कुछ लोग मानते हैं कि सभी नियमों को ताक पर रखने, हर एक नियंत्रण से निकल जाने और अपनी मन मरज़ी ही कर पाने में सच्चा आनन्द है। उनकी धारणा है कि जब नियम और कानून ही नहीं होंगे तो सही-गलत में फर्क करने और निर्णय लेने का झंझट भी नहीं रहेगा। ऐसे ही धारणा रखने वाले एक व्यक्ति ने कहा, "मेरे लिए यह ज़्यादा ज़रूरी है कि मैं अपने जीवन का आनन्द लूँ न कि यह कि मैं सही-गलत के झंझट में पड़ा रहूँ। यह बात मैंने अपने सात वर्षीय पुत्र के साथ अपने संबंध द्वारा भली भांति समझ ली है। मैंने देखा है कि बार बार उसे कहना कि वह गलत है, सदा ही हमारे बीच अलगाव और दुखः उत्पन्न करता है।" संभवतः इस व्यक्ति ने कभी अपने पुत्र को यह समझने का प्रयास नहीं किया होगा कि वह गलत क्यों है और गलती के क्या परिणाम और नुकसान हो सकते हैं, बस केवल रौब मारकर या डांट-डपट कर ही अपनी बात व्यक्त करी होगी।
यदि संसार में सभी इसी धारणा के अन्तर्गत अपने जीवन व्यतीत करने लगें तो आप स्वयं समझ सकते हैं कि संसार का क्या हाल हो जाएगा। वास्तविकता तो यह है कि हम जितना अधिक नियमों का पालन करते हैं, उतने ही अधिक स्वतंत्र और आनन्दित रहते हैं। यदि आपके पास वैद लाईसेंस है, आपकी गाड़ी के कागज़ात पूरे और सही हैं, आप यातयात के नियमों के पालन के साथ गाड़ी चला रहें है तो यदि मार्ग में कोई पुलिस वाला आपको रोके तो आप बिना हिचकिचाए, उससे नज़रें मिलाकर बात कर लेते हैं, किंतु यदि इन में से किसी एक में भी कोई कमी होगी तो आप ऐसा नहीं कर सकेंगे, आशंकित रहेंगे। इसी प्रकार जब तक वायुयान उड़ान के नियमों का पालन करता रहता है, वह अपनी उड़ान सरलता से भरता रहता है; जहाँ नियमों की अवहेलना हुई, विमान का और दूसरों का भारी नुकसान हो जाता है।
यही बात नैतिक जीवन और नियमों पर भी लागू होती है। यदि हम अपने जीवन में पवित्रता और नैतिकता को लक्षय बनाए रखेंगे तो स्वतः ही जीवन में आनन्द भी मिलता रहेगा; किंतु यदि आनन्द प्राप्ति के लिए नैतिक मूल्यों और नियमों की अवहेलना करेंगे तो ना ही अनन्द रहेगा और ना ही जीवन। पाप, जो परमेश्वर के नियमों का उल्लंघन है, हमारे हर दुखः की जड़ और और हर परेशानी का कारण है। सांसारिक तथा शारीरिक आनन्द कुछ समय के लिए तो हमें बहला सकते हैं, लेकिन हमारी आत्मा को ना तो सन्तुष्ट कर सकते हैं और ना ही स्थाई होते हैं; और अधिकांशतः उनकी प्राप्ति के लिए नैतिक मूल्यों के साथ समझौता करना पड़ता है, जो अशांति को और बढ़ाता रहता है। पाप हमें परमेश्वर की संगति से दूर करता है और हमारे जीवन और आत्मा को उस सच्चे और चिरस्थाई आनन्द से वंचित करता है जो परमेश्वर की संगति से मिलता है। पवित्रता परमेश्वर की संगति से आती है, परमेश्वर से मिलती है। परमेश्वर का वचन हमें आश्वासन देता है कि "यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने, और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है" (१ युहन्ना १:९)।
