती है कि 1 कुरिन्थियों 14:2 के अनुसार, जो अन्य भाषा में बोलता है, वह मनुष्यों से नहीं, वरन सीधे परमेश्वर से बातें करता है। यह कहने के द्वारा वे न केवल यहाँ प्रयोग किए गए व्यंग्य या कटाक्ष की, ताना मारने की अनदेखी कर देते हैं, वरन वचन को उसके संदर्भ से बाहर लेकर गलत अर्थ देने के भी दोषी ठहरते हैं। हम पहले देख चुके हैं कि अन्य-भाषा बोलना भी परमेश्वर पवित्र आत्मा के द्वारा दिया जाने वाला एक आत्मिक वरदान है, जो अन्य आत्मिक वरदानों के समान हर किसी को नहीं दिया जाता है, वरन सभी को उनकी निर्धारित सेवकाई के अनुसार भिन्न-भिन्न वरदान दिए जाते हैं (1 कुरिन्थियों 12:7-11, 29-30)। क्योंकि कुरिन्थुस की मण्डली के कुछ लोग भी मुँह से विचित्र निरर्थक ध्वनियाँ निकालने के द्वारा मण्डली के अन्य लोगों को अलौकिक भाषा बोलने के दावे के द्वारा प्रभावित करने में लगे हुए थे, इसीलिए पवित्र आत्मा ने पौलुस द्वारा उनकी इस बात पर ताना मारते हुए यह बात कही, जिसका सामान्य शब्दों में अभिप्राय है, “उन लोगों की ये इस प्रकार की ‘अन्य-भाषाएँ’ किसी मनुष्य की समझ में तो आती नहीं हैं; किसी को पता ही नहीं चलने पाता है कि वे क्या भेद की बातें बोल रहे हैं। वे तो अपने आप को सामान्य लोगों से उच्च और भिन्न स्तर का दिखते हैं, इसलिए मनुष्य नहीं संभवतः परमेश्वर ही समझ पाएगा कि वे क्या कह रहे हैं।” उनकी यह बात, यह दावा, किसी आत्मिक वरदान का व्यक्तिगत रीति से उपयोग, बिना उसके द्वारा कलीसिया की उन्नति अथवा किसी अन्य का लाभ हुए, आत्मिक वरदानों के औचित्य के बिलकुल विपरीत है (1 कुरिन्थियों 12:7; 14:5, 12); परमेश्वर के वचन के विरुद्ध है।
उन लोगों द्वारा अलौकिक भाषाएं बोलने के दावे के संदर्भ में भी पवित्र आत्मा ने पौलुस प्रेरित के द्वारा लिखवा दिया, यदि मैं मनुष्यों, और स्वर्गदूतों की बोलियां बोलूं, और प्रेम न रखूं, तो मैं ठनठनाता हुआ पीतल, और झनझनाती हुई झांझ हूं (1 कुरिन्थियों 13:1)। अर्थात, परमेश्वर की दृष्टि में महत्व पृथ्वी की अथवा अलौकिक भाषा बोल पाने का नहीं है, महत्व प्रेम को दिखाने और मिल-जुल कर प्रेम से रहने का है; और इसके विषय वह 11 अध्याय में, प्रभु-भोज के दर्शन समझाते समय भी उन से कह चुका था, उनमें ऊँच-नीच और बड़े-छोटे होना दिखाने की प्रवृत्ति की भर्त्सना कर चुका था। इसी विचार को आगे बढ़ाते हुए, पौलुस इस पद में होकर इस बात पर बल दे रहा है कि महत्व साथ मिलकर प्रेम के साथ रहने का है, न कि “अन्य-भाषा” बोलने के द्वारा अपने आप को विशेष दिखाने और दूसरों पर अपने किसी रीति से बड़े होने को दिखाने का।
साथ ही इस बात पर भी ध्यान करें, कि 1 कुरिन्थियों 14:9 जो लिखा है, उसे ये गलत शिक्षाएं फैलाने वाले कभी सामने नहीं लाते हैं, कभी नहीं बताते हैं, क्योंकि यह पद उनके परमेश्वर से बातें करने के दावों की पोल खोल देता है। वहाँ लिखा है ऐसे ही तुम भी यदि जीभ से साफ साफ बातें न कहो, तो जो कुछ कहा जाता है वह क्योंकर समझा जाएगा? तुम तो हवा से बातें करने वाले ठहरोगे (1 कुरिन्थियों 14:9)। स्पष्ट है कि जो भी बोला जाए वह अस्पष्ट या समझा न जाने वाला नहीं होना चाहिए, वरन सुनने वालों (परमेश्वर नहीं, वरन सुनने वाले मनुष्यों) की समझ में आने वाली बात ही होनी चाहिए, जैसे प्रेरितों 2:3-11 में थी - लोगों को समझ आ रहा था कि उनकी ही भाषाओं में कहा जा रहा है, परमेश्वर के बड़े-बड़े कामों की चर्चा की जा रही है। इस पद के अंत के वाक्य पर ध्यान कीजिए, “...