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बुधवार, 17 अगस्त 2022

मसीही सेवकाई और पवित्र आत्मा / The Holy Spirit in Christian Ministry – 29


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बप्तिस्मा समझना - (6) – “पवित्र आत्मा से भर जाना” क्या होता है? 


पिछले लेख में हमने वचन के उदाहरणों से तथा इफिसियों 5:18 की व्याख्या द्वारा देखा था कि “पवित्र आत्मा से भरना” कोई पृथक या किसी-किसी को ही प्राप्त होने वाला विलक्षण अनुभव नहीं है; और न ही यह “पवित्र आत्मा से बपतिस्मा” के साथ संबंधित है, या उसके समान है। क्योंकि “पवित्र आत्मा का बपतिस्मा” कहकर गलत शिक्षाओं के फैलाने वालों ने “पवित्र आत्मा से भरना” के संबंध में भी बहुत सी गलत शिक्षाएं फैला रखी हैं। बाइबल के लेखों को समझने और उनके संबंध में किसी धोखे में पड़ने से बचने के लिए, यह देखना और समझना भी आवश्यक है कि उन प्राथमिक श्रोताओं ने, जिन्हे सबसे पहले वह बात लिखी गई थी, उसे किस प्रकार से समझा और अपने जीवन में लागू किया था। वही इस बात का प्राथमिक और अपरिवर्तनीय अर्थ है; शेष सभी अर्थ और व्याख्या उस अर्थ के सहायक हैं, किन्तु कभी उसका स्थान नहीं ले सकते हैं। अन्यथा, बाइबल परिवर्तनीय, झूठ का संग्रह, और अ विश्वसनीय हो जाएगी। इसलिए आज के लेख में कुछ सामान्य जीवन की बातों और उदाहरणों के द्वारा “पवित्र आत्मा से भरना” को कुछ विस्तार से और ठीक से समझेंगे।

 

यदि मसीही विश्वासी पवित्र आत्मा के निर्देशानुसार (गलातियों 5:16, 25) नहीं चलता है, उसकी आज्ञाकारिता के द्वारा उसकी सामर्थ्य को प्रयोग नहीं करता है, तो पवित्र आत्मा उसके जीवन में उससे शोकित रहता है, तथा उसका अपना जीवन प्रभु के लिए अप्रभावी, तथा निष्फल रहता है (इफिसियों 4:30; 1 थिस्सलुनीकियों 5:19)। इसे इस उदाहरण द्वारा समझिए - आपके घर में बिजली का कनेक्शन और तार लगे हैं और उन तारों में बिजली प्रवाहित भी होती रहती है। किन्तु जब तक आप कोई कार्यशील, एवं बिजली से चलने वाला उपयुक्त उपकरण उसके साथ जोड़कर बिजली को अपना कार्य नहीं करने देते हैं, तब तक उस बिजली की आपके घर में उपस्थिति निष्क्रिय, निष्फल, एवं प्रभाव रहित है। आप जैसा और जितना शक्तिवान उपकरण जोड़ेंगे और बिजली को उस में से प्रवाहित होकर कार्यकारी होने देंगे, उतना ही आप उस विद्यमान बिजली की सामर्थ्य को प्रत्यक्ष देखेंगे, और उसका सदुपयोग करेंगे। उपकरण चाहे छोटा एवं कम शक्ति का हो, अथवा बड़ा एवं अधिक शक्ति का, उसमें प्रवाहित होने वाली बिजली एक ही और समान गुणवत्ता की होगी। उस बिजली की सामर्थ्य का प्रदर्शन तथा उपयोग उस उपकरण द्वारा बिजली का प्रयोग करने की क्षमता पर निर्भर होगा, क्योंकि प्रवाहित होने वाली बिजली तो सारे घर के सभी तारों और उपकरणों में एक ही है।


इसी प्रकार से आप जितना अधिक परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारी और समर्पित रहेंगे, जितना उसके वचन के अनुसार चलेंगे, जितना परमेश्वर को और उसके वचन को अपने जीवन में उच्च स्थान और आदर देंगे, उतना अधिक पवित्र आत्मा की सामर्थ्य आप में होकर कार्य करेगी, प्रकट होगी। यदि आपका आत्मिक जीवन कमज़ोर रहेगा, तो आपको अपने जीवन में पवित्र आत्मा की सामर्थ्य भी उतनी ही कम अनुभव होगी तथा दिखाई देगी। यदि आप मात्र औपचारिकता पूरी करने के लिए बाइबल का एक छोटा खंड पढ़ना, और कुछ औपचारिक प्रार्थना दोहराना भर ही कर सकते हैं – और बहुतेरे तो यह भी नहीं करते हैं, तो फिर आप कैसे आशा रख सकते हैं कि आप वचन की अच्छे समझ रखेंगे और के जीवन में पवित्र आत्मा की जीवन्त, प्रभावी, तथा सामर्थी उपस्थिति दिखाई देगी?


