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रविवार, 9 सितंबर 2018

प्रेम



      जैसे-जैसे प्रभु यीशु का प्रिय शिष्य यूहन्ना वृद्ध होता गया, उसकी शिक्षाएँ अधिकाधिक सीमित होती गईं, और उसकी शिक्षाओं का केंद्रबिंदु परमेश्वर का प्रेम ही हो गया, जैसा परमेश्वर के वचन बाइबल में उसकी लिखी तीनों पत्रियों में हम देखते हैं। अपनी पुस्तक Knowing the Truth of God’s Love में  पीटर क्रीफ्ट एक पुरानी किंवदंती के हवाले से लिखते हैं कि यूहन्ना का एक शिष्य उसके पास शिकायत के भाव से आया और बोला, “आप किसी और बात के बारे में बात क्यों नहीं करते हैं?” यूहन्ना ने उत्तर दिया, “क्योंकि और कुछ है ही नहीं!”

      अवश्य ही प्रभु यीशु के उद्देश्य और सन्देश का मर्म परमेश्वर का प्रेम ही है। यूहन्ना ने अपने लिखे सुसमाचार में लिखा, “क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए” (यूहन्ना 3:16)।

      प्रेरित पौलुस हमें बताता है कि हमारे जीवन जीने एवं व्यवहार का केन्द्र परमेश्वर का प्रेम ही है, और वह हमें स्मरण करवाता है कि, “क्योंकि मैं निश्चय जानता हूं, कि न मृत्यु, न जीवन, न स्वर्गदूत, न प्रधानताएं, न वर्तमान, न भविष्य, न सामर्थ, न ऊंचाई, न गहिराई और न कोई और सृष्टि, हमें परमेश्वर के प्रेम से, जो हमारे प्रभु मसीह यीशु में है, अलग कर सकेगी” (रोमियों 8:38-39)।

      परमेश्वर का प्रेम इतना सामर्थी, उपलब्ध और स्थिरता प्रदान करने वाला है कि हम पूरे भरोसे के साथ प्रत्येक दिन में प्रवेश कर सकते हैं इस जानकारी के साथ के सभी भली बातें उसके हाथों से मिलने वाले उपहार हैं, और सभी चुनौतियों का हम उसकी सामर्थ्य द्वारा सामना कर सकते हैं। सारे जीवन में, जो सबसे महत्वपूर्ण बात है वह है प्रेम। - बिल क्राउडर


जब अन्य सभी कुछ गिर चुकता है, परमेश्वर का प्रेम फिर भी स्थिर खड़ा रहता है।

पर अब विश्वास, आशा, प्रेम थे तीनों स्थाई है, पर इन में सब से बड़ा प्रेम है। - 1 कुरिन्थियों 13:13

बाइबल पाठ: 1 यूहन्ना 4:7-19
1 John 4:7 हे प्रियों, हम आपस में प्रेम रखें; क्योंकि प्रेम परमेश्वर से है: और जो कोई प्रेम करता है, वह परमेश्वर से जन्मा है; और परमेश्वर को जानता है।
1 John 4:8 जो प्रेम नहीं रखता, वह परमेश्वर को नहीं जानता है, क्योंकि परमेश्वर प्रेम है।
1 John 4:9 जो प्रेम परमेश्वर हम से रखता है, वह इस से प्रगट हुआ, कि परमेश्वर ने अपने एकलौते पुत्र को जगत में भेजा है, कि हम उसके द्वारा जीवन पाएं।
1 John 4:10 प्रेम इस में नहीं कि हम ने परमेश्वर से प्रेम किया; पर इस में है, कि उसने हम से प्रेम किया; और हमारे पापों के प्रायश्‍चित्त के लिये अपने पुत्र को भेजा।
1 John 4:11 हे प्रियो, जब परमेश्वर ने हम से ऐसा प्रेम किया, तो हम को भी आपस में प्रेम रखना चाहिए।
1 John 4:12 परमेश्वर को कभी किसी ने नहीं देखा; यदि हम आपस में प्रेम रखें, तो परमेश्वर हम में बना रहता है; और उसका प्रेम हम में सिद्ध हो गया है।
1 John 4:13 इसी से हम जानते हैं, कि हम उस में बने रहते हैं, और वह हम में; क्योंकि उसने अपने आत्मा में से हमें दिया है।
1 John 4:14 और हम ने देख भी लिया और गवाही देते हैं, कि पिता ने पुत्र को जगत का उद्धारकर्ता कर के भेजा है।
1 John 4:15 जो कोई यह मान लेता है, कि यीशु परमेश्वर का पुत्र है: परमेश्वर उस में बना रहता है, और वह परमेश्वर में।
1 John 4:16 और जो प्रेम परमेश्वर हम से रखता है, उसको हम जान गए, और हमें उस की प्रतीति है; परमेश्वर प्रेम है: जो प्रेम में बना रहता है, वह परमेश्वर में बना रहता है; और परमेश्वर उस में बना रहता है।
1 John 4:17 इसी से प्रेम हम में सिद्ध हुआ, कि हमें न्याय के दिन हियाव हो; क्योंकि जैसा वह है, वैसे ही संसार में हम भी हैं।
1 John 4:18 प्रेम में भय नहीं होता, वरन सिद्ध प्रेम भय को दूर कर देता है, क्योंकि भय से कष्‍ट होता है, और जो भय करता है, वह प्रेम में सिद्ध नहीं हुआ।
1 John 4:19 हम इसलिये प्रेम करते हैं, कि पहिले उसने हम से प्रेम किया।


एक साल में बाइबल: 
  • नीतिवचन 6-7
  • 2 कुरिन्थियों 2