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मंगलवार, 20 सितंबर 2011

पवित्रता द्वारा आनन्द

   कुछ लोग मानते हैं कि सभी नियमों को ताक पर रखने, हर एक नियंत्रण से निकल जाने और अपनी मन मरज़ी ही कर पाने में सच्चा आनन्द है। उनकी धारणा है कि जब नियम और कानून ही नहीं होंगे तो सही-गलत में फर्क करने और निर्णय लेने का झंझट भी नहीं रहेगा। ऐसे ही धारणा रखने वाले एक व्यक्ति ने कहा, "मेरे लिए यह ज़्यादा ज़रूरी है कि मैं अपने जीवन का आनन्द लूँ न कि यह कि मैं सही-गलत के झंझट में पड़ा रहूँ। यह बात मैंने अपने सात वर्षीय पुत्र के साथ अपने संबंध द्वारा भली भांति समझ ली है। मैंने देखा है कि बार बार उसे कहना कि वह गलत है, सदा ही हमारे बीच अलगाव और दुखः उत्पन्न करता है।" संभवतः इस व्यक्ति ने कभी अपने पुत्र को यह समझने का प्रयास नहीं किया होगा कि वह गलत क्यों है और गलती के क्या परिणाम और नुकसान हो सकते हैं, बस केवल रौब मारकर या डांट-डपट कर ही अपनी बात व्यक्त करी होगी।

   यदि संसार में सभी इसी धारणा के अन्तर्गत अपने जीवन व्यतीत करने लगें तो आप स्वयं समझ सकते हैं कि संसार का क्या हाल हो जाएगा। वास्तविकता तो यह है कि हम जितना अधिक नियमों का पालन करते हैं, उतने ही अधिक स्वतंत्र और आनन्दित रहते हैं। यदि आपके पास वैद लाईसेंस है, आपकी गाड़ी के कागज़ात पूरे और सही हैं, आप यातयात के नियमों के पालन के साथ गाड़ी चला रहें है तो यदि मार्ग में कोई पुलिस वाला आपको रोके तो आप बिना हिचकिचाए, उससे नज़रें मिलाकर बात कर लेते हैं, किंतु यदि इन में से किसी एक में भी कोई कमी होगी तो आप ऐसा नहीं कर सकेंगे, आशंकित रहेंगे। इसी प्रकार जब तक वायुयान उड़ान के नियमों का पालन करता रहता है, वह अपनी उड़ान सरलता से भरता रहता है; जहाँ नियमों की अवहेलना हुई, विमान का और दूसरों का भारी नुकसान हो जाता है।

   यही बात नैतिक जीवन और नियमों पर भी लागू होती है। यदि हम अपने जीवन में पवित्रता और नैतिकता को लक्षय बनाए रखेंगे तो स्वतः ही जीवन में आनन्द भी मिलता रहेगा; किंतु यदि आनन्द प्राप्ति के लिए नैतिक मूल्यों और नियमों की अवहेलना करेंगे तो ना ही अनन्द रहेगा और ना ही जीवन। पाप, जो परमेश्वर के नियमों का उल्लंघन है, हमारे हर दुखः की जड़ और और हर परेशानी का कारण है। सांसारिक तथा शारीरिक आनन्द कुछ समय के लिए तो हमें बहला सकते हैं, लेकिन हमारी आत्मा को ना तो सन्तुष्ट कर सकते हैं और ना ही स्थाई होते हैं; और अधिकांशतः उनकी प्राप्ति के लिए नैतिक मूल्यों के साथ समझौता करना पड़ता है, जो अशांति को और बढ़ाता रहता है। पाप हमें परमेश्वर की संगति से दूर करता है और हमारे जीवन और आत्मा को उस सच्चे और चिरस्थाई आनन्द से वंचित करता है जो परमेश्वर की संगति से मिलता है। पवित्रता परमेश्वर की संगति से आती है, परमेश्वर से मिलती है। परमेश्वर का वचन हमें आश्वासन देता है कि "यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने, और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है" (१ युहन्ना १:९)।

