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मंगलवार, 9 मार्च 2010

आप यह नहीं कह सकते!

व्यवसाय में उन्नति संबंधी एक वैब्साईट के अनुसार नौकरी में कुछ बातों का प्रयोग करने से बचना चाहिए। अगर कोई अधिकारी आपसे किसी प्रयोजना पर कार्य करने को कहे और आप उसे करने की इच्छा नहीं रखते या पूरा नहीं कर पाएंगे तो यह कहकर आश्वासन मत दिजिये कि "अवश्य, इसमें कोई समस्या नहीं है।" ऐसा कहेंगे और करेंगे नहीं तो आप विश्वास्योग्य नहीं माने जाएंगे। यह भी नहीं कहना है कि, "यह मेरा काम नहीं है" क्योंकि भविष्य में आपको उस व्यक्ति की मदद की ज़रूरत हो सकती है। अगर आपका अधिकारी आपके पास किसी समस्या के कारण आता है तो "यह मेरी गलती नहीं है" कहकर दूसरे पर दोष नहीं डालना चाहिये।

आदम और हव्वा ने परमेश्वर को यही बहाना दिया। उन्हें भले या बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल नहीं खाने की आज्ञ दी गई थी (उत्पत्ति २:१६,१७)। जब उन्होंने आज्ञा तोड़ी और परमेश्वर ने उन्से पूछा तो आदम ने परमेश्वर पर और हव्वा पर, और हव्वा ने सर्प पर इसका दोष लगाया (उत्पत्ति ३:९-१९)। उनकी बातों का सार था कि "यह मेरी गलती नहीं है।"

परमेश्वर जब हमें कुछ करने की आज्ञा देता है तो सम्भवत: कुछ बातें हमें परमेश्वर से कहना उचित नहीं हैं। उदहरण के लिये वह १ कुरिन्थियों १३ में हमें मसीह के जैसे आचरण करने के विशेष निर्देश देता है। हमें आनाकानि स्वरूप परमेश्वर से यह कहने का प्रलोभन हो सकता है कि "मैं इस बात से कायल नहीं हूँ" अथवा "यह मेरा वरदान नहीं है।"

परमेश्वर आज आपको क्या आज्ञा दे रहा है? आप का उत्तर क्या होगा? क्या आप कहेंगे "हाँ प्रभु।" - एनी सेटास


परमेश्वर की आज्ञाकरिता के लिये सबसे शेष्ठ प्रेरणा उसे प्रसन्न करने की इच्छा रखना होनी चाहिये।


बाइबल पाठ: उतपत्ति ३:१-१९


हे प्रभु आप क्या चाहते हैं कि मैं करूँ? प्रेरितों ९:६


एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण ८-१०
  • मरकुस ११:१९-३३

सोमवार, 8 मार्च 2010

ऐसा वक्त आयेगा

अमेरिका की एक पत्रिका में एक लेखक बताता है कि कैसे आजकल कुछ माँ-बाप अपने बच्चों को सब धर्मों का समान परिचय देना चाहते हैं। एमा ड्रॉइलार्ड, जो धार्मिक रीतियाँ करवाती हैं, के पास एक दम्पति आये, और अपनी बच्ची ग्रियर के लिये एक प्र्कार की रीति करवाने की इच्छा व्यक्त की। माँ ने कहा कि हम चाहते हैं कि कोई विशाल आत्मा हमारी बेटी का मार्गदर्शन करे। एक विशेष विश्वास पर ज़ोर न दिया जाये। मसीही विश्वास का एक बहुत हल्का रूप एक सामन्य नीतिबोध ही उसे देना है, जिसमें स्वर्गदूत, परियों, प्रेत आत्माओं और सान्ताक्लास पर विश्वास होता हो।"

यह आज की हमारी संस्कृति में आत्मिक सत्यों को बहुत कम महत्त्व देने वाली प्रवृति का उदहरण है।