पाप को छुपाना या किसी प्रकार उसे ढांपने का प्रयास करना पाप का निवारण नहीं है। पाप केवल अंगीकार और क्षमा द्वारा हट सकता है। क्योंकि हर पाप अन्ततः परमेश्वर के विरुद्ध ही होता है, उसे क्षमा करने और उसके दुष्प्रभाव को हटा कर सच्चे आनन्द को प्रदान करना भी परमेश्वर के ही हाथ में है। परमेश्वर ने यह संभव करने के लिए ही प्रभु यीशु को सबके पापों के लिए बलिदान होने भेजा, कि उसमें होकर पापों की क्षमा मांगने वाले को पवित्रता और सच्चा आनन्द मिल सके। - डेनिस डी हॉन
धन्य हैं वे जो धर्म के भूखे और प्यासे हैं क्योंकि वे तृप्त किए जाएंगे। - मत्ती ५:६
बाइबल पाठ: भजन ३२:१-११
Psa 32:1 क्या ही धन्य है वह जिसका अपराध क्षमा किया गया, और जिसका पाप ढ़ांपा गया हो।
Psa 32:2 क्या ही धन्य है वह मनुष्य जिसके अधर्म का यहोवा लेखा न ले, और जिसकी आत्मा में कपट न हो।
Psa 32:3 जब मैं चुप रहा तक दिन भर कहरते कहरते मेरी हडि्डयां पिघल गई।
Psa 32:4 क्योंकि रात दिन मैं तेरे हाथ के नीचे दबा रहा; और मेरी तरावट धूप काल की सी झुर्राहट बनती गई।
Psa 32:5 जब मैं ने अपना पाप तुझ पर प्रगट किया और अपना अधर्म न छिपाया, और कहा, मैं यहोवा के साम्हने अपने अपराधों को मान लूंगा, तब तू ने मेरे अधर्म और पाप को क्षमा कर दिया।
Psa 32:6 इस कारण हर एक भक्त तुझ से ऐसे समय में प्रार्थना करे जब कि तू मिल सकता है। निश्चय जब जल की बड़ी बाढ़ आए तौभी उस भक्त के पास न पहुंचेगी।
Psa 32:7 तू मेरे छिपने का स्थान है; तू संकट से मेरी रक्षा करेगा; तू मुझे चारों ओर से छुटकारे के गीतों से घेर लेगा।
Psa 32:8 मैं तुझे बुद्धि दूंगा, और जिस मार्ग में तुझे चलना होगा उस में तेरी अगुवाई करूंगा; मैं तुझ पर कृपादृष्टि रखूंगा और सम्मत्ति दिया करूंगा।
Psa 32:9 तुम घोड़े और खच्चर के समान न बनो जो समझ नहीं रखते, उनकी उमंग लगाम और बाग से रोकनी पड़ती है, नहीं तो वे तेरे वश में नहीं आने के।
Psa 32:10 दुष्ट को तो बहुत पीड़ा होगी; परन्तु जो यहोवा पर भरोसा रखता है वह करूणा से घिरा रहेगा।
Psa 32:11 हे धर्मियों यहोवा के कारण आनन्दित और मगन हो, और हे सब सीधे मन वालों आनन्द से जयजयकार करो!
एक साल में बाइबल:
यदि संसार में सभी इसी धारणा के अन्तर्गत अपने जीवन व्यतीत करने लगें तो आप स्वयं समझ सकते हैं कि संसार का क्या हाल हो जाएगा। वास्तविकता तो यह है कि हम जितना अधिक नियमों का पालन करते हैं, उतने ही अधिक स्वतंत्र और आनन्दित रहते हैं। यदि आपके पास वैद लाईसेंस है, आपकी गाड़ी के कागज़ात पूरे और सही हैं, आप यातयात के नियमों के पालन के साथ गाड़ी चला रहें है तो यदि मार्ग में कोई पुलिस वाला आपको रोके तो आप बिना हिचकिचाए, उससे नज़रें मिलाकर बात कर लेते हैं, किंतु यदि इन में से किसी एक में भी कोई कमी होगी तो आप ऐसा नहीं कर सकेंगे, आशंकित रहेंगे। इसी प्रकार जब तक वायुयान उड़ान के नियमों का पालन करता रहता है, वह अपनी उड़ान सरलता से भरता रहता है; जहाँ नियमों की अवहेलना हुई, विमान का और दूसरों का भारी नुकसान हो जाता है।
