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मसीही जीवन से सम्बन्धित बातें – 22
मसीही जीवन के चार स्तम्भ - 2 - संगति (4)
हम परमेश्वर के वचन द्वारा मसीही विश्वासियों और कलीसिया की बढ़ोतरी के लिए, वर्तमान में व्यावहारिक मसीही जीवन से सम्बन्धित बाइबल में दिए गए निर्देशों पर विचार कर रहे हैं। प्रेरितों 2:42 में चार बातें दी गई हैं, जिन में आरम्भिक मसीही विश्वासी लौलीन रहते थे, और इन चार बातों को “मसीही विश्वास के स्तम्भ” भी कहा जाता है। पिछले कुछ लेखों में हम इनमें से पहले स्तम्भ, परमेश्वर के वचन का नियमित, और यत्न से अध्ययन करना के बारे में देख चुके हैं। अब हम दूसरे स्तम्भ, संगति रखने के बारे में देख रहे हैं। हमने देखा है कि परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप में सृजा, कि उसके साथ संगति रख सके; और मनुष्य के लिए परमेश्वर का उद्देश्य है कि वह न केवल परमेश्वर के साथ, बल्कि अन्य मनुष्यों के साथ भी संगति में रहे। संसार में पाप के आने से अन्य बातों के साथ, संगति के इन दोनों स्वरूपों पर भी दुष्प्रभाव आया, और मनुष्य की संगति परमेश्वर से टूट गई, तथा अन्य मनुष्यों से बिगड़ गई। जहाँ पाप है, वहाँ संगति नहीं है - न परमेश्वर के साथ और न ही मनुष्यों के साथ। पापों से पश्चाताप करने और प्रभु यीशु में विश्वास करके, उसे अपना उद्धारकर्ता ग्रहण करने से, पापों का निवारण हो जाता है। और तब, मनुष्य का परमेश्वर के साथ मेल-मिलाप हो जाता है, वह परमेश्वर की संगति में बहाल हो जाता है, परमेश्वर के सार्वभौमिक, विश्वव्यापी परिवार - उसकी कलीसिया का सदस्य बन जाता है, और अन्य मसीही विश्वासियों के साथ एक समान स्तर पर परमेश्वर की सन्तान बन जाता है। अब, मनुष्यों को विभाजित करने और बैर उत्पन्न करने वाली सभी सांसारिक बातें समाप्त हो जाती हैं, और मसीही विश्वासी के रूप में, मनुष्य की मनुष्य से संगति भी बहाल हो जाती है।
पिछले लेख में हमने यह भी देखा था कि प्रभु यीशु मसीह में विश्वास लाने और उद्धार पाने के द्वारा व्यक्ति केवल परमेश्वर के परिवार का एक सदस्य ही नहीं बनता है। वरन, परमेश्वर के साथ संगति में बहाली, मसीही विश्वासियों को एक ऐसे बहु-आयामी स्तर तक पहुँचा देती है, जो मनुष्यों के सोचने, समझने, कल्पनाओं, और उसकी किसी भी क्षमता से कहीं बढ़कर है। यह ऐसा अकल्पनीय स्तर है संसार में जिसके समान कोई भी बात, अन्य किसी भी धर्म, विश्वास, ईश-मान्यता में, या कहीं पर भी देखने को नहीं मिलती है। पिछले लेख में हम इस बहाली के परिणामस्वरूप होने वाली दो बातों को देख चुके हैं - पहली बात, व्यक्ति चाहे कितना भी घोर पापी क्यों न रहा हो, संसार में उसका कैसा भी अपयश क्यों न रहा हो, मसीही विश्वास में आते ही, वह प्रत्येक अन्य मसीही विश्वासी के समान स्तर पर परमेश्वर की सन्तान बन जाता है। दूसरी बात, मनुष्यों के साथ बैर और विभाजन उत्पन्न करने वाली सभी सांसारिक बातों और धारणाओं का अन्त हो जाता है, सभी ऊँच-नीच समाप्त हो जाते हैं, और परमेश्वर सभी मसीही विश्वासियों को एक समान स्तर का - प्रभु यीशु के भाई-बहन, देखता है। आज हम परमेश्वर के साथ संगति में बहाली के साथ मिलने वाली पाँच अन्य अद्भुत, अभूतपूर्व और अनुपम बातों को देखेंगे, ताकि इस संगति के महत्व और मूल्य को समझ सकें, उसका आदर कर सकें।