परमेश्वर पवित्र आत्मा से परमेश्वर के वचन को सीखने के लिए एक और उदाहरण पर विचार कीजिए। किसी भी स्तर की शिक्षा प्राप्त करने के लिए बच्चों को नियमित स्कूल में जाना होता है, बैठ कर, और ध्यान देकर पढ़ना होता है, ठीक से अपना गृह कार्य करना होता है, परीक्षाओं में उत्तीर्ण होना पड़ता है, तभी वे ज्ञान और समझ में बढ़ने पाते हैं, और जीवन में कुछ कर पाने के योग्य होने पाते हैं। यह उनके प्रतिदिन कुछ मिनिट तक स्कूल के विभिन्न गलियारों में हो कर घूमने-फिरने और निकलने, और फिर वापस घर भाग आने तथा फिर शेष दिन को अन्य बातों में व्यतीत करने के द्वारा नहीं हो सकता है। इसी प्रकार से आत्मिक पाठशाला में भी उचित समय के लिए एकाग्र मन के साथ सीखने के उद्देश्य और तैयारी के साथ बैठना, वहां पर्याप्त समय बिताना, तथा ध्यान दे कर पवित्र आत्मा की बात को सुनना तथा उनसे सीखना, और जीवन के अनुभवों की परीक्षाओं से हो कर निकलना होता है। तब ही परमेश्वर का वचन सीखा जा सकता है, तथा प्रभु का जीवन और सामर्थ्य व्यक्ति के जीवन में दिखाई देती है।


प्रत्येक वास्तविक नया जन्म पाया हुआ मसीही विश्वासी पवित्र आत्मा का मंदिर है और पवित्र आत्मा मसीही विश्वासी में सदा विद्यमान है (1 कुरिन्थियों 3:16; 6:19), बसा हुआ है (2 तीमुथियुस 1:14)। मसीही विश्वासी जब अपने आत्मिक स्तर एवं परिपक्वता के अनुसार, पवित्र आत्मा की सामर्थ्य और आज्ञाकारिता में होकर परमेश्वर की महिमा एवं कार्य के लिए कुछ ऐसा करने पाता है, जो उसके लिए अपने आप से, या किसी मानवीय सामर्थ्य, अथवा ज्ञान, या अपनी किसी योग्यता से कर पाना संभव नहीं था, तो यही पवित्र आत्मा से भरकर कार्य करना होता है, जैसा कि हम पहले पतरस, यूहन्ना और पौलुस के जीवनों के उदाहरणों से देख चुके हैं।


क्योंकि सामान्यतः सभी मसीही विश्वासी परमेश्वर पवित्र आत्मा के कहे हुए के, और उसके वचन के प्रति अपने विश्वास, समर्पण, और आज्ञाकारिता में न तो एक समान स्तर के होते हैं, और न ही सभी उस उच्च-स्तर के होते हैं जितने कुछ विशिष्ट लोग अपने मसीही समर्पण, आज्ञाकारिता, और परिपक्वता के कारण हो जाते हैं, इसलिए ऐसा लगता है कि पवित्र आत्मा से भरकर कार्य करना, अर्थात पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से कुछ अद्भुत या विलक्षण काम करना, केवल कुछ विशिष्ट लोगों के लिए ही संभव है। किन्तु यह लोगों को बहकाए रखने और मसीही सेवकाई में अनुपयोगी एवं निष्फल करने के लिए शैतान द्वारा फैलाई जाने वाले भ्रान्ति है; और इस भ्रान्ति का दुरुपयोग ‘पवित्र आत्मा से भरने’ की आवश्यकता की गलत शिक्षा को सिखाने और प्रचार करने के लिए किया जाता है। मसीही विश्वास, आत्मिकता, और परमेश्वर की आज्ञाकारिता में बढ़िए, और आप भी पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से भरकर कार्य करने वाले हो जाएंगे।


