परमेश्वर के वचन में फेर-बदल – 10
यह दिखाने के लिए कि शैतान किस प्रकार से परमेश्वर के लोगों को बाइबल की बातों की गलत व्याख्या और उसके लेखों के दुरुपयोग के द्वारा बहकाता, भरमाता, और गलत मार्ग पर डाल देता है, हम एक बहुत प्रचलित किन्तु बाइबल के सर्वथा विपरीत धारणा को देख रहे हैं, कि उद्धार पाने के बाद उसे कर्मों के द्वारा बनाए रखना है, अन्यथा उद्धार खोया जा सकता है। इस गलत धारणा से सम्बन्धित बहुत दुखद बात यह है कि इसे परमेश्वर के प्रतिबद्ध लोगों, कलीसिया के प्रमुख लोगों तथा अगुवों, बाइबल के प्रचारकों तथा शिक्षकों आदि के द्वारा ही बना कर रखा जाता है, वे इसे जोर देकर सिखाते हैं। थोड़ा पीछे लेखों में हमने बहुत संक्षेप में देखा था कि बाइबल के अनुसार उद्धार या नया जन्म पाना क्या है; और पिछले लेख में हमने बाइबल के कुछ तथ्य देखे थे कि उद्धार सदा काल का क्यों है। इसी विषय पर आगे बढ़ते हुए, आज हम देखेंगे उद्धार के अनन्तकालीन होने के बारे में कुछ और तथ्य; तथा उद्धार खोया जा सकता है को मानने में क्या छुपे हुए किन्तु बहुत शैतानी, परमेश्वर विरोधी अभिप्राय हैं; ऐसे अभिप्राय जो परमेश्वर के चरित्र, गुणों, और उसके परमेश्वर होने पर ही आघात करते हैं, जिस से प्रकट हो जाता है कि यह शैतानी युक्ति है, बाइबल का तथ्य नहीं।
जो यह मानते हैं कि उद्धार हमेशा का नहीं है बल्कि खोया जा सकता है, उन्हें इन बातों का भी उत्तर देने के लिए तैयार रहना चाहिए:
· बाइबल की शिक्षा है कि जो उद्धार पाए हुए परमेश्वर के लोग हैं, वे उस की सन्तान, उसका परिवार, और उसकी अनमोल संपत्ति भी हैं। उन्हें वह पूरे हक़ से बहुत संभाल कर रखता है। उनके पथ-भ्रष्ट होने, संसार के साथ समझौते का जीवन जीने, और शैतान के प्रलोभनों में स्थिर और दृढ़ खड़े रहने की बजाए गिर जाने के लिए वह उनकी ताड़ना कर सकता है (इब्रानियों 12:5-11)। यदि आवश्यक हुआ तो बहुत घोर ताड़ना भी कर सकता है; लेकिन कभी भी, किसी को भी, उन्हें अपने से अलग नहीं ले जाने देगा, और न कभी छोड़ेगा अथवा त्यागेगा (इब्रानियों 13:5)। एक बार जो परमेश्वर की सन्तान बन गया, वह सदा काल के लिए परमेश्वर की संतान और प्रभु की देह का एक अंग हो गया।
· इस्राएलियों, यहूदियों, ने पुराने नियम में परमेश्वर तथा उस के नियमों के साथ, और जब प्रभु यीशु पृथ्वी पर था तब उस के साथ जो किया, तथा आज भी प्रभु यीशु के बारे में जो विचारधारा वे रखते हैं, आदि बातों के बारे में विचार कीजिए। जो इस्राएलियों, यहूदियों ने परमेश्वर के विरुद्ध किया है, और आज भी करते आ रहे हैं, क्या उस से बढ़कर जघन्य कोई पाप हो सकता है? लेकिन क्या परमेश्वर ने उन्हें त्याग दिया? क्या परमेश्वर ने उन्हें अपने पास से निकालकर अलग कर दिया? क्या अभी भी वह उनकी रक्षा नहीं करता चला आ रहा है? रोमियों 11 अध्याय पढ़िए, और परमेश्वर ने उनके लिए जो प्रतिज्ञा रखी है उसे देखिए। यदि अब भी इस्राएली परमेश्वर के लोग कहला सकता है उनकी बहाली की प्रतिज्ञा दी जा सकती है, तो फिर किसी और के साथ यह क्यों नहीं हो सकता है?
