पिछले लेखों में हमने देखा है कि जब
मसीही विश्वासी परमेश्वर पर भरोसा रखने के स्थान पर अपने ही परिश्रम और प्रयासों
पर भरोसा रखता है, और
फिर परमेश्वर के मार्गदर्शन के अनुसार नहीं वरन अपनी ही बुद्धि और समझ के अनुसार
कार्य करने लगता है, तो फिर वह प्रेरितों 2:42 में दिए गए मसीही जीवन के चार स्तंभों में लौलीन रहने के स्थान पर अपने इस
परिश्रम और प्रयास में लौलीन रहने लग जाता है। परिणामस्वरूप उसका मसीही जीवन कमज़ोर
पड़ने लगता है, और वह मसीही जीवन में परिपक्वता की ओर अग्रसर
नहीं रहने पाता है, अपरिपक्व हो जाता है। अपरिपक्व मसीही
विश्वासियों से बनी कलीसिया भी अपरिपक्व ही होती है। मसीही विश्वासियों और प्रभु
की कलीसिया में इस अपरिपक्वता के लक्षण हम देख चुके हैं। और हमने इफिसियों 4:14
से इस अपरिपक्वता से आने वाले पहले दुष्प्रभाव को पिछले लेख में
देखा है, कि अपरिपक्व विश्वासी मनुष्यों की ठग विद्या और
चतुराई में या तो बारंबार फँसते रहते हैं, अथवा फंसे ही रह
जाते हैं। साथ ही हमने यह भी देखा था कि इससे बचने का उपाय भी वचन में बढ़ना,
स्थापित और दृढ़ होना, तथा वचन के द्वारा
जाँच-परख करने के बाद ही किसी शिक्षा अथवा बात को स्वीकार करना है।
आज हम इफिसियों 4:14 में दिए गए दूसरे
दुष्प्रभाव को देखेंगे - मनुष्यों की भ्रम की युक्तियों से प्रभावित रहना। भ्रम
शब्द का अर्थ होता है वह जो सही या सत्य प्रतीत तो हो, किन्तु
वास्तविकता में सही या सत्य न हो। इसी प्रकार से युक्ति का अर्थ है किसी बात को
करने या करवाने के लिए प्रयोग की गई चतुराई या बुद्धिमत्ता की कोई बात। अर्थात, भ्रम की
युक्तियों से प्रभावित रहने का, हमारी इस चर्चा के संदर्भ
में, तात्पर्य हुआ किसी मिथ्या बात को सही या ठीक बना और बता
कर, चतुराई से गढ़ी गई
बातों के द्वारा, मसीही
विश्वासी को परमेश्वर के सही मार्ग से भटका कर शैतान के भ्रष्ट और गलत मार्ग पर
डाल देना। शैतान यह कार्य इतनी चतुराई और बारीकी से करता है कि बहुधा उस प्रभु के
जन को पता भी नहीं चलने पाता है कि वह किसी गलत मार्ग पर चल निकला है। जब तक भटक
जाने का एहसास होता है, तब तक बहुत हानि हो चुकी होती है।
इसका एक उत्तम उदाहरण है अय्यूब
की पुस्तक में अय्यूब और उसके मित्रों के मध्य हुआ तर्क-वितर्क, और अंततः
परमेश्वर द्वारा अय्यूब को सही तथा उसके मित्रों को गलत बताना। संक्षेप में,
अय्यूब के साथ हुई भयानक त्रासदी और हानि के समाचार को सुनकर उसके
मित्र उससे मिलने और उसे सांत्वना देने आए (अय्यूब 2:11-13)।
उन्होंने बारंबार, अपने तर्कों और विचारों के द्वारा अय्यूब
को यह जताने का प्रयास किया कि उसने कुछ ऐसा पाप किया होगा जिसके कारण परमेश्वर
उससे क्रुद्ध हुआ और उस पर यह ताड़ना भेजी (अय्यूब 4:7-9)।
अपनी बातों से वे परमेश्वर को सही, न्यायी, और खरा, तथा अय्यूब को बुरा और परमेश्वर की ताड़ना के
लिए दोषी प्रमाणित करना चाह रहे थे। अय्यूब उनके हर तर्क का उत्तर देता रहा और
उनसे यही कहता रहा कि उसने ऐसा कुछ नहीं किया है जिसके कारण परमेश्वर को उसे यह
भयानक ताड़ना देनी पड़े। अन्ततः, वे मित्र चुप हो जाते हैं,
और अय्यूब परमेश्वर के सामने अपने निर्दोष होने की दुहाई देता है,
परमेश्वर से न्याय माँगता है। जब परमेश्वर अय्यूब से बात करता है तो
अय्यूब को अपनी वास्तविक पापमय स्थिति का एहसास होता है, और
वह पश्चाताप करता है, परमेश्वर से क्षमा माँगता है (अय्यूब 40:2-5;42:1-6)। परमेश्वर उसे क्षमा कर देता है, उसे दोगुना लौटा
कर दे देता है।
हमारी इस चर्चा की बात के लिए अय्यूब को क्षमा करने के बाद परमेश्वर जो कहता है, वह महत्वपूर्ण और रोचक है; “और ऐसा हुआ कि जब यहोवा ये बातें अय्यूब से कह चुका, तब उसने तेमानी एलीपज से कहा, मेरा क्रोध तेरे और तेरे दोनों मित्रों पर भड़का है, क्योंकि जैसी ठीक बात मेरे दास अय्यूब ने मेरे विषय कही है, वैसी तुम लोगों ने नहीं कही। इसलिये अब तुम सात बैल और सात मेढ़े छांट कर मेरे दास अय्यूब के पास जा कर अपने निमित्त होमबलि चढ़ाओ, तब मेरा दास अय्यूब तुम्हारे लिये प्रार्थना करेगा, क्योंकि उसी की मैं ग्रहण करूंगा; और नहीं, तो मैं तुम से तुम्हारी मूढ़ता के योग्य बर्ताव करूंगा, क्योंकि तुम लोगों ने मेरे विषय मेरे दास अय्यूब की सी ठीक बात नहीं कही। यह सुन तेमानी एलीपज, शूही बिल्दद और नामाती सोपर ने जा कर यहोवा की आज्ञा के अनुसार किया, और यहोवा ने अय्यूब की प्रार्थना ग्रहण की। जब अय्यूब ने अपने मित्रों के लिये प्रार्थना की, तब यहोवा ने उसका सारा दु:ख दूर किया, और जितना अय्यूब का पहिले था, उसका दुगना यहोवा ने उसे दे दिया” अय्यूब 42:7-10)। अय्यूब की पुस्तक के अधिकांश भाग में ये मित्र परमेश्वर को सही और अय्यूब को दोषी ठहराने का प्रयास करते रहे, परमेश्वर के पक्ष की बात करते रहे, किन्तु इन्हें पता ही नहीं चला, कब और कैसे शैतान ने उन्हें अपनी ओर से बोलने वाला बना दिया।
