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आरम्भिक बातें – 72
मरे हुओं का जी उठना – 7
प्रभु यीशु का पुनरुत्थान – परमेश्वर की सामर्थ्य
हम इब्रानियों 6:1-2 में दी गई छः आरम्भिक बातों में से पाँचवीं, “मरे हुओं में से जी उठने” के बारे में सीख रहे हैं। हम देख चुके हैं कि क्योंकि प्रभु यीशु मृतकों में से जी उठा है, इस लिए उस के पुनरुत्थान ने वास्तविकता में नया-जन्म पाए हुए प्रत्येक मसीही विश्वासी को यह आश्वासन प्रदान किया है कि वह भी मृतकों में से जी उठेगा, और सदा काल के लिए प्रभु परमेश्वर के साथ स्वर्ग में रहेगा। प्रभु के, और मसीही विश्वासी के पुनरुत्थान और अनन्तकालीन आशीषों के बारे में लोगों के मनों में सन्देह उत्पन्न करने के लिए, और उन्हें बहकाने-भरमाने के लिए, शैतान ने पुनरुत्थान के विरुद्ध बहुत सी झूठी कहानियाँ बना कर फैला रखीं है। इस लिए, प्रत्येक मसीही विश्वासी के लिए यह आवश्यक है कि वह न केवल प्रभु के पुनरुत्थान, बल्कि अपने अनन्त भविष्य के बारे में भी सीखे; और साथ ही प्रभु के तथा मसीही विश्वासियों के जिलाए जाने के बारे में शैतान द्वारा फैलाई गई झूठी बातों का भी खण्डन कर सके। हम प्रभु के पुनरुत्थान के बारे में तीन शीर्षकों के अन्तर्गत देख रहे हैं: पवित्र शास्त्र में उस की भविष्यवाणी की गई है; यह एक प्रमाणित घटना है; यह परमेश्वर की सामर्थ्य है। हम इन तीन में से पहले दो शीर्षकों के बारे में देख चुके हैं। आज हम तीसरे शीर्षक, प्रभु यीशु का पुनरुत्थान प्रत्येक मसीही विश्वासी के जीवन में परमेश्वर की सामर्थ्य है, के बारे में देखेंगे।
पौलुस ने फिलिप्पी में स्थित कलीसिया को लिखी अपनी पत्री में लिखा, “और मैं उसको और उसके मृत्युंजय की सामर्थ्य को, और उसके साथ दुखों में सहभागी होने के मर्म को जानूँ, और उस की मृत्यु की समानता को प्राप्त करूं। ताकि मैं किसी भी रीति से मरे हुओं में से जी उठने के पद तक पहुंचूं” (फिलिप्पियों 3:10-11); वह मसीह के पुनरुत्थान की सामर्थ्य को जानना और उस पद तक पहुंचना चाहता था। शैतान, अदन की वाटिका में, आदम और हव्वा को पाप करने के लिए फुसलाने के द्वारा, उन के जीवनों में, तथा उन में होकर समस्त मानवजाति में मृत्यु को ले आया “इसलिये जैसा एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, इसलिये कि सब ने पाप किया” (रोमियों 5:12)। यह मृत्यु, अर्थात बिगाड़ना या सड़ना और फिर नष्ट हो जाना, सम्पूर्ण सृष्टि पर भी आ गई; सृष्टि भी बिगड़ने, सड़ने, और नष्ट हो जाने की प्रक्रिया में आ गई। परन्तु एक बार जब “परमेश्वर के पुत्र” प्रकट हो जाएँगे, अर्थात वे जो प्रभु यीशु में विश्वास लाने के द्वारा परमेश्वर की सन्तान बन गए हैं (यूहन्ना 1:12-13), तब फिर उन के साथ ही, सृष्टि भी उसे भी प्रभावित करने वाली इस मृत्यु से छुड़ा ली जाएगी (रोमियों 8:19-22)। प्रभु यीशु का पुनरुत्थान यह दिखाता है कि मृत्यु की यह परमेश्वर की सृष्टि को सड़ाने, बिगाड़ने, और नष्ट करने वाली सामर्थ्य का अन्त कर दिया गया है। प्रभु यीशु को जिला उठाने वाली परमेश्वर की सामर्थ्य के द्वारा, जैसे ही मसीही विश्वासी मरे हुओं में से जिलाए जाएंगे, और अपनी महिमित देह में आ जाएँगे, उसी पल से मृत्यु और नष्ट करने की सामर्थ्य समाप्त हो जाएगी। प्रभु यीशु मसीह, और उस में किये गए विश्वास के द्वारा, मसीही विश्वासी विजयी होंगे। क्योंकि प्रभु यीशु के पुनरुत्थान के द्वारा मसीही विश्वासियों को यह होने का निश्चय है, इसलिए उन्हें निरन्तर प्रभु के काम में लगे रहना चाहिए (1 कुरिन्थियों 15:52-58)।