बड़ा ही सामान्य और स्वाभाविक सा उदाहरण है, आप किसी भी दुर्बल और रोगी मनुष्य से वैसा और उतना ही शारीरिक परिश्रम करने की आशा नहीं रखेंगे जो एक स्वस्थ और बलवंत मनुष्य सहजता से कर सकता है। जब तक संसार और सांसारिकता के साथ समझौते का रोग हम मसीही विश्वासियों को आत्मिक रीति से दुर्बल और आत्मिक रीति से अस्वस्थ बनाए रखेगा; जब तक हम संसार के लोगों, मतों और समुदायों या डिनोमेनेशंस की आज्ञाएँ मानने और उन लोगों के लिए काम करते रहने को प्राथमिकता तथा इसके कारण परमेश्वर और उस के वचन की आज्ञाकारिता को अपने जीवनों में उन की बातों से निचले दर्जे का स्थान देते रहेंगे, तथा हम जब तक प्रभु की संगति और उसके वचन के अध्ययन एवं आज्ञाकारिता एक सर्वोपरि अनिवार्यता का स्थान नहीं देंगे; बल्कि इसे सांसारिकता के कार्यों के पश्चात उपलब्ध समय और सुविधा के अनुसार किया गया कार्य बना कर करते रहेंगे, तब तक हम अपनी आत्माओं को दुर्बल बनाए रखेंगे, तब तक हम भी वह सब कदापि नहीं करने पाएंगे जो एक आत्मिक जीवन में स्वस्थ और सबल व्यक्ति के लिए कर पाना संभव है। और हम भी इस प्रकार की गलत शिक्षाओं को गढ़ने और प्रचार करने वालों के भ्रम द्वारा ठगे जाते रहेंगे, इधर-उधर उछाले जाते रहेंगे (इफिसियों 4:14)।


परमेश्वर ने हम मसीही विश्वासियों को अपनी पवित्र आत्मा के द्वारा, हमारे उद्धार पाने के साथ ही मसीही जीवन एवं सेवकाई के लिए आवश्यक सामर्थ्य तथा अपने वचन के द्वारा उपयुक्त मार्गदर्शन दे रखा है; अब यह हम पर है कि हम उसका सदुपयोग करें और प्रभु के योग्य गवाह बनें।


यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी। 


एक साल में बाइबल पढ़ें: 

  • भजन 97-99 

  • रोमियों 16


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English Translation

Understanding Baptism - (6) – What is “Being Filled by the Holy Spirit”?


In the previous article, we had seen from the examples in the Word of God and through understanding Ephesians 5:18 that “being filled by the Holy Spirit” is neither a separate event nor an extra-ordinary experience granted to a select few; and neither is it in any way related to the so-called “Baptism of the Holy Spirit”. Those who have spread wrong teachings and doctrines about “Baptism of the Holy Spirit”, have also similarly spread many false teachings and doctrines about “being filled by the Holy Spirit”. None of those teachings have any Biblical support or affirmation, but once again, they are misinterpretations and misrepresentations of Biblical words and verse taken out of context, and then twisted and stretched to suit a particular line of thought. One of the ways of understanding any Biblical portion and avoiding pitfalls about it is to consider how the initial audience to whom it was first addressed understood it and applied it in their lives. That is the primary, unalterable meaning of that portion; every other meaning and interpretation will supplement it, but will never replace it; else the Bible will become alterable, a book of lies, and unreliable. Therefore, in today’s article we will understand through some common examples of day-to-day life the meaning and explanation of “being filled by the Holy Spirit.”


If a Christian Believer does not live and walk according to the instructions and guidance of the Holy Spirit (Galatians 5:16, 25), does not utilize the power of the Holy Spirit available to him through being obedient to Him, then the Holy Spirit remains grieved with him, and his own life remains ineffective, and fruitless for the Lord (Ephesians 4:30; 1 Thessalonians5:19). Understand this through an example - you will be having an electricity connection and electrical wiring done in your house, and electricity flows through those wires. But unless you connect an electrical appliance in a working condition to those wires, and allow the electricity to do its work, the presence, ability, and power of electricity to do anything in your house remains vain, ineffective, and useless. The appliance you connect to those wires, its condition, and the ability of that appliance, i.e., its capacity to utilize the power of electricity will determine the effects and works you will see of the electricity flowing through it. The more powerful and better the appliance, the better and more will be the evident power of the electricity flowing through it. Whether the appliance is small or big; of a small capacity or of a larger capacity, the electricity flowing through them is the same. The only difference is the ability of the appliance to utilize the electricity.


Similarly, the more obedient and surrendered to the Lord a person is, the more he walks according to the teachings of the Word of God, the more honor and priority he accords to the Word of God in his life, in proportion, the more will be the power of the Holy Spirit evident through his life. If one’s spiritual life and living is weak, then the evident power of the Holy Spirit in his life will also be limited and weak. If all a person does is to fulfill a formality, reads a small portion of the Bible and repeats a small payer by rote - and many do not even do this, then how can he expect to have a good understanding of God’s Word; to show the power and effectiveness of the Holy Spirit in and through his life?