वे अपनी समझ से परमेश्वर के पक्ष में बोल रहे थे, किन्तु यह उनका भ्रम था; शैतान ने उन्हें अपनी
युक्ति के द्वारा परमेश्वर के बारे में ठीक बातें कहने से भटका दिया था। उन्होंने
इतना कुछ परमेश्वर के लिए गलत कहा कि परमेश्वर उनकी घोर ताड़ना करने के लिए तैयार
हो गया। परमेश्वर ने अब यह अय्यूब पर छोड़ दिया कि वह अपने मित्रों के लिए बिचवई का
कार्य करेगा, उनके लिए क्षमा याचना करेगा, या उन्हें उनके किए का दंड भुगतने देगा। अय्यूब ने अपने मित्रों के लिए
परमेश्वर से क्षमा याचना की और उन्हें परमेश्वर की ताड़ना से बचा लिया।
यह घटना न केवल हमें शैतान द्वारा भ्रम
और युक्तियों में फँसाने का उदाहरण देती है, वरन साथ ही एक बहुत महत्वपूर्ण तथ्य भी हमारे सामने रखती
है - हम परमेश्वर और उसके वचन को हल्के में नहीं ले सकते हैं, अपनी बुद्धि और समझ के अनुसार चाहे जैसे प्रयोग नहीं कर सकते हैं। ऐसा
करने वालों के लिए जवाबदेही और भयानक ताड़ना सामने रखी है। परमेश्वर पवित्र आत्मा
ने यहेजकेल नबी के द्वारा परमेश्वर की प्रजा इस्राएल के अगुवों को चिताया कि जो भी
अपनी पूर्व-धारणाओं और अपने मन में कुछ बातें बैठाए हुए परमेश्वर के नाम का
औपचारिकता के लिए प्रयोग करना चाहेगा, किन्तु सच्चे मन से
परमेश्वर के प्रति समर्पित और आज्ञाकारी नहीं होगा, उसे
परमेश्वर से दण्ड का सामना करना पड़ेगा, और कोई भी उन्हें
परमेश्वर के हाथों से बचाने न पाएगा (यहेजकेल 14:1-14)।
इसीलिए प्रेरित पौलुस में होकर पवित्र आत्मा ने मसीही विश्वासियों के लिए लिखवाया
है, “कि शैतान का हम पर दांव न चले, क्योंकि हम उस की युक्तियों से अनजान नहीं” (2 कुरिन्थियों
2:11); अर्थात, हम शैतान की युक्तियों
से तब ही बच कर रह सकते हैं जब हम उसकी कार्यविधि और विभिन्न युक्तियों और भ्रम की
बातों से अवगत होंगे। और यह तब ही होने पाएगा, जब हम
परमेश्वर के वचन में दृढ़ और स्थापित तथा उसके आज्ञाकारी होंगे।
यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए यह बहुत
महत्वपूर्ण है कि आप सचेत होकर, अपने मसीही विश्वास और मसीही
गवाही के जीवन को बारीकी से जाँच कर देख लें कि कहीं आप भी अय्यूब के मित्रों के
समान, अनजाने में ही शैतान के भ्रम और युक्ति का शिकार तो
नहीं हो गए हैं? कहीं आप अपने आप को सही और ठीक मानते,
समझते रहें; किन्तु परमेश्वर के वचन के स्थान
पर अपनी या अन्य किसी मनुष्य, मत, समुदाय,
डिनॉमिनेशन, अथवा संस्था की मानवीय बुद्धि के
अनुसार बातों को ही मानते रह जाएं, और अंत में अपने आप को
भयानक तथा अपरिवर्तनीय हानि में पड़े हुए पाएं। अभी समय रहते प्रभु यीशु मसीह के
सहारे, अपनी गलती और दशा को सुधार लें; हानि से निकलकर प्रभु द्वारा आशीष में आ जाएं।
यदि आपने प्रभु की
शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन
और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना
निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की
बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी
है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा
से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और
स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु
मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना
जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी
कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने
मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े
गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें।
मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और
समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए
स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
- लैव्यव्यवस्था
15-16
- मत्ती 27:1-26
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