· दाऊद और सुलैमान के जीवनों पर ध्यान कीजिए; उनके जीवनों में पाए जाने वाले झूठ, व्यभिचार, हत्या, दुराचार, मूर्तिपूजा, आदि के बावजूद आज भी उनके नाम, उदाहरण, और लेख परमेश्वर के वचन में आदर का स्थान पाते हैं, और वे प्रभु यीशु की वंशावली में स्थान पाते हैं। आज भी, नए नियम में दाऊद को परमेश्वर के मन के अनुसार व्यक्ति कहा गया है (प्रेरितों 13:22)। कभी भी, कहीं पर भी उन्हें उनके कर्मों के कारण परमेश्वर द्वारा त्यागा हुआ, परमेश्वर के राज्य और उसकी संगति से निष्कासित नहीं कहा गया है।
· यद्यपि बाइबल इसके बारे में बहुत स्पष्ट है, और बाइबल में कहीं पर भी किसी भी व्यक्ति के भ्रष्ट जीवन के कारण उसके उद्धार खोने का कोई उल्लेख, कोई उदाहरण नहीं है, लेकिन फिर भी शैतान ने लोगों के मानों में यह गलतफहमी बहुत दृढ़ता से बैठा रखी है कि यदि भले कर्मों के द्वारा संभाल कर न रखा जाए, तो उद्धार खोया जा सकता है। सम्पूर्ण बाइबल में क्या किसी एक भी व्यक्ति के उद्धार को खो देने का कोई एक भी उदाहरण है? बाइबल का तथ्य यही है कि उद्धार पाया व्यक्ति अपने भ्रष्ट जीवन के कारण ताड़ना पा सकता है और पाता भी है, स्वर्ग में खाली हाथ प्रवेश कर सकता है, किन्तु उद्धार कभी नहीं खोएगा (1 कुरिन्थियों 3:13-15)।
· परमेश्वर की अनाज्ञाकारिता के कारण उद्धार खोने के इस तर्क के साथ एक पक्ष और भी है जिस पर शायद ही कभी कोई ध्यान देता हो; उद्धार खोये जानी की यह धारणा परमेश्वर के बुनियादी गुणों पर प्रहार करती है – उसके सर्वज्ञानी होने, अर्थात आरम्भ से ही अन्त को जानने (यशायाह 14:24; 46:10), तथा उसके सर्वशक्तिमान परमेश्वर होने पर, जिसके हाथ से कोई उसकी भेड़ों को छीन नहीं सकता है (यूहन्ना 10:28-29)। यदि उद्धार पाए हुए व्यक्ति के कार्यों और व्यवहार के कारण उसका उद्धार खोया जा सकता है, तो इसका यही अभिप्राय हुआ कि जब परमेश्वर ने उसके पश्चाताप को ग्रहण किया, उसके प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास लाने को माना, पापों के लिए क्षमा की उसकी गुहार को स्वीकार किया, और उसे उद्धार दिया, तब या तो परमेश्वर को पता नहीं था या वह जान ही नहीं सकता था कि यह व्यक्ति एक समय पर उसे छोड़ कर सांसारिक व्यवहार और जीवन में लौट जाएगा। इसका अर्थ यह हुआ कि परमेश्वर जैसा दावा करता है, वह वैसा सर्वज्ञानी परमेश्वर नहीं है। दूसरी बात, यदि शैतान बहका-फुसला कर, प्रलोभन-लालच के द्वारा, किसी प्रकार की धमकी के द्वारा, या किसी भी अन्य तरीके से, किसी उद्धार पाए हुए जन को परमेश्वर के हाथों से छीन कर ले जा सकता है, और परमेश्वर इस बारे में कुछ भी नहीं कर पाता है, तब तो शैतान परमेश्वर से भी अधिक शक्तिशाली, बुद्धिमान, और सामर्थी है, और परमेश्वर सर्वशक्तिमान नहीं है (मत्ती 12:29)। लेकिन बाइबल का यह तथ्य भी है कि परमेश्वर, अपने किसी उद्देश्य के अन्तर्गत, शैतान को कुछ बातें कर लेने की अनुमति देता है (निर्गमन 9:16; रोमियों 9:17, 22) और अन्ततः उन बातों के द्वारा भी अपने बच्चों के लिए कुछ भला ही करता है (रोमियों 8:28), जैसा कि अय्यूब के जीवन से अच्छे से दर्शाया गया है (अय्यूब 42:12; याकूब 5:11)। लेकिन जो मसीही विश्वासी परमेश्वर और उसके वचन को हलके में लेते हैं, उसका दुरुपयोग करते हैं, वे हलके में नहीं छूटेंगे, उन्हें ताड़ना सहने और संभवतः अनन्त काल के लिए खाली हाथ स्वर्ग में रहने के द्वारा एक भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
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Altering God’s Word – 10
To illustrate how Satan induces God’s people to be misled and misguided through misinterpretations and misuse of Biblical texts and facts in an unBiblical manner, we have been considering a very common but absolutely false notion that salvation has to be maintained by works or else it will be lost. The very sad part about this wrong notion is that it maintained by many of God’s committed Believers, Church leaders and elders, Bible preachers and teachers, etc. and is emphatically taught by them. In the previous articles we have seen very briefly, Biblically speaking, what it means to be a Christian and to be saved or be Born-Again; and in the last article had seen some Biblical facts why salvation is eternal. Today, continuing with the same topic, we will see some more facts about salvation being eternal; and the very subtle but very devious implications of believing that salvation can be lost; implications that attack the very character and attributes of God and His being God, making it evident that this a satanic ploy, not a Biblical fact.