प्रेरित पौलुस ने तिमुथियुस को सावधान किया कि एक समय आयेगा, जब लोग ’हल्के’ आत्मिक भोजन चाहेंगे और "खरा उपदेश न सह सकेंगे" (२ तिमुथियुस ४:३,४)। उसने पहले से चिता दिया कि झूठे उपदेशों की भरमार होगी और ऐसे उपदेश ही लोगों को ग्रहण योग्य होंगे, क्योकि वे लोगों की शारीरिक अभिलाषाओं को तृप्त करने वाले होंगे। वे खराई नहीं अपितु मनोरन्जन चाहते हैं और अपने को अच्छा बताने वाले उपदेश सुनना चाहते हैं।

पौलुस ने तिमुथियुस को सचेत किया कि उसे परमेश्वर के वचन पर निरभर होकर और परमेश्वर के वचन के खरे सिद्धांत सिखाकर ही इस प्रवृति का सामना करना है। ऐसे खरे उपदेश का लक्षय होना चाहिये सही शिक्षा देना, डांटना और समझाना (पद २)।

विश्वासियों को चाहिये कि वे परमेश्वर के वचन को सिखाएं और मानें, केवल प्रचलित संस्कृति की खुजली न करें। - मार्विन विलिअम्स


परमेश्वर के वचन पर स्थिर रहो तो गलत सिद्धांतों के फंदे में नहीं पड़ोगे।


बाइबल पाठ: २ तिमुथियुस ४:१-८


ऐसा समय आयेगा कि लोग खरा उपदेश न सह सकेंगे। - २ तिमुथियुस ४:३


एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण ५-७
  • मरकुस ११:१-१८

रविवार, 7 मार्च 2010

परमेश्वर का प्रेम और हमारा

फ्रैंकलिन ग्राहम को अब पछतावा है कि वह एक उग्र और उद्‍दंड स्वभाव वाला युवक हुआ करता था। एक दिन अपने पिता से पैसे मांगने वह अपनी मोटर साईकिल पर सवार धड़धड़ाते हुए उनके घर पहुँचा। बढ़ी हुई दाढ़ी और चमड़े के कपड़े पहिने, रास्ते की धूल से भरा वह अपने पिता के कमरे में बिना खटखटाए ही घुस गया, वहाँ बिली ग्राहम की कार्यकारी समिती की सभा चल रही थी।

बिना हिचके बिली ग्राहम ने उसे पुत्र होने का आदर दिया और समिती के हर सदस्य से उसका परिचय गर्व से कराया। बिली ने बिना किसी लज्जा या अपराध-बोध प्रकट किये, अपने बेटे का स्वागत किया। बेटे के आचरण के लिये किसी से क्षमा भी नहीं मांगी। फ्रैंकलिन ने बाद में अपनी आत्मकथा "रैबैल विद अ कौज़" में लिखा कि उस दिन उसके पिता ने जो प्रेम और आदर उसे दिया, उसका प्रभाव सारे जीवन भर उसके साथ रहा, उसके उद्‍दंडता के दिनों में भी।

हमारे बच्चों को हमारा प्रेम कमाना नहीं है। अपनी स्वार्थ सिद्धी के लिये उन्हें उस प्रेम से वंचित रखना परमेश्वर का नहीं, शैतान का कार्य है। परमेश्वर का प्रेम हमारे लिये असीम है, हमारी कोई भलाई हमें उसे पाने के ’योग्य’ नहीं बनाती और हमने उसे ’कमाने’ के लिये कुछ नहीं किया है। "जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा" (रोमियों ५:८)। अपने सब संबंधों में, विषेषकर अपने बच्चों के साथ संबंध में हमें उसी तरह के प्रेम को दर्शाना है।

परमेश्वर से हमें निर्देश हैं कि हमें अपने बच्चों तथा सब लोगों से प्रेम और आदर का व्यवहार करना है। यह हमें स्मरण दिलाता है कि हमारी कैसी पापमय स्थिति थी जब मसीह ने हमसे प्रेम किया और हमारे लिये अपनी जान दी। - Dave Egner


