भ्रम की युक्तियों से प्रभावित मसीही विश्वासी
पिछले लेख में हमने इफिसियों 4:14 से देखा था कि प्रभु
परमेश्वर के प्रति अविश्वास और अनाज्ञाकारिता के कारण बालकों के समान अपरिपक्व
रहने वाले मसीही विश्वासी, और उन से बनी अपरिपक्व कलीसिया,
शैतान का शिकार रहते हैं। वे मनुष्यों की ठग विद्या और चतुराई
द्वारा भटकाए और फंसे जाते हैं; भ्रम की युक्तियों से
प्रभावित रहते हैं; गलत उपदेशों से गलत शिक्षाएं लेते और
मानते रहते हैं, और अपरिपक्वता के इन दुष्प्रभावों के कारण
इधर से उधर विभिन्न मतों, समुदायों, विचारों
में उछले और घुमाए जाते हैं, भटकाए जाते हैं। इनमें से पहले
दुष्प्रभाव को देखने के बाद, पिछले लेख में हमने दूसरे
दुष्प्रभाव, भ्रम की युक्तियों में फँसने का एक उदाहरण, परमेश्वर के भक्त
जनों, अय्यूब और उसके मित्रों की बातों से देखा था। अय्यूब के मित्र अपनी ओर से
परमेश्वर के पक्ष में और अय्यूब को दोषी ठहराने के लिए तर्क-वितर्क करते रहे, और अय्यूब अपने आप को
निर्दोष बताता रहा। अन्ततः परमेश्वर से सामना होने के बाद अय्यूब को अपनी वास्तविक
दशा का, अपने भ्रम का, और शैतान द्वारा
उसे स्व-धार्मिकता के पाप में फँसाए रहने का एहसास हुआ; उसने
पश्चाताप किया, परमेश्वर से क्षमा माँगी, अपने मित्रों के लिए भी क्षमा याचना की, और अपनी
आशीषों को बहाल किया, परमेश्वर से दोगुना प्राप्त किया, परमेश्वर से
दोगुना प्राप्त किया, और अपने मित्रों को परमेश्वर के प्रकोप
से बचाया। आज हम इसी भ्रम और युक्ति के एक अन्य उदाहरण को नए नियम से देखेंगे, कि किस प्रकार शैतान
अपनी युक्ति के द्वारा प्रभु यीशु से मिलने वाली धार्मिकता के स्थान पर हमें अपने
कर्मों और सांसारिक लोगों के समान व्यवहार के द्वारा एक गढ़ी हुई धार्मिकता के
निर्वाह में फँसा देता है, हमें परमेश्वर के मार्गों से और
उसकी संगति तथा निकटता से पथ-भ्रष्ट कर देता है, अप्रभावी
बना देता है। कृपया पौलुस प्रेरित द्वारा कुलुस्से की मण्डली को लिखी पत्री -
कुलुस्सियों 2 अध्याय को अपने सामने खोल कर रखें।
इस अध्याय का आरंभ पौलुस द्वारा उस
मण्डली के लोगों से किए गए आह्वान से होता है कि वे प्रभु यीशु मसीह और उसमें छिपे “बुद्धि और ज्ञान के
सारे भण्डार” को पहचान लें, जिससे
कि मनुष्यों की लुभावनी बातों से धोखे में न आएं (पद 2-4)।
पद 5 से ध्यान कीजिए कि वह उनके चरित्र और विश्वास की दृढ़ता
की सराहना तो करता है, किन्तु साथ ही पवित्र आत्मा के द्वारा
उसे आशंका है, और वह उन्हें चिताता है कि वे धोखे में आ सकते
हैं। फिर पद 6-8 में वह उन्हें इस धोखे से बचने और झूठ तथा
सत्य के बीच पहचान करने की विधि बताता है - मसीह में बने और चलते रहो, बढ़ते रहो; और “चौकस
रहो कि कोई तुम्हें उस तत्व-ज्ञान और व्यर्थ धोखे के द्वारा अहेर न करे ले,
जो मनुष्यों के परंपराई मत और संसार की आदि शिक्षा के अनुसार हैं,
पर मसीह के अनुसार नहीं” (“कुलुस्सियों 2:8)। फिर पौलुस पवित्र आत्मा के द्वारा, पद 9-15
में प्रभु यीशु मसीह के गुण, हमारे उद्धार तथा परमेश्वर से
मेल-मिलाप के लिए किए गए उसके कार्य के महत्व, तथा उसके साथ मसीही विश्वासियों के
संबंध और उससे विश्वासियों के जीवनों में होने वाले प्रभावों के बारे में लिखता
है। यहाँ, पद 14-15 में दी गई बात को
ध्यान रखना अनिवार्य है - प्रभु यीशु मसीह ने हमारे लिए व्यवस्था और उसकी सभी मांगो
को पूरा कर के हमारे सामने से हटा दिया है। जब हम मसीह यीशु में आ जाते हैं,
तो उसमें होने के द्वारा, हम उसके द्वारा
व्यवस्था के पालन की अनिवार्यता को पूरा करके हटा देने की आशीष में भी आ जाते हैं,
उस आशीष के संभागी हो जाते हैं। अब हमारे मसीह में होने के कारण
व्यवस्था की हम पर कोई माँग शेष नहीं रही है, जैसे मसीह पर
व्यवस्था की कोई माँग नहीं है। मसीह यीशु में होने के कारण मसीही विश्वासी
व्यवस्था की हर एक बात के पालन से मुक्त हो गया है; इसलिए अब
उसका वापस व्यवस्था के पालन की ओर मुड़ना, मसीह के द्वारा दिए
गए बलिदान और उद्धार के कार्य को नकारना, उसका तिरस्कार करना,
और फिर से अपने कर्मों की स्व-धार्मिकता की बंधुवाई में लौटना है।
शैतान मसीही विश्वासियों और उनसे बनी
कलीसिया को इसी स्व-धार्मिकता के भ्रम की बंधुवाई में वापस लाने, और उन्हें प्रभु
परमेश्वर और उसके कार्यों, तथा सुसमाचार प्रचार के लिए
अप्रभावी बनाने के लिए विभिन्न प्रकार के कर्मों की धार्मिकता में फँसाने की
