पाप और उद्धार को समझना – 29
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पाप का समाधान - उद्धार - 26
अनिवार्यताओं का पुनःअवलोकन
पिछले लेखों में एकत्रित किए गए, सीखे तथा समझे गए, पाप और उद्धार, और प्रभु यीशु मसीह के जन्म, जीवन, कार्य, मृत्यु, और पुनरुत्थान से संबंधित तथ्यों के आधार पर अब हम देखेंगे कि प्रभु यीशु मसीह ने संसार के सभी लोगों के लिए यह पापों की क्षमा, उद्धार, और परमेश्वर से मेल-मिलाप करवाकर, अदन की वाटिका में मनुष्य के पाप द्वारा खोई हुई स्थिति को किस प्रकार सभी मनुष्यों के लिए बहाल किया, और उनके लिए इस आशीष को प्राप्त कर लेने का मार्ग कैसे बना कर दिया, और इस महान कार्य से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों पर भी विचार करेंगे।
इस बात को समझने के लिए हमें पहले देखी गई बातों को ध्यान में रखना होगा, उन्हें स्मरण करते रहना होगा। आज, पहले हम उन छः अनिवार्यताओं को देखते हैं, जो मनुष्यों के पापों का समाधान और निवारण करके देने वाले उस सिद्ध मनुष्य में होनी अनिवार्य थीं:
यदि आप अभी भी प्रभु यीशु मसीह में, उनके जीवन, शिक्षाओं, बलिदान, और पुनरुत्थान में; और उनके आपकी वास्तविक पापमय स्थिति को भली-भांति जानने के बावजूद भी आपके लिए उनके प्रेम में विश्वास नहीं करते हैं, तो आप स्वयं भी प्रभु यीशु के जीवन, मृत्यु, और पुनरुत्थान से संबंधित प्रमाणों की जाँच कर सकते हैं, अपने आप को संतुष्ट कर सकते हैं। प्रभु यीशु आपको इस सांसारिक नाशमान जीवन से अविनाशी जीवन में लाना चाहता है; पाप के परिणाम से निकालकर परमेश्वर के साथ मेल-मिलाप करवाकर अब से लेकर अनन्तकाल के लिए आपको स्वर्गीय आशीषों का वारिस बनाना चाहता है।
प्रभु यीशु ने तो अपना काम कर के दे दिया है; किन्तु क्या आपने उसके इस आपकी ओर बढ़े हुए प्रेम और अनुग्रह के हाथ को थाम लिया है, उसकी भेंट को स्वीकार कर लिया है? या आप अभी भी अपने ही प्रयासों के द्वारा वह करना चाह रहे हैं जो मनुष्यों के लिए कर पाना असंभव है।
शैतान की किसी बात में न आएं, उसके द्वारा फैलाई जा रही किसी गलतफहमी में न पड़ें, अभी समय और अवसर के रहते स्वेच्छा और सच्चे मन से अपने पापों से पश्चाताप कर लें, अपना जीवन उसे समर्पित कर के, उसके शिष्य बन जाएं। स्वेच्छा से, सच्चे और पूर्णतः समर्पित मन से, अपने पापों के प्रति सच्चे पश्चाताप के साथ एक छोटी प्रार्थना, “हे प्रभु यीशु मैं मान लेता हूँ कि मैंने जाने-अनजाने में, मन-ध्यान-विचार और व्यवहार में आपकी अनाज्ञाकारिता की है, पाप किए हैं। मैं मान लेता हूँ कि आपने क्रूस पर दिए गए अपने बलिदान के द्वारा मेरे पापों के दण्ड को अपने ऊपर लेकर पूर्णतः सह लिया, उन पापों की पूरी-पूरी कीमत सदा काल के लिए चुका दी है। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मेरे मन को अपनी ओर परिवर्तित करें, और मुझे अपना शिष्य बना लें, अपने साथ कर लें।” आपका सच्चे मन से लिया गया मन परिवर्तन का यह निर्णय आपके इस जीवन तथा परलोक के जीवन को स्वर्गीय जीवन बना देगा।
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Understanding Sin and Salvation – 29
The Solution For Sin - Salvation - 26
Recapitulation of Necessities
Now, on the basis of the facts related to sin and salvation, and the birth, life, works, death, and resurrection of the Lord Jesus Christ, all of which we have gathered together, understood and learnt, in the previous articles, we will see how the Lord Jesus made available the forgiveness for sin and salvation for the whole world, for entire mankind, provided the way for man’s reconciliation with God, and thereby the way to restoring back to man that which he lost in the Garden of Eden, restoring his blessings from God. We will also consider some related important questions as well.
To understand this, we need to keep in mind what we have seen so far, and keep reminding ourselves of them. Let us first look at the six imperatives, which needed to be fulfilled for the atonement and solution for sin, and had to be present in the perfect man who would accomplish the work of redemption.
If you too, despite knowing your own sinful condition, still do not believe in the love that the Lord Jesus has for you, in His life, teachings, sacrifice, and resurrection, then you too can examine and evaluate all the evidences available about the Lord, His life, death and resurrection, and then draw your own conclusions. The Lord wants to draw you out of this temporal life into eternal life with Him. He wants to redeem you from the consequences of sin, to reconcile you with God, and make you a child of God, inheritor of God’s heavenly eternal blessings. Please do not get beguiled by Satan, do not fall for any of his ploys and false stories; check out everything about the Lord for yourself, be convinced of the facts, and then believe in Him.
The Lord Jesus has done His part; He has made ready and available salvation with all the benefits freely to everyone; but have you accepted His offer? Have you taken His hand of love and grace extended towards you and the free gift He offers; or are you still determined to do that which no man can ever accomplish through his own efforts?
If you are still not Born Again, have not obtained salvation, have not asked the Lord Jesus for forgiveness for your sins, then you have the opportunity to do so right now. A short prayer said voluntarily with a sincere heart, with heart-felt repentance for your sins, and a fully submissive attitude, “Lord Jesus, I confess that I have disobeyed You, and have knowingly or unknowingly, in mind, in thought, in attitude, and in deeds, committed sins. I believe that you have fully borne the punishment of my sins by your sacrifice on the cross, and have paid the full price of those sins for all eternity. Please forgive my sins, change my heart and mind towards you, and make me your disciple, take me with you." God longs for your company, wants to see you blessed; but to make this possible, is your personal decision. Will you not say this prayer now, while you have the time and opportunity to do so - the decision is yours.
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