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शुक्रवार, 6 अगस्त 2010

सही मार्ग सुझाना

एक नई वैबसाईट आपकी सहायता करती है कि आप अपने किसी सहकर्मी तक वह सन्देश पहुंचा सकें जो आप व्यक्तिगत तौर पर उससे कहने में घबराते हैं, जैसे "मुंह स्वच्छ रखने वाली गोली का प्रयोग तुम्हारे लिये लाभकारी होगा", या "तुम्हारे मोबाइल फोन की आवाज़ बहुत उंची है", या "तुम सदा बहुत तेज़ इत्र प्रयोग करते हो" आदि। आप इन और ऐसे अन्य मुद्दों का सामना बेनाम होकर कर स्कते हैं क्योंकि वह वैबसाईट आपके लिये आपके सहकर्मी को आपका सन्देश एक बेनाम ई-मेल द्वारा भेज देगी।

दूसरों को उनकी वह बातें बताने में संकोच करना, जिनसे हमें परेशानी होती है, स्वभाविक बात है। परन्तु जब बात आती है सहविश्वासियों से उनके जीवन में पाये जाने वाले पाप के विष्य में बात करने की, तो यह और भी गंभीर बात हो जाती है। चाहे हम कितना ही चाहें कि यह बात हम बेनाम होकर कर सकें, किंतु यह हमें प्रत्यक्ष ही करना है। ऐसा करने के लिये गलतियों ६:१-५ कुछ सुझाव देता है। दूसरों से उनके पाप के बारे में बात करने के लिये, सबसे पहली और अनिवार्य बात है कि हम स्वयं परमेश्वर के निकट हों, तथा उस दूसरे से जो पाप में है, हम अपने आप को श्रेष्ठ जता के अपनी बड़ाई न करें। फिर हमें उस परिस्थिति को इस तरह आंकना है कि हम किसी पर दोष लगा कर उसे नीचा दिखाने वाले नहीं वरन उसे सहारा देकर सुधार तक लाने वाले बनें। नम्रता का आत्मा हम में सदा बना रहना है, इस भय में कि कभी हम भी ऐसी ही किसी परीक्षा में गिर सकते हैं।

प्रभु यीशु ने भी पापों के प्रति व्यक्तिगत व्यवहार के लिये कुछ निर्देश दिये - मत्ती ७:१-५, १८:१५-२०।

परमेश्वर की सामर्थ द्वारा हम हिम्मत और सहनुभूति सहित दूसरों को उनके पापों का सामना करवा सकते हैं और उन्हें पुनः परमेश्वर के निकट ला सकते हैं। - ऐने सेटास

लोगों को वापस सही मार्ग पर लाने के लिये पहले उनके साथ चलिये और तब मार्गदर्शन कीजिए।


तुम एक दूसरे के भार उठाओ, और इस प्रकार मसीह की व्यवस्था को पूरी करो। - गलतियों ६:२


बाइबल पाठ: गलतियों ६:१-५

हे भाइयों, यदि कोई मनुष्य किसी अपराध में पकड़ा जाए, तो तुम जो आत्मिक हो, नम्रता के साथ ऐसे को संभालो, और अपनी भी चौकसी रखो, कि तुम भी परीक्षा में न पड़ो।
तुम एक दूसरे के भार उठाओ, और इस प्रकार मसीह की व्यवस्था को पूरी करो।
क्‍योंकि यदि कोई कुछ न होने पर भी अपने आप को कुछ समझता है, तो अपने आप को धोखा देता है।
पर हर एक अपने ही काम को जांच ले, और तब दूसरे के विषय में नहीं परन्‍तु अपने ही विषय में उसको घमण्‍ड करने का अवसर होगा।
क्‍योंकि हर एक व्यक्ति अपना ही बोझ उठाएगा।

एक साल में बाइबल:
  • भजन ७०, ७१
  • रोमियों ८:२२-३९

गुरुवार, 5 अगस्त 2010

मन की बात

एक आध्यत्मिक सभा के आरंभ में हमारे वक्ता ने प्रश्न पूछा, "आपका मन कैसा है?" मैं इस प्रश्न से अवाक रह गया क्योंकि मैं अपनी बुद्धि से विश्वास और हाथों से काम करने पर केंद्रित रहता हूँ। सोचने और करने के बीच मेरा मन एक किनारे रह जाता है। सभा के दौरान वह वक्ता हमें बाइबल से दिखाता गया कि कैसे बाइबल हमारे जीवन के इस केंद्र - हमारे मन पर बार बार ज़ोर देती है; और मैं उस वक्ता की प्रस्तावना को समझने पाया कि विश्वास और सेवा, किसी भी अन्य बात से बढ़कर, अन्ततः मन ही की बात है।

जब प्रभु यीशु ने एक दृष्टांत द्वारा समझाया कि लोग कैसे उसकी शिक्षाओं को ग्रहण करते और उनके प्रति अपनी प्रतिक्रीया करते हैं (मत्ती १३:१-९) तो उसके चेलों ने उससे पूछा (पद १०), की "तू उन से दृष्‍टान्‍तों में क्‍यों बातें करता है?" उत्तर में प्रभु यीशु ने यशायाह भविष्यद्वक्ता को उद्वत किया, "क्‍योंकि इन लोगों का मन मोटा हो गया है, और वे कानों से ऊंचा सुनते हैं और उन्‍हों ने अपनी आंखें मूंद लीं हैं, कहीं ऐसा न हो कि वे आंखों, से देखें, और कानों, से सुनें और मन से समझें, और फिर जाएं, और मैं उन्‍हें चंगा करूं" (पद १५, यशायाह ६:१०)।

अपने मन को नज़र अंदाज़ करना कितना आसान और खतरनाक है। यदि हमारे मन कठोर हो जाएं तो जीने और सेवा करने में हम कोई आनन्द नहीं पाएंगे और जीवन नीरस और खोखला लगेगा। किंतु यदि हमारे मन परमेश्वर की ओर कोमल रहेंगे तो हम दूसरों के लिये समझ-बूझ और सहानुभूति के स्त्रोत बन जाएंगे।

तो आपका मन कैसा है? - डेविड मैक्कैसलैंड


हम भले कार्य करने में इतने व्यस्त न हो जाएं कि हमारा मन ही परमेश्वर से दूर हो जाए।

इन लोगों का मन मोटा हो गया है, और वे कानों से ऊंचा सुनते हैं और उन्‍हों ने अपनी आंखें मूंद लीं हैं - मत्ती १३:१५


बाइबल पाठ: मत्ती १३:१०-१५

और चेलों ने पास आकर उस से कहा, तू उन से दृष्‍टान्‍तों में क्‍यों बातें करता है?
उस ने उत्तर दिया, कि तुम को स्‍वर्ग के राज्य के भेदों की समझ दी गई है, पर उन को नहीं।
क्‍योंकि जिस के पास है, उसे दिया जाएगा, और उसके पास बहुत हो जाएगा; पर जिस के पास कुछ नहीं है, उस से जो कुछ उसके पास है, वह भी ले लिया जाएगा।
मैं उन से दृष्‍टान्‍तों में इसलिये बातें करता हूं, कि वे देखते हुए नहीं देखते, और सुनते हुए नहीं सुनते, और नहीं समझते।
और उन के विषय में यशायाह की यह भविष्यद्ववाणी पूरी होती है, कि तुम कानों से तो सुनोगे, पर समझोगे नहीं, और आंखों से तो देखोगे, पर तुम्हें न सूझेगा।
क्‍योंकि इन लोगों का मन मोटा हो गया है, और वे कानों से ऊंचा सुनते हैं और उन्‍हों ने अपनी आंखें मूंद लीं हैं, कहीं ऐसा न हो कि वे आंखों से देखें, और कानों से सुनें और मन से समझें, और फिर जाएं, और मैं उन्‍हें चंगा करूं।

एक साल में बाइबल:
  • भजन ६८, ६९
  • रोमियों ८:१-२१

बुधवार, 4 अगस्त 2010

हमारा नैतिक कुतुबनुमा

जब अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति एब्राहम लिंकन का परिचय लेखिका हैरियट बीचर स्टोव से करवाया गया तो कहा जाता है कि उन्हों ने उन से कहा कि "आप ही वह छोटी सी नारी हैं जिनकी लिखी पुस्तक के कारण यह बड़ा युध्द आरंभ हुआ।"

यद्यपि राष्ट्रपति लिंकन की यह टिपण्णी पूर्ण्तया गंभीरता सहित नहीं वरन कुछ विनोद के भाव से कही गई थी, किंतु यह सत्य है कि अमेरिका से दास प्रथा के अन्त कराने में स्टोव के उपन्यास ’अंकल टोम्स कैबिन’ (Uncle Tom's Cabin) का बहुत बड़ा योगदान रहा था। इस उपन्यास में दिये रंगभेद और दास प्रथा के सुचित्रित वर्णन द्वारा ही लोग इन बातों की दुखदायी वास्तविकता को पहिचान सके और इनके अन्त के लिये लड़ने को प्रोत्साहित हो सके। इसी युद्ध के अन्त में एब्राहम लिंकन द्वारा की गई स्वतंत्रता की घोषणा से सभी दास स्वतंत्र घोषित हुए। इस प्रकार स्टोव के उपन्यास ने एक राष्ट्र की नैतिक दिशा बदलने में सहायता की।

इससे सदियों पहिले, राजा सुलेमान को परमेश्वर ने बताया कि वह क्या होगा जो परमेश्वर की प्रजा इस्त्राएल की नैतिक दिशा बदलेगा - इसका आरंभ नम्रता और पापों के अंगीकार से होगा। परमेश्वर ने सुलेमान से कहा: "यदि मेरी प्रजा के लोग जो मेरे कहलाते हैं, दीन होकर प्रार्थना करें और मेरे दर्शन के खोजी होकर अपनी बुरी चाल से फिरें, तो मैं स्वर्ग में से सुनकर उनका पाप क्षमा करूंगा और उनके देश को ज्यों का त्यों कर दूंगा" (२ इतिहास ७:१४)।

एक मसीही समुदाय होने के नाते हमें सबसे पहिले अपने जीवन का लेखा-जोखा लेना चाहिये। जब हम पापों के लिये पश्चाताप और प्रार्थना में नम्रता सहित परमेश्वर के निकट आते हैं, तो हमारे जीवनों में परिवर्तन आने आरंभ हो जाते हैं। तब परमेश्वर राष्ट्र की नैतिक दिशा बदलने में हमारा उपयोग कर सकता है। - डेनिस फिशर


नैतिक रीति से गलत बात कभी राजनैतिक रीति से सही नहीं हो सकती। - लिंकन

यदि मेरी प्रजा के लोग जो मेरे कहलाते हैं, दीन होकर प्रार्थना करें और मेरे दर्शन के खोजी होकर अपनी बुरी चाल से फिरें, तो मैं स्वर्ग में से सुनकर उनका पाप क्षमा करूंगा और उनके देश को ज्यों का त्यों कर दूंगा।" - २ इतिहास ७:१४


बाइबल पाठ: २ इतिहास ७:१-१४

जब सुलैमान यह प्रार्थना कर चुका, तब स्वर्ग से आग ने गिरकर होमबलियों तथा और बलियों को भस्म किया, और यहोवा का तेज भवन में भर गया।
और याजक यहोवा के भवन में प्रवेश न कर सके, क्योंकि यहोवा का तेज यहोवा के भवन में भर गया था।
और जब आग गिरी और यहोवा का तेज भवन पर छा गया, तब सब इस्राएली देखते रहे, और फर्श पर झुककर अपना अपना मुंह भूमि की ओर किए हुए दणडवत किया, और यों कहकर यहोवा का धन्यवाद किया कि, वह भला है, उसकी करुणा सदा की है।
तब सब प्रजा समेत राजा ने यहोवा को बलि चढ़ाई।
और राजा सुलैमान ने बाईस हजार बैल और एक लाख बीस हजार भेड़ -बकरियां चढ़ाई। यों पूरी प्रजा समेत राजा ने यहोवा के भवन की प्रतिष्ठा की।
और याजक अपना अपना कार्य करने को खड़े रहे, और लेवीय भी यहोवा के गीत के गाने के लिये बाजे लिये हूए खड़े थे, जिन्हें दाऊद राजा ने यहोवा की सदा की करुणा के कारण उसका धन्यवाद करने को बनाकर उनके द्वारा स्तुति कराई थी और इनके साम्हने याजक लोग तुरहियां बजाते रहे और सब इस्राएली खड़े रहे।
फिर सुलैमान ने यहोवा के भवन के साम्हने आंगन के बीच एक स्थान पवित्र करके होमबलि और मेलबलियों की चर्बी वहीं चढ़ाई, क्योंकि सुलैमान की बनाई हुई पीतल की वेदी होमबलि और अन्नबलि और चर्बी के लिये छोटी थी।
उसी समय सुलैमान ने और उसके संग हमात की घाटी से लेकर मिस्र के नाले तक के सारे इस्राएल की एक बहुत बड़ी सभा ने सात दिन तक पर्व को माना।
और आठवें दिन को उन्होंने महासभा की, उन्होंने वेदी की प्रतिष्ठा सात दिन की और पर्वों को भी सात दिन माना।
निदान सातवें महीने के तेइसवें दिन को उस ने प्रजा के लोगों को विदा किया, कि वे अपने अपने डेरे को जाएं, और वे उस भलाई के कारण जो यहोवा ने दाऊद और सुलैमान और अपनी प्रजा इस्राएल पर की थी आनन्दित थे।
यों सुलैमान यहोवा के भवन और राजभवन को बना चुका, और यहोवा के भवन में और अपने भवन में जो कुछ उस ने बनाना चाहा, उस में उसका मनोरथ पूरा हुआ।
तब यहोवा ने रात में उसको दर्शन देकर उस से कहा, मैं ने तेरी प्रार्थना सुनी और इस स्थान को यज्ञ के भवन के लिये अपनाया है।
यदि मैं आकाश को ऐसा बन्द करूं, कि वर्षा न हो, वा टिडियों को देश उजाड़ने की आज्ञा दूं, वा अपनी प्रजा में मरी फैलाऊं,
तब यदि मेरी प्रजा के लोग जो मेरे कहलाते हैं, दीन होकर प्रार्थना करें और मेरे दर्शन के खोजी होकर अपनी बुरी चाल से फिरें, तो मैं स्वर्ग में से सुनकर उनका पाप क्षमा करूंगा और उनके देश को ज्यों का त्यों कर दूंगा।

