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शनिवार, 20 मार्च 2010

बहुत बूढ़े? कभी नहीं!

’ब्राउन मैनर’ ऐसी बुज़ुर्ग महिलाओं के लिये एक वृधालय था जो अपने परिवार और कार्यों की ज़िम्मेदारियों से मुक्त होकर अब अकेले अपने आप नहीं रह पातीं थीं। एक तरह से यह उनके इस दुनिया से कूच करने से पहले का आखिरी विश्राम स्थान था। वे एक दूसरे की संगति में खुश रहतीं थीं लेकिन कभी कभी अपने अब किसी योग्य न होने की भावना उन्हें सताती थी, और उनके मनों में यह प्रश्न भी उठता था कि परमेश्वर उन्हें बुलाने में इतनी देर क्यों लगा रहा है।

उनमें से एक महिला जो सालों तक प्यानो बजाती रही थी, अक्सर मैनर के प्यानो पर भजन बजाती थी और दूसरी स्त्रियाँ उसके साथ भजन गाया करतीं और परमेश्वर की स्तुती करती थीं।

एक दिन उनके इस तरह स्तुती और आराधाना करते समय एक सरकारी अफसर वहाँ के हिसाब-किताब की जाँच पड़ताल के लिये आया। उसने उनका भजन "आप यीशु से क्या कहोगे?" सुना, और परमेश्वर के पवित्र आत्मा ने उसके दिल को छुआ। उसे स्मरण आया कि बचपन में वह यह भजन गाता था और उसे एहसास हुआ कि अब वह यीशु से बहुत दूर हो गया है। उस दिन परमेश्वर ने उससे फिर बात करी, उसे मन फिराने का एक और अवसर दिया, और उसने ऐसा ही किया।

ब्राउन मैनर की बुज़ुर्ग स्त्रियों की तरह, सारा ने भी सोचा था कि वह परमेश्वर के कार्य के लिये अब बहुत बूढ़ी हो गई है (उत्पत्ति १८:११)। लेकिन परमेश्वर ने उसे बुढ़ापे में एक पुत्र दिया जो प्रभु यीशु का पूर्वज हुआ (उत्पत्ति २१:१-३; मत्ती १:२,१७)। जैसे सारा और ब्राउन मैनर की महिलाएं, हम भी परमेश्वर के लिये उपयोगी होने के लिये कभी ’बहुत बूढ़े’ नहीं होंगे। - जूली ऐकरमैन लिंक


अगर आप में इच्छा है, तो परमेश्वर किसी भी उम्र में आपका उपयोग कर सकता है।


बाइबल पाठ: उत्पत्ति १८:१-१५


क्या यहोवा के लिये कोई काम बहुत कठिन है? - उत्पत्ति १८:१४


एक साल में बाइबल:
  • यहोशू ४-६
  • लूका १:१-२०

शुक्रवार, 19 मार्च 2010

परवाह से भरा हृदय

अमेरिका के उत्तरी कैरोलीना विश्वविद्यालय के चैपल हिल कैंपस में एक जवान जैसन रे आनन्द की किरण था। तीन सालों तक वह एक बड़े से मेढ़े "रैमसिस" का, जो उस विश्वविद्यालय का पहचान चिन्ह था, अभिनय करता रहा। कभी खेल प्रतियोगिताओं में दर्शकों को प्रसन्न करने, तो कभी अस्पताल में बच्चों से मिलने और उन्हें आनन्दित करने के लिये, वह उस मेढ़े का बड़ा सा मुखौटा और कपड़े पहने आता था। फिर अचानक मार्च २००७ में, जब वह अपनी बास्केटबाल टीम के साथ जा रहा था, तो २१ वर्षीय जैसन एक मोटर दुर्घटना का शिकार हो गया। उसके परिवार के देखते देखते ही अस्पताल में उसकी मृत्यु हो गई।