तीसरी बात, परमेश्वर के परिवार का सदस्य बनाने के साथ ही परमेश्वर की उस सन्तान को परमेश्वर और प्रभु यीशु की अटल और अचूक सुरक्षा भी मिल जाती है। प्रभु यीशु ने अपने शिष्यों से कहा, “और मैं उन्हें अनन्त जीवन देता हूं, और वे कभी नाश न होंगी, और कोई उन्हें मेरे हाथ से छीन न लेगा। मेरा पिता, जिसने उन्हें मुझ को दिया है, सब से बड़ा है, और कोई उन्हें पिता के हाथ से छीन नहीं सकता।” (यूहन्ना 10:28-29)। साथ ही प्रभु ने अपने प्रत्येक शिष्य से यह प्रतिज्ञा भी की है कि उसके जन कभी भी किसी ऐसी परीक्षा में नहीं पड़ेंगे जो उनके सहने के बाहर हो, और परमेश्वर प्रत्येक बात में से भी अन्ततः उनका भला ही करेगा “तुम किसी ऐसी परीक्षा में नहीं पड़े, जो मनुष्य के सहने से बाहर है: और परमेश्वर सच्चा है: वह तुम्हें सामर्थ्य से बाहर परीक्षा में न पड़ने देगा, वरन परीक्षा के साथ निकास भी करेगा; कि तुम सह सको।” (1 कुरिन्थियों 10:13); “और हम जानते हैं, कि जो लोग परमेश्वर से प्रेम रखते हैं, उन के लिये सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्पन्न करती है; अर्थात उन्हीं के लिये जो उस की इच्छा के अनुसार बुलाए हुए हैं।” (रोमियों 8:28)।
चौथी बात, न केवल प्रभु के विश्वासी परमेश्वर की अभेद्य सुरक्षा में रहते हैं, बल्कि उनकी सहायता के लिए, उन्हें परमेश्वर के वचन को सिखाने के लिए, परमेश्वर पवित्र आत्मा उनमें आकर स्थाई रीति से निवास करने लग जाता है “और मैं पिता से बिनती करूंगा, और वह तुम्हें एक और सहायक देगा, कि वह सर्वदा तुम्हारे साथ रहे।” “परन्तु सहायक अर्थात पवित्र आत्मा जिसे पिता मेरे नाम से भेजेगा, वह तुम्हें सब बातें सिखाएगा, और जो कुछ मैं ने तुम से कहा है, वह सब तुम्हें स्मरण कराएगा।” (यूहन्ना 14:16, 26)। उनके उद्धार पाने के पल से ही उनकी देह पवित्र आत्मा का मन्दिर बन जाते हैं “क्या तुम नहीं जानते, कि तुम्हारी देह पवित्रात्मा का मन्दिर है; जो तुम में बसा हुआ है और तुम्हें परमेश्वर की ओर से मिला है, और तुम अपने नहीं हो?” (1 कुरिन्थियों 6:19)।
पाँचवीं बात, परमेश्वर ने मनुष्य की सृष्टि से ही उसे स्वर्गदूतों से कुछ कम बनाया है “तू ने उसे स्वर्गदूतों से कुछ ही कम किया; तू ने उस पर महिमा और आदर का मुकुट रखा और उसे अपने हाथों के कामों पर अधिकार दिया;” “पर हम यीशु को जो स्वर्गदूतों से कुछ ही कम किया गया था, मृत्यु का दुख उठाने के कारण महिमा और आदर का मुकुट पहने हुए देखते हैं; ताकि परमेश्वर के अनुग्रह से हर एक मनुष्य के लिये मृत्यु का स्वाद चखे।” (इब्रानियों 2:7, 9)। किन्तु उद्धार पाने और परमेश्वर की सन्तान बन जाने पर अब स्वर्गदूत मसीही विश्वासियों की सेवा-टहल करने वाले बना दिए जाते हैं “क्या वे सब सेवा टहल करने वाली आत्माएं नहीं; जो उद्धार पाने वालों के लिये सेवा करने को भेजी जाती हैं?” (इब्रानियों 1:14)।
छठी बात, परमेश्वर ने अपना जीवता, सत्य, अटल, और अपरिवर्तनीय वचन, जो अनन्तकाल के लिए स्वर्ग में स्थापित है “हे यहोवा, तेरा वचन, आकाश में सदा तक स्थिर रहता है;” “तेरा सारा वचन सत्य ही है; और तेरा एक एक धर्ममय नियम सदा काल तक अटल है।” (भजन 119:89, 160; 1 पतरस 1:25 भी देखिए), हमारे हाथों में रख दिया है, और उस वचन में होकर हम से बात करता है, हमारा मार्गदर्शन करता है “तेरा वचन मेरे पांव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है” (भजन 119:105), अपने आप को अपने लोगों पर प्रकट करता है।