एक साल में बाइबल:
  • भजन ६६, ६७
  • रोमियों ७

मंगलवार, 3 अगस्त 2010

प्रसन्न रहना

बच्पन में मेरी एक प्रीय पुस्तक थी ’पोलियन्ना’ (Pollyanna)। यह एक आशावादी लड़की की कहानी थी जो हर परिस्थिति में, चाहे वह बुरी ही क्यों न हो, प्रसन्न रहने की कोई न कोई बात ढूंढ लेती थी।

हाल ही में मुझे उस लड़की पोलियन्ना की कहानी याद आई जब मेरी एक सहेली, मेरिएन, साइकल चलते हुए दुर्घटनाग्रस्त हुई और उसकी बांह टूट गई। जब उससे मेरी बात हुई तो मेरीएन ने मुझे बताया कि वह कितनी धन्यावादी थी कि टूटी बांह के बावजूद वह घर तक साइकल चला के आ सकी। वह बहुत आभारी थी कि उसे अपनी टूटी बांह को ठीक कराने के लिये किसी ऑपरेशन के आवश्यक्ता नहीं पड़ेगी। उसे प्रसन्न्ता थी कि क्योंकि उसकी बांयी बाज़ू टूटी थी और वह दाहिने हाथ से काम करती थी, इसलिये वह अभी भी अपने काम को कर सकेगी। उसे हर्ष और अचंभा था कि उसकी हड्डियां इतनी मज़बूत थीं जिससे उसकी बांह जब जुड़ेगी तो उसमें पूरी ताकत होगी, और यह कितना अद्भुत था कि दुर्घटना के कारण कोई और गंभीर चोट नहीं आई।

वाह मेरिएन! मेरिएन उदाहरण है ऐसे व्यक्तित्व का जिसने परेशानियों में भी आनन्दित रहना सीख लिया है। उसे पूरा विश्वास है कि चाहे जो हो जाए, परमेश्वर उसकी सदा देखभाल करता है और करता रहेगा।

दुख कभी न कभी सब पर आते हैं, और अधिकतर लोगों के लिये दुखों में आभारी होना उनकी प्रथम प्रतिक्रीया नहीं होती। परन्तु परमेश्वर हमसे प्रसन्न होता है जब हम हर परिस्थिति में उसके प्रति धन्यवादी होने के कारण ढूंढते हैं (१ थिसलूनिकियों ५:१६-१८)। यदि हम सच्चे मन से खराब परिस्थितियों में भी भलाई ढूंढते हैं, तो हम आभारी रह सकते हैं कि परमेश्वर हमें संभाले हुए है। जब हम उसकी भलाई में विश्वास रखते हैं तब ही हम हर परिस्थिति में प्रसन्न रह सकते हैं। - सिंडी हैस कैस्पर


