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रविवार, 31 जनवरी 2010

दीवार में दरार

४००० मील लंबी चीन कि बड़ी दीवार उत्तर के आक्रमणकारियों को रोकने को बनाई गयी। पहली दीवार इसवीं पूर्व २५९-२१० के बीच रहे चीन के सम्राट शी हुआंगडी ने बनाई थी। १६४४ ईस्वीं में मानचूस जाति ने चीन की बड़ी दीवार को भेद दिया और चीन को पराजित किया। उन्होंने मिंग वंश के एक सेनापति को घूस दी और उसने दीवार का फाटक खोल दिया।

प्राचीन यरूशलेम के पुनर्निर्माण के समय नहेमयाह ने शहरपनाह के पुनर्निर्माण में बाधा डालने वाले बैरियों से होने वाले खतरे को समझा। इसलिए उसने बहुत सावधानी बरतने की आज्ञा दी। आधे लोग निर्माण में लगते थे तो आधे निगरानी के काम में रहते थे (नहेमयाह ४:१३-१८)।

हम मसीहीयों को सावधानी बरतनी है कि हमारी आत्मिक सुरक्षा कमज़ोर पड़ने न पाए। बहुत परिपक्व विश्वासी भी इस सावधानी में ज़रा भी ढील नहीं कर सकते।

प्रेरित युहन्ना हमें तीन प्रकार के शत्रुओं से सावधान करता है - "शरीर की अभिलाषा, आंखों की अभिलाषा और जीविका का घमंड" (१ युहन्ना २:१६)। ये शत्रु हमें लुभा कर परमेश्वर और उसके वचन से दूर करते हैं और शत्रु के अन्दर आने के लिये दरार बना डालते हैं।

हम ऐसे प्रलभनों से सचेत रहें। थोड़ी सी चूक पाप के लिये द्वार खोल देती है, जो बढ़कर फिर आदत बन जाती है और फिर हमें पूरी तरह अपने वश में कर लेती है। दीवार में दरार होने ही न दो। - सी.पी.हिया


संसार और उसकी अभिलाषाएं दोनो मिटते जाते हैं, पर जो परमेश्वर की इच्छा पर चलता है वह सर्वदा बना रहेगा। - १ युहन्ना २:१७

शरीर की अभिलाषा और आंखों की अभिलाषा और जीविका का घमंड, वह पिता की ओर से नहीं है। - १ युहन्ना २:१६

बाइबल पाठ: नहेमयाह ४:७-१८

एक साल में बाइबल:
  • निर्गमन २५, २६
  • मत्ती २०:१७-३४

शनिवार, 30 जनवरी 2010

रोपने का समय

इस समय संसार में कहीं न कहीं कोई किसान बीज बोता होगा। कुछ समय में वे बीज अपने बोये गये स्थान को ही बदलने लगेंगे। अच्छी तरह तैयार की गई मिट्टी की भूमी जो आज वीरान दिखती है, जल्द ही फसल काटने को तैयार खेत बनेगी।

इसी तरह नये साल के निर्णय दुसरों के और हमारे जीवन की भूमि को बदलने वाले बीज हो सकते हैं। असिसी के सन्त फ्रांसिस की प्रार्थना दुख भरे संसार में अच्छा परिवर्तन लाने की आशा का एक सामर्थी नमूना है: "हे प्रभु मुझे शांति का साधन बना दे। जहां घृणा है, वहां मैं प्रेम बोऊं; चोट की जगह क्षमा; सन्देह की जगह विश्वास; निराशा की जगह आशा; अन्धेरे की जगह ज्योति और दुख की जगह खुशी बोने पाऊं"

गेंहूं बोने वाले किसान गेहूं के पौधे उगते देखता है तो उसे कभी आश्चर्य नहीं होता। यह बोने और काटने का विश्वव्यापी नियम है। पौलुस ने इसका आत्मिक सिद्धांत के दृष्टांत के रूप में प्रयोग किया: "धोखा न खाओ, परमेश्वर ठट्ठों में नहीं उड़ाया जाता, क्योंकि मनुष्य जो कुछ बोता है वही काटेगा" (गलतियों ६:७)। हमारी पाप प्रवृति कहती है, "स्वयं को सन्तुष्ट करो" लेकिन पवित्र आत्मा हमें परमेश्वर को सन्तुष्ट करने की प्रेरणा देता है (पद ८)।

आज बोने का समय है। परमेश्वर की प्रतिज्ञा है, "हम भले काम करने में हियाव न छोड़ें, क्योंकि यदि हम ढीले न हों तो ठीक समय पर कटनी काटेंगे" (पद ९)। - डेविड मैक्कैसलैन्ड

जो तुम कल काटना चाहते हो, उसे आज बो देना।

धोखा न खाओ, परमेश्वर ठट्ठों में नहीं उड़ाया जाता; क्योंकि मनुष्य जो कुछ बोता है, वही काटेगा। - गलतियों ६:७

बाइबल पाठ: गलतियों ६:६-१०

एक साल में बाइबल:
  • निर्गमन २३, २४
  • मत्ती २०:१-१६

शुक्रवार, 29 जनवरी 2010

बुढ़ापे की ओर कदम बढ़ाना

मेरे मित्र ने हाल में अपना ६०वां जन्म दिन मनाया, उसके साथ प्रातःकाल का नाश्ता करते समय हमने उस आयु में होने वाली घबराहट की चर्चा की और ६० साल के होने के सब परिणामों, जैसे अवकाश प्रप्ति, पेंशन तथा ऐसी अन्य बातों के बारे में बातें कीं। हमने यह भी सोचा कि इतनी बड़ी आयु का होने पर भी वह अपने आप को उससे बहुत कम उम्र का महसूस कर रहा था।

फिर वह अपने जीवन के ६० सालों के अनुभवों से मिली शिक्षाओं, खुशियों और आशिर्वादों के बारे में बोलने लगा, फिर उसने कहा "जानते हो, यह अनुभव इतना बुरा भी नहीं है, वास्तव में तो यह बहुत रोमांचक है। " भूतकाल के अनुभवों से मिली उन शिक्षाओं ने वर्तमान के प्रति उसके दृष्टिकोण को एक नया नज़रिया दिया।

यह बूढ़े होने की प्रक्रिया है। हम वर्तमान के जीवन को जीने की शिक्षा अपने बीते कल से पाते हैं। भजनकर्ता भी यही कहता है, "हे प्रभु यहोवा, मैं तेरी ही बाट जोहता आया हूँ, बचपन से मेरा आधार तू है" (भजन ७१:५)। फिर उसने कहा, "मैं गर्भ से निकलते ही तुझसे संभाला गया; मुझे माँ की कोख से तू ही ने निकाला; इसलिये मैं नित्य तेरी स्तूति करता रहूंगा" (पद ६)। भजनकर्ता ने अपने अतीत को देखा तो परमेश्वर की विश्वासयोग्यता को स्पष्टता से देखा। उस विश्वासयोग्यता पर निरभर रहकर वह भविष्य और उसकी अनिशचितताओं का सामना कर सका, हम भी वैसा कर सकते हैं।

हम भजनकर्ता के साथ कहें, हे मेरे परमेश्वर, मैं तेरी आराधना करुंगा और तेरी विश्वासयोग्यता का धन्यवाद करूंगा" (पद २२)। - बिल क्राउडर

उम्र तो जुड़ती (add) है लेकिन परमेश्वर की विश्वासयोग्यता गुणा (multiply) होती है

बुढ़ापे के समय मेरा त्याग न कर; जब मेरा बल घटे तब मुझको छोड़ न दे। - भजन ७१:९

बाइबल पाठ: भजन ७१

एक साल में बाइबल:
  • निर्गमन २१, २२
  • मत्ती १९

गुरुवार, 28 जनवरी 2010

मरफी के नियम

मरफी के नियम जीवन के अनुभवों से निकाले गये निष्कर्ष हैं। शायद आपने यह सुना होगा, "कुछ ग़लत होना है तो ज़रूर होगा।" एक और नियम है, "आप ऐसे ही कुछ नहीं कर सकते, हर काम का कोई परिणाम ज़रूर होता है।"

मेरा अनुभव भी मरफी के नियमों को साबित करता है। ऊपर कहे हुए दूसरे नियम को मैं आदर्ष नियम मानकर दीवार पर लटकाने योग्य मानता हूँ। गलत चुनाव के दुष्परिणाम होते हैं। उदाहरण के लिए अगर हम सुख-विलास के लिए जीवन बिताते हैं, तो वह हमारी सन्तानों, पोतों और परपोतों को प्रभावित करेगा (निर्गमन २०:४,५)।

अगर हम परमेश्वर से अलग होकर चलते हैं तो हमारे बच्चे भी उसी रास्ते को अपना लेते हैं, जो हमने लिया। बाद में अगर हम परमेश्वर की ओर मुड़ेंगे तौभी शायद वे नहीं मुड़ेंगे।