यही बात नैतिक जीवन और नियमों पर भी लागू होती है। यदि हम अपने जीवन में पवित्रता और नैतिकता को लक्षय बनाए रखेंगे तो स्वतः ही जीवन में आनन्द भी मिलता रहेगा; किंतु यदि आनन्द प्राप्ति के लिए नैतिक मूल्यों और नियमों की अवहेलना करेंगे तो ना ही अनन्द रहेगा और ना ही जीवन। पाप, जो परमेश्वर के नियमों का उल्लंघन है, हमारे हर दुखः की जड़ और और हर परेशानी का कारण है। सांसारिक तथा शारीरिक आनन्द कुछ समय के लिए तो हमें बहला सकते हैं, लेकिन हमारी आत्मा को ना तो सन्तुष्ट कर सकते हैं और ना ही स्थाई होते हैं; और अधिकांशतः उनकी प्राप्ति के लिए नैतिक मूल्यों के साथ समझौता करना पड़ता है, जो अशांति को और बढ़ाता रहता है। पाप हमें परमेश्वर की संगति से दूर करता है और हमारे जीवन और आत्मा को उस सच्चे और चिरस्थाई आनन्द से वंचित करता है जो परमेश्वर की संगति से मिलता है। पवित्रता परमेश्वर की संगति से आती है, परमेश्वर से मिलती है। परमेश्वर का वचन हमें आश्वासन देता है कि "यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने, और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है" (१ युहन्ना १:९)।
पाप को छुपाना या किसी प्रकार उसे ढांपने का प्रयास करना पाप का निवारण नहीं है। पाप केवल अंगीकार और क्षमा द्वारा हट सकता है। क्योंकि हर पाप अन्ततः परमेश्वर के विरुद्ध ही होता है, उसे क्षमा करने और उसके दुष्प्रभाव को हटा कर सच्चे आनन्द को प्रदान करना भी परमेश्वर के ही हाथ में है। परमेश्वर ने यह संभव करने के लिए ही प्रभु यीशु को सबके पापों के लिए बलिदान होने भेजा, कि उसमें होकर पापों की क्षमा मांगने वाले को पवित्रता और सच्चा आनन्द मिल सके। - डेनिस डी हॉन
केवल पाप ही है जो मसीही विश्वासी के आनन्द को नष्ट कर सकता है।
धन्य हैं वे जो धर्म के भूखे और प्यासे हैं क्योंकि वे तृप्त किए जाएंगे। - मत्ती ५:६
बाइबल पाठ: भजन ३२:१-११
Psa 32:1 क्या ही धन्य है वह जिसका अपराध क्षमा किया गया, और जिसका पाप ढ़ांपा गया हो।
Psa 32:2 क्या ही धन्य है वह मनुष्य जिसके अधर्म का यहोवा लेखा न ले, और जिसकी आत्मा में कपट न हो।
Psa 32:3 जब मैं चुप रहा तक दिन भर कहरते कहरते मेरी हडि्डयां पिघल गई।
Psa 32:4 क्योंकि रात दिन मैं तेरे हाथ के नीचे दबा रहा; और मेरी तरावट धूप काल की सी झुर्राहट बनती गई।
Psa 32:5 जब मैं ने अपना पाप तुझ पर प्रगट किया और अपना अधर्म न छिपाया, और कहा, मैं यहोवा के साम्हने अपने अपराधों को मान लूंगा, तब तू ने मेरे अधर्म और पाप को क्षमा कर दिया।
Psa 32:6 इस कारण हर एक भक्त तुझ से ऐसे समय में प्रार्थना करे जब कि तू मिल सकता है। निश्चय जब जल की बड़ी बाढ़ आए तौभी उस भक्त के पास न पहुंचेगी।
Psa 32:7 तू मेरे छिपने का स्थान है; तू संकट से मेरी रक्षा करेगा; तू मुझे चारों ओर से छुटकारे के गीतों से घेर लेगा।
Psa 32:8 मैं तुझे बुद्धि दूंगा, और जिस मार्ग में तुझे चलना होगा उस में तेरी अगुवाई करूंगा; मैं तुझ पर कृपादृष्टि रखूंगा और सम्मत्ति दिया करूंगा।
Psa 32:9 तुम घोड़े और खच्चर के समान न बनो जो समझ नहीं रखते, उनकी उमंग लगाम और बाग से रोकनी पड़ती है, नहीं तो वे तेरे वश में नहीं आने के।
Psa 32:10 दुष्ट को तो बहुत पीड़ा होगी; परन्तु जो यहोवा पर भरोसा रखता है वह करूणा से घिरा रहेगा।
Psa 32:11 हे धर्मियों यहोवा के कारण आनन्दित और मगन हो, और हे सब सीधे मन वालों आनन्द से जयजयकार करो!
एक साल में बाइबल:
- सभोपदेशक ४-६
- २ कुरिन्थियों १२
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें