ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें : rozkiroti@gmail.com / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

शुक्रवार, 3 दिसंबर 2021

मसीही सेवकाई और पवित्र आत्मा के वरदान - 1


मसीही जीवन, कार्यशील जीवन

 

       मसीही जीवन और सेवकाई से संबंधित बातों के अध्ययन की इस ज़ारी शृंखला में हम मसीही विश्वास, मसीही जीवन, मसीही सेवकाई, और मसीही सेवकाई में परमेश्वर पवित्र आत्मा की भूमिका के बारे में देख चुके हैं। पिछले कुछ लेखों में हम परमेश्वर पवित्र आत्मा और उनके कार्यों से संबंधित सामान्यतः सिखाई और प्रचार की जाने वाली गलत शिक्षाओं के बारे में देख रहे थे, कि बाइबल की वास्तविक शिक्षाएं क्या हैं, और इन्हें गलत रूप और अर्थ के साथ बताने सिखाने वालों की गलतियों को कैसे पहचाना जाए, और उनसे बच कर रहा जाए। आज से हम एक और संबंधित बात के बारे में अध्ययन करना आरंभ करेंगे - जो मसीही सेवकाई और जीवन के लिए भी आवश्यक है, और जिसकी गलत समझ के कारण परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित गलत शिक्षाएं बताने और फैलाने वाले इसके विषय भी बहुत से गलत धारणाएं तथा शिक्षाएं बताते, सिखाते, र फैलाते रहते हैं। और इसलिए इनके विषय भी परमेश्वर के वचन की वास्तविकता को जानना एवं समझना अनिवार्य है ताकि गलतियों और व्यर्थ बातों से बचा जा सके, वचन की सच्चाइयों के साथ चला जा सके। 

       हमारे प्रभु परमेश्वर का एक बहुत बड़ा गुण है कि वह सदा अपनी सृष्टि संचालन और प्रबंधन में सक्रिय रहता है, उसकी देखभाल में और संबंधित कार्यों में जुटा रहता है। प्रभु यीशु ने कहा, “इस पर यीशु ने उन से कहा, कि मेरा पिता अब तक काम करता है, और मैं भी काम करता हूं” (यूहन्ना 5:17)। आज भी हमारा परमेश्वर पिता और हमारा उद्धारकर्ता परमेश्वर पुत्र हमारे लिए कार्य कर रहे हैं; और परमेश्वर पवित्र आत्मा हम में होकर संसार में कार्य कर रहा है। हमारा परमेश्वर पिता हम पर अपनी दृष्टि लगाए रखता है (2 इतिहास 16:9), अपनी आँख की पुतली के समान हमारी रखवाली करता है (व्यवस्थाविवरण 32:10; ज़कर्याह 2:8), हमारे मन और विचार की बातों को देखता और जाँचता रहता है (1 इतिहास 28:9), हमारी प्रार्थनाओं को सुनता और अपनी योजनाओं के अनुसार उनका उचित उत्तर देने के लिए कार्य करता है (भजन 143:1), इत्यादि। हमारा उद्धारकर्ता परमेश्वर पुत्र, प्रभु यीशु पिता के सामने हमारा सहायक है (1 यूहन्ना 2:1), हमारे लिए विनती और प्रार्थना करता है (यूहन्ना 17:9, 11, 15; रोमियों 8:34), शैतान के दोषारोपण से हमें बचाए रखता है (प्रकाशितवाक्य 12:10), हमारे लिए स्थान तैयार कर रहा है, हमें लेने आने की तैयारी में लगा है (यूहन्ना 14:3), इत्यादि। कार्यशील रहना न केवल परमेश्वर का एक गुण है, वरन उसने मनुष्य में जिसे उसने अपने स्वरूप में बनाया है, उसमें भी अपने समान कार्यशील होने का गुण डाला है। सृष्टि के आरंभ से ही कार्यशील रहने से संबंधित परमेश्वर के इस सिद्धांत को हम लागू देखते हैं। परमेश्वर ने आदम के लिए अच्छे फलों के वृक्षों की अदन की वाटिका लगा कर दी, किन्तु उस वाटिका की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी परमेश्वर ने आदम को सौंपी (उत्पत्ति 2:8, 9, 15)। यद्यपि आदम अकेला था, किन्तु परमेश्वर ने उसे निठल्ला नहीं रहने दिया, उसे वाटिका में काम पर लगाया। इसी सिद्धांत के अनुसार, पवित्र आत्मा की अगुवाई में प्रेरित पौलुस ने लिखा, “और जब हम तुम्हारे यहां थे, तब भी यह आज्ञा तुम्हें देते थे, कि यदि कोई काम करना न चाहे, तो खाने भी न पाए। हम सुनते हैं, कि कितने लोग तुम्हारे बीच में अनुचित चाल चलते हैं; और कुछ काम नहीं करते, पर औरों के काम में हाथ डाला करते हैं। ऐसों को हम प्रभु यीशु मसीह में आज्ञा देते और समझाते हैं, कि चुपचाप काम कर के अपनी ही रोटी खाया करें” (2 थिस्स्लुनीकियों 3:10-12) 