परन्तु अच्छी खबर यह है कि परमेश्वर के प्रति भक्ति के अच्छे परिणाम होते हैं। विश्वास का जीवन बिताने वाले माँ-बाप का अच्छा प्रभाव उनकी सन्तानों पर होता है। अगर वे लंबे काल तक जीवित रहेंगे तो कई पीढ़ी तक अपने विश्वास का फल देख सकते हैं। अपनी सन्तानों को मसीह के लिए जीते हुए देखने में बूढ़े लोगों को कितनी सन्तुष्टि होती है।

मरफी और बाइबल इस एक बात में सहमत हैं कि "हर कार्य के परिणाम होते हैं।" - हैडौन रोबिन्सन

जो मसीह के पीछे चलते हैं वे दूसरों को सही दिशा में ले चलते हैं।

बाइबल पाठ: तू मुझे छोड़ दूसरों को ईश्वर करके न मानना। - निर्गमन २०:३

एक साल में बाइबल:
  • निर्गमन १९,२०
  • मत्ती १८:२१-३५

बुधवार, 27 जनवरी 2010

प्रार्थना के घेरे

छठे दरजे में पढ़ने वाली लड़कियां, एक दूसरे के लिए बाइबल अध्ययन समूह में बारी बारी से एक दूसरे के लिये प्रार्थना कर रहीं थीं। अन्ना ने प्रार्थना की, "हे स्वर्ग में हमारे पिता, तोनिया को लड़कों के प्रति इतना दीवाना होने से बचावें।" तोनिया ने हंसकर प्रार्थना में जोड़ दिया कि, " और अन्ना की मदद करें कि वह स्कूल में अपना खराब व्याहार बन्द करे तथा दूसरों को तंग करना बन्द कर दे।" फिर तालिया ने प्रार्थना की, "हे प्रभु, तोनिया की मदद करें कि वह माँ का कहना माने और उससे ढिटाई न करे"।

लड़कियों की प्रार्थनाओं के विष्य तो सही थे, लेकिन वे सबके के सामने एक दूसरे की कमियां प्रगट करके परिहास कर रहीं थीं; उन्हें अपने लिए परमेश्वर की आवश्यक्ता की परवाह नहीं थी। उनकी अगुवाई करने वाली लड़की ने उन्हें याद दिलाया कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर से वार्तलाप करना गंभीर बात है और इसके लिये सव्यं अपने मन की जांच करना आवश्यक है।

अगर हम प्रार्थना का उपयोग अपने दोषों को बिना देखे, दूसरों की गलतियां निकालने के लिये करते हैं, तो हम यीशु द्वारा दिये गये दृष्टांत के फरीसी जैसे होंगे, जिसने प्रार्थना की, "हे परमेश्वर मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ कि मैं और मनुष्यों की नाईं अन्धेर करने वाला, अन्यायी और व्यभिचारी नहीं, और न ही इस चुंगी लेने वाले के समान हूँ" (लूका १८:११)। इसके विपरीत हमें इसी दृष्टांत के उस मनुष्य के समान होना चाहिये जिसने केवल इतना ही कहा "हे परमेश्वर मुझ पापी पर दया कर" (पद १३)।

हम चौकस रहें कि हमारी प्रार्थनाएं दूसरों की गलतियों की सूची न बन जाएं। परमेश्वर को वह प्रार्थना पसन्द है जो दीनता के साथ हमारे पापी हृदय के सच्चे मूल्यांकन से निकलती है। - ऐन्नी सेटास

उच्चतम प्रार्थना नम्र हृदय की गहराई से निकलती है।

जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा, वह छोटा किया जाएगा। - लूका १८:१४ बाइबल पाठ: लूका १८:९-१४ एक साल में बाइबल:
  • निर्गमन १६-१८
  • मत्ती १८:१-२०

मंगलवार, 26 जनवरी 2010

कॉड लिवर तेल पिलाना

एक औरत ने अपने कुत्ते को पिलाने के लिये कॉड लिवर तेल की एक बोतल खरीदी, ताकि कुत्ते के बाल स्वस्थ और चमकदार बने। हर सुबह वह ज़बरदस्ती कुत्ते का मुंह खोलती और तेल उसके मुंह में डालती। कुत्ता विरोध करता था तो औरत और अधिक ज़बर्दस्ती करती थी, यह सोचकर कि ’कुत्ता नहीं जानता कि यह उसकी भलाई के लिए है’। वह प्रतिदिन नियम से इस प्रक्रिया को दोहराती थी।

एक दिन बोतल से तेल बाहर गिर गया, उसे पोंछने के लिए औरत ने एक मिनिट के लिए कुत्ते को छोड़ा। कुत्ते ने तेल सूंघा और उसे चाटने लगा। वास्तव में उसे तेल तो पसंद था, उसे स्त्री का ज़बर्दस्ती उसके मुंह में डालना पसंद नहीं था।

कभी कभी दूसरों को मसीह के बारे में बताने के लिए हम भी ऐसा ही की करते हैं। हम लोगों का सामना करके उनपर हावी होना चाहते हैं। हमारी सुसमाचार प्रचार करने की अभिलाषा सच्ची तो होती है, परन्तु अपने कहने के तरीके से हम सुनने वालों में विद्रोह की भावना पैदा कर देते हैं। हमारा ईमानदार, परन्तु अनावश्यक रूप से उत्साहपूर्ण प्रयास, प्रतिरोध उत्पन्न कर देता है।

हमें सुसमाचार सुनाने को कहा गया है, परन्तु किसी के मसीह को ग्रहण करने या उससे इन्कार करने के हम ज़िम्मेवार नहीं हैं। किसी को उसके पाप के लिए कायल करना हमारा नहीं, पवित्र आत्मा का काम है (युहन्ना १६:८)।

मसीह के बलिदान के विषय में दूसरों को बताते समय, हमें संवेदन्शील होना चाहिए। हमें नम्र और संयमी रहना चाहिए और परमेश्वर तथा उसके वचन को स्वयं लोगों को अपनी ओर आकर्शित करने का अवसर देना चहिए। - सिंडी हैस कास्पर


पवित्र आत्मा हममें पाप-बोध पैदा करता है, ताकि मसीह हमें शुद्ध करे।

बाइबल पाठ: यूहन्ना १६:८-११

जब वह सहायक आएगा, जिसे मैं तुम्हारे पास पिता की ओर से भेजुंगा, अर्थात सत्य क आत्मा जो पिता की ओर से निकलता है, तो वह मेरी गवाहि देगा। - यूहन्ना १५:२६

एक साल में बाइबल:
  • निर्गमन १४, १५
  • मत्ती १७


सोमवार, 25 जनवरी 2010

आशिर्वादी अनुग्रह

हमारी मण्डली ने प्रातः की आराधना के अंत में एक नया रिवाज़ शुरू किया। हम एक दुसरे की ओर घुमते हैं और यहोवा के द्वारा इस्त्राएल के लिए मूसा को दी गई हारुनी आशीश को एक दूसरे के लिए दोहराते हैं, कि "यहोवा तुझे आशीश दे और तेरी रक्षा करे; यहोवा तुझ पर अपने मुखः का प्रकाश चमकाए......"(गिनती ६:२४-२६)। एक दूसरे की ओर देखकर, एक सहविश्वासी को आशीर्वाद देने से हमारा हृदय उत्साहित होता है।

एक रविवार को मैंने विशेष और मर्मसपर्षी रूप में इस आशीर्वाद प्रक्रिया को देखा, जो अब हर हफ्ते करी जाती है। सामने के बेंच पर ऑस्कर और मारियन कार्लसन बैठे थे। वे प्रभु यीशु के साथ चलने वाले और अपने ६२ सालों के वैवाहिक जीवन में एक दूसरे के प्रति समर्पित दम्पति थे। जब हम आशीर्वादी अनुग्रह गाने लगे, तब ऑस्कर ने अपना हाथ बढ़ाकर मारियन के हाथ अपने हाथों में लिए, और दुसरों को अनुग्रह देने से पहले परस्पर देखकर एक दुसरे को आशीर्वाद दिया। उनके निकट खड़े लोगों ने उनके मुखः पर एक दुसरे के प्रति प्रेम एवं कोमलता को देखा।

आशीर्वाद देना, आराधना अंत करने का एक रिवाज़ मात्र नहीं है, वह एक दिल से निकली प्रार्थना है कि परमेश्वर की भलाई दूसरे के साथ बनी रहे। ऑस्कर और मारियन ने इसका गहरा अर्थ व्यक्त किया। जब हम दुसरों को आशीर्वाद देते हैं तो मसीह की मृत्यु के द्वारा परमेश्वर ने हम पर जो अनुग्रह किया है, उसके लिए हम अपनी कृतज्ञता भी प्रगट करते हैं (इब्रानियों १३:२०,२१)। - डैविड एग्नर

परमेश्वर हमें आशीशित करता है, ताकि हम दुसरों को आशीशित करें।

यहोवा तुझे आशीश दे और तेरी रक्षा करे। - गिनती ६:२४

बाइबल पाठ: गिनती :२२-२७

एक साल में बाइबल:
  • निर्गमन १२, १३
  • मत्ती १६

रविवार, 24 जनवरी 2010

छोटा सुन्दर है

कुछ दिन पहले मेरे एक मित्र के विषय में किसी ने कहा, "एक दिन यह एक बहुत बड़ी मसीही सेवाकाई संभालेगा।" उसका तात्पर्य था कि वह एक बड़ी प्रसिद्ध और धनी मण्डली के कार्य का संचालन करेगा।

मैं सोचने लगा कि हम क्यों यह सोचते हैं कि परमेश्वर का बुलावा बड़े कार्यों को चलाने से ही होता है? क्यों यह मान के चलें कि परमेश्वर अपने सबसे अच्छे कार्यकर्ताओं को एक छोटी जगह पर जीवन भर काम करने नहीं भेजेगा? क्या इन अन्जान जगहों में ऐसे लोग नहीं होते जिन्हें सुसमाचार सुनाना और सिखाना ज़रूरी है कि परमेश्वर नहीं चाहता कि किसी का नाश हो?