युक्तियों का प्रयास करता है, जैसा पद 16-18 में लिखा है। शैतान अपनी युक्तियों द्वारा विश्वासियों को स्व-धार्मिकता
के भ्रम में फँसाने के लिए उन्हें खाने-पीने द्वारा धर्मी-अधर्मी होने; संसार के लोगों के पर्वों, दिनों, त्यौहारों को मनाने के द्वारा परमेश्वर को स्वीकार्य एवं प्रसन्न करने
वाले होने; दीनता के व्यवहार को दिखाने, तथा परमेश्वर के दासों/सेवकों को आराधना और उपासना के योग्य समझने और
मानने वाला होने, आदि बातों के भ्रम में फँसाने के प्रयास
करता है और इन बातों के प्रभावी होने को दिखाने के लिए विभिन्न प्रकार की
युक्तियों का प्रयोग करता है। किन्तु उसके इस भ्रम और युक्तियों से बचाव का मार्ग
पहले ही दे दिया गया है - प्रभु यीशु मसीह में ही सारी बुद्धि, समझ और धार्मिकता है; जो प्रभु यीशु में है, उसे और किसी बात की कोई आवश्यकता नहीं है, जिसे फिर
से पद 19 में दोहराया गया है।
फिर पद 20-23 में पवित्र आत्मा, पौलुस के द्वारा इस कर्मों के द्वारा धर्मी होने के भ्रम की व्यर्थता पर
बल देते हुए, मण्डली के लोगों से अपने आप से प्रश्न करने और
अपने आप को जाँचने के लिए कहता है। पद 23 में निष्कर्ष के
साथ शैतान की इस गढ़ी हुई धार्मिकता, शैतान के भ्रम और
युक्तियों के व्यर्थ होने एक व्यावहारिक प्रमाण भी दिया गया है “इन विधियों में अपनी इच्छा के अनुसार गढ़ी हुई भक्ति की रीति, और दीनता, और शारीरिक योगाभ्यास के भाव से ज्ञान का
नाम तो है, परन्तु शारीरिक लालसाओं को रोकने में इन से कुछ
भी लाभ नहीं होता” (कुलुस्सियों 2:23)। परमेश्वर पवित्र आत्मा ने यहाँ स्पष्ट लिखवाया है कि पद 16-18,
20 में दी गई धार्मिकता के लिए विभिन्न कर्मों के निर्वाह करने
वालों के जीवनों में स्पष्ट देखा जाता है कि यह सब करने के बाद भी “शारीरिक योगाभ्यास के भाव से ज्ञान का नाम तो है, परन्तु
शारीरिक लालसाओं को रोकने में इन से कुछ भी लाभ नहीं होता” - अर्थात यह सब कर के भी वे लोग शारीरिक लालसाओं से फिर भी पराजित ही रहते
हैं, किन्तु अपने आप को बहुत धर्मी समझने के भ्रम में फंसे
रहते हैं। अब मेरे और आपके लिए, प्रत्येक मसीही विश्वासी के
लिए प्रश्न है कि जो बातें उन्हें शरीर पर ही जयवंत नहीं करने पाई हैं, वे उन्हें परमेश्वर की दृष्टि में धर्मी, उसे
स्वीकार्य, और स्वर्ग में जाने के लिए पवित्र कैसे बनाने
पाएंगी? यह सब आडंबर है, शैतान द्वारा
फैलाया गया भ्रम, और इस भ्रम में फँसाए रखने के लिए वह
विभिन्न प्रकार की युक्तियों का प्रयोग करता रहता है।
यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो कुलुस्सियों 2
अध्याय के आधार पर अपने मसीही जीवन को जाँच-परख कर देख लें की कहीं
आप पर भी तो शैतान के इस भ्रम और अपनी युक्तियों में फँसाने का दांव तो नहीं चल
गया है? कहीं आप भी धर्म-कर्म-त्यौहार और पर्वों तथा दिनों
को मनाने, परमेश्वर के लोगों और सेवकों को अस्वाभाविक तथा
अनुचित आदर और आराध्य होने का दर्जा देने की व्यर्थ धार्मिकता में तो नहीं फंस गए
हैं? शैतान के भ्रम और उसकी इन युक्तियों को पहचानने और उनसे
बचने का एक ही उपाय है - कुलुस्सियों 2:6-8। यदि आप को अपने
जीवन में कोई सुधार करना है, तो अभी समय और अवसर रहते हुए कर
लीजिए, कहीं बाद में बहुत देर न हो जाए, और आप किसी बहुत बड़ी हानि में न पड़े रह जाएं।
यदि आपने
प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने
अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष
में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके
वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और
सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए
- उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से
प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ
ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस
प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद
करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया,
उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी
उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को
क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और
मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।”
सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा
भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
- लैव्यव्यवस्था
17-18
- मत्ती 27:27-50
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें