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शनिवार, 21 अगस्त 2010

२० अगस्त की पोस्ट "मैं कर सकता हूँ" पर प्राप्त टिप्पणी के सन्दर्भ में


श्रीमन दीपक जी,
रोज़ की रोटी ब्लॉग पर करी गई आपकी टिप्पणी और प्रस्तुत विचारों के लिये धन्यवाद। दो पंक्तियों में आपने कुछ बहुत महत्वपुर्ण बातें अंकित करीं हैं। इनके और आपकी टिप्पणी बारे में, बहुत संक्षेप में और तीन शीर्षकों (- भाषा, क्षेत्र एवं संस्कृति, धर्म एवं धन) के अन्तर्गत अपनी बात कहना चाहुंगा।

१. - भाषा:
सृष्टि के सर्जनहार-पालनहार-तारणहार सृष्टिकर्ता को संसार की प्रत्येक भाषा में किसी न किसी शब्द से संबोधित और प्रकट किया जाता है। हमारी मातृभाषा हिंदी में यह शब्द है "परमेश्वर"। क्योंकि मसीही विश्वास प्रभु यीशु मसीह को इस समस्त सृष्टि का सर्जनहार-पालनहार-तारणहार सृष्टिकर्ता मानता है, इसीलिये उसके वचन को परमेश्वर का वचन कहते हैं। यह किसी भाषा अथवा संस्कृति की अवमानना या "आत्मसात करके उसके साथ खिलवाड़" नहीं है, केवल अपने विचार को जिस भाषा में व्यक्त करना है, उस भाषा में उपलब्ध उचित शब्द का प्रयोग है। यदि आप अंग्रेज़ी भाषा में परमेश्वर के बारे में कुछ कहना चाहेंगे तो "god" शब्द का प्रयोग तो करेंगे ही, तो क्या आपके ऐसा करने से पश्चिमी संस्कृति और विचारधारा की अवमानना होगी?

२. - क्षेत्र एवं संस्कृति:
न तो प्रभु यीशु मसीह और न मसीही विश्वास किसी संस्कृति या भूभाग तक सीमित हैं। बाइबल स्पष्ट बताती है कि प्रभु यीशु मसीह सारे संसार के लिये आये और सारे संसार के पापों के लिये उन्होंने अपना बलिदान दिया। इसमें किसी देश, धर्म, भाषा, जाति, रंग, शिक्षा, संपन्न्ता, पद-प्रतिष्ठा आदि का कोई स्थान या महत्व नहीं है। सारे संसार में जो कोई स्वेच्छा से उन पर विश्वास करके अपने निज पापों से पश्चाताप करता है, वह पापों की क्षमा, उद्धार एवं परमेश्वर कि सन्तान होने का अधिकार प्राप्त करता है। इस संदर्भ में अनुरोध करूंगा कि आप http://samparkyeshu.blogspot.com/2009/12/blog-post_20.html तथा संपर्कयीशु ब्लॉग पर उपलब्ध अन्य लेखों का अवलोकन एवं अधयन करें।

एक और गलतफहमी जो बहुत से लोगों में है, और आपने भी जिसका प्रयोग किया है - प्रभु यीशु मसीह पश्चिमी सभ्यता के हैं। जी नहीं; वैसे तो वे सारे संसार के हैं, किंतु यदि मात्र उनके जन्मस्थान, जीवन और कार्य स्थल के परिपेक्श की अति सीमित दृष्टि से भी देखें तो वे उस भूभाग से हैं जिसे संसार इस्त्राएल के नाम से जानता है और जो विश्व के एशिया महाद्वीप के मध्य-पूर्व का एक भाग है न कि पश्चिम का; हमारा देश भारत भी इसी महाद्वीप के दक्षिण का ही भाग है। इस दृष्टिकोण से भी प्रभु यीशु पश्चिम कि अपेक्षा हमारे अधिक निकट ठहरे।

इसी से संबंधित कुछ और बातों को कहना चाहुंगा: आम और प्रचलित धारणा के विपरीत, मसीही विश्वास अंग्रेज़ हमारे देश में लेकर नहीं आये, अंग्रेज़ों के भारत आने से लगभग १७००-१८०० तथा अब से लगभग २००० वर्ष पूर्व, प्रभु यीशु मसीह के मृत्कों में से पुनुर्त्थान और स्वर्गारोहण के कुछ ही वर्ष पश्चात उनके चेले, उन की आज्ञा के अनुसार, संसार के विभिन्न इलाकों में, उद्धार और पापों की क्षमा का उनका संदेश लेकर निकल पड़े और उन्हीं में से एक चेला - थोमा, भारतवर्ष आया और दक्षिण भारत में बस गया। उसके जीवन भर उसके पास सिवाय अपने प्रभु और गुरू की शिक्षाओं और उनकी आज्ञाकारिता के, और कुछ भी नहीं था; न कोई विदेशी मिशन, न कोई देशी अथवा विदेशी धन, न किसी पश्चिमी देश की संस्कृति या सभ्यता, न ही ऐसी किसी बात को दूसरों पर थोपने का इरादा, न अन्य कोई भी ऐसा उद्देश्य, जिसका आज अक्सर लोग मसीहीयों पर निराधार आरोप लगाते हैं। दुखः की बात है कि हमारे देश के जो ज्ञानी और समाज पर प्रभाव रखने वाले लोग इस एतिहासिक सत्य को जानते हैं, वे इसे प्रकट नहीं करते, वरन कुछ निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिये, प्रचलित गलत धारणा को ही जानबूझकर लोगों के सामने बढ़ा-चढ़ाकर रखते रहते हैं, तथ्यों से अन्जान लोगों को बरगलाते रहते हैं और उन्हें असत्य के आधार पर मसीहियों के विरुध भड़काते रहते हैं।

३. - धर्म और धन:
यह एक और बहुत बड़ी गलतफहमी है कि प्रभु यीशु संसार में अपना कोई धर्म स्थापित करने आये थे। वे कोई धर्म देने के लिये नहीं वरन संसार को पापों से मुक्ति का मार्ग देने आये थे। न तो उन्होंने स्वयं किसी धर्म की स्थापना करी और न ही कभी अपने अनुयायियों से ऐसा करने को कहा। इसाई धर्म और मसीही विश्वास में ज़मीन-आसमान का अंतर है। मसीही विश्वास प्रभु यीशु मसीह पर व्यक्तिगत रूप से और स्वेच्छा से किया जाता है, यह विश्वास है - कोई धर्म नहीं है। हमारी अपनी भारतीय संस्कृति के संदर्भ में इसे समझना और भी सरल है - यह प्रभु यीशु को गुरू धारण करके पूर्ण रूप से उसे समर्पित होना, अपने गुरू का अनुसरण करना और आज्ञाकारी रहना ही है। यदि मेरे पास सर्वोत्तम गुरू और उसकी सर्वोत्तम शिक्षाएं हैं, तो उसके बारे में दुसरों को बताने में क्या बुराई है? क्या प्रभु यीशु में या उसकी शिक्षाओं में आपने कुछ ऐसा पाया जो गलत है? हो सकता है कि इसाई धर्म या उस धर्म का पालन करने वालों में आपने कोई आपत्तिजनक बातें पाईं हों, पर प्रभु यीशु में? प्रभु यीशु धर्म, देश, संस्कृति, जाति आदि की सीमाओं में बंधा नहीं है, न ही वह इन और ऐसी बातों के आधार पर संसार और संसार के लोगों को विभाजित करता है, और न ही वह किसी को इन बातों के आधार पर ऊंचा-नीचा, छोटा-बड़ा, भला-बुरा आदि करके बताता है। वह तो अपने प्रेम और अनुग्रह में सब को, चाहे वे जो भी और जैसे भी हों, अपने आप में एक करके, बराबरी का एक ही दर्जा देता है - परमेश्वर की संन्तान होने का।

प्रत्येक धर्म में, इसाई धर्म में भी, उस धर्म को मानने वाले परिवार में जन्म लेने से, स्वाभाविक रीति से, जन्म लेने वाला बच्चा उसी धर्म का हो जाता है और उस धर्म के संसकारों में ही उसका पालन-पोषण होता है, और उसका उस धर्म की लीक से हटना बहुत बुरा माना जाता है। किंतु मसीही विश्वास में ऐसा नहीं है। मसीही विश्वास में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी स्वेच्छा से अपने पापों का अंगीकार और पश्चाताप करके प्रभु यीशु को समर्पण करना होता है। मेरे मसीही विश्वासी होने से मेरे परिवार का कोई भी सदस्य मसीही नहीं हो जाता, और ना ही मुझे पापों की क्षमा मिलने के कारण मेरे परिवार के किसी भी सदस्य को पापों की क्षमा स्वाभाविक रूप से या विरासत में मिल जाती है। मेरा उद्धार किसी दूसरे पर कदापि लागू नहीं होता। मैं उन्हें इसके बारे में बता सकता हूँ, समझा सकता हूँ, किंतु मसीही विश्वास में आना उनका अपना ही निर्णय होगा। यदि उन्होंने इस को नहीं माना और यह निर्णय नहीं लिया तो इस जीवन के बाद जब वे परमेश्वर के सामने अपने न्याय के लिये खड़े होंगे, तो मेरे मसीही विश्वास के सहारे अपने पापों की सज़ा से नहीं बच सकते। इसाई परिवार में जन्म लेने से, या इसाई धर्म अपना लेने से कोई मसीही विश्वासी नहीं हो जाता।