यीशु ने भीड़ की ओर ध्यान देने के साथ व्यक्ति की भी उपेक्षा नहीं की। अगर भीड़ उसके पास आई तो उसने बड़ी भीड़ को शिक्षा दी, परन्तु अगर अस्थिर लोगों ने उसे छोड़ दिया (युहन्ना ६:६६) तो उसने इससे घबराए बिना उन लोगों के साथ काम किया जिन्हें पिता ने उसे दिया।

हम ऐसी संसकृति में रहते हैं जहाँ ’अधिक’ और ’बड़ा’ सफलता के चिन्ह माने जाते हैं। इस पृव्रति का सामना करने के लिए एक दृढ़ और स्थिर जन होना अनिवार्य है, विशेषत्या तब जब आप एक छोटी जगह पर सेवकाई करते हों।

मूल्य आकार का नहीं, गुण का होता है। एक छोटी मण्डली के पास्टर हों, आप कोई छोटी बाइबल अद्‍धयन क्लास या रविवार की शाला चलाते हों, तो भी अपना सारा मन लगा कर उनकी सेवा, प्रार्थना, प्रेम, वचन और उदाहरण के द्वारा करो जिन्हें प्रभु ने तुम्हें सौंपा है। तुम्हारी छोटी सेवकाई बढ़प्पन के लिए सीड़ी नहीं है; वही बढ़प्पन है। - डेविड रोपर

अगर परमेश्वर उसमें है, तो थोड़ा भी बहुत होता है।

किसने छोटी बातों के दिन को तुच्छ जाना है? - ज़कर्याह ४:१०

बाइबल पाठ: यूहन्ना ६:५३-७१

एक साल में बाइबल:
  • निर्गमन ९-११
  • मत्ती १५:२१-३९


शनिवार, 23 जनवरी 2010

आकार और बढ़ाइए

आम तौर पर किसी लोकप्रीय होटल में अपने खाने की चीज़ों का ऑर्डर देने के बाद, पैसे लेने वाले क्लर्क अक्सर पूछते हैं "क्या आप अपने चयन को और बढ़ाना चाहते हैं?" उनके पूछने का अर्थ है कि क्या आप अपने ऑर्डर की मात्रा या विविधा बढ़ाना चहते हैं?

शायद जब हम प्रार्थना में परमेश्वर के सामने उपस्थित होते हैं, मेरा विश्वास है, वह पूछता है कि "क्या तू मेरे बारे में अपनी समझ को और विशाल करना चाहता है?"

यशायाह का एक ऐसा अनुभव था। उसके जीवन में एक दुखदाई अनुभव के द्वारा, यशायाह ने प्रभु को "ऊँचे पर विराजमान देखा" (यशायाह ६:१)। इस मुलाकात से परमेश्वर ने यशायह के मन में अपनी पवित्रता का ज्ञान बढ़ाया। उसने परमेश्वर की संपूर्ण नैतिक महानता देखी, जिसमें उसकी दूसरी सब विशेषताएं एकीकृत हुई।

परमेश्वर ने यशायाह का स्वयं का पाप-बोध भी बढ़ाया (पद ५)। इससे परमेश्वर की संपूर्ण पाप क्षमा और पवित्रीकरण के विष्य में भी उसकी समझ बढ़ी (पद ६,७)। जब यशायाह को अपने पापों की गहराई की सच्ची अनुभूति होती है, तभी वह परमेश्वर की क्षमा और शुद्धता ग्रहण कर सका। इस अनुभव ने उसे परमेश्वर के सामने समर्पण करने और उसके द्वारा निर्देशित कार्य को करने के लिए कटिबद्ध कर दिया, जिससे परमेश्वर उसका प्रयोग दूसरों को समझाने और मदद करने में कर सका।

आज हम परमेश्वर से माँगें कि उसकी महानता के विषय में वह हमारी समझ को और बढ़ाए। - मार्विन विलियम्स

परमेश्वर के विष्य में जानना आकर्षक हो सकता है, लेकिन परमेश्वर को व्यक्तिगत रीति से जानना जीवन बदल देता है।

बाइबल पाठ: यशायाह ६:१-२०

जिस वर्ष उज्जियाह राजा मरा, मैं ने प्रभु को बहुत ही ऊंचे सिंहासन पर विराजमान देखा; और उसके वस्त्र के घेर से मंदिर भर गया।-यशायाह ६:१

एक साल में बाइबल:
  • निर्गमन ७,८
  • मत्ती १५:१-२०

शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

विजय का परमेश्वर

यूनानी गाथाओं में नाईकी विजय की देवी थी। नईकी ने ओलिम्पियाई देवतों के पक्ष में सामर्थी टाईटन्स से युद्ध किया और विजय प्राप्त की। नाईकी की सामर्थ केवल युद्ध में ही नहीं प्रकट थी, वह खेल प्रतियोग्यताओं में जीतने के अभिलाषी खिलाड़ियों की भी इष्ट देवी थी। रोमियों ने उसे अपनी पूजा विधानों में स्थान दिया और उसका नाम विक्टोरिया कर दिया।

यूनानी-रोमी संसकृति में विजय को बड़ा महत्त्व मिलता था। इसलिए पौलुस ने मसीही सिद्धांतों की शिक्षा देने को ऐसे शब्दों का प्रयोग किया, जो उसके श्रोता समझते थे। अपने पत्रों में उसने मसीह को विजय की सैनिक यात्रा के नेता के रूप में चित्रित किया (२ कुरिन्थियों २:१४-१७)। उसने मसीही जीवन की तुलना पुराने ओलिम्पिक खेलों के शिक्षण से की (१ कुरिन्थियों ९:२४-२७)।

उसने हमारी हानि करने वालों के प्रति हमारे व्यवहार के संदर्भ में भी ’जीतने’ का प्रयोग किया; उसने कहा "भलाई से बुराई को जीत लो" (रोमियों १२:२१)। इसका अर्थ हुआ कि निंदा को दया से और दुरव्यवहार को शिष्टता से जीत लो। इन दोनो बातों को करने में हम अपनी शक्ति के बल पर प्रेम उत्पन्न नहीं कर सकते; परन्तु मसीह में हमें ऐसा करने की दिव्य सामर्थ मिलती है, जो गैरमसीही नहीं पाते।

यीशु मसीह वास्तव में विजय का परमेश्वर है। - डेनिस फिशर

अगर हम परमेश्वर के पक्ष में युद्ध करते हैं, तो वह हमें जयवन्त करता है।


बाइबल पाठ: २ कुरिन्थियों २:१४-१७

बुराई से न हारो, परन्तु भलाई से बुराई को जीत लो। - रोमियों १२:२१

एक साल में बाइबल:
  • निर्गमन ४-६
  • मत्ती १४:२२-३६

गुरुवार, 21 जनवरी 2010

परिपूर्ण वाक्य

जब मैं बालिका थी तो प्रतिदिन अपनी डायरी लिखती थी, तब मेरी अभिलाषा एक परिपूर्ण वाक्य बनाने की रहती थी। वह कैसा होगा? उसमें एक अच्छी क्रिया होगी और सुन्दर विशेषण।

परिपूर्ण वाक्य लिखने की मेरी अभिलाषा शायद कभी पूरी नहीं होगी, परन्तु निर्गमन ३:१४ वाक्य में मैंने एक परिपूर्ण कथन देखा। परमेश्वर ने जलती झाड़ी में से मूसा को बुलाया और कहा कि मिस्त्र से इस्त्रालियों को निकाल ले आने को वह चुना गया है (पद १०)। मूसा इस दायित्व के विष्य में बहुत चिंतित था कि अगर इस्त्रायली उसपर सन्देह करें और उससे पूछें कि उसे किसने भेजा तो वह क्या कहेगा?

परमेश्वर ने मूसा से कहा, "मैं जो हूँ सो हूँ" (पद १४)। अपने अनुपम नाम का प्रयोग करके यहोवा ने मूसा को एक वाक्य में अपने अनन्त अस्तित्व का परिचय दिया। आप कह सकते हैं कि यह परिपूर्ण वाक्य है।

बाइबल व्याख्याकर्ता जी. बुश परमेश्वर द्वारा दिए गए अपने परिचय के बारे में लिखते हैं, "वह जो दूसरों से अलग है, एकमात्र सच्चा परमेश्वर है, जो है....अनन्त, स्वयं-भू, अप्रिवर्तनशील परमेश्वर जो हमेशा था और हमेशा रहेगा।"

परमेश्वर कहता है, "मैं जो हूँ सो हूँ"। वह और उसका नाम परिपूर्ण हैं। हमें आदर और भक्ति से उसके सामने सिर झुकाना है। - ऐन्नि सेटास

संपूर्ण्ता खोजते हो? यीशु की ओर देखो।



बाइबल पाठ: निर्गमन ३:१३-१८

हे यहोवा, देवताओं में तेरे तुल्य कौन है? तू तो पवित्रता के कारण महाप्रतापी और अपनी स्तुति करने वालों के भय के योग्य और आश्चर्य कर्म का करता है।-निर्गमन १५:११

एक साल में बाइबल:
  • निर्गमन १-३
  • मत्ती १४:१-२१



बुधवार, 20 जनवरी 2010

शिष्टता के नियम

अमेरिका के राष्ट्रपति से मुलाकात के लिए अगर आपको उनके निवास "व्हाईट हाउस" में जाने का निमंत्रण मिले तो शायद आप अवश्य जाएंगे, चाहे उनके बारे में आपकी राय कुछ भी हो। वहाँ पहले आपसे एक अफसर मिलेगा जो आपको राष्ट्रपति से मिलने के उचित शिष्टाचार के नियम समझाएगा। वह बताएगा के जब आप उनसे मिलें और हाथ मिलाएं तो कोई ओछि हरकत, उनसे नाम मात्र की पहचान का दिखावा या कोई अनुचित आलोचना नहीं करनी है।

परमेश्वर के सन्मुख प्रवेश करने के भी नियम है, जिन्हे परमेश्वर के वचन में स्पष्ट किया गया है। इब्रानियों ११:६ में आपसी उचित संपर्क का एक पहलू दिया गया है। "परमेश्वर के पास आनेवाले को विश्वास करना चाहिए कि वो है और अपने खोजने वालों को प्रतिफल देता है।" परमेश्वर चाहता है कि हम उसके पूरे भक्त हों। अगर हमारे मन में आलोचना, अविश्वास और सन्देह भरे हैं तो वह हम से व्यक्तिगत रूप से दुखी होता है।

याकूब कहता है कि हम परमेश्वर से बुद्धि माँगें तो उसका उत्तर हमारे "विश्वास से माँगने" पर निर्भर है (पद ६)। हम दृढ़ विश्वास के साथ परमेश्वर के पास जाएं तो वह प्रसन्न होता है।

सन्देह छोड़ो और नियमों का अनुसरण करो। विश्वास से भरे हृदय लेकर परमेश्वर से माँगो तो वह प्रसन्न होकर तुम्हें अवश्य बुद्धि देगा। - जो स्टोवैल

सन्देह की अतृप्ति को परमेश्वर पर विश्वास की तृप्ति से अदल-बदल कर लो।

बाइबल पाठ: याकूब १:१-८

विश्वास से मांगे औरे कुछ सन्देह न करे, क्योंकि सन्देह करने वाला समुद्र की लहर की तरह है जो हवा से बहती और उछलती है।- याकूब १:६


एक साल में बाइबल:
  • उत्पत्ति ४९,५०
  • मत्ती १३:३१-५८

मंगलवार, 19 जनवरी 2010

अद्‍भुत सृष्टि

जॉर्ज मैकडोनल्ड की पुस्तक "डेविड एलगिनब्रोड" का एक उद्धरण उन लोगों को शिक्षा देता है जो सोचते हैं कि उनकी सृष्टि क्यों ऐसी हुई है और जो आग्रह करते हैं कि वे किसी दूसरे के जैसे होते तो कितना अच्छा होता।

एमिली कहती है,"मारग्रेट, काश मैं तुम होती"।

मारग्रेट उत्तर देती है, "मैं अगर आपकी जगह होती तो यही इच्छा करती कि मैं वही होउँ जो परमेश्वर चाहता है। अपनी इच्छा के अनुसार मैं महान जीव नहीं होना चाहती। परमेश्वर के अद्‍भुत विचारों में मेरी सृष्टि हुई, मेरे लिए यह विचार ही सबसे श्रेष्ट और मूल्यवान है।"

मैकडोनल्ड के मन में भजन १३९:१७ रहा होगा, "मेरे लिए तो हे ईश्वर, तेरे विचार क्या ही बहुमूल्य हैं।" इस भजन में दाउद अपनी उत्पत्ति के विष्य में सोचता है कैसे परमेश्वर के प्रेम का पात्र होने के लिए वह माता के गर्भ में रचा गया, कैसे एक अनुपम और विशिष्ट व्यक्ति बनाया गया।

यह विचार बहुत सुखदायक है कि हम गल्ती से नहीं बने, परन्तु "परमेश्वर के विचारों में" एक विशेष रूप से उत्पन्न हुए। दाउद का कहना सही है "मैं भयानक और अद्‍भुत रीति से रचा गया हूँ" (पद १४)। तू परमेश्वर के लिए प्रिए महान और मूल्यवान सृष्टि है। - डेविड रोपर

आप अपने समान एक ही हैं, और इसलिए रचे गए हैं कि परमेश्वर की ऐसी महिमा करें, जो केवल आप ही कर सकते हैं।


मैं तेरा धन्यवाद करूंगा, इसलिए कि मैं भयानक और अद्‍भुत रीति से रचा गया हूँ। - भजन १३९:१४

बाइबल पाठ: भजन संहिता १३९:७-१६

एक साल में बाइबल:
  • उत्पत्ति ४३, ४५
  • मत्ती १३:१-३०

सोमवार, 18 जनवरी 2010

असंभव?

बाइबल पाठ: मत्ती ५:३८-४२
तुम सुन चुके हो कि कहा गया था कि आँख के बदले आँख और दाँत के बदले दाँत। परन्तु मैं तुमसे यह कहता हूँ कि बुरे का सामना न करना। - मत्ती ५:३८, ३९

जब नॉबल पुरुस्कार समिति के प्रधान, गुन्नार जॉन ने, मार्टिन लूथर किंग के १९६४ शांति पुरुस्कार वितरण के समय के भाषण में यीशु के वचनों का हवाला दिया: "जो कोई तेरे दाहिने गाल पर थप्पड़ मारे उसकी ओर दुसरा भी फेर दे" (मत्ती ५:३९)। गुन्नार जॉन ने कहा "एक अल्पसंख्यक जाति को समानता के संघर्ष में नेतृत्व देने के कारण मार्टिन लूथर किंग को कीर्ति नहीं मिली....उसका नाम संघर्ष चलाने के अपनाए गए तरीके के काराण मशहूर हुआ"।

१९५५ में किंग ने एक साल तक बसों में पृथकत्त्व के विरुद्ध शांतिपूर्वक बहिष्कार का संघर्ष चलाया। उसे उसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। उसके घर पर बमबारी की गई। उसपर आक्रमण हुआ और वह गिरिफतार किया गया। उसने कभी बदला नहीं लिया। आखिरकर उसकी हत्या कर दी गई।

डॉ० किंग की शांति का उदाहरण मेरे शरीर के स्वभाव के कितना विपरीत है। मैं तुरंत न्याय और तत्काल बदला चहता हूँ। मैं गलती करने वालों को उनके किये की सज़ा मिल्ती देखना चाहता हूँ, विशेष्तया तब जब गलती मेरे विरुद्ध की गई हो। मैं अपना दूसरा गाल दिखाना कभी भी नहीं चाहता, कि उसको दुसरी बार वार करने का कोई मौका मिले।

हेड्डन रोबिन्सन यीशु के पहाड़ी पर के उपदेशों में (मत्ती ५-७) दिये गए महान मापदण्डों पर टिपण्णी करते हुए कहते हैं कि ये शिक्षाएं "लक्षय हैं, न कि असंभव आदर्ष", यीशु चाहता है कि उसके शिष्य इन लक्ष्यों की तरफ बढ़ने के परिश्रम में अपने नये जीवन को सिद्ध करें।" जीवन के अन्यायों के बीच, हमें दूसरा गाल दिखाने की हिम्मत, विश्वास और शक्ति हो। - टिम गुस्ताफ्सन



बदला न लेने के लिये सच्ची शक्ति की ज़रूरत है।
एक साल में बाइबल:
  • उत्पत्ति ४६ - ४८
  • मत्ती १३:१-३०

रविवार, 17 जनवरी 2010

समुद्र में भाईचारा

बाइबल पाठ: इफिसियों २:१४-२२

इसलिए तुम अब... पवित्र लोगों के संगी स्वदेशी हो गए। - इफिसीयों २:१९

अगस्त ८, २००५ को संसार ने नाटकीय रीति से बचाए गए सात रूसी नाविकों के बारे में जाना। ये नाविक एक छोटी पन्डुब्बी में थे, जो मछली पकड़ने के जाल में उलझ गई। इन नाविकों ने तीन दिन समुद्र के नीचे की ठंड और अंधेरे में बिताए, उन्हें ज़िन्दा रखने के लिए ६ घंटे से कम समय की ऑकसीजन ही बाकी रह गई थी। ऊपर रूसी, जापानी, ब्रिटिश और अमेरिकन रक्षक उनकी रक्षा करने का मिला जुला प्रयत्न कर रहे थे। अंत में पन्डुब्बी जाल की उलझन से छुड़ाई गई। रूसी सुरक्षा मंत्री ने सब के मिले जुले प्रयास की सराहना की, "हमने शब्दों में नहीं, कामों में समुन्द्र में भाईचारा देखा।"

"इफिसियों" की पत्री में विश्वासियों की यीशु में प्राप्त एकता के बारे में लिखा है, जिसे "परमेश्वर के घराने" (२:१९) की एकता कहा गया है। अन्य जाति के लोग जो कभी मसीह से बेगाने और अजनबी (पद १२) थे, वे अब "मसीह के लोहू के द्वारा निकट हो गए" (पद १३)। वे यहूदी भाईयों और बहिनों के साथ एक हुए। मसीही समाज के हर कार्य में यही एकता दिखनी चाहिये।

यीशु के विश्वासियों को एक बहुत ज़रूरी बचाव में लगने के लिये ज़िम्मेदारी दी गई है। यीशु में विश्वास को जाने बिना लोग मर रहे हैं। परमेश्वर की स्तुति हो कि कई मिशन मिलकर संसार भर के निराश लोगों को आशा, उद्धार, शिक्षा और आराम देने का काम कर रहे हैं। मसीह के भाईचारे ऐसे ही मिल जुल कर कार्य करने का नाम है। - डेविड एग्नर


एक स्वस्थ कलीसिया एक दुखी संसार के लिए सर्वोत्तम साक्षी है।
एक साल में बाइबल:
  • उत्पत्ति ४१, ४२
  • मत्ती १२:१-२३

शनिवार, 16 जनवरी 2010

पाप का दूसरा नाम

बाइबल पाठ: उतपत्ति ३९:९
मैं ऐसी बड़ी दुष्टता करके परमेश्वर का अपराधी क्योंकर बनूं? - उत्पत्ति ३९:९

एक दिन यूसुफ ने अपने आपको एक कठिन परिस्थित्ति में पाया, जब उसके मलिक की पत्नी ने उसे अपनी वासना का शिकार बनाना चाहा। जवान युसुफ के लिये उस औरत का प्रलोभन कितना बड़ा होगा। युसुफ ने यह भी एहसास किया होगा कि अगर वह मालकिन के प्रलोभनों के आधीन नहीं हुआ, तो फिर उसे उसके भयंकर क्रोध का शिकार होना पड़ेगा।

तो भी यूसुफ ने मालकिन से साफ इन्कार किया। उसके नैतिक सिद्धाँत का स्त्रोत था पाप के विषय में उसकी स्पष्ट समझ और परमेश्वर के प्रति उसकी श्रद्धा। यूसुफ ने उस मालकिन से कहा "मैं ऐसी बड़ी दुष्टता करके परमेश्वर का अपराधी क्योंकर बनूं?" ( उत्पत्ति ३९:९)

आज पाप को अधिक स्वीकारयोग्य नामों से बुलाने की परंपरा सी बन गई है। परन्तु परमेश्वर के विरुद्ध किये गये अपराधों को पाप ना कहकर, अन्य कोई नाम देने से पाप के प्रति हमारी प्रतिरोध शक्ति को कमज़ोर करेगा और पाप के दुष्परिणामों की गंभीरता से हमारी नज़र हटायेगा।

युसुफ के लिये पाप केवल "निर्णय की गलती" नहीं था, न ही वह "जीभ का फिसलना", या "कम्ज़ोरी के क्षणों में की गई मूर्खता" थी। यूसुफ ने पाप को उसकी वास्तविकता में देखा-परमेश्वर के विरुद्ध किया गया गंभीर अपराध और उसने अपराध की गंभीरता को कभी कम नहीं करना चाहा।

परमेश्वर के नैतिक स्तर अटल हैं। जब हम पाप को परमेश्वर के लिये घृणित बात मानेंगे हैं, तभी हम सही नैतिक निर्णय ले सकेंगे। पाप को एक हलका नाम देने से न तो उसके प्रति परमेश्वर की घृणा मिटेगी और न ही उससे होने वाले हमारे नुक्सान की कीमत घटेगी। - सी. पी. हीया


पाप को नज़रंदाज़ करना एक भारी बेवकूफी है।

एक साल में बाइबल:
  • उत्पत्ति ३९,४०
  • मत्ति ११

शुक्रवार, 15 जनवरी 2010

यह परमेश्वर के वचन में है

बाइबल पाठ: भजन संहिता ११९:२५-३२
जब तू मेरा हियाव बढ़ाएगा तब मैं तेरी आज्ञाओं के मार्ग में दौड़ूंगा। - भजन संहिता ११९:३२


मैं आशावादी हूँ, हर बात में एक अच्छा पहलू देख लेता हूँ, परन्तु मैं यह भी जानता हूँ कि जीवन में अन्धेरा और अकेलापन भी होता है।

मैंने कई किशोरों से बातें की हैं जिनके माँ या बाप का क्रोध , उनके लिये स्कूल से घर वापस आने जैसी साधारण बात को एक डरावाना अनुभव बनाता है।

मैंने ऐसे लोगों से बातें की हैं जो निराशा से घिरे रहते हैं।

मैंने ऐसे लोगों के साथ काफी समय बिताया है जो मेरे और मेरी पत्नी के समान, अपने बच्चे की अचानक मृत्यु के दुखः के साथ जीवन जी रहे हैं। मैंने देखा है कि संसार भर में गरीबी लोगों को दबोचकर क्या कर सकती है।

ये सब जानते हुए भी, मैं निराश नहीं होता। मैं जानता हूँ कि यीशु में हमेशा आशा है, पवित्र आत्मा के द्वारा मार्ग दर्शन और परमेश्वर के वचन में ज्ञान और सामर्थ मिलती है।

भजन ११९ के शब्द हमें प्रोत्साहन देते हैं। हमारी आत्मा "धूल में पड़ी है" तो भी परमेश्वर का वचन हमें जिला सकता है (पद २५)। जब मन दुखः से भरा हो तो भी उसका वचन हमें संभालता है (पद २८)। जब धोखा हमें डराता है, तब हम परमेश्वर के वचन की सच्चाई का अनुसरण कर सकते हैं (पद २९,३०)। परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करने से हमारा मन स्वतंत्र रहता है (पद ३२)।

क्या जीवन की सम्स्याएं आपको दबा रहीं हैं?" अगर हाँ तो परमेश्वर के वचन से आशा, मार्गदर्शन और ज्ञान पा सकते हैं, यह परमेश्वर के वचन में है। - डेव ब्रैनन


खूब पढ़ने से बाइबल आत्मा का अच्छा पोषण करती है।
एक साल में बाइबल:
  • उतपत्ति ३६ - ३८
  • मत्ती १०:२१-४२

गुरुवार, 14 जनवरी 2010

पंख पर

बाइबल पाठ: मत्ती १०:२७-३१

इस लिये डरो नहीं तुम बहुत गौरयों से बढ़कर हो। - मत्ती १०:३१

ऐलेन टेनेन्ट अपनी पुस्तक "पंख पर" में बाज़ जाति की एक प्रकार के पलायन का मार्ग जानने के अपने प्रयासों को लिखा है। अपने सौन्दर्य, तेज़ी और शक्ति के लिये ये पक्षी बहुत मूल्यवान माने जाते थे।और वे महराजाओं और धनी ऊगों के शिकार के साथी भी रहे। दुखः की बात है कि १९५० के दशक से कीटनाशक रसायन डी.डी.टी.के प्रयोग के कारण इन पक्षियों की प्रजनन क्षम्ता कम हो गई और अब ये लुप्त होने वली प्रजातियों में गिने जाते हैं।

इनकी जाति को बढ़ाने के प्रयत्न में टेनेन्ट ने कुछ चुने बाज़ पक्षियों पर संप्रेषक (ट्रांसमीटर) लगाए, ताकि उनका पलायन के विवरण जान ले। परन्तु उनके पीछे जब वे विमान में उड़े तो उनपर लगाए गये संप्रेषक से संकेत कई बार खो गए।अपने बहुत प्रगतिशील टेक्नीकी ज्ञान के बावजूद, वे उन पक्षियों के पलायन-मार्ग का ठीक से पता नहीं लगा सके।

हमारे लिये यह जानना लाभदायक है कि परमेश्वर जो हमारा संरक्षण करता है, हम सदा उसकी नज़रों में बने रहते हैं। यीशु ने कहा, तुम्हारे पिता की इच्छा के बिना एक गौरैया भी भूमि पर नहीं गिर सकती। इसलिय्र डरो नहीं, तुम बहुत गौरयों से बढ़कर हो (मत्ती १०:२९-३१)।

जब हम कठिन हालत में होते हैं तब भय के कारण सन्देह करते हैं कि परमेश्वर हमारी परिस्थिति जानता है कि नहीं। यीशु की शिक्षा है कि परमेश्वर पूरी तौर से हमारी देख-भल करता है और हमारी परिस्थितियों पर नियंत्रण रखता है। हमारे जीवन का नियंत्रण उसके हाथ से कभी नहीं छूटता। - डैनिस फिशर


अगर परमेश्वर पक्षियों का खयाल करता है तो क्या वह अपनी संतान की देख रेख नहीं करेगा?

एक साल में बाइबल:
  • उत्पत्ती ३३-३५
  • मत्ती १०:१-२०

बुधवार, 13 जनवरी 2010

बाइबल की प्रार्थना की पाठशाला

बाइबल पाठ: हबक्‍कूक १:१ - ४

मैं अपने मन का खेद खोलकर कहूंगा; और अपने जीभ की कड़वाहट के कारण कुड़्कुड़ाता रहुंगा। - अय्युब ७:११


अगर हम अपने परमेश्वर को एक बेमेल सहभागी कहें तो यह एक हास्यसपद और उसे छोटा करने वाला कथन होगा। परमेश्वर ने वास्तव में हमारे साथ एक ’असमान’ जोड़ी बनाई है, वह हमें ज़िम्मेदारी सौंपता है कि उसके साथ मिलकर इतिहास रचें। इस सहभागिता का एक पख्श बहुत प्रबल है - जैसे माईक्रोसौफ्ट कम्पनी और हाई स्कूल के विद्यार्थी के बीच का सहयोग।

हम जानते हैं कि मनुष्यों के बीच यदि असमानता का सहयोग हो तो क्या होता है - प्रबल पक्ष कमज़ोर पक्ष को दबाकर उसपर अपना अधिकार चलाता है और कमज़ोर पक्ष चुपचाप सहता है। परन्तु परमेश्वर, जिसे मनुष्यों से कोई भय नहीं है, हमें से निरंतर और ईमान्दार संपर्क बना के रखता है।

मुझे कभी कभी आश्चर्य होता है कि परमेश्वर क्यों हमारी प्रार्थना में इमानदारी को इतना महत्त्व देता है, यहाँ तक कि इमानदारी से कहे गए मनुष्य के अन्यायपूर्ण क्रोध भरे शब्दों को भी सह लेता है। बाइबल की कई प्रार्थनाएं अत्यन्त क्रोध भरी हैं, जैसे: यर्मियाह धोखा खाने और अन्याय सहने के बारे में पुकार उठाता है (यर्मियाह २०:७-१०); हबक्‍कूक ने परमेश्वेर को बहरा होने का दोष दिया (हबक्‍कूक १:२); अय्युब ने उसे छिपा होने और न मिलने वाला कहा(अय्युब २३:८,९)। बाइबल हमें शिक्षा देती है कि हम अपने मन की बातें बेबाक सच्चाई से प्रार्थना में प्रकट करें।

परमेश्वर चाहता है कि हम अपनी शिकायतें लेकर उसके सन्मुख आएं। अगर हम अपने जीवन में बाहर से तो मुस्कुराने का बहाना करें और मन में कुढ़ते रहें तो हम परमेश्वर के साथ अपने सम्बंध का निरादर करते हैं। - फिलिप यैन्सी


तुम्हारे आत्मिक तापमान को नापने का पैमना तुम्हारी प्रार्थना की गहनता है। - स्परजन

एक साल में बाइबल:
  • उत्पत्ती ३१, ३२
  • मत्ती ९:१८ - ३८

मंगलवार, 12 जनवरी 2010

सहायता के परे?

बाइबल पाठ:लूका २३:३३ - ४३

यीशु ने उससे कहा,, मैं तुझ से सच कहता हूँ कि आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा - लूका २३:४३




एक ११० साल की उम्र का इस्त्राएली बेदुइन चरवाहा दिल के दौरे के लिये बीरशीबा के अस्पताल में भर्ती किया गया। उसकी उम्र के बावजूद, डॉक्टरों ने उसकी जान बचाने का भरसक प्रयत्न किया। यह माना जा रहा है कि दिल के दौरे से पीड़ित वह सबसे अधिक उम्र का व्यक्ति था जिसकी सफल चिकित्सा रक्त का थक्का बनने से रोकने वाली दवा के प्रयोग से हुई। अस्पताल के प्रतिनिधि ने बताय कि वह चरवाहा ठीक होकर नेगेव मरुभूमि के अपने डेरे में लौटा और फिर से भेड़ें चराने लगा।

११० साल के इस बूढ़े की जो चिकित्सा और देख रेख हुई, वह हमें यीशु का स्मरण कराती है, जिसने ठुकराए हुए लोगों की सहायता की। सामजिक सीमाओं को लांघ कर, यीशु ने कोढ़ियों और समाज के निन्दितों की देख रेख की, यह किसी सामन्य भले व्यक्ति के कार्यों से बढ़कर था।

क्रूस पर पीड़ा से स्वयं तड़पते समय भी यीशु ने एक मरते अपराधी की सहायता की, जिसके सहायता के सब मार्ग बन्द थे। वह आदमी अपराधी था मृत्यु दण्ड भोग रहा था और नर्क में प्रवेश से कुछ घंटे ही दुर था। यीशु ने उस अपराधी की मदद की पुकार का उत्तर दिया और कहा, "आज ही तू मेरे साथ स्वर्ग लोक में होगा" (लूका २३:४३)

क्या आप किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में जानते हैं जो निस्सहाय अवस्था में है? शायद आप स्वयं ही निराश हों? बाइबल का परमेश्वर ऐसे लाचारों को, कमज़ोरों को, बहुत समय से पाप के बोझ से दबे हुओं को, मदद देने को तैयार है जिन्हें संसार मदद के लिये अयोग्य मानता है। - मार्ट डी. हॉन



परमेश्वर की सामर्थ हमारी कमज़ोरी में सबसे अधिक प्रगट होती है।
एक साल में बाइबल:

  • उत्पत्ती २९, ३०

  • मत्ती : - १७

सोमवार, 11 जनवरी 2010

वह श्रद्धायुक्त भय के योग्य है!

बाइबल पाठ: भजन संहिता ६६

आओ, परमेश्वर के कामों को देखो, वह अपने कार्यों के कारण मनुष्यों को भययोग्य देख पड़ता है। - भजन संहिता ६६:५

आजकल ’अद्‍भुत’ शब्द का प्रयोग कई प्रसंगों में किया जाता है। मोटर, सिनेमा, गाना, खाना इन सबके बारे में कोई न कोई कहता है ’अद्‍भुत’/’भययोग्य’।

परन्तु जब हम इन सांसारिक वस्तुओं के लिये भी उसी शब्द का प्रयोग करें जो परमेश्वर का विशेषण है, तो हम परमेश्वर के ’अद्‍भुत’ या ’भययोग्य’ होने को हीन करते हैं। मेरी एक दोस्त के घर में यह नियम है कि ’भययोग्य’ शब्द का प्रयोग केवल परमेश्वर के लिये करना है।

परमेश्वर के महत्त्व को हलका करना कोई हलकी बात नहीं है। वह कोई ऐसा साथी नहीं है जिसकी मित्रता को हम मामूली बात समझें, या फिर उसे एक ऐसे ए.टी.एम. कि तरह प्रयोग करें जो हमारी हर लालसा पूरी कर के दे। यदि हम परमेश्वर की भव्यता से स्तब्ध नहीं तो हम अपने आप से ही प्रभावित और अपने में ही मगन रहेंगे, और एक अध्भुत भययोग्य परमेश्वर की संतान होने के अधिकार से हम वंचित रहेंगे।

"भजन संहिता" के भजन हमें परमेश्वर के विषय में सही नज़रिया देते हैं। "यहोवा परम प्रधान और भययोग्य है, वह सारी पृथ्वी के ऊपर महाराजा है" (भजन संहिता ४७:२)। "परमेश्वर से कहो कि तेरे काम क्या ही भयानक हैं!....आओ परमेश्वर के कामों को देखो, वह अपने कार्यों के कारण मनुष्यों को भययोग्य देख पड़ता है" (भजन संहिता ६६:३,५)।