लेकिन जैसन की कहानी यहीं समाप्त नहीं होती। मरने से दो साल पहले ही जैसन ने अपने मरणोप्रांत अपने अंगों और शरीर के भागों को दान करने से संबंधित कानूनी कागज़ तैयार करवा लिये थे। समय रहते किये गये उसके इस दयालुता के कार्य के कारण चार लोगों का जीवन बच सका और दर्जनों लोगों को सहायता मिली। एक जवान, अपने जीवन के सबसे अच्छे समय में, अपने भविष्य को संवारने की चिंता करने के स्थान पर न केवल दुसरों के सुख के लिये चिंतित था, वरन उसने उसके अनुरूप कार्यवाही भी की। वे सारे लोग और उनके परिवार जिन्हें जैसन की इस दयालुता से सहायता मिली उसके कृतज्ञ हैं।

जैसन का यह कार्य फिलिप्पियों को लिखी पत्री के दूसरे अध्याय में पौलुस द्वारा दी गई सलाह की याद दिलाता है। वह उन्हें कहता है कि केवल अपनी ही नहीं वरन दुसरों के हितों की भी चिंता करो।

एक दिल जो दूसरों की भलाइ के लिये उन तक पहुँचने का प्रयास करता है, वासतव में एक स्वस्थ दिल है। - बिल क्राउडर


दुसरों की ज़रूरतों का ध्यान रखना मसीह को आदर देता है।


बाइबल पाठ: फिलिप्पियों २:१-११


एक दुसरे को अपने से अच्छा समझो। हर एक अपनी ही हित की नहीं, वरन दुसरों के हित की भी चिंता करे। - फिलिप्पियों २:३,४


एक साल में बाइबल:
  • यहोशु १-३
  • मरकुस १६

गुरुवार, 18 मार्च 2010

एक नाम में क्या रखा है?

मेरा चीनी पारिवारिक नाम दूसरे पारिवारिक नामों के लोगों से मुझे अलग करता है। वह मुझे एक पारिवारिक ज़िम्मेदारी भी देता है। मैं ’हिया’ परिवार का हूँ। उस कुटुँब का होने के नाते मुझसे उस कुटुँब को आगे चलाने और अपने पूर्वजों का सम्मान बनाए रखने की उम्मीद की जाती है।

यीशु मसीह के लहु से उद्धार पाये हुए विश्वासियों के आत्मिक कुटुँब का भी एक अलग नाम है। वे ’मसीही’ कहलाते हैं।

नये नियम में यह ’मसीही’ नाम सबसे पहले अन्ताकिया में, वहाँ के निवासियों ने प्रभु यीशु मसीह के चेलों को दिया (प्रेरितों ११:२६), जब उन लोगों ने चेलों के आचरण को देखा। उन आरंभिक विश्वासियों में दो विशिष्ट बातें देखीं गईं। वे जहाँ भी जाते थे, प्रभु यीशु के सुसमाचार को सुनाते थे (पद २०); और वे बड़ी लगन से परमेश्वर के वचन को सीखते थे, पौलुस तथा बरनबास साल भर उन्हें पवित्र शास्त्र सिखाते रहे (पद २६)।

’मसीही’ नाम का अर्थ है मसीह में बने रहने वाला, वह जो हर परिस्थिति में मसीह से लिपटा रहता है। आज कई लोग अपने आप को मसीही कहते हैं, परन्तु क्या उन्हें ऐसा कहना चाहिये? क्या उनके आचरण इस नाम के योग्य हैं?

यदि आप अपने आप को ’मसीही’ कहते हैं तो क्या आपका जीवन दूसरों पर मसीह को प्रकट करता है? क्या आप में परमेश्वर के वचन के लिये भूख और प्यास है? आपके व्यवाहार से मसीह के नाम को आदर मिलता है या निंदा?