परमेश्वर का प्रेम उड़ाउ पुत्रों को बहुमूल्य संतों में बदल देता है।


बाइबल पाठ: रोमियों ५:१-११


जब हम पापी ही थे, तभी मसीह हमारे लिये मरा। - रोमियों ५:८


एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण ३,४
  • मरकुस १०:३२-५२

शनिवार, 6 मार्च 2010

तुम भुलाए नहीं गए हो

इंगलैंड के सबसे बुज़ुर्ग मनुष्य, हेनरी अलिंघम, के १११वें जन्मदिवस के अवसर पर उसे शुभकमनाएं देने के लिये, अंग्रेज़ी सेना के प्रतिशठित ’रॉयल मरीनस’ बैंड ने ’हैप्पी बर्थडे’ गीत बजाया और उसके सम्मान में पुराने हवाई जहाज़ों ने उसके सम्मुख उड़ान भरी। लोगों द्वारा उसे अपना इतना आदर किये जाने पर बड़ा विस्मय हुआ।

छः साल पूर्व तक उसने ८६ साल पूर्व खाईयों में सही गई गोलीबारी और बमबारी की उन भयंकर यादों को गुप्त रखा था जो प्रथम विश्वयुद्ध के दिनों की थीं। जब प्रथम विश्वयुद्ध के वीरों की समिती ने उसे उसके बुढ़ापे में ढूंढ निकाला, तब ही अपने देश के लिये सहे गये उन कष्टों की जानकारी लोगों को मालूम पड़ी और उनके लिये इस वृद्ध ने सम्मान पाया।

बाइबल की कई कहनियाँ इस बुज़ुर्ग हेनरी के अनुभव के समान हैं। परमेश्वर का वचन हमें सिखाता है कि जो परमेश्वर की सेवा में युद्ध करते हैं, वे घायल होते हैं, कैदी बनते हैं और कभी मारे भी जाते हैं।

कोई छोटी प्रवर्ति का व्यक्ति, इन जीवनों को देखने के बाद, मन को सांत्वना देने के लिये, केवल इतना ही सोच पायेगा कि भले काम का प्रतिफल शायद, कभी तो मिलेगा। लेकिन इब्रानियों की पत्री का लेखक इससे भी बढ़कर एक भव्य भविष्य देखता है। वह हमें आश्वासन देता है कि विश्वास और प्रेम में किये गए हमारे हर काम के लिये परमेश्वर एक दिन हमें अवश्य सम्मानित करेगा।

क्या आप निराश हैं? क्या स्वयं को तुच्छ समझते हैं? परमेश्वर की सेवा करने के बाद भी आप अपनी उपेक्षा महसूस कर रहे हैं? यदि हाँ तो आशव्स्त हों निराशा नहीं, क्योंकि परमेश्वर उस सेवा को कभी नहीं भूलता, जो आपने उसके लिये करी अथवा उसके कारण दूसरों के लिये करी। - Mart DeHaan


हम अपनी भलाई चाहे भूल जाएं, परमेश्वर हमारी भलाई हमेशा स्मरण रखता है।


बईबल पाठ: इब्रानियों ११:२४-४०


परमेश्वर अन्यायी नहीं कि तुम्हारे काम और उस प्रेम को भूल जाये, जो तुमने उसके नाम के लिये इस रीति से दिखाया, कि पवित्र लोगों की सेवा की। - इब्रानियों ६:१०


एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण १,२
  • मरकुस १०:१-३१

शुक्रवार, 5 मार्च 2010

हृदय में मूर्तियाँ

मेरे पति और मैं जब मिशनरी होकर निकले, तब हम अपने समाज में बढ़ते भौतिकवाद के बारे में चिंतित थे। मैंने यह कभी नहीं सोचा था कि मैं खुद भी भौतिकवादी हो सकती हूँ। आखिरकर, क्या हम बड़े अभाव की स्थिति में रहकर एक दूसरे देश में सेवा करने के लिये नहीं निकले थे? क्या हमने एक छोटे से घर में, बिना किसी सहूलियत या सजावट की वस्तुओं के होते हुए, सेवा करने और जीवन बिताने से संकोच किया? ऐसे में भौतिकतावाद हमें कैसे छू भी सकता था?