धन्यावादी मन हर परिस्थिति में कुछ भलाई ढूंढ लेता है।

आज का दिन जो यहोवा ने बनाया है, हम इस में मगन और आनन्दित हों। - भजन ११८:२४


बाइबल पाठ: भजन ३०

हे यहोवा मैं तुझे सराहूंगा, क्योंकि तू ने मुझे खींचकर निकाला है, और मेरे शत्रुओं को मुझ पर आनन्द करने नहीं दिया।
हे मेरे परमेश्वर यहोवा, मैं ने तेरी दोहाई दी और तू ने मुझे चंगा किया है।
हे यहोवा, तू ने मेरा प्राण अधोलोक में से निकाला है, तू ने मुझ को जीवित रखा और कब्र में पड़ने से बचाया है।।
हे यहोवा के भक्तों, उसका भजन गाओ, और जिस पवित्र नाम से उसका स्मरण होता है, उसका धन्यवाद करो।
क्योंकि उसका क्रोध, तो क्षण भर का होता है, परन्तु उसकी प्रसन्नता जीवन भर की होती है। कदाचित् रात को रोना पड़े, परन्तु सवेरे आनन्द पहुंचेगा।।
मैं ने तो चैन के समय कहा था, कि मैं कभी नहीं टलने का।
हे यहोवा अपनी प्रसन्नता से तू ने मेरे पहाड़ को दृढ़ और स्थिर किया था, जब तू ने अपना मुख फेर लिया तब मैं घबरा गया।।
हे यहोवा मैं ने तुझी को पुकारा और यहोवा से गिड़गिड़ाकर यह बिनती की, कि
जब मैं कब्र में चला जाऊंगा तब मेरे लोहू से क्या लाभ होगा? क्या मिट्टी तेरा धन्यवाद कर सकती है? क्या वह तेरी सच्चाई का प्रचार कर सकती है?
हे यहोवा, सुन, मुझ पर अनुग्रह कर, हे यहोवा, तू मेरा सहायक हो।।
तू ने मेरे लिये विलाप को नृत्य में बदल डाला, तू ने मेरा टाट उतरवाकर मेरी कमर में आनन्द का पटुका बान्धा है;
ताकि मेरी आत्मा तेरा भजन गाती रहे और कभी चुप न हो। हे मेरे परमेश्वर यहोवा, मैं सर्वदा तेरा धन्यवाद करता रहूंगा।

एक साल में बाइबल:
  • भजन ६३-६५
  • रोमियों ६

सोमवार, 2 अगस्त 2010

सच्चे मित्र

जब मैंने इन्टरनैट की एक लोकप्रीय सामजिक नेटवर्क साईट पर अपना पंजीकरण किया तो मुझे जो पहला सन्देश मिला वह था कि "आपके कोई मित्र नहीं हैं।" यद्यपि मैं जानती थी कि यह सत्य नहीं है, फिर भी कुछ पल के लिये मैं उदास हुई। यह विचार भी कि कोई मुझे मित्र रहित कह के संबोधित करे, फिर चाहे वह एक अवैक्तिक इन्टरनैट वैबसाईट ही क्यों न हो, मेरे लिये परेशान करने वाला था। हमारे भावनात्मक, शारीरिक और आत्मिक भलाई के लिये मित्रों का होना आवश्यक है।

मित्र हमारे दिल के दुखड़ों को, बिना हमें दोषी ठहराये, सुनते हैं। जब हम पर हमला होता है तो वह हमें बचाते हैं। हमारी उपलब्धियों में वे हमारे साथ खुश होते हैं और हमारे दुखों मे हमारे साथ दुखी। मित्र हमें गलत कदम उठाने से बचाते हैं, सही सलाह देते हैं और हमें सही मार्ग पर रखने के लिये हमारा उनसे क्रोधित होने का जोखिम भी उठाते हैं। मेरे मित्रों ने मेरे लिये यह सब कुछ और इससे अधिक भी किया है।

बाइबल में शायद सबसे प्रसिद्ध मित्रता दाऊद और योनातान की है। योनातान अपने पिता राजा शाऊल के राज्य का उत्तराधिकारी था। किंतु उसने जाना कि परमेश्वर ने उसे नहीं वरन दाऊद को उत्तराधिकारी होने के लिये चुना है, इसलिये दाऊद की जान बचाने के लिये उसने अपनी जान जोखिम में डाल दी (१ शैमुएल २०)।

बाइबल सिखाती है कि हमें अपने मित्र सावधानी पूर्वक चुनने चाहियें। सच्चे मित्र वे ही होते हैं जो परमेश्वर के भी मित्र होते हैं और जो परमेश्वर के साथ हमारे संबंधों को भी मज़बूत बनाते हैं (१ शैमुएल २३:१६)। - जूली ऐकैरमैन लिंक


सच्चे मित्र हीरों कि तरह होते हैं - बहुमूल्य और दुर्लभ।

बाइबल पाठ: १ शैमुएल २०:३०-४२

तब शाऊल का कोप योनातन पर भड़क उठा, और उस ने उस से कहा, हे कुटिला राजद्रोही के पुत्र, क्या मैं नहीं जानता कि तेरा मन तो यिशै के पुत्र पर लगा है? इसी से तेरी आशा का टूटना और तेरी माता का अनादर ही होगा।
क्योंकि जब तक यिशै का पुत्र भूमि पर जीवित रहेगा, तब तक न तो तू और न तेरा राज्य स्थिर रहेगा। इसलिये अभी भेज कर उसे मेरे पास ला, क्योंकि निश्चय वह मार डाला जाएगा।
योनातन ने अपने पिता शाऊल को उत्तर देकर उस से कहा, वह क्यों मारा जाए? उस ने क्या किया है?
तब शाऊल ने उस को मारने के लिये उस पर भाला चलाया; इससे योनातन ने जान लिया, कि मेरे पिता ने दाऊद को मार डालना ठान लिया है।
तब योनातन क्रोध से जलता हुआ मेज पर से उठ गया, और महीने के दूसरे दिन को भोजन न किया, क्योंकि वह बहुत खेदित था, इसलिये कि उसके पिता ने दाऊद का अनादर किया था।
बिहान को योनातन एक छोटा लड़का संग लिए हुए मैदान में दाऊद के साथ ठहराए हुए स्थान को गया।
तब उस ने अपने छोकरे से कहा, दौड़कर जो जो तीर मैं चलाऊं उन्हें ढूंढ़ कर ले आ। छोकरा दौड़ा ही था, कि उस ने एक और तीर उसके परे चलाया।
जब छोकरा योनातन के चलाए तीर के स्थान पर पहुंचा, तब योनातन ने उसके पीछे से पुकार के कहा, तीर तो तेरी परली ओर है।
फिर योनातन ने छोकरे के पीछे से पुकार के कहा, बड़ी फुर्ती कर, ठहर मत! और योनातन का छोकरा तीरों को बटोर के अपने स्वामी के पास ले आया।
इसका भेद छोकरा तो कुछ न जानता था, केवल योनातन और दाऊद इस बात को जानते थे।
और योनातन ने अपने हथियार अपने छोकरे को देकर कहा, जा, इन्हें नगर को पहुंचा।
ज्योंही छोकरा चला गया, त्यों ही दाऊद दक्खिन दिशा की अलंग से निकला, और भूमि पर औंधे मुंह गिर के तीन बार दण्डवत की, तब उन्होंने एक दूसरे को चूमा, और एक दूसरे के साथ रोए, परन्तु दाऊद का रोना अधिक था।
तब योनातन ने दाऊद से कहा, कुशल से चला जा, क्योंकि हम दोनों ने एक दूसरे से यह कह के यहोवा के नाम की शपथ खाई है, कि यहोवा मेरे और तेरे मध्य, और मेरे और तेरे वंश के मध्य में सदा रहे। तब वह उठकर चला गया और योनातन नगर में गया।

एक साल में बाइबल:
  • भजन ६०-६२
  • रोमियों ५

रविवार, 1 अगस्त 2010

परमेश्वर की जीवनी

मान लीजिये कि आप एक बहुत प्रसिद्ध व्यक्ति हैं; इसलिये लोग आपके बारे में सब प्रकार की बातें जानना चाहेंगे। अब सोचिये कि आप मुझ से सम्पर्क करते हैं और पुछते हैं कि क्या मैं आपकी जीवनी लिखना पसन्द करूंगा? मान लीजिये कि मैं इस के लिये तैयार हो जाता हूँ। अब मैं आपके बारे में सब जनकारी जमा करने का प्रयास करुंगा। जैसे पतंगा रौशनी के चारों ओर मंडराता रहता है, मैं भी आपसे संबंधित हर प्रकार की जनकारी पाने के लिये आपके चारों ओर मंडराता रहूंगा। मैं आपसे अनेक प्रशन पूछुंगा। आपसे आपके संबंधियों, मित्रों और जानकारों की सूचि मांगुंगा और फिर उनसे संपर्क करूंगा जिससे अपके बारे में और जानकारी पा सकूं। फिर मैं आपसे कहुंगा कि आप के जीवन से संबंधित जो भी दस्तावेज़, तस्वीरें या अन्य कुछ भी हों, सब मुझे उप्लब्ध करा दें कि मैं उनका अध्ययन कर सकूं।