यीशु मसीह के प्रेम से अदभुत और क्या है, जिस प्रेम ने उसे हमारे लिये क्रूस पर मरने को विवश किया? उसे अपने जीवन में योग्य स्थान दो और उसे एकमात्र ’श्रद्धायुक्त भययोग्य’ मानकर उसके महान कार्यों के लिये उसकी प्रशंसा करो जो उसने तुम्हारे लिये किये हैं। - जो स्टोवैल


अगर तुम अपने बड़प्पन से बहुत प्रभावित हो तो परमेश्वर की अदभुत भयावहता पर गहिरी दृष्टि करो।
एक साल में बाइबल:
  • उत्पत्ती २७, २८;
  • मत्ती ८:१८-३४

रविवार, 10 जनवरी 2010

पुराना और नया

यदि कोई मसीह में है तो वह नई सृष्टि है; पुरानी बातें बीत गईं हैं; देखो वे सब नई हो गईं - २ कुरिन्थियों ५:१७
बाइबल पाठ: गलतियों ५:१६ -२३

जनवरी महीने में साधारणतयः लिये जाने वाले कुछ निर्णय हैं, शरीर का वज़न कम करना, ज़्यादा कसरत करना, काम में कम और अपने कुटुंब के साथ अधिक समय बिताना, गाड़ी चलाते समय सेल फोन पर बातें नहीं करना आदि।

हम जीवन की गलत आदतें बदलने का प्रयास करना चाहते हैं, चाहे नये साल के इन निर्णयों का तीन हफ्तों से ज़्यादा पालन नहीं हो पाता।

क्या हो यदि आप परमेश्वर से पूछें कि वह आप से क्या चाहता है? वह आप से किन किन बातों को बदलने, सुधारने या शुरू करने को कहना चाहता है?

संभवतः वह आप से कहेगा:
* अपने जीवन में आत्मा के फल और भी अधिक दिखाओ, जो हैं "प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता और संयम" (गलतियों ५:२२, २३)
* "अपने बैरियों से प्रेम करो, जो तुम्हें भला-बुरा कहते हैं उन्हें आशीश दो, जो तुम से नफरत करते हैं उनका भला करो और अपने सताने वालों के लिये प्रार्थना करो" (मत्ती ५:४४)।
* "तुम सारे जगत में जाकर सारी सृष्टी के लोगों को सुसमाचार का प्रचार करो" (मरकुस १६:१५)।
* "जो तुम्हारे पास है, उसी पर सन्तोष करो" (इब्रानियों १३:५)।
* "उसकी आज्ञाओं के अनुसार चलो" (२ युहन्ना १:६)।

विश्वासी और नई सृष्टी होने के नाते हम पुराने स्वभाव और पराजयों से मुक्त हो स्कते हैं। हम परमेश्वर की मदद माँगें कि वह हमें पवित्र आत्मा की सामर्थ में प्रतिदिन जीने की शक्ति दे। तब हम पुरानी बातें छोड़कर नई बातें ग्रहण कर सकते हैं (२ कुरिन्थियों ५:१७)। - Cindy Hess Kasper

How can we live to please the Lord?
By knowing what He says to do
And trusting in the Spirit's strength
To make us into someone new. - Sper


परमेश्वर पर निर्भर करने से निर्णयों का पालन करना आसान होता है।

एक साल में बाइबल:
  • उत्पत्ति २५, २६;
  • मत्ती ८:१ -१७

शनिवार, 9 जनवरी 2010

दोष लगाएं या ना लगाएं

बाइबल पाठ: मत्ती ७:१ -२१
दोष मत लगाओ कि तुम पर भी दोष न लागाया जाए। - मत्ती ७:१

लोगों से "अपने काम से मतलब रखो" कहने के लिये यीशु की बातों का हवाला देने से अच्छा और क्या उपाय हो सकता है? जो लोग बाइबल बहुत कम पढ़ते हैं वे मत्ती ७:१ जल्दी प्रयोग करते हैं, खासकर जब वे किसी विरोधी का मुंह बन्द करना चाहते हैं - "दोष मत लगाओ कि तुम पर भी दोष न लागाया जाए"।

यदि उसके संदर्भ में देखें तो यह वाक्य हमें दोष लगाने से मना नहीं करता, परन्तु गलत दोष नहीं लगाना है। सर्वप्रथम, हमें पहले सव्यं को जांचना है। यीशु ने कहा "पहली अपनी आंख में से लट्ठा निकाल ले, तब तू अपने भाई की आंख के तिनके को भली भांति देखकर निकाल सकेगा" (पद ५)। उसने फिर कहा, "झूठे भविष्यद्वक्ताओं से सावधान रहो" (पद १५); दोनो ही बातें ’जांचने’ से संबंध रखती हैं। इसके लिये सही निर्णय करना है - हमें झूठ और सच की पहचान होनी ज़रूरी है।

यीशु ने निर्णय करने के उचित उपाय के लिये फल के रूपक का प्रयोग किया: "उनके फलों से तुम उन्हें पहचान लोगे"(पद २०)। हम स्वयं को और लोगों को भी उनसे उत्पन्न फलों की गुणवत्ता से पहचान सकते हैं। यह फल बाह्‍य स्वरूप और सौन्दर्य जैसे सांसारिक मूल्यों के आधार पर नहीं पहचाना जाता (पद १५)। उसकी जांच स्वर्गिय मूल्यों पर की जानी चाहिये - हम में उत्पन्न आत्मा के फल से, जैसे प्रेम, आनन्द, मेल आदि (गलतियों ५:२२)।

हम तो चेहरा देखकर निर्णय करते हैं पर्न्तु परमेश्वर हमारे फलों से हमारा निर्णय करते हैं और हमें भी ऐसा ही करना चाहिये। - Julie Ackerman Link

They truly lead who lead by love
And humbly serve the Lord;
Their lives will bear the Spirit's fruit
And magnify His Word. - D. De Haan

दुसरों पर दोष लगाने में धीरे और सवयं पर दोष लगाने में फुरतीले बनो।

एक साल में बाइबल:
  • उत्पत्ति २३, २४;
  • मत्ती ७

शुक्रवार, 8 जनवरी 2010

बाद्शाह

बाइबल पाठ: प्रकाशितवाक्य १७:९ -१४

वे मेम्ने से लड़ेंगे और मेम्ना उनपर जय पाएगा क्योंकि वह प्रभुओं का प्रभु और राजाओं का राजा है। - प्रकाशितवाक्य १७:१४

यह बात आश्चर्यजन्क है कि संसार में कितनों को याद होगा कि आज एल्विस प्रेस्ली का जन्मदिन है। अमेरिका के मिसिसिपी प्राँत के इस गायक की लोकप्रीयता कई पीढ़ीयों से और संसकृतियों में बनी हुई है।

उसकी मृत्यु के ३० वर्ष बाद भी प्रेस्ली के संगीत, स्मर्ण चिन्हों और लाइसेन्स अनुबंधों की बिकरी से हर साल करोड़ों डॉलर कमाए जाते हैं। एल्विस को एक समय "रॉक अण्ड रोल संगीत का बाद्शाह" कहा जाता था, अब संक्षिपत में उसे केवल ’बाद्शाह’ कहते हैं।

चाहे इस संसार के बाद्शाह कहलने वाले लोग बहुत लोक्प्रीय हों, मेधावी खिलाड़ी हों, निर्वाचित अधिकारी हों या बड़े उद्योगपति हों, वे आते हैं और चले जाते हैं। उनका प्रभाव बहुत प्रबल हो सकता है, उनके चाहने वाले उनके बड़े भक्त हो सकते हैं, लेकिन उनकी कीर्ति सदा कल के लिये नहीं रहती।

बाइबल यीशु मसीह को अनन्त काल का राजा कहती है। प्रकाशितवाक्य १७ अध्याय भविश्य्द्वाणी में पृथ्वी के राजाओं के बारे में बताता है, जो इस युग के अन्त में अपना शासन स्थापित करने के लिये लड़ेंगे। बाइबल के ज्ञाताओं ने इन राजाओं की पहिचान करने के प्रयास के लिये वाद-विवाद किये हैं, लेकिन उस राजा की पहचान में कोई शक नहीं है जिसे वे कभी नहीं हरा पाएंगे: "वे मेम्ने से लड़ेंगे और मेम्ना उनपर जय पायेगा क्योंकि वह राजाओं का राजा और प्रभों का प्रभु है; और जो उसके साथ हैं वे चुने गए और वफादार हैं।" (प्रकाशितवाक्य १७:१४)।