प्रभु यीशु ने कभी नहीं कहा कि धन या अन्य किसी संसारिक वस्तु के लालच का उपयोग करके उसके नाम में कोई समूह खड़ा करो, वरन उसने अपने चेलों को धरती पर नहीं परन्तु स्वर्ग में अपना धन एकत्रित करने को कहा, और धरती की नहीं वरन स्वर्गीय वस्तुओं के खोजी होने की शिक्षा दी। प्रभु यीशु का राज्य पृथ्वी का नहीं स्वर्ग का है, वह नाशमान नहीं वरन अविनाशी की ओर अपने चेलों का ध्यान करवाता है। ऐसे में प्रभु यीशु का कोई भी वास्तविक अनुयायी कैसे धन या सांसारिक वस्तुओं के लालच का उपयोग उसके नाम से कर सकता है? प्रभु यीशु ने न तो कोई धर्म दिया और न कभी किसी के धर्म परिवर्तन कराने की शिक्षा दी। उसने कहा "हे सब [पाप के] बोझ से दबे और थके लोगों मेरे पास आओ, मैं तुम्हें विश्राम दूंगा।" प्रभु यीशु के नाम से धन या सांसारिक वस्तुओं के लालच का प्रयोग करना पाप है और उस लालच को स्वीकार करके उसका चेला बनने का दावा करना भी पाप है; दोनो ही बातें प्रभु यीशु की शिक्षाओं के विपरीत हैं। किंतु यदि प्रभु यीशु को ग्रहण करने से परिवार, समाज और संसार से तिरिस्कार मिले, तो ऐसे तिरिस्कृत लोगों की सहायता, प्रभु यीशु मसीह का सन्देश उन तक लाने वालों के द्वारा करी जाना, क्या अनुचित है? यदि ऐसे अनुचित और निराधार तिरिस्कार और कटुता नहीं होगी, अस्त्य के आधार पर लोगों को विभाजित करना नहीं होगा तो फिर लालच के आरोप का स्थान भी नहीं होगा।

मैं आपका आभारी हूँ कि आपकी टिप्पणी ने ये कुछ अति महत्वपूर्ण बातें उजागर करने का मुझे यह सुअवसर दिया। आशा करता हूँ कि आपकी गलतफहमी दूर हुई होगी और निवेदन है कि यथासंभव इन सत्यों को उजागर करें क्योंकि अन्ततः जीत तो सत्य की ही होती है, तथा प्रभु यीशु को परख कर देखें कि वह कैसा भला है।

धन्यवाद सहित - रोज़ की रोटी

प्रतिफल

एक समय था जब मैं प्रभु यीशु द्वारा मत्ती ५:३-१२ में कहे धन्य वचनों को ऐसे देखता था मानो वे अभागे व्यक्तियों को सांत्वना देने और उनका मन बहलाने के लिये प्रभु द्वारा कही गई कुछ भली बातें हों - "ओ गरीबों, बीमारों, दुखियों और रोने वालों, मैं तुम्हें थोड़ा अच्छा महसूस कराने के लिये, कुछ भली बातें बताता हूँ।"

पुराने समय के राजा, अपनी प्रजा के गरिब लोगों के बीच कुछ सिक्के फेंक दिया करते थे, किंतु यीशु इस योग्य है कि वह अपने लोगों को वास्तविक उपहार बांट सके। क्योंकि वह स्वर्ग से आया था, वह भली भांति जानता था कि स्वर्ग की महिमामय वस्तुओं का सुख इस संसार के दुख-क्लेशों से कहीं अधिक बढ़कर और उत्तम है।

आज के समय में बहुतेरे मसीहीयों के अन्दर से भविष्य के प्रतिफलों की लालसा जाती रही है। मेरे पूर्व पास्टर बिल लेस्ली कहते थे "जैसे जैसे चर्चों में धन और ऐश्वर्य बढ़ता जाता है, उनका स्तुति गीत भी बदल जाता है; फिर वे यह नहीं गाते कि ’संसार मेरा घर नहीं है, मैं तो इसमें केवल यात्री के समान हूँ’ वरन वे गाने लगते हैं कि ’यह संसार तो मेरे पिता का है’"।

भविष्य के प्रतिफलों की कीमत को हम कभी कम करके न आंकें। उन प्रतिफलों को ध्यान में रखने से मिलने वाली आशा और सांत्वना का उदाहरण हम अमेरिका के गुलाम विश्वासियों के गीतों में देख सकते हैं, जिन्होंने अपनी बदहाली में निराशाओं से निकलने के लिये अपने भविष्य के प्रतिफलों को याद किया और उसी के अनुसार गीत गाये, जैसे: "हे आशा के सुन्दर रथ, नीचे आ और मुझे मेरे स्थायी घर ले चल" ; "मेरे दुख को कोई नहीं जानता, कोई नहीं जानता, केवल यीशु"।

समय के साथ मैंने सीख लिया है कि यीशु द्वारा दिये जाने वाले भावी प्रतिफलों का न केवल आदर करूं, वरन उन की लालसा भी करूं। - फिलिप यैनसी


काले क्लेशों का प्रतिफल उज्जवल मुकुट होगा।

धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं, क्‍योंकि स्‍वर्ग का राज्य उन्‍हीं का है। - मत्ती ५:३


बाइबल पाठ: मत्ती ५:३-१२

धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं, क्‍योंकि स्‍वर्ग का राज्य उन्‍हीं का है।
धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं, क्‍योंकि वे शांति पाएंगे।
धन्य हैं वे, जो नम्र हैं, क्‍योंकि वे पृथ्वी के अधिक्कारी होंगे।
धन्य हैं वे, जो दयावन्‍त हैं, क्‍योंकि उन पर दया की जाएगी।
धन्य हैं वे, जिन के मन शुद्ध हैं, क्‍योंकि वे परमेश्वर को देखेंगे।
धन्य हैं वे, जो मेल करवाने वाले हैं, क्‍योंकि वे परमेश्वर के पुत्र कहलाएंगे।
धन्य हैं वे, जो धर्म के कारण सताए जाते हैं, क्‍योंकि स्‍वर्ग का राज्य उन्‍हीं का है।
धन्य हो तुम, जब मनुष्य मेरे कारण झूठ बोल बोलकर तुम्हरे विरोध में सब प्रकार की बुरी बात कहें।
आनन्‍दित और मगन होना क्‍योंकि तुम्हारे लिये स्‍वर्ग में बड़ा फल है इसलिये कि उन्‍होंने उन भविष्यद्वक्ताओं को जो तुम से पहिले थे इसी रीति से सताया था।
तुम पृथ्वी के नमक हो, परन्‍तु यदि नमक का स्‍वाद बिगड़ जाए, तो वह फिर किस वस्‍तु से नमकीन किया जाएगा?

एक साल में बाइबल:
  • भजन १०७-१०९ १
  • कुरिन्थियों ४

शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

मैं कर सकता हूँ

बच्चों की एक कहानी है, एक छोटे ट्रेन ईंजन के बारे में। एक चढ़ाई पर आकर उसने ट्रेन को ऊपर ले जाने की ठान ली और अपने अप से कहता गया ’मैं सोचता हूँ कि मैं यह कर सकता हूँ’ और चढ़ता गया। थोड़ी देर में उसका विचार निश्चय में बदल गया और फिर उसने कहना शुरू कर दिया ’मैं जानता हूँ कि मैं कर सकता हूँ।’

कोई इस बात से इन्कार नहीं करेगा कि मसीह के अनुयायीयों को सकारात्मक सोच के साथ जीवन निर्वाह करना है। किंतु क्या कभी आप अपने आप को अपनी योग्यताओं और सामर्थ पर अधिक और आप में बसने वाले परमेश्वर के आत्मा की सामर्थ पर कम भरोसा रखते हुए पाते हैं?

यूहन्ना १५ में प्रभु यीशु ने समझाया कि उसके अनुयायीयों को पूर्ण्तयाः उस पर निर्भर रहना चाहिये, उसने कहा " मैं दाखलता हूं: तुम डालियां हो, जो मुझ में बना रहता है, और मैं उस में, वह बहुत फल फलता है, क्‍योंकि मुझ से अलग होकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते" (यूहन्ना १५:५)। पौलुस ने स्मरण दिलाया कि "जो मुझे सामर्थ देता है उस में मैं सब कुछ कर सकता हूं" (फिलिप्पियों ४:१३); और "कि तुम उसके आत्मा से अपने भीतरी मनुष्यत्‍व में सामर्थ पाकर बलवन्‍त होते जाओ" (इफिसियोम ३:१६) जिससे "...कि यह असीम सामर्थ हमारी ओर से नहीं, बरन परमेश्वर ही की ओर से ठहरे" (२ कुरिन्थियों ४:७)।

परमेश्वर की उपलब्ध सामर्थ के द्वारा, उसमें होकर हम वह सब कुछ कर सकते हैं जो वह हमसे चाहता है। हम अपना भरोसा अपनी सीमित योग्यताओं और सामर्थ पर नहीं, वरन परमेश्वर की असीमित सामर्थ और वाचाओं पर रख सकते है।

इसलिये आज अपनी हर परिस्थिति और कठिनाई में, हमें उपलब्ध उस असीम सामर्थ के आधार पर, उस छोटे ट्रेन इंजन से कहीं अधिक दृढ़ता से हम कह सकते हैं "मैं जानता हूँ मैं कर सकता हूँ; मैं जानता हूँ मैं कर सकता हूँ - प्रभु यीशु के कारण।" - सिंडी हैस कैस्पर