किसी को भी जानने के लिये तीन बातों की तरफ ध्यान देना अनिवार्य होता है, और मैं उन तीनों बातों पर ध्यान दूंगा। वे तीन बातें हैं - आप अपने बारे में क्या कहते हैं; लोग आपके बारे में क्या कहते हैं और आपने क्या उल्लेखनीय कार्य किये हैं। अब यही बात, ऐसे ही, परमेश्वर के संबंध में जनकारी पाने पर भी लागू होती है - परमेश्वर अपने बारे में क्या कहता है, दूसरे उसके बारे में क्या कहते हैं और उसने क्या कुछ किया है?

परमेश्वर को एक नये और अनोखे तरीके से जानने के लिये, इन तीनों बातों का प्रयोग कीजिये। बाइबल में पढ़िये कि परमेश्वर अपने बारे में क्या कहता है (निर्गमन ३४:६, ७; लैव्यवस्था १९:२; यर्मियाह ३२:२७)। फिर देखिये कि बाइबल के लेखक उसके बारे में और उसके अदभुत गुणों के बारे में क्या कहते हैं (भजन १९:१-४; रोमियों १:१६-२०; १ युहन्ना ४:८-१०)। और अन्त में देखिये कि परमेश्वर ने कैसे अदभुत कार्य किये हैं (उत्पत्ति १:१; निर्गमन १४:१०-३१; युहन्ना ३:१६)।

परमेश्वर को जानिये, उसकी जीवनी के लेखक बनिये। ऐसा करने से आप उसके बारे में इतना सीखेंगे जितना आप ने कभी संभव नहीं समझा होगा। - डेव ब्रैनन


जिस परमेश्वर ने इस सृष्टि को रचा है, वह चाहता है कि आप उसे जाने।

क्‍योंकि उसके अनदेखे गुण, अर्थात उस की सनातन सामर्थ, और परमेश्वरत्‍व जगत की सृष्‍टि के समय से उसके कामों के द्वारा देखने में आते हैं... - रोमियों १:२०

बाइबल पाठ: रोमियों १:१६-२०
क्‍योंकि मैं सुसमाचार से नहीं लजाता, इसलिये कि वह हर एक विश्वास करने वाले के लिये, पहिले तो यहूदी, फिर यूनानी के लिये उद्धार के निमित्त परमेश्वर की सामर्थ है।
क्‍योंकि उस में परमेश्वर की धामिर्कता विश्वास से और विश्वास के लिये प्रगट होती है: जैसा लिखा है, कि विश्वास से धर्मी जन जीवित रहेगा।।
परमेश्वर का क्रोध तो उन लोगों की सब अभक्ति और अधर्म पर स्‍वर्ग से प्रगट होता है, जो सत्य को अधर्म से दबाए रखते हैं।
इसलिये कि परमश्‍ेवर के विषय में ज्ञान उन के मनों में प्रगट है, क्‍योंकि परमेश्वर ने उन पर प्रगट किया है।
क्‍योंकि उसके अनदेखे गुण, अर्थात उस की सनातन सामर्थ, और परमेश्वरत्‍व जगत की सृष्‍टि के समय से उसके कामों के द्वारा देखने में आते है, यहां तक कि वे निरूत्तर हैं।

एक साल में बाइबल:
  • भजन ५७-५९
  • रोमियों ४

शनिवार, 31 जुलाई 2010

आरंभ का एक मात्र स्थान

जब एक प्रकाशन संस्था ने मुझे आमंत्रण दिया कि मैं उनकी एक नई पुस्तक की भूमिका लिखूं तो मैंने उसे सहर्ष स्वीकार कर लिया। जब मैं उस पुस्तक को पढ़ने लगा तो मैंने पाया कि वह जवानों को बदलते हुए संसार में परमेश्वर के लिये जीवन जीने को प्रोत्साहित करने के लिये लिखी गई थी, किंतु फिर भी उसे पढ़कर मैं कुछ विचिलित हुआ। यद्यपि उस पुस्तक में बाइबल से बहुत से पद उद्वत किये गए थे और अच्छी आत्मिक सलाह दी गई थी, किंतु उसमें कहीं भी यह नहीं कहा गया था कि परमेश्वर के साथ सही संबंध का आरंभ प्रभु यीशु में मिला उद्धार है।

