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रविवार, 17 जून 2012

सताव क्यों?

   सताव का सामना हम में से सभी को किसी न किसी समय, और किसी न किसी रूप में करना ही पड़ता है; चाहे वह परिवार में हो, समाज में हो, व्यवसाय में हो या अन्य कहीं हो। सताव को सहना और भी कठिन हो जाता है जब वह अनुचित हो, हमारे किसी बुराई में संभागी ना होने के कारण हम पर लाया जाए। जीवन में सताव के उद्देश्य को समझ पाना कठिन है, विशेषकर जब वह धार्मिकता के कारण या धर्मी जनों पर पड़े। मसीही विश्वासियों को तो मसीही विश्वास के आरंभ से ही, अपने प्रभु यीशु के समान, सताव और ताड़ना का सामना करना पड़ रहा है।

   सताव से संबंधित कुछ बातें हैं जो हमें इसे समझने में सहायक होंगी:
१. सताव हमें संसार के हर व्यक्ति के लिए पापों के प्रभाव से छुटकारे की अति महत्वपूर्ण तथा तुरंत आवश्यक्ता को स्मरण दिलाता है।
२. सताव द्वारा हम परमेश्वर की सामर्थ पर अपनी निर्भरता और एक दूसरे के सहारे, उनके साथ सहृदयता तथा प्रेम से रहने की आवश्यक्ता को समझ पाते हैं।
३. सताव के समय हम आवश्यक्ता और सुख-विलास की वस्तुओं में भेद करना समझते हैं।
४. सताव के समय हम सुसमाचार के सन्देशों के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं, क्योंकि हम अपनी दुर्दशा में परमेश्वर की ओर हाथ बढ़ाने से नहीं हिचकिचाते।

   परमेश्वर की दृष्टि सताव में पड़े लोगों के पक्ष में रहती है, वह उनके पक्ष में कार्य करता है, यह शिक्षा प्रभु यीशु द्वारा दिये गए पहाड़ी उपदेश और उनकी अन्य शिक्षाओं में दिखाई देती है। प्रभु यीशु ने कहा: "जो पहले हैं वे पिछले होंगे" (मत्ती १९:३०; मरकुस १०:३१; लूका १३:३०); "जो अपने आप को दीन करेगा, वह बड़ा किया जाएगा" (लूका १४:११; १८:१४)। किंतु परमेश्वर सताए हुओं के प्रति विशेष ध्यान देता है; उन पर जो दरिद्र और लाचार हैं, भूखे और आवश्यक्ता में हैं, जो शोक में हैं। ऐसों को परमेश्वर का वचन "धन्य" कहता है (मत्ती ५:३-६), क्योंकि वे परमेश्वर पर आश्रित हैं और परमेश्वर उनके पक्ष में रहता है।

   जो धनवान हैं, सफल और समृद्ध हैं, शारीरिक रूप से सक्षम हैं तथा अपने प्रति परमेश्वर के अनुग्रह को नहीं पहचानते, वे अपनी इन योग्यताओं पर भरोसा रख कर अपना ध्यान सांसारिक उपलबधियों की ओर लगा कर रखते हैं, घमंड में पड़ जाते हैं, अनुचित कार्य करते हैं और नाशमान वस्तुओं के संचय में लग जाते हैं, और अपने लिए अनन्त विनाश की कटनी काटते हैं। परन्तु जो कमी-घटी में पड़े हैं, असक्षम हैं और जीवन से निराश हैं, वे परमेश्वर पर भरोसा रख कर, उसके प्रेम और अनुग्रह को स्वीकार करने में कम ही संकोच करते हैं, और अनन्त काल के लिए आशीषित हो जाते हैं।

   इसीलिए प्रभु यीशु ने कहा, "धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं, क्‍योंकि स्‍वर्ग का राज्य उन्‍हीं का है" (मत्ती ५:३)। - फिलिप यैन्सी


हम जितना कम अपने आप पर निर्भर होते हैं, उतना अधिक परमेश्वर पर निर्भर हो सकते हैं।


धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं, क्‍योंकि स्‍वर्ग का राज्य उन्‍हीं का है। - मत्ती ५:३

बाइबल पाठ: मत्ती ५:१-१२
Mat 5:1   वह इस भीड़ को देख कर, पहाड़ पर चढ़ गया; और जब बैठ गया तो उसके चेले उसके पास आए।
Mat 5:2  और वह अपना मुंह खोल कर उन्‍हें यह उपदेश देने लगा,
Mat 5:3  धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं, क्‍योंकि स्‍वर्ग का राज्य उन्‍हीं का है।
Mat 5:4  धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं, क्‍योंकि वे शांति पाएंगे।
Mat 5:5  धन्य हैं वे, जो नम्र हैं, क्‍योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे।
Mat 5:6  धन्य हैं वे, जो दयावन्‍त हैं, क्‍योंकि उन पर दया की जाएगी।
Mat 5:7  धन्य हैं वे, जिन के मन शुद्ध हैं, क्‍योंकि वे परमेश्वर को देखेंगे।
Mat 5:8  धन्य हैं वे, जो मेल करवाने वाले हैं, क्‍योंकि वे परमेश्वर के पुत्र कहलाएंगे।
Mat 5:9  धन्य हैं वे, जो धर्म के कारण सताए जाते हैं, क्‍योंकि स्‍वर्ग का राज्य उन्‍हीं का है।
Mat 5:10  धन्य हो तुम, जब मनुष्य मेरे कारण झूठ बोल बोलकर तुम्हरो विरोध में सब प्रकार की बुरी बात कहें।
Mat 5:11 आनन्‍दित और मगन होना क्‍योंकि तुम्हारे लिये स्‍वर्ग में बड़ा फल है इसलिये कि उन्‍होंने उन भविष्यद्वक्ताओं को जो तुम से पहिले थे इसी रीति से सताया था।
Mat 5:12 तुम पृथ्वी के नमक हो, परन्‍तु यदि नमक का स्‍वाद बिगड़ जाए, तो वह फिर किस वस्‍तु से नमकीन किया जाएगा?


एक साल में बाइबल: 

  • नेहेमियाह ७-९ 
  • प्रेरितों ३