दूसरे, अपने पुनरुत्थान के द्वारा प्रभु यीशु मसीह ने अपने अनुयायियों के लिए मृत्यु के भय और पकड़ को तोड़ डाला है, “इसलिये जब कि लड़के मांस और लहू के भागी हैं, तो वह आप भी उन के समान उन का सहभागी हो गया; ताकि मृत्यु के द्वारा उसे जिसे मृत्यु पर शक्ति मिली थी, अर्थात शैतान को निकम्मा कर दे। और जितने मृत्यु के भय के मारे जीवन भर दासत्व में फंसे थे, उन्हें छुड़ा ले” (इब्रानियों 2:14-15)। अब, इस के बाद से मृत्यु डरने की कोई बात नहीं रह गई है, क्योंकि प्रत्येक मसीही विश्वासी, प्रत्येक नया-जन्म पाए हुए विश्वासी के लिए, मृत्यु एक द्वार है जो उसे अनन्तकाल के परम आनन्द और आशीषों के स्थान, परमेश्वर के साथ स्वर्ग में रहने के लिए प्रवेश प्रदान करता है। पौलुस ने कहा, “क्योंकि मेरे लिये जीवित रहना मसीह है, और मर जाना लाभ है। पर यदि शरीर में जीवित रहना ही मेरे काम के लिये लाभदायक है तो मैं नहीं जानता, कि किस को चुनूं। क्योंकि मैं दोनों के बीच अधर में लटका हूं; जी तो चाहता है कि कूच कर के मसीह के पास जा रहूं, क्योंकि यह बहुत ही अच्छा है” (फिलिप्पियों 1:21-23); और जैसा उसने कुरिन्थुस की कलीसिया को लिखा, कि वह अपने शरीर को छोड़ कर प्रभु के पास उपस्थित होने को अधिक उत्तम समझता है “सो हम सदा ढाढ़स बान्धे रहते हैं और यह जानते हैं; कि जब तक हम देह में रहते हैं, तब तक प्रभु से अलग हैं। क्योंकि हम रूप को देखकर नहीं, पर विश्वास से चलते हैं। इसलिये हम ढाढ़स बान्धे रहते हैं, और देह से अलग हो कर प्रभु के साथ रहना और भी उत्तम समझते हैं” (2 कुरिन्थियों 5:6-8)।
प्रभु यीशु की मृत्यु और पुनरुत्थान ने उस के प्रत्येक शिष्य के लिए यह सुनिश्चित कर दिया है कि अब मृत्यु उन के लिए डरने की बात नहीं है, वरन ऐसी बात है जिस की प्रतीक्षा रहती है। अब शैतान मृत्यु का डर दिखा कर उन्हें उन के मसीही जीवनों में घबरा और गिरा नहीं सकता है। सिवाए बाइबल के अनुसार के मसीही विश्वास के, यह आश्वासन, और किसी को कहीं भी उपलब्ध नहीं है, किसी भी अन्य विश्वास पद्धति, या मान्यता, या धर्म में नहीं, ईसाई या मसीही धर्म में भी नहीं। यह एक ऐसी बात है जो केवल मसीह यीशु में विश्वास करने के द्वारा मिलने वाली पापों की क्षमा और प्रभु को समर्पित जीवन जीने, उस के तथा उस के वचन, बाइबल, के आज्ञाकारी होने के द्वारा परमेश्वर के साथ अनन्त जीवन के आश्वासन के साथ ही आती है।
अगले लेख में हम प्रभु यीशु के पुनरुत्थान के व्यावहारिक अभिप्रायों को देखेंगे।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
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The Elementary Principles – 72
Resurrection of the Dead – 7
Lord Jesus’s Resurrection – God’s Power
We are learning about “Resurrection of the Dead,” the fifth of the six elementary principles given in Hebrews 6:1-2. We have seen that since the Lord Jesus Christ has risen from the dead, therefore, His resurrection has provided every truly Born-Again Christian Believer the assurance that he too will be resurrected from the dead, and will be with the Lord God forever in heaven. To create doubts in the hearts of people about the Lord’s and the Christian Believer’s resurrection and eternal blessings, and to mislead them, Satan has spread many false stories against resurrection. Therefore, it is necessary for every Christian Believer to learn not only about the Lord Jesus’s resurrection, but also about their own eternal future; and also, be prepared to counter the false stories spread by Satan against the Lord’s and the Believer’s resurrection. We are studying about the Lord’s resurrection under three headings: it is prophesied in the Scriptures; it is a proven event; it is the power of God. We have seen the first two of these three headings. Today we will consider the third heading, that the resurrection of the Lord Jesus is the power of God in the life of every truly Born-Again Christian Believer.