लेखक के विचार से आधुनिक समाज में अच्छे आत्मिक जीवन का आधार भले कार्य हैं, सब कुछ हमारे भले कार्यों पर निर्भर है, न कि मसीह पर विश्वास द्वारा मिले उद्धार पर। इसलिये मैंने उस पुस्तक की भूमिका नहीं लिखी।

चर्च का स्वरूप और संसकृति तेज़ी से बदल रही है और नये विचारों की होड़ में सुसमाचार का वास्तविक सन्देश कहीं पीछे छूटता जा है। प्रेरित पौलुस अचंभित था कि लोगों ने "दूसरे सुसमाचार" (गलतियों १:६) को कितनी सहजता से स्वीकार कर लिया। उसने जो प्रचार किया था वह किसी मनुष्य के विचार नहीं थे, उसे वह सन्देश स्वयं प्रभु यीशु से प्राप्त हुआ था (गलतियों १:११, १२)।

इस खरे सुसमाचार को हमें कभी नहीं छोड़ना है कि: मसीह हमारे पापों के लिये मरा, गाड़ा गया और हमें परमेश्वर के सन्मुख धर्मी ठहराने के लिये जी उठा (रोमियों ४:२५, १ कुरिन्थियों १५:३, ४)। केवल यही सुसमाचार है जो प्रत्येक विश्वास करने वाले के लिये उद्धार के निमित्त परमेश्वर की सामर्थ है (रोमियों १:१६)।

यदि हम परमेश्वर के लिये जीवन व्यतीत करना चहते हैं तो आरंभ करने का यही एक मात्र स्थान है। - डेव ब्रैनन


परमेश्वर के उद्धार के उपहार को केवल मसीह में विश्वास के द्वारा ही ग्रहण किया जा सकता है।

जैसा हम पहिले कह चुके हैं, वैसा ही मैं अब फिर कहता हूं, कि उस सुसमाचार को छोड़ जिसे तुम ने ग्रहण किया है, यदि कोई और सुसमाचार सुनाता है, तो स्‍त्रापित हो। - (गलतियों १:९)

बाइबल पाठ: गलतियों १:६-१२
मुझे आश्‍चर्य होता है, कि जिस ने तुम्हें मसीह के अनुग्रह से बुलाया उस से तुम इतनी जल्दी फिर कर और ही प्रकार के सुसमाचार की ओर झुकने लगे।
परन्‍तु वह दूसरा सुसमाचार है ही नहीं: पर बात यह है, कि कितने ऐसे हैं, जो तुम्हें घबरा देते, और मसीह के सुसमाचार को बिगाड़ना चाहते हैं।
परन्‍तु यदि हम या स्‍वर्ग से कोई दूत भी उस सुसमाचार को छोड़ जो हम ने तुम को सुनाया है, कोई और सुसमाचार तुम्हें सुनाए, तो स्‍त्रापित हो।
जैसा हम पहिले कह चुके हैं, वैसा ही मैं अब फिर कहता हूं, कि उस सुसमाचार को छोड़ जिसे तुम ने ग्रहण किया है, यदि कोई और सुसमाचार सुनाता है, तो स्‍त्रापित हो। अब मैं क्‍या मनुष्यों को मानता हूं या परमेश्वर को? क्‍या मैं मनुष्यों को प्रसन्न करना चाहता हूं?
यदि मैं अब तक मनुष्यों को प्रसन्न करता रहता, तो मसीह का दास न होता।
हे भाइयो, मैं तुम्हें जताए देता हूं, कि जो सुसमाचार मैं ने सुनाया है, वह मनुष्य का सा नहीं।
क्‍योंकि वह मुझे मनुष्य की ओर से नहीं पहुंचा, और न मुझे सिखाया गया, पर यीशु मसीह के प्रकाश से मिला।

एक साल में बाइबल:
  • भजन ५४-५६
  • रोमियों ३