एक नाम में क्या रखा है? यदि वह नाम ’मसीही’ है, तो वाकई में उस में बहुत कुछ है! - सी. पी. हिया


एक सच्चा मसीही प्रभु यीशु मसीह ही को प्रतिबिंबित करता है।


बाइबल पाठ: प्रेरितों के काम ११:१९-२६


जिस बुलाहट से तुम बुलाए गये हो उसके योग्य चाल चलो। - इफिसियों ४:१


एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण ३२-३४
  • मरकुस १५:२६-४७

बुधवार, 17 मार्च 2010

एक कदम बढ़ाईये

इंगलैंड के कोवैन्ट्री शहर में कुछ शोधकर्ताओं ने एक स्थान पर कुछ आकर्षक विज्ञापन लगा दिये "सीढ़ीयों का उपयोग आपके हृदय के लिये लाभदायक है।" ६ सप्ताह के समय में ही निकट लगी स्वचलित सीढ़ीयों (एस्केलेटर) का प्रयोग करने वाले लोगों से दुगने से भी अधिक लोग साधारण सीढ़ीयों का प्रयोग करने लगे। शोधकर्ताओं का कहना है कि हर कदम का महत्त्व है, और लोगों की पृवत्ति में स्थाई बदलाव के लिये उन्हें बार बार याद दिलाया जाना ज़रूरी है।

बाइबल में अनेक ऐसे ’चिन्ह’ हैं जो हमें परमेश्वर के सच्चे अनुयायी होने और मन लगाकर उसकी आज्ञा मानने का निर्देश देते हैं। इस्त्राएलियों के वायदा किये हुए देश में प्रवेश करने के पहले, यहोवा ने उन से कहा, "आज मैंने तुझको जीवन और मरण, हानि और लाभ दिखाया है।....तू जीवन ही को आपना ले कि तू और तेरा वंश दोनो जीवित रहें; इसलिये अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम करो और उसकी बात मानो और उससे लिपटे रहो; क्योंकि तेरा जीवन और दीर्घायु यही है।" (व्यवस्थाविवरण ३०:१५,१९,२०)।

अक्सर हम सोचते हैं कि विश्वास की किसी लंबी छलांग से, या किसी एक महत्त्वपूर्ण निर्णय द्वारा, या कोई महान सेवा का कार्य करके हमारे जीवन में अचानक परिवर्तन आ जायेगा। परन्तु वास्तविकता यह है कि बदलाव छोटे छोटे कदम बढ़ाने से ही होता है और हर कदम महत्त्वपूर्ण है।

आज हम बाइबल के निर्देशक चिन्हों को गम्भीरता से लें और प्रभु के आज्ञाकारी होने के लिये सच्चे मन से कदम उठाएं। - डेविड मैकैस्लैंड


आज्ञाकारिता में उठाया एक छोटा सा कदम आशीश की ओर एक बहुत बड़ा कदम है।


बाइबल पाठ: व्यवस्थाविवरण ३०:१५-२०


अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम करो और उसकी बात मानो और उससे लिपटे रहो; क्योंकि तेरा जीवन और दीर्घायु यही है। - व्यवस्थाविवरण ३०:२०


एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण ३०,३१
  • मरकुस १५:१-२५

मंगलवार, 16 मार्च 2010

थोमा (सन्देह) का समय

एक युवक अपने विश्वास को लेकर बहुत संघर्ष में था। वह अपने परिवार में स्नेह और धार्मिकता के साथ पला बड़ा हुआ। लेकिन अपने जीवन में लिये गलत फैसलों और उनसे बनी परिस्थितियों के कारण वह प्रभु से दूर हो गया। बचपन में वह प्रभु को जानने का दावा करता था, पर अब अविश्वास में संघर्ष कर रहा था।

एक दिन उससे बात करते हुए मैंने उससे कहा, "मैं जानता हूँ कि तुम एक लम्बे समय तक प्रभु यीशु मसीह के साथ चले हो, परन्तु अब तुम्हारे मन में प्रभु और विश्वास को लेकर सन्देह है। क्या मैं इसे तुम्हारे जीवन में ’थोमा का समय’ कहकर बुला सकता हूँ?"