यीशु मसीह ऐसा प्रभु और राजा है जिसका राज्य अनन्त है। - David McCasland

The King of kings and Lord of lords,
Who reigns today within our heart,
Will one day bring His peace on earth -
A kingdom that will not depart. - Sper
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राजाओं के राजा की प्रजा होने से बढ़कर और कोई सौभाग्य नहीं हो सकता।
एक साल में बाइबल:
  • उत्पत्ति २० - २२
  • मत्ती ६:१९ - ३४

गुरुवार, 7 जनवरी 2010

बेगुनाह इन्सान

बाइबल पाठ: उत्पत्ति १८: २२- २३ क्या सारी पृथ्वी का न्यायी न्याय न करे? - उत्पत्ति १८:२५

जॉन ग्रिशम अपने न्यायालयों से संभंधित उपन्यासों के लिये प्रसिद्ध हैं - वकीलों और अपराधियों पर आधारित तेज़ी से आगे बढ़ती कहानियाँ। लेकिन उनका एक उपन्यास "बेकसूर इन्सान" (The Innocent Man), कालपनिक नहीं है। यह उपन्यास अन्याय की एक सच्ची घटना पर आधारित है। कथानक में एक युवती की नृशंस हत्या होती है और दो आदमी, जो बेकसुर थे, पकड़े जाते हैं और उन्हें दोषी करार देकर मृत्यु दण्ड सुनाया जाता है। डी.एन.ए. जाँच पद्वति विकिसित होने के बाद, १७ साल तक अन्याय सहने के उप्रान्त, इस पद्वति द्वारा उन्हें बेकसुर प्रमाणित किया जाता है और मृत्यु दण्ड से छुड़ाया जाता है; अन्तः न्याय की जीत होती है।

हर आदमी न्याय कि चाह रखता है किंतु हमें स्मरण रखना चाहिये कि हमारी मान्वीय कमज़ोरियाँ खरा न्याय दिलवाने में चुनौती साबित होतीं हैं। हमारे मन में उत्पन्न बदला लेने के विचार, सच्चा न्याय दिलवाने के प्रयास के लिये घातक हो सकते हैं।

यह याद रखना अच्छा होगा कि सच्चा और खरा न्याय केवल परमेश्वर से ही मिल सकता है। अब्रहाम ने इस बात को प्रश्नात्मक रुप में कहा "क्या सारी पृथ्वी का न्ययी न्याय न करेगा?" (उत्पत्ति १८:२५)। इसका एक ही संभव उत्तर है - हाँ। लेकिन इस से भी बढ़कर, उसका न्यायालय ही एकमात्र स्थान है जहाँ, हम निश्चित रूप से कह सकते हैं कि, केवल न्याय ही की जीत होगी।

इस अन्याय से भरे संसार में, अपने साथ होने वाले अन्यायों को हम संसार के उस न्यायी को सौंप दें, और उसपर उसके अंतिम खरे न्याय के लिये भरोसा रखें। - Bill Crowder

The best of Judges on this earth
Aren't always right or fair;
But God, the righteous Judge of all,
Wrongs no one in His care. - Egner
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जीवन सदा सच्चा नहीं होता, लेकिन परमेश्वर सदा विश्वासयोग्य रहता है।
एक साल में बाइबल:
  • उत्पत्ति १८ - १९
  • मत्ती ६:१ -१८

बुधवार, 6 जनवरी 2010

एक बालक का विश्वास

बाइबल पाठ: मत्ती १८:१ - ५

यदि तुम ना फिरो और बालकों के समान न बनो तो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने न पाओगे। - मत्ती १८:३

एक रविवार मैं ने माईक को अपने दोनो पिताओं के बारे में बोलते सुना - एक वह जिसने उसे पाला-पोसा और दूसरा स्वर्ग में परमेश्वर पिता।

पहले उसने पृथ्वी पर के अपने पिता के प्रति बचपन से अपने भरोसे के बारे में वर्णन किया, कि वह कैसा सरल और सीधा भरोसा है। वह उम्मीद रखता था कि उसके पिता बिगड़ी हुई वस्तुओं को सुधार देंगे और उसे सलाह भी देंगे। लेकिन फिर भी वह अक्सर उन्हें नराज़ करने से डरता था क्योंकि वह भूल जाता था कि उसके पिता का प्रेम और क्षमा हमेशा उप्लब्ध हैं।

माईक ने आगे कहा,"कुछ साल पहले मैं ने कई गलतियाँ कीं और बहुत से लोगों का दिल दुखाया। अपने गलती के बोझ के कारण मेरा अपने स्वर्गीय पिता के साथ सुखद और सरल संबंध टूट गया। मैं भूल गया कि मैं उससे निवेदन कर सकता था कि वह बिगड़े हुए को सुधार दे और मुझे सही सलाह दे"।

कई वर्ष बीत गये, आखिरकर माईक परमेश्वर से टूटे संबंध के कारण बहुत बेचैन हो गया लेकिन वह समझ नहीं पा रहा था कि संबंध ठीक करने के लिये वह क्या करे। उसके पादरी ने उससे कहा कि जैसा सामान्य व्यव्हार है, सच्चे दिल से परमेश्वर के सामने अपनी गलती मान लो और उससे माफी माँग लो।

लेकिन माईक उल्झे हुए सवाल करने लगा, जैसे: "यह कैसे संभव होगा?", "अगर परमेश्वर.... ?" इत्यादि। आखिर उसके पादरी ने परमेश्वर से प्रार्थना करी, "हे परमेश्वर कृप्या माईक को एक बच्चे का सा साधारण विश्वास दीजिये!" बाद में माईक ने आनन्द के साथ इस बात की गवाही दी कि परमेश्वर ने ऐसा ही किया।

माईक को परमेश्वर पिता के साथ निकटता फिर प्राप्त हो गई। इस निकटता कि पुनः प्राप्ती का राज़, माइक के लिये भी और हमारे लिये भी, बच्चे का सा सरल और साधारण विश्वास रखना है। - Joanie Yoder

Have you noticed that the child like faith
Of a little girl or boy
Has so often shown to older folks
About knowing Salvation's joy - Branon
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विश्वास एक बच्चे जैसे हृदय में सबसे अधिक चमकता है।

एक साल में बाइबल:
  • उत्पत्ति १६ - १७
  • मत्ती ५:२७ - २८

मंगलवार, 5 जनवरी 2010

स्मरण करने को बहुत

बाइबल पाठ : नीतिवचन १०:११ -२१

जो अपने मुंह पर नियंत्रण रखता है, वह बुद्धी से काम करता है। - नीतिवचन १०:१९

"बहुत धन्यवाद", कतार में मुझ से आगे खड़े व्यक्ति से डाकखाने के पटल के पीछे बैठे क्लर्क ने कहा। उस क्लर्क जौन ने मुझे कतार में खड़े देख लिया था और उसका प्रयास था के मैं उसकी बात सुन लूँ। जब पंक्ति में मेरी बारी आयी तब मैं ने जौन से 'हैल्लो' बोला, वह मेरा विद्यार्थी रह चुका था, जब मैं १९८० के दशक में हाई स्कूल में पढ़ाता था।

जौन ने मुझसे पूछा "क्या आपने ध्यान दिया की मैं ने उस महिला से क्या कहा? मैं ने उस से कहा 'बहुत धन्यवाद' (thanks a lot)" मेरे चहरे पर उसकी बात को समझ पाने के भाव को देखकर उसने स्पष्ट किया 'क्या आपको ध्यान है की आपने हमें सिखाया था की "lot" का मतलब ज़मीन का टुकड़ा होता है की "much"(बहुत) के स्थान पर उपयोग होने वाला वाक्यांश।'

मुझे आश्चर्य हुआ की २५ साल से भी अधिक पुराना अंग्रेज़ी का पाठ जौन को अभी भी कैसा याद है। यह दिखाता है की दूसरों से बोले गए शब्दों का कितना महत्त्व है। यह कवी एमिली डिकिन्सन द्वारा कही और मेरी पसंद की इस बात को भी बल देता है: "कुछ लोग कहते हैं की एक शब्द जब कह दिया जाता है तो मर जाता है, मैं कहती हूँ कि वह उस दिन से जीना शुरू करता है।"

जो शब्द हम कहते हैं उनके परिणाम बहुत लम्बे समय तक हो सकते हैं। हमारे द्वारा व्यक्त करी गयी राय, दी गयी प्रशंसा, की गयी कटु आलोचना सुनाने वालों के साथ कई दशक तक बनी रह सकती है।

यही कारण है कि पवित्र शास्त्र सिखाता है "जो अपने मुंह पर नियंत्रण रखता है, वह बुद्धी से काम करता है। - नीतिवचन १०:१९" जो शब्द हम आज कहते है वे बने रहते हैं हम सुनिश्चित करें की वे "धर्मी के मुंह से निकले" (नीतिवचन १०:२०) शब्द हों - Dave Branon
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जीभ एक छोटा अंग है जो बड़े झगड़े या मेल उत्पन्न कर सकता है
एक साल में बाइबल:
  • उत्पत्ति १३ - १५
  • मत्ती : - २६