   पाप को छुपाना या किसी प्रकार उसे ढांपने का प्रयास करना पाप का निवारण नहीं है। पाप केवल अंगीकार और क्षमा द्वारा हट सकता है। क्योंकि हर पाप अन्ततः परमेश्वर के विरुद्ध ही होता है, उसे क्षमा करने और उसके दुष्प्रभाव को हटा कर सच्चे आनन्द को प्रदान करना भी परमेश्वर के ही हाथ में है। परमेश्वर ने यह संभव करने के लिए ही प्रभु यीशु को सबके पापों के लिए बलिदान होने भेजा, कि उसमें होकर पापों की क्षमा मांगने वाले को पवित्रता और सच्चा आनन्द मिल सके। - डेनिस डी हॉन


केवल पाप ही है जो मसीही विश्वासी के आनन्द को नष्ट कर सकता है।

धन्य हैं वे जो धर्म के भूखे और प्यासे हैं क्योंकि वे तृप्त किए जाएंगे। - मत्ती ५:६
 
बाइबल पाठ: भजन ३२:१-११
    Psa 32:1  क्या ही धन्य है वह जिसका अपराध क्षमा किया गया, और जिसका पाप ढ़ांपा गया हो।
    Psa 32:2  क्या ही धन्य है वह मनुष्य जिसके अधर्म का यहोवा लेखा न ले, और जिसकी आत्मा में कपट न हो।
    Psa 32:3  जब मैं चुप रहा तक दिन भर कहरते कहरते मेरी हडि्डयां पिघल गई।
    Psa 32:4  क्योंकि रात दिन मैं तेरे हाथ के नीचे दबा रहा; और मेरी तरावट धूप काल की सी झुर्राहट बनती गई।
    Psa 32:5  जब मैं ने अपना पाप तुझ पर प्रगट किया और अपना अधर्म न छिपाया, और कहा, मैं यहोवा के साम्हने अपने अपराधों को मान लूंगा, तब तू ने मेरे अधर्म और पाप को क्षमा कर दिया।
    Psa 32:6  इस कारण हर एक भक्त तुझ से ऐसे समय में प्रार्थना करे जब कि तू मिल सकता है। निश्चय जब जल की बड़ी बाढ़ आए तौभी उस भक्त के पास न पहुंचेगी।
    Psa 32:7  तू मेरे छिपने का स्थान है; तू संकट से मेरी रक्षा करेगा; तू मुझे चारों ओर से छुटकारे के गीतों से घेर लेगा।
    Psa 32:8  मैं तुझे बुद्धि दूंगा, और जिस मार्ग में तुझे चलना होगा उस में तेरी अगुवाई करूंगा; मैं तुझ पर कृपादृष्टि रखूंगा और सम्मत्ति दिया करूंगा।
    Psa 32:9  तुम घोड़े और खच्चर के समान न बनो जो समझ नहीं रखते, उनकी उमंग लगाम और बाग से रोकनी पड़ती है, नहीं तो वे तेरे वश में नहीं आने के।
    Psa 32:10  दुष्ट को तो बहुत पीड़ा होगी; परन्तु जो यहोवा पर भरोसा रखता है वह करूणा से घिरा रहेगा।
    Psa 32:11  हे धर्मियों यहोवा के कारण आनन्दित और मगन हो, और हे सब सीधे मन वालों आनन्द से जयजयकार करो!
 
एक साल में बाइबल: 
  • सभोपदेशक ४-६ 
  • २ कुरिन्थियों १२

सोमवार, 19 सितंबर 2011

नम्रता कमज़ोरी है?

   अधिकतर लोग नम्रता को कमज़ोरी के रूप में देखते हैं. लेकिन यह सच नहीं है। वास्तव में विनम्र होने के लिए बहुत सामर्थ चाहिए होती है, क्योंकि विनम्र लोग अन्य लोगों के समान न तुरंत पलटवार करते हैं और न बदला लेने की चाह में रहते हैं। वे बिना कुड़कुड़ाए, अपशबद बोले या अपने हाव-भाव द्वारा कोई कटुता दिखाए निन्दा सह लेते हैं; वे हर परिस्थिति के लिए और हर परिस्थिति में - भली हो या बुरी, परमेश्वर के धन्यवादी रहते हैं तथा उसके आधीन बने रहते हैं। ऐसे संयम को बनाए रखना हर किसी के बस की बात नहीं है और ना ही यह मात्र मानवीय समर्थ से संभव है। क्योंकि विनम्र लोग संसार के आम लोगों के समान प्रत्युत्तर नहीं देते और ना ही व्यवहार करते हैं इसलिए संसार के लोग समझते हैं कि उन को दबा लेना या उन पर हावी होकर अपने लिए प्रयोग कर लेना आसान है; किंतु सच्ची नम्रता कमज़ोरी नहीं है। इसके विपरीत यदि नम्रता स्वार्थ सिधि का मार्ग या जीवन में समझौते करने और पाप में पड़ने का माध्यम बन जाए तो अवश्य कमज़ोरी बन जाती है।