Those who believe that salvation is not eternal and it can be lost, also need to answer the following:
The Biblical teaching is that those who are the saved people of God, His children, His family, are also His precious possession. He is very possessive about them. He will chasten them for their being wayward, for compromising with the world, and succumbing to the temptations brought by the devil instead of standing firm in faith (Hebrews 12:5-11). If it is required, He will even chasten them severely; but will never let anyone take them away from Him, nor will He ever abandon them (Hebrews 13:5). Once a child of God, once a part of Lord Jesus’s body, always, for eternity a child of God and a member of Lord Jesus’s body.
Consider Israel, the Jews and what all they have done to God and His Commandments in the Old Testament, what they did to the Lord Jesus, while He was on earth, and their thinking about the Lord Jesus even today. Can anyone’s any sins be more heinous than what they have done and are still doing? Yet, has God abandoned them? Has God cast them away? Is He not still preserving them? Read Romans 11 and see the promise that God has given for them. If Israel can still be considered as people of God, with a promise of restoration, then why not anyone else?
Consider the lives of David and Solomon; despite the lies, adultery, murder, debauchery, idolatry etc. one sees in their lives, their names, examples, and writings still have an honorable place in God’s Word and in Christ’s lineage. David is still called a man after God’s own heart even in the New Testament (Acts 13:22). Nowhere have they been called those whom God rejected and removed from His Kingdom and fellowship because of their deeds.
Although the Bible is very clear about it, and there are no examples of anyone ever losing their salvation because of their wayward life, but still, Satan has put this misconception very firmly into many people’s minds that salvation can be lost if it is not maintained by good works. Is there even one example of anyone ever losing their salvation in the entire Bible? The Biblical fact is that the saved person can be, and will be chastened on earth, and may enter heaven without any rewards because of his wayward life, but he will never lose his salvation (1 Corinthians 3:13-15).
There is another aspect to this argument about losing salvation because of disobedience to God, and scarcely anyone might pay any attention to it; this notion of losing salvation hits at the basic characteristics of God - His being omniscient, knowing the end from the beginning (Isaiah 14:24; 46:10), and His being the omnipotent God, from whose hands no one can ever snatch away His sheep (John 10:28-29). If salvation can be lost because of the saved person’s behavior, then it implies that God when saving him, accepting his repentance, his coming to faith in the Lord Jesus, and his plea for forgiveness, either did not or could not know that in the days to come, this person will walk away from Him into worldly thinking and living. This implies that God cannot be the omniscient God that He claims to be. Secondly, if Satan can entice, tempt, threaten, snatch, or in any other way, take away anyone out of God’s hands, while God remains powerless or unable to do anything about it, then Satan is stronger, or wiser, or more potent than God, and God is not omnipotent (Matthew 12:29). But the Biblical fact is that God, for some purpose of His, permits Satan to do certain things (Exodus 9:16; Romans 9:17, 22) and eventually even through those things works out good for His children (Romans 8:28), as is well illustrated by the life of Job (Job 42:12; James 5:11). But those Christian Believers who take the Lord and His Word lightly, will not escape lightly, they will have to pay a heavy price, through chastening and even entering heaven empty-handed for eternity.
If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life. Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.
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