तो भी धीरे धीरे मेरे मन में अपनी हालत पर असंतुष्टि जड़ पकड़ने लगी और उन वस्तुओं की लालसा मेरे अंदर पनपने लगी और उनके अभाव में मैं मन ही मन कुंठित होने लगी।

तब एक दिन परमेश्वर के आत्मा ने मेरी आँखें खोलीं और मुझे यह मूल बात समझाई कि भौतिकता वाद केवल एश्वर्य के साधन पाना ही नहीं, उनकी लालसा रखना भी है। अनजाने में ही, बिना समझे, मैं भी भौतिकतावादी होने की गलती करने लग गई थी। परमेश्वर ने मेरे मन में पनप रही असंतुष्टि को उसके वास्तविक रूप में मुझ पर प्रकट कर दिया - मेरे मन में बसी एक मूरत। उस दिन मैंने अपने इस हल्के से दिखने वाले लेकिन बहुत बड़े पाप से पश्चाताप किया, उस मूरत को हटाया और परमेश्वर ने फिर मेरे मन में सर्वोपरि आदर पाया। ऐसा करने के बाद मेरे मन में एक गहरी संतुष्टि आई, ऐसी संतुष्टि जो संसार की वस्तुओं की प्राप्ति पर आधारित नहीं होती, वरन परमेश्वर पर विश्वास रखने से आती है।

यहेजेकेल के ज़माने में परमेश्वर ने ऐसी छिपी मूर्तीपूजा के विरुद्ध कठोर व्यवहार किया। उसका सिंहासन हमेशा से उसके लोगों के हृदय में ही रहा है, इसलिये हमें मन से उन सब विचारों को हटाना है जो उसके साथ हमारी सहभागिता और उसमें मिलने वाले संतोष को नष्ट करते हैं। - Joanie Yoder


मूरत वह है जो परमेश्वर का स्थान छीन लेती है।


बाइबल पाठ: यहेजेकेल १४:१-८


हे मनुष्य की सन्तान, इन पुरुषों ने तो अपनी मूरतें अपने मन में स्थापित की हैं। - यहेजेकेल १४:३


एक साल में बाइबल:
  • गिनती ३४-३६
  • मरकुस ९:३०-५०

गुरुवार, 4 मार्च 2010

स्याही का महासमुद्र

एक भक्तिगीत ’दि लव ऑफ गौड’ शब्द चित्र के द्वारा परमेश्वर के प्रेम की अद्भुत महानता प्रकट करता है - "अगर समुद्र का सारा पानी स्याही बन जाए, सारा आकाश कागज़, भूमि की हर डंठल कलम और सारे मनुष्य लेखक हों, तो भी परमेश्वर के प्रेम का वर्णन करते करते सारी स्याही खत्म हो जायेगी, आकाश के छोर से छोर तक फैलाने पर भी काग़ज़ फैलाने के लिये जगह कम रहेगी; फिर भी उसके प्रेम का वर्णन अधूरा ही रहेगा।"

परमेश्वर के प्रेम के विष्य में पौलुस का विचार भी ऐसा ही था। उसने प्रार्थना थी कि विश्वासी दूसरे सब पवित्र लोगों के साथ मसीह के प्रेम को, जो ज्ञान से परे है जान सकें। वे उसकी चौड़ाई, लंबाई, ऊंचाई और गहराई के बारे में जान सकें, (इफिसियों ३:१८,१९)। कुछ बाइबल के विद्वान इन पदों में परमेश्वर के प्रेम की ’चौड़ाई’ का अर्थ समस्त संसार को अपने प्रेम में समेट लेने को बताते हैं (यूहन्ना ३:१६); ’लंबाई’ से वे हर युग में विद्यमान उसके अस्तित्व को मानते हैं (इफिसियों ३:२१); ’गहराई’ का अर्थ उसका गहरा ज्ञान मानते हैं (रोमियों ११:३३) और ’ऊंचाई’ का अर्थ, पाप के ऊपर विजय पाकर स्वर्ग का मार्ग खोलने की उसकी शक्ति को समझते हैं (इफिसियों ४:८)।