परमेश्वर के काम परमेश्वर की सामर्थ से ही पूरे होते हैं

अब जो ऐसा सामर्थी है, कि हमारी बिनती और समझ से कहीं अधिक काम कर सकता है, उस सामर्थ के अनुसार जो हम में कार्य करता है - इफीसियों ३:२०


बाइबल पाठ: इफीसियों ३:१४-२१

मैं इसी कारण उस पिता के साम्हने घुटने टेकता हूं,
जिस से स्‍वर्ग और पृथ्वी पर, हर एक घराने का नाम रखा जाता है।
कि वह अपनी महिमा के धन के अनुसार तुम्हें यह दान दे, कि तुम उसके आत्मा से अपने भीतरी मनुष्यत्‍व में सामर्थ पाकर बलवन्‍त होते जाओ।
और विश्वास के द्वारा मसीह तुम्हारे हृदय में बसे कि तुम प्रेम में जड़ पकड़ कर और नेव डाल कर।
सब पवित्र लागों के साथ भली भांति समझने की शक्ति पाओ कि उसकी चौड़ाई, और लम्बाई, और ऊंचाई, और गहराई कितनी है।
और मसीह के उस प्रेम को जान सको जो ज्ञान से परे है, कि तुम परमेश्वर की सारी भरपूरी तक परिपूर्ण हो जाओ।
अब जो ऐसा सामर्थी है, कि हमारी बिनती और समझ से कहीं अधिक काम कर सकता है, उस सामर्थ के अनुसार जो हम में कार्य करता है,
कलीसिया में, और मसीह यीशु में, उस की महिमा पीढ़ी से पीढ़ी तक युगानुयुग होती रहे। आमीन।

एक साल में बाइबल:
  • भजन १०५, १०६ १
  • कुरिन्थियों ३

गुरुवार, 19 अगस्त 2010

दिल की बात

टी. वी. के एक व्यापरिक विज्ञापन में, विनोदात्मक रूप से दिखाया गया, कि जब भी सूसन मुहँ खोलती तो उसके मुहँ से सायरन की सी आवाज़ निकलती, क्योंकि सूसन के दांत खराब थे और वह अपने दन्त चिकित्सक के पास जाना टालती जा रही थी। उसे स्मरण दिलाने के लिये उसके दांतों से सायरन बजता था।

इस विज्ञापन ने मुझे सोच में डाल दिया कि जब मैं मुहँ खोलता हूँ तो मेरे मुहँ से क्या निकलता है? प्रभु यीशु ने कहा कि हमारे मुहँ के शब्द हमारे हृदय से आते हैं (मत्ती १५:१८)। यीशु ने कहा कि "जो मुंह में जाता है, वह मनुष्य को अशुद्ध नहीं करता, पर जो मुंह से निकलता है, वही मनुष्य को अशुद्ध करता है। तब चेलों ने आकर उस से कहा, क्‍या तू जानता है कि फरीसियों ने यह वचन सुनकर ठोकर खाई" (मत्ती १५:११, १२), और उसकी इस बात ने उसके समय के धर्मगुरुओं - फरीसियों को क्रुद्ध किया। फरीसी मानते थे कि वे परमेश्वर के साथ सही हैं क्योंकि वे धर्म संबंधी नियमों और रीति रिवाज़ों का कड़ाई से पालन करते थे। वे केवल "शुद्ध" भोजन वस्तुएं ही ग्रहण करते थे और भोजन से पहले शरीर की स्वच्छता का पालन करते थे। यीशु ने अपनी शिक्षाओं से उनके धर्म संबम्धी घमण्ड को झकझोरा, जो उन्हें अच्छा नहीं लगा।

प्रभु यीशु हमारे घमण्ड को भी झकझोरता है। हम सोचते हैं कि हम धर्मी हैं क्योंकि हम नियम से चर्च जाते हैं, प्रार्थना करते हैं, विधियों का पलन करते हैं आदि; लेकिन और क्या करते हैं - पीठ पीछे लोगों की बुराई, इससे-उससे किसी के बारे में उलटा सीधा बोलना? याकूब ने अपनी पत्री में लिखा "इसी [हमारी जीभ] से हम प्रभु और पिता की स्‍तुति करते हैं, और इसी से मनुष्यों को जो परमेश्वर के स्‍वरूप में उत्‍पन्न हुए हैं श्राप देते हैं। एक ही मुंह से धन्यवाद और श्राप दोनों निकलते हैं। हे मेरे भाइयों, ऐसा नहीं होना चाहिए।" (याकूब ३:९-११)

जब हम मुहँ खोलें और अनुचित बोलें तो हमें अपने दिल को जांचने और मन की मलिन्ता के लिये परमेश्वर से क्षमा माँगने की आवश्यक्ता है, और साथ ही परमेश्वर से यह भी माँगें कि उसकी सहायता से हम दूसरों के लिये आशीश का कारण हो सकें। - एने सेटास


आपका मुहँ आपके मन का दर्पण है।

पर जो कुछ मुंह से निकलता है, वह मन से निकलता है, और वही मनुष्य को अशुद्ध करता है। - मत्ती १५:१८


बाइबल पाठ: मत्ती १५:७-२०

हे कपटियों, यशायाह ने तुम्हारे विषय में यह भविष्यद्वाणी ठीक की।
कि ये लोग होठों से तो मेरा आदर करते हैं, पर उन का मन मुझ से दूर रहता है।
और ये व्यर्थ मेरी उपासना करते हैं, क्‍योंकि मनुष्य की विधियों को धर्मोपदेश करके सिखाते हैं।
और उस ने लोगों को अपने पास बुलाकर उन से कहा, सुनो और समझो।
जो मुंह में जाता है, वह मनुष्य को अशुद्ध नहीं करता, पर जो मुंह से निकलता है, वही मनुष्य को अशुद्ध करता है।
तब चेलों ने आकर उस से कहा, क्‍या तू जानता है कि फरीसियों ने यह वचन सुनकर ठोकर खाई
उस ने उत्तर दिया, हर पौधा जो मेरे स्‍वर्गीय पिता ने नहीं लगाया, उखाड़ा जाएगा।
उन को जाने दो; वे अन्‍धे मार्ग दिखाने वाले हैं: और अन्‍धा यदि अन्‍धे को मार्ग दिखाए, तो दोनों गड़हे में गिर पड़ेंगे।
यह सुनकर, पतरस ने उस से कहा, यह दृष्‍टान्‍त हमें समझा दे।
उस ने कहा, क्‍या तुम भी अब तक ना समझ हो?
क्‍या नहीं समझते, कि जो कुछ मुंह में जाता, वह पेट में पड़ता है, और सण्‍डास में निकल जाता है?
पर जो कुछ मुंह से निकलता है, वह मन से निकलता है, और वही मनुष्य को अशुद्ध करता है।
क्‍योंकि कुचिन्‍ता, हत्या, परस्त्रीगमन, व्यभिचार, चोरी, झूठी गवाही और निन्‍दा मन ही से निकलती हैं।
यही हैं जो मनुष्य को अशुद्ध करती हैं, परन्‍तु हाथ बिना धोए भोजन करना मनुष्य को अशुद्ध नहीं करता।

एक साल में बाइबल:
  • भजन१०३, १०४ १
  • कुरिन्थियों २

बुधवार, 18 अगस्त 2010

धोखे से सावधान

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान, ६ जून १९४४ को मित्र देशों की सम्मिलित सेना ने फ्रांस के नॉरमैण्डी शहर के निकट समुद्र तट पर नौसेना द्वारा बहुत बड़ा हमला किया। साथ ही वायुसेना ने हज़ारों छाताधारी सैनिक उस इलाके में उतारे गये। इन छाताधारी सैनिकों के साथ उन्होंने रबर के बने बहुत से पुतले भी, जिन्हें ’रूपर्ट’ नाम दिया गया था, शत्रु की सेना के पीछे उतारे, जिससे शत्रु को पीछे से हमले की गलतफहमी हो और वह असमंजस में पड़ जाए। पुतलों को अपने पीछे ज़मीन पर उतरते देख कई जर्मन चौकियों का ध्यान उनसे लड़ने की ओर चला गया जिससे उनकी सुरक्षा पंक्ति कमज़ोर हो गई और असली सैनिकों को पांव जमाने का अवसर मिल गया।

इस तरह के धोखे को हम दुशमन के इरादों को नाकाम करने और युद्ध लड़ने की एक जायज़ नीति कह सकते हैं, किंतु शैतान द्वारा हमें ऐसे ही किसी धोखे में फंसाना, कभी स्वीकार्य नहीं होना चाहिये। पौलुस ने समझाया कि, "यह कुछ अचम्भे की बात नहीं क्‍योंकि शैतान आप भी ज्योतिमर्य स्‍वर्गदूत का रूप धारण करता है" और "शैतान के सेवक भी धर्म के सेवकों का सा रूप धारण करते हैं" ( २ कुरिन्थियों ११:१४, १५)।

हमें सचेत रहना है! हमारा आत्मिक शत्रु सदा इस प्रयास में रहता है कि मसीह के अनुयायी झूठी शिक्षा और गलत सिद्धांतों को मानकर गलत रास्ते पर चल निकलें। परन्तु यदि हम अपना ध्यान प्रभु यीशु मसीह पर और उसके वचन की स्पष्ट शिक्षाओं पर केंद्रित रखते हैं तो प्रभु से हमें सही दिशा निर्देश मिलता रहेगा।

धोखे से सावधान, शैतान के ’रूपर्टों’ से सचेत रहो। - बिल क्राउडर


परमेश्वर का सत्य शैतान के झूठ को उजागर कर देता है।

यह कुछ अचम्भे की बात नहीं क्‍योंकि शैतान आप भी ज्योतिमर्य स्‍वर्गदूत का रूप धारण करता है। - २ कुरिन्थियों ११:१४, १५


