ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

गुरुवार, 13 नवंबर 2014

इन्कार


   उसके घर पर हमारे पहुँचने के पश्चात मार्टी ने हम से कहा, "अच्छा, तो नियम इस प्रकार से हैं; आप सब जो चाहें, जब चाहें, जहाँ चाहें वह सब कर सकते हैं सिवाय उसके जिसके लिए आप को इन्कार किया जाए।" जब हम छुट्टी बिताने हमारे मित्र मार्टी के झील के किनारे बने घर पर गए तब उससे हमें मिलने वाले ये पहले निर्देश थे। मार्टी और उसकी पत्नि लिन्न को आतिथ्य बहुत अच्छा लगता है और वे अपने अतित्थियों को अपने घर में आनन्द मनाने के लिए बहुत स्वतंत्रता देते हैं। हमने जब वहाँ झील में नौका विहार के लिए भिन्न नावों को देखा तो हम समझ गए कि वह दोपहर हमारे लिए बड़े आनन्द का समय होने वाली थी। मार्टी के घर में हमारे प्रवास के सारे समय में मार्टी ने केवल एक बार ’ना’ बोला, जब उसने देखा कि हमारी नाव के निकट तैर रहे कुछ हंसों को हम कुछ खाना खिलाने पर थे। उसने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वह उन हंसों के बर्ताव को जानता था, जो हम नहीं जान्ते थे - यदि एक बार उन्हें कुछ खाने को दिया जाता तो वे और माँगने लगते और नहीं मिलने पर आक्रमक हो जाते।

   परमेश्वर ने हमारे आदि माता-पिता आदम और हव्वा के लिए एक बहुत अच्छा स्थान बना कर दिया था और उन्हें वहाँ आनन्दित रहने के लिए बहुत स्वतंत्रता थी। परमेश्वर ने केवल एक बात के लिए उन्हें मना किया था - एक विशेष पेड़ से उन्हें फल नहीं खाना था, बाकि सब कुछ उनके लिए खुला था। लेकिन शैतान के बहकावे में आकर उन्होंने परमेश्वर की इस आज्ञा की अवहेलना करी, शैतान की बातों के कारण उन्हें लगा कि वे परमेश्वर से बेहतर जानते हैं। उनकी इस एक अनाज्ञाकारिता के कारण पाप संसार में आया और पाप के साथ मृत्यु भी आई तथा संसार में फैल गई।

   हम भी कई बार वही गलती करते हैं जो आदम और हव्वा ने करी थी - परमेश्वर के इन्कार के बावजूद अपनी इच्छा को पूरा करना। अनेक बार हम नहीं समझ पाते हैं कि परमेश्वर ने किसी बात के लिए इन्कार क्यों किया है। लेकिन हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि परमेश्वर का उद्देश्य सदा हमारी भलाई ही रहता है, और उसका इन्कार भी इसी भलाई के लिए होता है। आज चाहे किसी बात के लिए हमें उसके इन्कार का सामना करना पड़े, लेकिन स्मरण रखें कि उस इन्कार के साथ परमेश्वर हम से यह भी कह रहा है कि, "मेरा विश्वास करो, मैं जानता हूँ कि तुम्हारे लिए क्या भला है; बस मेरी बात मान कर चलते रहो।" - सिंडी हैस कैसपर


परमेश्वर हमारी कोई विनती अस्वीकार कर सकता है परन्तु हमारी भलाई करते रहने के विश्वास को कभी तोड़ नहीं सकता।

पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना: क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाए उसी दिन अवश्य मर जाएगा। -  उत्पत्ति 2:17

बाइबल पाठ: उत्पत्ति 3:1-7
Genesis 3:1 यहोवा परमेश्वर ने जितने बनैले पशु बनाए थे, उन सब में सर्प धूर्त था, और उसने स्त्री से कहा, क्या सच है, कि परमेश्वर ने कहा, कि तुम इस बाटिका के किसी वृक्ष का फल न खाना? 
Genesis 3:2 स्त्री ने सर्प से कहा, इस बाटिका के वृक्षों के फल हम खा सकते हैं। 
Genesis 3:3 पर जो वृक्ष बाटिका के बीच में है, उसके फल के विषय में परमेश्वर ने कहा है कि न तो तुम उसको खाना और न उसको छूना, नहीं तो मर जाओगे। 
Genesis 3:4 तब सर्प ने स्त्री से कहा, तुम निश्चय न मरोगे, 
Genesis 3:5 वरन परमेश्वर आप जानता है, कि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आंखें खुल जाएंगी, और तुम भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्वर के तुल्य हो जाओगे। 
Genesis 3:6 सो जब स्त्री ने देखा कि उस वृक्ष का फल खाने में अच्छा, और देखने में मनभाऊ, और बुद्धि देने के लिये चाहने योग्य भी है, तब उसने उस में से तोड़कर खाया; और अपने पति को भी दिया, और उसने भी खाया। 
Genesis 3:7 तब उन दोनों की आंखे खुल गई, और उन को मालूम हुआ कि वे नंगे है; सो उन्होंने अंजीर के पत्ते जोड़ जोड़ कर लंगोट बना लिये।

एक साल में बाइबल: 
प्रेरितों 15-16

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें