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बुधवार, 30 अगस्त 2023

Blessed and Successful Life / आशीषित एवं सफल जीवन – 5 – Be a man / पुरुषार्थ कर – 2

पुरुषार्थ करना - 2

 

    पिछले लेख में हमने देखा था कि परमेश्वर द्वारा चुने और स्थापित किए गए राजाओं, दाऊद और सुलैमान के समान, मसीही विश्वासियों को भी मसीही विश्वास का जीवन जीने में परिस्थितियों और समस्याओं का सामना करना ही होगा। और इसीलिए, जैसे परमेश्वर की चुनौती सुलैमान के लिए थी, वैसे ही प्रत्येक मसीही विश्वासी के लिए भी है “इसलिये तू हियाव बांधकर पुरुषार्थ दिखा” (1 राजाओं 2:2)। लेकिन साथ ही परमेश्वर ने पहले से ही हमें एक जयवंत जीवन जीने के लिए संसाधन प्रदान कर रखे हैं; उसने हमारा सहायक होने के लिए अपना पवित्र आत्मा, और हमारा मार्गदर्शन करने के लिए अपना जीवता वचन हम मसीही विश्वासियों को दे दिया है।


    प्रत्येक मसीही विश्वासी को यह ध्यान रखना तथा स्वीकार करना है कि मसीही विश्वास का जीवन एक सक्रिय जीवन है। यह शैतान के निरंतर हमलों के विरुद्ध एक चलते रहने वाले संघर्ष का जीवन है  (प्रेरितों 14:22; 2 तीमुथियुस 3:12; फिलिप्पियों 1:29), जो हमेशा हमें किसी न किसी तरह से नीचे खींचने और गिराने में लगा रहता है।

    

    मसीही जीवन और सेवकाई का यह आधार भूत तथ्य कोई नई बात नहीं है, इसे प्रभु यीशु ने अपने आरंभिक शिष्यों को बता दिया था, जब उसने उन्हें उनकी पहली सेवकाई के लिए भेजा था, जैसा की हम मत्ती 10 अध्याय में देखते हैं। प्रभु ने उन्हें बहुत स्पष्ट यह कह दिया था कि उनकी सेवकाई सरल नहीं होगी और समस्याओं से भरी होगी। उन्हें लोगों के विरोध का सामना करना पड़ेगा, यहाँ तक कि उनके अपने परिवार के लोग भी उनका विरोध करेंगे; उन्हें बचने के लिए एक से दूसरे स्थान को भी भागना पड़ सकता है (मत्ती 10:18-23)।

इसी प्रकार से,

·        पौलुस के बारे में परमेश्वर ने हनन्याह से कहा कि उसे अपने विश्वास तथा प्रभु के नाम के लिए बहुत दुःख उठाना पड़ेगा (प्रेरितों 9:16)।

·        हम प्रेरितों के काम पुस्तक में देखते हैं कि आरंभिक शिष्यों को अपने विश्वास के लिए धार्मिक अगुवों से बहुत दुःख उठाने पड़े (प्रेरितों 4:21; 5:17-18, 40-41)।

·        इब्रानियों की पत्री, तथा पतरस द्वारा लिखी गई दोनों पत्रियाँ उन मसीही विश्वासियों को लिखी गई हैं जो अपने मसीही विश्वास के कर्ण सताव झेल रहे थे।

 

    यद्यपि शैतान यह जानता है कि एक नया-जन्म पाए हुए विश्वासी का उद्धार कभी नहीं जाएगा, किन्तु वह यह भी जानता है कि,

·        मसीही विश्वासी अपनी आशीषों और प्रतिफलों को गँवा सकते हैं, और इस प्रकार से वह उनका कुछ नुकसान तो कर ही सकता है, तथा

·        मसीही विश्वासियों के हारे हुए, दुर्बल, और भ्रष्ट जीवन एवं गवाही को सँसार के सामने दिखाने के द्वारा शैतान अन्य लोगों को मसीह यीशु में विश्वास लाने से रोक सकता है।

 

    इसीलिए मसीही विश्वासियों पर परेशानियां और दुःख लाने के लिए शैतान जो कुछ भी कर सकता है, वह करता है; जिससे कि वे निराश हों, कुछ कर पाने के लिए अपने आप को अयोग्य समझें, परमेश्वर जो उन से करवाना चाहता है वे उसे न कर सकें, और अपने प्रतिफलों तथा आशीषों को गँवा दें। और शैतान तथा उसकी युक्तियों पर जयवंत होने का एकमात्र तरीका है उसका सामना परमेश्वर की सामर्थ्य और उसके द्वारा अपने वचन में दिए गए मार्ग का पालन करना, अर्थात “इसलिये तू हियाव बांधकर पुरुषार्थ दिखा” (1 राजाओं 2:2)।


    यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

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Being a Man - 2

 

    In the previous article we had seen that like David, and Solomon, the God chosen and appointed Kings of Israel, the Christian Believers too will have to face situations and problems in their lives of living out their Faith. And hence God’s challenge, as to Solomon, to every Christian Believer is “be strong therefore, and be a man” (1 Kings 2:2). But God has already given us the resources to lead an overcoming life; He has given us His Holy Spirit to help, and His Living Word to guide us.

    Every Christian Believer has to realize and accept that Christian faith and living is an active faith. It is a life of constant struggle against the attacks of the devil (Acts 14:22; 2 Timothy 3:12; Philippians 1:29), who tries to pull us down, all the time, in many ways.

    This basic fact of Christian life and ministry is not something new, it was something that the Lord Jesus told the initial disciples as He sent them for their ministry, as we see in Matthew 10. The Lord very clearly told them that their ministry was not going to be easy and trouble free, rather it would be just the opposite., They will face opposition from people and even their own family members for their ministry; and they might need to flee from one city to another (Matthew 10:18-23).

Similarly,

  • For Paul, God told Ananias that Paul would have to suffer many things for his faith in the Lord (Acts 9:16).
  • We also see in the book of Acts that the initial disciples suffered heavily for their faith from the religious leaders (Acts 4:21; 5:17-18, 40-41).
  • The letter to Hebrews and both of Peter's epistles were addressed to Christian Believers suffering for their faith.

    Though the devil knows that a Born-Again Believer will never lose his salvation; but he also knows that:

  • the Believers can lose their blessings and rewards, he can still bring Believers to some loss, and

  • through putting up their defeated, weak, or corrupted life and testimony before the world Satan can prevent others from coming to the Lord.

    So, Satan does whatever he can to bring trouble and problems upon the Christian Believers, to discourage them, make them feel incapable of doing things, to prevent them from fulfilling what God wants them to do, and thereby deny the Believers their eternal rewards and blessings. The only way we can overcome Satan and his ploys is through God’s strength and the way He has given in His Word, “be strong therefore, and be a man” (1 Kings 2:2).


    If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life.  Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.

 


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