वह जानता था कि थोमा यीशु के १२ चेलों में से एक था और उसने कई साल तक प्रभु पर खुले तौर पर विश्वास किया था। मैंने इस जवान को याद दिलाया कि यीशु की मृत्यु के बाद थोमा को उसके पुनः जी उठने पर विश्वास नहीं हुआ। लेकिन अपने पुनुरुथान के ८ दिन बाद प्रभु थोमा के समक्ष आया, उसे अपने शरीर के घाव दिखाये और उससे कहा "अविश्वासी नहीं परन्तु विश्वासी हो।" आखिरकर अपने अविश्वास को छोड़कर थोमा ने कहा "हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर!" (युहन्ना२०: २४-२८)।

मैंने उस युवक से कहा, "यीशु ने थोमा का इंतिज़ार किया, और थोमा लौट आया। मुझे लगता है कि तुम भी लौटोगे। मैं प्रार्थना कर रहा हुँ कि तुम भी एक दिन यीशु से फिर कहो ’हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर!’ "

हो सकता है कि आप भी "थोमा के समय" से होकर निकल रहें हों; जब आपको अपने यीशु के निकट होने में सन्देह हो, या यीशु पर ही सन्देह हो रहा हो। यीशु आपकी भी प्रतीक्षा कर रहा है। आपकी तरफ बढ़े हुए उसके कील से छिदे हाथों कि ओर आप अपने हाथ बढ़ाईये तो सही। - डेव ब्रैनन


परमेश्वर के घर में उसकी सन्तान का सदा स्वागत होता है।


बाइबल पाठ: युहन्ना २०:२४-२९


थोमा ने उत्तर दिया "हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर!" - युहन्ना२०:२८


एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण २८,२९
  • मरकुस १४:५४-७२

सोमवार, 15 मार्च 2010

स्वर्ग की ओर हाथ बढ़ाना

जब मैं बच्चों को देखता हूँ जो अपनी माताओं का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिये उनकी ओर अपने हाथ बढ़ाते हैं तो यह मुझे प्रार्थना में परमेश्वर की ओर जाने के अपने प्रयत्न की याद दिलाता है।

परमेश्वर की प्रारंभिक मंडली में शिक्षा थी कि बुज़ुर्गों को प्रेम और प्रार्थना के पाठ में लगे रहना चाहिये। इन दोनो बातों में, प्रेम करना मुझे बहुत कठिन लगता है और प्रार्थना करना मुझे बहुत चकरा देता है। मेरी परेशानी होती है कि मैं किस बात के लिये विशेष रूप से प्रार्थना करूं - कि लोगों समस्याओं से निकल सकें, या उन्हें समस्याओं में रहते हुए भी स्थिर बने रहने की सामर्थ मिल सके।

ऐसे में मुझे पौलुस के शब्द " आत्मा तो हमारी दुर्बलताओं में हमारी सहायता करता है" (रोमियों ८:२६), ढाढ़स देते हैं। इस वाक्य में पौलुस ने जो शब्द प्रयोग किया है, मूल भाषा में उसका अर्थ है "किसी के प्रयत्न म्रें सम्मिलित होकर उसकी सहायता करना।" परमेश्वर का आत्मा हमारी प्रार्थनाओं में हमारे साथ मिलकर निवेदन करता है। वह "आहें भर भर कर जो बयान से बाहर हैं, हमारे लिये विनती करता है।" वह हमारे कष्टों में हमारे साथ दुखी होता है, उसे हमारी चिंता हम से भी अधिक रहती है और वह, आहों के साथ हमारे लिये प्रार्थना करता है, ऐसी प्रार्थना जो परमेश्वर की इच्छानुसार हो। वह जानता है कि प्रार्थना में क्या कहना उचित है।

