क्या बाइबल के अनुसार, क्या मसीही कलीसियाओं में स्त्रियों को पुलपिट से प्रचार करने और पास्टर की भूमिका निभाने की अनुमति है?
भाग 5 – स्त्रियों के पक्ष में दिए जाने वाले कुछ तर्क – 1
जो लोग इस बात के पक्ष में हैं कि स्त्रियाँ भी कलीसियाओं में प्रचार कर सकती हैं, पास्टर बन सकती हैं, वे अपनी बात को आधार देने के लिए कुछ तर्क देते हैं, और जैसा पिछले लेख में कहा गया था, बाइबल की स्त्रियों के कुछ उदाहरणों को अनुचित व्याख्या के साथ अपनी बात को सही ठहराने के उद्देश्य से उनका उपयोग करते हैं। आज से हम उन आम तौर से दिए जाने वाले तर्कों को जो स्त्रियों के पक्ष में दिए जाते हैं, देखना आरंभ करेंगे।
एक आम तर्क है कि क्योंकि महिलाओं को भी बाइबल की समझ और ज्ञान है, वे भी उसकी व्याख्या कर लेती हैं, और जब परमेश्वर ही ने यह योग्यता, यह वरदान उन्हें भी दिया है, तो फिर वे परमेश्वर के वचन की व्याख्या और बातों को लोगों के सामने क्यों नहीं रख सकती हैं? यह ठीक है कि परमेश्वर की ओर से स्त्रियों को भी बाइबल को समझने और समझाने का वरदान मिला है, किन्तु वह परमेश्वर द्वारा उनकी निर्धारित सेवकाई के लिए दिया गया बाइबल का उपयोग है। वरदान का दुरुपयोग परमेश्वर को स्वीकार्य नहीं है, मत्ती 7:21-23 देखिए; न्याय के समय बहुत से लोग प्रभु से विनती के साथ कहेंगे कि उन्होंने उसके नाम में आश्चर्यकर्म किए, भविष्यवाणियाँ कीं, प्रचार किया, किन्तु प्रभु उन से कह देगा कि वह उन्हें जानता भी नहीं है, क्योंकि उन्होंने जो कुछ भी परमेश्वर की आज्ञाकारिता में नहीं किया वह प्रभु को ग्रहण योग्य नहीं है, और उसे वहाँ कुकर्म कहा गया है।
साथ ही इस पर भी ध्यान दीजिए कि बाइबल की बातों से प्रचार करना तो शैतान को भी आता है, और वह यह सामान्यतः करता है, तथा करवाता है – इसीलिए तो अनेकों गलत शिक्षाएँ और गलत सिद्धांत तथा धारणाएं ईसाई समाज में व्याप्त हैं, जड़ पकड़े हुए हैं (2 कुरिन्थियों 11:3, 13-15; कुलुस्सियों 2:4-8)। शैतान तो इतना धूर्त और बेशर्म है कि प्रभु यीशु को ही गिराने और फंसाने के लिए उसके वचन से उसी को गलत प्रचार करने लगा (मत्ती 4:1-11)। इसलिए इस तर्क के आधार पर कि महिलाएं भी बाइबल का अच्छा ज्ञान और समझ रखती हैं, वे भी बाइबल से अच्छा प्रचार कर लेती हैं, यह प्रमाणित नहीं किया जा सकता है कि उन्हें चर्च में खड़े होकर प्रचार करने की सामर्थ्य और ज्ञान प्रभु ने ही दिया है।
प्रभु कभी अपने वचन के विरुद्ध कोई बात नहीं करेगा, परन्तु शैतान अवश्य प्रभु के वचन के दुरुपयोग के द्वारा प्रभु के वचन को उसके ही लोगों में होकर, प्रभु के नाम में ही झूठा ठहराएगा, उस वचन का गलत प्रयोग करवाएगा, उसे अविश्वासयोग्य दिखाने का प्रयास करेगा। हम अगले लेख में कुछ और ऐसे ही व्यर्थ तर्कों को देखेंगे।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
- क्रमशः
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According to the Bible, Do Women Have the Permission to Serve as Pastors and Preach from the Pulpit in the Church?
Part 5 – Some Arguments Given in Favor of Women - 1
Those who are in favor of the notion that women can preach in the Churches, can become Pastors, give some arguments to justify their stand, and as has been stated in the previous article, they try to justify their stand by misinterpreting the examples of the women in the Bible. From today, we will start examining the arguments commonly given in favor of women.
A popular argument is that since women too have the understanding and knowledge of the Bible, are able to analyze and interpret it, and since God has given this gift, this ability to them, then why can’t they put before the people the analysis and interpretation of the Bible? It is correct that God has given this gift and ability to analyze and interpret the Bible to women also, but this utilization of the Bible has been given to them by God for their assigned ministry. God does not accept the misuse of the gift, consider Matthew 7:21-23; at the time of judgment, many people will plead before the Lord that they did miracles, prophesied, preached in His name, but the Lord will say to them that He does not even know them, because whatever they have done outside the will of God, is not acceptable to Him, and here all of it has been called “lawlessness” or iniquity.
Moreover, ponder over this also, even Satan knows how to preach from the Bible and based on the Bible; he does it, and gets it done quite regularly – that is why false teachings and wrong doctrines are so widespread in Christendom and have taken deep roots (2 Corinthians 11:3, 13-15; Colossians 2:4-8). Satan is so crafty and shameless that he has the audacity to misquote to Lord Jesus His own Word, so as to trap and make Him fall (Matthew 4:1-11). Therefore, on the basis of this argument that even the women have a good knowledge and understanding of God’s Word, it cannot be said or proved that they have been given the knowledge and ability to preach from the Church pulpit by the Lord God.
The Lord will never do anything contrary to His Word, but Satan will surely misuse and misinterpret God’s Word, and through God’s people, in the name of God, will try to falsify it, or prove it wrong, or bring inconsistencies in it. We will see some more such vain arguments in the next article.
If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life. Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.
- To Be Continued
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