   परमेश्वर का वचन पवित्र बाइबल जिस नम्रता की बात करती है, वह कोई कमज़ोरी नहीं वरन एक सामर्थी सद्गुण है जो हमें प्रभु यीशु में देखने को मिलता है। प्रभु यीशु परमेश्वर का प्रतिरूप थे, परमेश्वरत्व की सारी सामर्थ उनमें विद्यमान थी, उनके वचन में हर कार्य को कर देने की सामर्थ थी लेकिन उनहोंने कभी अपनी इस सामर्थ का प्रयोग अपने लिए अथवा किसी स्वार्थ सिधि के लिए नहीं किया। दूसरों ने उनके साथ चाहे जैसा भी बर्ताव किया हो, वे सदा ही दूसरों की भलाई में ही लगा रहे। वे सदा परमेश्वर पिता को भी समर्पित रहे, सदा उनका आज्ञाकारी रहे। परमेश्वर पिता के प्रति उनका समपूर्ण विश्वास, समर्पण और आज्ञाकारिता ही थे जिनके द्वारा वे हर परिस्थिति में साहसी, हरेक व्यक्ति के प्रति करुणामय, पाप और बुराई से कभी कैसा भी समझौता न करने वाले और समस्त संसार के पापों के लिए आत्मबलिदान करने वाले बन सके।

   ऐसी सच्ची नम्रता परमेश्वर के प्रति सच्चे समर्पण तथा मन के अन्दर बसी और बनी भलाई की भावना से ही आती है; और यह भलाई परमेश्वर के साथ बने रहने से आती है, इसीलिए सच्ची नम्रता परमेश्वर की संगति का नतीजा है। जहाँ परमेश्वर की संगति होगी, वहाँ परमेश्वर की सामर्थ भी होगी; और जो परमेश्वर की सामर्थ से होगा वह ना कभी कमज़ोरी हो सकता और ना ही कमज़ोर बना सकता है। - मार्ट डी हॉन


सेवा करने के लिए काबू में ली गई सामर्थ ही नम्रता है।

धन्य हैं वे, जो नम्र हैं, क्‍योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे। - मत्ती ५:५

बाइबल पाठ: फिलिप्पियों २:१-११
    Php 2:1  सो यदि मसीह में कुछ शान्‍ति और प्रेम से ढाढ़स और आत्मा की सहभागिता, और कुछ करूणा और दया है।
    Php 2:2  तो मेरा यह आनन्‍द पूरा करो कि एक मन रहो और एक ही प्रेम, एक ही चित्त, और एक ही मनसा रखो।
    Php 2:3  विरोध या झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्‍छा समझो।
    Php 2:4  हर एक अपने ही हित की नहीं, वरन दूसरों के हित की भी चिन्‍ता करे।
    Php 2:5  जैसा मसीह यीशु का स्‍वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्‍वभाव हो।
    Php 2:6  जिस ने परमेश्वर के स्‍वरूप में होकर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्‍तु न समझा।
    Php 2:7  वरन अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्‍वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया।
    Php 2:8  और मनुष्य के रूप में प्रगट होकर अपने आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली।
    Php 2:9  इस कारण परमेश्वर ने उसको अति महान भी किया, और उसको वह नाम दिया जो सब नामों में श्रेष्‍ठ है।
    Php 2:10  कि जो स्‍वर्ग में और पृथ्वी पर और जो पृथ्वी के नीचे हैं वे सब यीशु के नाम पर घुटना टेकें।
    Php 2:11  और परमेश्वर पिता की महिमा के लिये हर एक जीभ अंगीकार कर ले कि यीशु मसीह ही प्रभु है।
एक साल में बाइबल: 
  • सभोपदेशक १-३ 
  • २ कुरिन्थियों ११:१६-३३