बाइबल पाठ: २ कुरिन्थियों ११:३, ४, १२-१५

परन्‍तु मैं डरता हूं कि जैसे सांप ने अपनी चतुराई से हव्‍वा को बहकाया, वैसे ही तुम्हारे मन उस सीधाई और पवित्रता से जो मसीह के साथ होनी चाहिए कहीं भ्रष्‍ट न किए जाएं।
यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले, जो पहिले न मिला था, या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता।
परन्‍तु जो मैं करता हूं, वही करता रहूंगा, कि जो लोग दांव ढूंढ़ते हैं, उन्‍हें मैं दांव न पाने दूं, ताकि जिस बात में वे घमण्‍ड करते हैं, उस में वे हमारे ही समान ठहरें।
क्‍योंकि ऐसे लोग झूठे प्रेरित, और छल से काम करने वाले, और मसीह के प्रेरितों का रूप धरने वाले हैं।
और यह कुछ अचम्भे की बात नहीं क्‍योंकि शैतान आप भी ज्योतिमर्य स्‍वर्गदूत का रूप धारण करता है।
सो यदि उसके सेवक भी धर्म के सेवकों का सा रूप धरें, तो कुछ बड़ी बात नहीं परन्‍तु उन का अन्‍त उन के कामों के अनुसार होगा।

एक साल में बाइबल:
  • भजन १००-१०२
  • १ कुरिन्थियों १

मंगलवार, 17 अगस्त 2010

स्तुति का नया गीत

पास्टर विलिस को ९४ वर्ष की आयु में एक बुज़ुर्गों की देख भाल करने वाली संस्था में भर्ती कराया गया। एक से दूसरे स्थान जाने के लिये पहिये वाली कुर्सी पर निर्भर होने पर भी, उन्होंने आनन्द के साथ बताया कि कैसे इस संस्था में भर्ती होने के द्वारा परमेश्वर ने उन्हें सुसमाचार प्रचार का नया क्षेत्र दिया है। कुछ वर्ष पश्चात जब वह पूर्णत्य: शय्याग्रस्त हो गये तो वे बड़े जोश के साथ परमेश्वर की ओर मुंह रखने की सबसे उत्तम स्थिति में होने के बारे में बात करते थे। जब १०० वर्ष की आयु में उनका देहान्त हुआ तो वे अपने पीछे जीवन के हर मोड़ पर परमेश्वर की स्तुति का एक नया गीत गाने की विरासत छोड़ कर गए।

भजन ९८ हमें परमेश्वर के लिये एक नया गीत गाने के लिये प्रेरित करता है "क्योंकि उस ने आश्चर्य कर्म किए हैं! उसके दहिने हाथ और पवित्रा भुजा ने उसके लिये उद्धार किया है!" (भजन ९८:१)। हमें मुश्किल परिस्थितियों में भी उसकी स्तुति करनी चाहिये क्योंकि "...अपनी करूणा और सच्चाई की सुधि ली..." (पद ३)। यद्यपि यह भजन परमेश्वर द्वारा इस्त्राएलियों को बंधुआई से छुड़ाए जाने के बारे में है, यह आने वाले समय में प्रभु यीशु द्वारा पाप की गुलामी से मिलने वाली स्वतंत्रता की और उसके न्याय की भविष्यद्वाणी भी है। जब हम याद करते हैं कि परमेश्वर ने हमारे लिये क्या कुछ किया है तो हम उस पर भरोसा भी रख सकते हैं कि वह आज की मुश्किलों और आने वाले समय की अनिश्चित्ताओं में भी हमारी सहायता करेगा।

भजनकार ने लिखा "समुद्र और उस में की सब वस्तुएं गरज उठें, जगत और उसके निवासी महाशब्द करें! नदियां तालियां बजाएं, पहाड़ मिलकर जयजयकार करें। यह यहोवा के साम्हने हो, क्योंकि वह पृथ्वी का न्याय करने को आनेवाला है। वह धर्म से जगत का, और सीधाई से देश देश के लोगों का न्याय करेगा" (पद ७-९)। आइये हम भी परमेश्वर की सृष्टि के साथ मिलकर अपने उद्धारकर्ता की स्तुति करें। - अल्बर्ट ली


परमेश्वर के साथ स्वर मिलाने वाल हृदय ही उसकी स्तुति के गीत गा सकता है।


हे सारी पृथ्वी के लोगों यहोवा का जय जय कार करो, उत्साह पूर्वक जयजयकार करो, और भजन गाओ! - भजन ९८:४