Paul says in his letter to the Philippians - “that I may know Him [Lord Jesus] and the power of His resurrection, and the fellowship of His sufferings, being conformed to His death, if, by any means, I may attain to the resurrection from the dead” (Philippians 3:10-11); he wanted to know and attain to the power of Christ's Resurrection. Through enticing Adam and Eve to sin in the Garden of Eden, Satan brought in death into their lives, and through them into all of mankind “Therefore, just as through one man sin entered the world, and death through sin, and thus death spread to all men, because all sinned” (Romans 5:12). This death, i.e., decaying and passing away also affected the whole of creation, the creation also came under the bondage of corruption, i.e., under the process of decaying away and being destroyed. But once the “sons of God” are revealed, i.e. the children of God by faith in the Lord Jesus (John 1:12-13), then along with them, the creation will also be delivered from the corruption affecting it (Romans 8:19-22). The resurrection of the Lord Jesus demonstrates that the power of death, of corrupting and destroying God’s creation, has been brough to an end. The moment the Believers, through the same power of God that raised up the Lord Jesus, will be raised from the dead, and be transformed into their glorious bodies, the reign of death and decay will come to an end. Through the Lord Jesus Christ, and faith in Him, the Believers will come out victorious; since the Christian Believers have this hope and assurance from God, guaranteed by the resurrection of the Lord Jesus, therefore they should continually “abound in the work of the Lord” (1 Corinthians 15:52-58).
Secondly, through His Resurrection Christ Jesus has broken the fear and hold of death for His followers “Inasmuch then as the children have partaken of flesh and blood, He Himself likewise shared in the same, that through death He might destroy him who had the power of death, that is, the devil, and release those who through fear of death were all their lifetime subject to bondage” (Hebrews 2:14-15). No longer is death something to be feared, because for every Believer of Christ, for every Born-Again person, death is a door that ushers them into eternal bliss and blessings, into a place and eternity with God. Paul says “For to me, to live is Christ, and to die is gain. But if I live on in the flesh, this will mean fruit from my labor; yet what I shall choose I cannot tell. For I am hard pressed between the two, having a desire to depart and be with Christ, which is far better” (Philippians 1:21-23); and as he writes to the Corinthian Church that he is always well pleased to leave this body and be present with the Lord “So we are always confident, knowing that while we are at home in the body we are absent from the Lord. For we walk by faith, not by sight. We are confident, yes, well pleased rather to be absent from the body and to be present with the Lord” (2 Corinthians 5:6-8).
The death and Resurrection of Lord Jesus has ensured that for every one of His disciples, death is no longer something to be feared, but something to be eagerly looked forward to. Satan can no longer use the fear of death to cause them to falter and fall in their Christian life. Except for the Biblical Christian Faith, this assurance is not available to anyone, in any other faith, belief system, or religion; not even in the Christian religion. This is something that only comes because of the assurance of forgiveness of sins and promise of eternal life with God, through faith in the Lord Jesus, submission to Him, and living in obedience to Him and His Word the Bible.
In the next article we will consider the practical implications of the resurrection of the Lord Jesus.
If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life. Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.
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