तुम तो हवा से बातें करने वाले ठहरोगे।” यदि पद 2 में उन लोगों के द्वारा विचित्र और निरर्थक ध्वनियाँ निकालना परमेश्वर से बातें करना था, तो फिर यहाँ लिखी गई यह बात कैसे संभव है? पवित्र आत्मा की अगुवाई में पौलुस प्रेरित यह बात कैसे लिख सकता है, क्योंकि यह तो परमेश्वर से बातें करने की बात के विपरीत और उसका अपमान करना है? या तो पद 2 में परमेश्वर से बात करना सही है, या फिर पद 9 में हवा से बातें करना सही है। दोनों तो एक साथ सही तब ही होंगे जब पद 2 की बात एक ताना है, और पद 9 की बात वास्तविकता है। अर्थात, स्वयं परमेश्वर के वचन ने ही तुरंत ही अपनी सही बात को सामने रख दिया है। और ये गलत शिक्षाएं देने वाले इस पद की, तथा इस संदर्भ के परमेश्वर के वचन के अन्य हवालों की अनदेखी करके, केवल अपनी ही बात को सही दिखाने के मतलब से, परमेश्वर के वचन का दुरुपयोग करते हैं, परमेश्वर के वचन में मिलावट करते हैं, परमेश्वर के नाम में झूठी शिक्षाएं और बातें सिखाते हैं।
अगले लेख से हम अन्य भाषाएं बोलने से संबंधित कुछ और बहुत महत्वपूर्ण बातों पर विचार करेंगे। यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए यह जानना और समझना अति-आवश्यक है कि आप परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित इन गलत शिक्षाओं में न पड़ जाएं; न खुद भरमाए जाएं, और न ही आपके द्वारा कोई और भरमाया जाए। लोगों द्वारा कही जाने वाले ही नहीं, वरन वचन में लिखी हुई बातों पर भी ध्यान दें, और लोगों की बातों को वचन की बातों से मिला कर जाँचें और परखें। यदि आप इन गलत शिक्षाओं में पड़ चुके हैं, तो अभी वचन के अध्ययन और बात को जाँच-परख कर, सही शिक्षा को, उसी के पालन को अपना लें।
यदि आपने अभी तक प्रभु की शिष्यता को स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी उसके पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। यदि आपने अभी तक नया जन्म, उद्धार नहीं पाया है, प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा नहीं माँगी है, तो अभी आपके पास समय और अवसर है कि यह कर लें। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” परमेश्वर आपके साथ संगति रखने की बहुत लालसा रखता है तथा आपको आशीषित देखना चाहता है, लेकिन इसे सम्भव करना आपका व्यक्तिगत निर्णय है। सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी। क्या आप अभी समय और अवसर होते हुए, इस प्रार्थना को नहीं करेंगे? निर्णय आपका है।
और
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The Church, or, Assembly of Christ Jesus - 98
Speaking in “Tongues” is NOT Directly Speaking with God (1)