बाइबल पाठ: भजन ९८

यहोवा के लिये एक नया गीत गाओ, क्योंकि उस ने आश्चर्यकर्म किए है! उसके दहिने हाथ और पवित्रा भुजा ने उसके लिये उद्धार किया है!
यहोवा ने अपना किया हुआ उद्धार प्रकाशित किया, उस ने अन्य जातियों की दृष्टि में अपना धर्म प्रगट किया है।
उस ने इस्राएल के घराने पर की अपनी करूणा और सच्चाई की सुधि ली, और पृथ्वी के सब दूर दूर देशों ने हमारे परमेश्वर का किया हुआ उद्धार देखा है।
हे सारी पृथ्वी के लोगों यहोवा का जयजयकार करो, उत्साह पूर्वक जयजयकार करो, और भजन गाओ!
वीणा बजाकर यहोवा का भजन गाओ, वीणा बजाकर भजन का स्वर सुनाओ।
तुरहियां और नरसिंगे फूंक फूंककर यहोवा राजा का जयजयकार करो।
समुद्र और उस में की सब वस्तुएं गरज उठें, जगत और उसके निवासी महाशब्द करें!
नदियां तालियां बजाएं, पहाड़ मिलकर जयजयकार करें।
यह यहोवा के साम्हने हो, क्योंकि वह पृथ्वी का न्याय करने को आनेवाला है। वह धर्म से जगत का, और सीधाई से देश देश के लोगों का न्याय करेगा।

एक साल में बाइबल:
  • भजन ९७-९९
  • रोमियों १६

सोमवार, 16 अगस्त 2010

प्रभुत्व की पहचान

बालकपन में मुझे एक फिल्म Little Lord Fauntleroy देखना बहुत पसन्द था। यह फिल्म एक बालक सेडरिक की कहानी है जो अपनी मां के साथ न्यूयॉर्क में गरीबी की हालत में रहता है। एक दिन उसे समाचार मिलता है कि वह इंग्लैंड के एक कुलीन परिवार का सीधा वंशज है और बड़ी संपत्ति का उत्तराधिकारी है। न्यूयॉर्क की सड़कों पर खेलने वाला यह गरीब बालक अब अचानक ही इंग्लैंड की सड़कों पर लोगों से जयज्यकार के नारे सुनने और राजसी ठाठ के साथ चलने वाला व्यक्ति बन जाता है।

यदि आपने यीशु को नासरत की सड़कों पर खेलते देखा होता तो आपने उस पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया होता। यदि उसे उसकी बढ़ई की दुकान में काम करते देखते तो उसके देवत्व के बारे में आपको आभास भी न होता। और यदि आपने उसे क्रूस पर लटके देखा होता, और आप उसमें निहित महान रहस्य को नहीं जानते, तो उस हृदय विदारक दृष्य ने आपको उसका आदर करने को कतई न उभारा होता।

लेकिन अपने मृत्कों में से पुनुरुत्थान के द्वारा यीशु ने अपनी सच्ची पहिचन संसार के सामने रख दी, कि वह सर्वोत्तम, सर्वश्रेष्ठ और सर्वोच्च महाराजाधिराज है! जबकि "...परमेश्वर ने उसको अति महान भी किया, और उसको वह नाम दिया जो सब नामों में श्रेष्‍ठ है" (फिलिप्पियों २:९) इसलिये आइये हम बड़े आदर के साथ उसकी आराधना करें, जिसने इतनी नम्रता से अपना समर्पण किया और अपना बलिदान दिया ताकि वह हमारे लिये पाप और मृत्यु पर विजयी महाराजाधिराज हो सके। - जो स्टोवैल


परमेश्वर द्वारा निर्धारित राजाधिकारी को पहिचानिये, उसका आदर कीजिये, उसकी उपासना कीजिये।

..जो स्‍वर्ग में और पृथ्वी पर और जो पृथ्वी के नीचे हैं, वे सब यीशु के नाम पर घुटना टेकें। और परमेश्वर पिता की महिमा के लिये हर एक जीभ अंगीकार कर ले कि यीशु मसीह ही प्रभु है। - फिलिप्पियों २:१०, ११


बाइबल पाठ: फिलिप्पियों २:५-११

जैसा मसीह यीशु का स्‍वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्‍वभाव हो।
जिस ने परमेश्वर के स्‍वरूप में होकर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्‍तु न समझा।
वरन अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्‍वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया।
और मनुष्य के रूप में प्रगट होकर अपने आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली।
इस कारण परमेश्वर ने उसको अति महान भी किया, और उसको वह नाम दिया जो सब नामों में श्रेष्‍ठ है।
कि जो स्‍वर्ग में और पृथ्वी पर और जो पृथ्वी के नीचे हैं, वे सब यीशु के नाम पर घुटना टेकें।
और परमेश्वर पिता की महिमा के लिये हर एक जीभ अंगीकार कर ले कि यीशु मसीह ही प्रभु है।

एक साल में बाइबल:
  • भजन ९४-९६
  • रोमियों १५:१४-३३