इसलिये मुझे प्रार्थना में शब्दों के उचित होने की चिंता करने की आवश्यक्ता नहीं है। मुझे केवल परमेश्वर के लिये भूखा होना है और उसकी ओर हाथ बढ़ाने हैं, आश्वस्त होकर कि वह मेरी सुधि रखता है। - डेविड रोपर


प्रार्थना में परमेश्वर के समक्ष एक शब्दरहित हृदय लेकर आना, हृदयरहित अनेक शब्द लेकर आने से कहीं भला है।


बाइबल पाठ: रोमियों ८:१८-२७


आत्मा आप ही ऐसी आहें भर भर कर जो बयान से बाहर हैं, हमारे लिये विनती करता है। - रोमियों ८:२६


एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण २६-२७
  • मरकुस १४:२७-५३

रविवार, 14 मार्च 2010

कबाड़ा हटाओ

घर में जिन वस्तुओं को रखने की जगह नहीं होती वे सब मैं अपने गैरेज में डाल देता हूँ। वह मेरे व्यर्थ वस्तुएं जमा करने का स्थान हो गया है। ऐसे जमा हुए व्यर्थ सामान के ढेर के कारण मुझे गैरेज का दरवाज़ा दूसरों के सामने खोलने में शर्म आती है, कि कोई देख न ले। इसलिये, मैं कभी कभी उसे साफ करने के लिये एक दिन निर्धारित कर लेता हूँ।

हमारे मन और दिमाग़ में भी ऐसे ही बहुत कूड़ा-करकट जमा होता रहता है। इस संसार के प्रभाव से जाने-अनजाने कई अधार्मिक विचार और प्रवृतियां हमारे मन में घर कर लेती हैं, जैसे स्वार्थी होकर सोचना, अपने हकों की मांग अनुचित रीति से करना, हमारी हानि करने वाले के प्रति कठोर प्रवृति दिखाना आदि। ऐसे व्यवहार के कारण बहुत जल्दी हमारे मन अशुद्ध और अपवित्र हो जाते हैं। हमें लगता है कि हम अपनी दुर्भावनाएं को छिपा कर रख सकेंगे, परन्तु वे प्रकट हो ही जाती हैं।

पौलुस पूछता है, "क्या तुम नहीं जानते कि तुम्हारी देह पवित्र आत्मा का मन्दिर है?" (१ कुरिन्थियों ६:१९)। मेरा विचार है कि शायद परमेश्वर को भी हमारे अन्दर निवास करना, फूहड़पन से जमा किये हुए बेकार सामान से भरे गैरेज में रहने के जैसा ही लगता होगा।

हमें मन से बुराईयों को हटाने का निश्चय कर, परमेश्वर की सहयता से अपने अन्दर की सफाई करनी चाहिये। बैर, द्वेष, वासना आदि सभी कूड़े को मन से निकाल कर, अपने विचारों और प्रवृतियों को परमेश्वर की ओर संगठित करके, और परमेश्वर के वचन के सौन्दर्य को अपने मन में भर लेने से ही हम अन्दर से भली भांति स्वच्छ होंगे। तब हम निसंकोच होकर अपने दिल के दरवाज़े किसी के भी अन्दर देखने के लिए खुले छोड़ सकते हैं। - जो स्टोवैल


परमेश्वर के आत्मा को कबाड़ से भरे मन में मत रखो, आज ही समय निकालकर अपने मन को साफ करो।


बाइबल पाठ: १ कुरिन्थियों ६:१२-२०


क्या तुम नहीं जानते कि तुम्हारी देह पवित्रात्मा का मन्दिर है, जो तुममें बसा हुआ है और तुम्हें परमेश्वर की ओर से मिला है, और तुम अपने नहीं हो? - १ कुरिन्थियों ६:१९


एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण २३-२५
  • मरकुस १४:१-२६