Consider another example related to learning God’s Word. For education and learning, the children have to go to school regularly, sit in their classes, listen attentively, do their “home-work” and assignments diligently, and intermittently have to appear in and pass some tests and examinations. It is only then that the children will learn, grow in knowledge and wisdom, and become able to achieve something in life. This cannot be achieved by the child’s running through the various corridors of the school building to take a quick look around, then running back home to spend the rest of the time in other activities. Similarly, it is essential to regularly join a spiritual “class”, sit there with a prepared heart and mind with the intention to learn, spend adequate time in the “class” and carefully, attentively listen to what the Holy Spirit, our Spiritual Teacher is instructing, learn from Him, obey Him and do as He says, and intermittently go through tough experiences, or tests and examinations, in life and pass those tests. It is only then that one gets to learn God’s Word, learn to use and exhibit the power of the Holy Spirit in one’s life.


Every truly Born-Again Christian Believer is the Temple of the Holy Spirit and God the Holy Spirit is always present in him (1 Corinthians 3:16; 6:19), continually dwells in him (2 Timothy 1:14). When a Christian Believer, according to his spiritual status and maturity, through the power of the Holy Spirit, is able to do something for the glory of God, which he could not have done through his own strength, knowledge, and ability; or through the help of some other person, then this is doing the thing by being ‘filled with the Holy Spirit”, i.e., through the power and ability of the Holy Spirit, as we have seen earlier through the examples of the lives of Peter, John, and Paul.


Since, generally speaking, all Christian Believers are not at the same level in their faith, surrender, and obedience towards God’s Word and promptings of the Holy Spirit; and neither are they at that high spiritual level and maturity which some reach through their committed and obedient lives, therefore, it appears that doing something extra-ordinary by the power of the Holy Spirit is possible only for a select few. But this is a misunderstanding of facts spread by Satan and his messengers, to beguile and deceive people and keep them inactive and fruitless in their lives. This misunderstanding is also used, taught, and propagated by those who wrongfully use and teach about the necessity of “being filled with the Holy Spirit.” Whoever increases in Christian faith, spirituality, learning and obeying the Word of God, will also become more powerful in working through and exhibiting the power of the Holy Spirit.


It is a very simple and straightforward example that no one expects a sick, unhealthy person to be able to work and perform like a healthy person will be able to do. So long as the sickness and disease of worldliness and compromising with the world keeps the Christian Believer spiritually sick and weak; so long as Believers give a higher importance to following the rules and regulations given by people, sects and denominations and working according to them, instead of learning and obeying the Word of God; till Believers learn to give the primary place in life to the Lord and His Word, instead of giving priority to worldly occupation and works and only giving the left-over time and energy to God, His Word, and His work perfunctorily; we will keep our spirits weak and diseased, and will never be able to do that which a spiritually healthy and strong person can do through the power of the Holy Spirit. In this spiritually weak and diseased state, we will be easily carried away and tossed around (Ephesians 4:14) by those who go around preaching and teaching false things and wrong doctrines.


The Lord God has provided to the Christian Believers through His Holy Spirit, the necessary power and guidance required for our Christian lives and ministry, from the moment they are saved. Now it is for us to make proper use of this gift from God and be effective witnesses for the Lord God.


If you are a Christian Believer, then it is mandatory for you to learn the teachings related to the Holy Spirit from the Word of God, seriously ponder over them, understand them, and obey them. You should learn the truth and accordingly live and behave appropriately and worthily, and should teach only the truth from the Bible. You will have to give an account of everything you say to the Lord Jesus (Matthew 12:36-37). When you have God’s Word in your hand, and the Holy Spirit is there with you to teach you, then how will you be able to answer for yourself for getting deceived by wrong doctrines and false preaching and teachings? How will you justify your giving credibility to the persons, sects, and denominations teaching and preaching wrong things in the name of the Holy Spirit, and being part of their false teachings?

 

If you are still thinking of yourself as being a Christian, because of being born in a particular family and having fulfilled the religious rites and rituals prescribed under your religion or denomination since your childhood, then you too need to come out of your misunderstanding of Biblical facts and start understanding and living according to what the Word of God says, instead of what any denominational creed says or teaches. Make the necessary corrections in your life now while you have the time and opportunity; lest by the time you realize your mistake, it is too late to do anything about it.


If you are still not Born Again, have not obtained salvation, or have not asked the Lord Jesus for forgiveness for your sins, then you have the opportunity to do so right now. A short prayer said voluntarily with a sincere heart, with heartfelt repentance for your sins, and a fully submissive attitude, “Lord Jesus, I confess that I have disobeyed You, and have knowingly or unknowingly, in mind, in thought, in attitude, and in deeds, committed sins. I believe that you have fully borne the punishment of my sins by your sacrifice on the cross, and have paid the full price of those sins for all eternity. Please forgive my sins, change my heart and mind towards you, and make me your disciple, take me with you." God longs for your company and wants to see you blessed, but to make this possible, is your personal decision. Will you not say this prayer now, while you have the time and opportunity to do so - the decision is yours.



Through the Bible in a Year: 

  • Psalms 97-99 

  • Romans 16

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