यद्यपि हमें इस अद्भुत प्रेम और उसके महत्त्व को पहचानने के लिये प्रयासरत रहने को कहा गया है, तो भी जैसे जैसे हम परमेश्वर के प्रेम को समझने के प्रयास में अग्रसर होते हैं, हमें एहसास होता है कि उसकी संपूर्ण विशालता हमारी बुद्धी के परे है। सारे समुद्र का पानी स्याही बनाया जाये, तो भी परमेश्वर के प्रेम का वर्णन लिख पाने को पर्याप्त नहीं होगा। - Dennis Fisher


परमेश्वर के प्रेम का वर्णन नहीं किया जा सकता, उसका अनुभव ही किया जा सकता है।


बाइबल पाठ: इफिसियों ३:१८,१९


मसीह के उस प्रेम को जान सको जो ज्ञान से परे है। इफिसियों ३:१९


एक साल में बाइबल:
  • गिनती ३१-३३
  • मरकुस ९:१-१२

बुधवार, 3 मार्च 2010

हम किस पर निर्भर हैं?

टोल्कीन की प्रसिद्ध रचना "दि लॉर्ड ओफ दि रिनग्स" तीन भागों में लिखा गया एक उपन्यास है, जिसपर एक फिल्म भी बनी है। इस रचना के दुसरे भाग में नायक फ्रोडो निराशा की परकाष्ठा पर पहुँचा और उसने अपने मित्र सैम से कहा "मैं यह नहीं कर सकता।" सैम ने उसे एक उत्साहवर्धक व्यख्यान दिया: "महान कथाओं में जैसे बताया गया है....लोग अंधेरों और खतरों में रहे...इन कहानियों के पात्रों को पीछे मुड़ने के बहुत अवसर थे, परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया। क्योंकि वे किसी सिद्धाँत पर अटल थे, इसलिये आगे बढ़ते रहे।" फ्रोडो सैम से पूछता है, "सैम, हम किस सिद्धाँत पर निर्भर रहते हैं?"

यह एक महत्त्वपूर्ण प्रशन है, जिसे हमें स्वयं से पूछना है। एक पतित और टूटते हुए संसार में रहने के कारण कभी कभी हमें लगता है कि हम अंधकार की शक्तियों से हारते जाते हैं। परन्तु जब निराशा से अभिभूत होकर ज़िम्मेदारी से पीछे हटने की स्थिति पर आते हैं, तब हमें पौलूस की सलाह पर अमल करना चाहिये: "विश्वास की अच्छी कुश्ती लड़, और उस अनन्त जीवन को थाम ले (१ तिमुथियुस ६:१२)।

जीवन के संघर्षों में हम इस विश्वास पर दृढ़ रहें कि अन्त में बुराई पर भलाई की जीत होगी और हम अपने प्रभु को आमने सामने देखेंगे और उसके साथ अनन्तकाल तक राज्य करेंगे। हर संघर्ष में भी आप इस महान विजयगाथा के पात्र हो सकते हैं; यदि आपने अपने उद्धार के लिये प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास किया है तो आपकी विजय निश्चित है। - Joe Stowell


स्वर्ग की महान सफलताओं की तुलना में संसार की परीक्षाएं बहुत छोटी हैं।


बाइबल पाठ: १ तिमुथियुस ६:११-१६


विश्वास की अच्छी कुश्ती लड़ और उस अनन्त जीवन को थाम ले। - १ तिमुथियुस ६:१२


एक साल में बाइबल:
  • गिनती २८-३०
  • मरकुस ८:२२-३८