सातवीं बात, प्रभु परमेश्वर ने स्वर्गदूतों को नहीं, हम अयोग्य, गलती कर जाने वाले, कमज़ोर मनुष्यों को ही अपने गवाह बनाया है कि उसके वचन को और उद्धार के सुसमाचार को सारे संसार के लोगों तक पहुँचाएं, “इसलिये तुम जा कर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ और उन्हें पिता और पुत्र और पवित्रआत्मा के नाम से बपतिस्मा दो। और उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ: और देखो, मैं जगत के अन्त तक सदैव तुम्हारे संग हूं।” (मत्ती 28:19-20), “परन्तु जब पवित्र आत्मा तुम पर आएगा तब तुम सामर्थ्य पाओगे; और यरूशलेम और सारे यहूदिया और सामरिया में, और पृथ्वी की छोर तक मेरे गवाह होगे।” (प्रेरितों 1:8)। प्रभु की अपने लोगों से प्रतिज्ञा है कि वह उन्हें न तो कभी छोड़ेगा, और न कभी त्यागेगा “तुम्हारा स्वभाव लोभरहित हो, और जो तुम्हारे पास है, उसी पर संतोष किया करो; क्योंकि उसने आप ही कहा है, कि मैं तुझे कभी न छोडूंगा, और न कभी तुझे त्यागूंगा।” (इब्रानियों 13:5)।
इन बातों के अतिरिक्त भी मसीही विश्वासियों के जीवन के हर पक्ष के लिए परमेश्वर ने अपने वचन में अनेकों अद्भुत प्रतिज्ञाएँ दी हैं। पाठक स्वयं यह निर्णय कर सकते हैं, क्या ऐसे अनुपम, अद्भुत, अभूतपूर्व आश्वासन मसीही विश्वास के अतिरिक्त, संसार भर में क्या कहीं और पाए जाते हैं? और वे भी सेंत-मेंत, केवल पापों से पश्चाताप करके प्रभु यीशु को अपना व्यक्तिगत उद्धारकर्ता ग्रहण कर लेने पर? अगले लेख में संगति से सम्बन्धित कुछ अन्य बातों पर विचार करेंगे।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
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English Translation
Things Related to Christian Living – 22
The Four Pillars of Christian Living - 2 - Fellowship (4)
Presently, we are considering the instructions given in God's Word, the Bible regarding practical Christian living for the growth of Christian Believers and the Church. Acts 2:42 lists four things, also known as the “Pillars of the Christian faith,” that the early Christian Believers continued in steadfastly. In the past few articles, we have looked at the first of these pillars, i.e., studying God's Word regularly and diligently. Now we're looking at the second pillar, i.e., keeping fellowship. We have seen that God created man in His image, so that he could have fellowship with Him; And God's purpose for man is to have fellowship not only with God, but also with other men. The coming of sin into the world, among other things, adversely affected both these forms of fellowship, consequently man's fellowship was broken with God, and was spoiled with other men. Where there is sin, there is no fellowship – neither with God nor with men. By repenting of sins, believing in the Lord Jesus, and accepting Him as Savior, the sins are forgiven and dealt with. And then, man is reconciled to God, he is not only restored to fellowship with God and becomes a member of God's universal, worldwide family - the Church, but as Christian Believers, man's fellowship with man is also restored. Every Christian Believer also becomes a child of God and has the same standing before God as any other Christian Believer. Because of this equality, all the worldly things that create divisions and hatred amongst mankind are taken away.
In the previous article we also saw that by believing in the Lord Jesus Christ and receiving salvation a person does not only become a member of God's family. Rather, restoration into fellowship with God elevates Christian Believers to a multi-dimensional level that is far beyond what humans can think, understand, imagine, and in any manner attain through their efforts. This status is of such an unimaginable level, that nothing like it is ever be seen in any other religion, faith, concept of divinity, or anywhere else in the world. In the previous article we have seen two things that happen consequent to this restoration – firstly, no matter how grave a sinner any person has been, no matter what the status of his disrepute may be in the world, but as soon as he comes into the Christian faith, he Becomes a child of God and is placed on the same level as any other Christian Believer is. Secondly, all worldly matters and notions that cause hatred and division among men come to an end, all considerations of superiority and inferiority are eliminated, and God sees all Christian Believers as having an equal standing before Him – as brothers and sisters of the Lord Jesus. Today we will look at five other wonderful, extraordinary, and unique things that come with restoration in fellowship with God, so that we can understand and respect the importance and value of this fellowship.
Thirdly, along with being made a member of God's family, that child of God also gets the irrevocable and infallible protection of God and the Lord Jesus. Lord Jesus said to his disciples, "And I give them eternal life, and they shall never perish; neither shall anyone snatch them out of My hand. My Father, who has given them to Me, is greater than all; and no one is able to snatch them out of My Father's hand" (John 10:28-29). At the same time, the Lord has also promised to each of His disciples that His people will never fall into any trial that is beyond their ability to bear, and in everything, God will ultimately do them good "No temptation has overtaken you except such as is common to man; but God is faithful, who will not allow you to be tempted beyond what you are able, but with the temptation will also make the way of escape, that you may be able to bear it." (1 Corinthians 10:13); "And we know that all things work together for good to those who love God, to those who are the called according to His purpose." (Romans 8:28).
Fourth, not only do the Lord's believers live under God's impenetrable protection, but to help them, to teach them God's word, God's Holy Spirit comes and resides in them permanently "And I will pray the Father, and He will give you another Helper, that He may abide with you forever - But the Helper, the Holy Spirit, whom the Father will send in My name, He will teach you all things, and bring to your remembrance all things that I said to you" (John 14:16, 26). From the moment they receive salvation, their bodies become temples of the Holy Spirit "Or do you not know that your body is the temple of the Holy Spirit who is in you, whom you have from God, and you are not your own?" (1 Corinthians 6:19).
Fifthly, since his creation, God has created man somewhat lower than the angels "You have made him a little lower than the angels; You have crowned him with glory and honor, And set him over the works of Your hands. But we see Jesus, who was made a little lower than the angels, for the suffering of death crowned with glory and honor, that He, by the grace of God, might taste death for everyone" (Hebrews 2:7, 9). But after salvation and becoming God's children, angels are now made to minister to Christian Believers "Are they not all ministering spirits sent forth to minister for those who will inherit salvation?" (Hebrews 1:14).
Sixthly, God has given to us His living, true, unchangeable, and immutable Word, which is established in heaven forever "Forever, O Lord, Your word is settled in heaven. The entirety of Your word is truth, And every one of Your righteous judgments endures forever" (Psalm 119:89, 160; also see 1 Peter 1:25). God has placed it in our hands, God speaks to us and guides us through the Word, "Your word is a lamp to my feet And a light to my path" (Psalm 119:105), and God reveals himself to his people through His Word.
Seventhly, the Lord God has not made the angels, but us unworthy, fallible, weak humans as His witnesses to bring His Word and the gospel of salvation to people all over the world, "Go therefore and make disciples of all the nations, baptizing them in the name of the Father and of the Son and of the Holy Spirit, teaching them to observe all things that I have commanded you; and lo, I am with you always, even to the end of the age." Amen." (Matthew 28:19-20); "But you shall receive power when the Holy Spirit has come upon you; and you shall be witnesses to Me in Jerusalem, and in all Judea and Samaria, and to the end of the earth." (Acts 1:8). The Lord's promise to His people is that He will never leave them, nor forsake them "Let your conduct be without covetousness; be content with such things as you have. For He Himself has said, "I will never leave you nor forsake you." (Hebrews 13:5).
Apart from these seven things, God has given many other wonderful promises in His Word for every aspect of the life of Christian Believers. The reader can decide for himself, are such unique, wonderful, extraordinary, assurances found anywhere else in the world except in the Christian faith? And that too for free, just by repenting of sins and accepting Lord Jesus as personal Savior? In the next article we will consider some other things related to fellowship.
If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life. Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.
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