       और कार्यशील रहने से संबंधित यही सिद्धांत उद्धार पाने के बाद के मसीही जीवन एवं सेवकाई पर भी इसी प्रकार से लागू है; परमेश्वर ने उद्धार पाए हुए अपने लोगों के लिए पहले से ही कार्य निर्धारित करके तैयार रखे हुए हैं, “क्योंकि हम उसके बनाए हुए हैं; और मसीह यीशु में उन भले कामों के लिये सृजे गए जिन्हें परमेश्वर ने पहिले से हमारे करने के लिये तैयार किया” (इफिसियों 2:10)। और जब परमेश्वर ने ज़िम्मेदारी दी है, तो फिर हम सभी से उस ज़िम्मेदारी के निर्वाह का हिसाब भी लेगा (मत्ती 16:27; 1 कुरिन्थियों 3:13-15; 4:5; 2 कुरिन्थियों 5:10; 1 पतरस 4:17)। जो काम परमेश्वर ने हमारे लिए निर्धारित किए हैं, हम उन्हें ठीक से करने पाएं, इसके लिए परमेश्वर ने हमारे लिए उपाय भी किया है - हम मसीही विश्वासियों में निवास करने वाला पवित्र आत्मा हमारा मार्गदर्शन और सहायता करता है; और साथ ही परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रत्येक मसीही विश्वासी की सेवकाई के अनुसार उसे उपयुक्त वरदान भी दिए हैं, जिनकी सहायता से हम अपनी इस ज़िम्मेदारी को ठीक से निभा सकें, पूरा कर सकें (1 कुरिन्थियों 12:11)। साथ ही इन आत्मिक वरदानों से संबंधित कुछ बातें भी हैं, जिनके अनुसार इनका प्रयोग किया जाना है। आगे हम इन बातों और वरदानों के बारे में कुछ और विस्तार से देखेंगे। 

       यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं तो क्या आपको यह पता है कि परमेश्वर ने आपके लिए कौन से भले कार्य निर्धारित करके रखे हुए हैं, और क्या आप उन कार्यों को उसकी इच्छा के अनुसार पूरा कर रहे हैं? कहीं आप अपनी ही इच्छा और सुविधा के अनुसार प्रभु यीशु के नाम में कुछ भी करने के द्वारा यह तो नहीं समझ रहे हैं कि आप ने परमेश्वर के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी का सही निर्वाह कर लिया है? यदि आपको अभी भी उस कार्य का पता नहीं है जो परमेश्वर ने आपके लिए नियुक्त किया है, तो आपको प्रार्थना में परमेश्वर के सम्मुख इस बात को रखना चाहिए और उससे अपनी उस सेवकाई की पहचान माँगनी चाहिए, जो वह चाहता है कि आप उसके लिए करें। आपकी आशीष उसी सेवकाई के निर्वाह से है, अन्य कुछ करने से नहीं। 

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • यहेजकेल 45-46   
  • 1 यूहन्ना 2      

गुरुवार, 2 दिसंबर 2021

मसीही सेवकाई, पवित्र आत्मा, और बपतिस्मा - 9

 

पवित्र आत्मा का बपतिस्मा – निहितार्थ भाग 2 


कल के लेख में हमने परमेश्वर पवित्र आत्मा के विषय फैलाई जा रही गलत शिक्षाओं के मसीही विश्वासी के जीवन और उसकी सेवकाई पर आने वाले दुष्प्रभावों के निहितार्थों और घातक परिणामों के पहले भाग को देखा था। इस शृंखला के निष्कर्ष पर पहुँचने पर आज हम इन गलत शिक्षाओं में शैतान द्वारा छिपाए गए निहितार्थों के दूसरे और अंतिम भाग को देखेंगे। 

यदि कुछ गंभीरता और ध्यान से इस धारणा पर विचार किया जाए तो यह प्रकट हो जाता है कि ऐसी शिक्षाएं एक शैतानी चाल हैं, लोगों को सच्चाई से भटकाने और वचन को ऐसे तोड़-मरोड़ कर सिखाने के लिए, जिससे अनजाने में और नासमझी में होकर (यशायाह 5:13; होशे 4:6) मनुष्य परमेश्वर से भी बढ़कर बनने का प्रयास करने लगे - वही कार्य जिसे करने के कारण लूसिफर को स्वर्ग से गिरा दिया गया और वह शैतान बन गया। इन गलत शिक्षाओं के द्वारा शैतान बारंबार एक प्रतीत होने वाली भक्ति और धार्मिकता का आवरण डालकर, यह दिखाने और सिखाने का प्रयास करता है कि मनुष्य अपने प्रयास से परमेश्वर को नियंत्रित तथा संचालित कर सकता है; परमेश्वर को अपने हाथ की कठपुतली बना सकता है। 


  • ऊपर हम देख चुके हैं, कि यद्यपि यह स्पष्ट लिखा हुआ है कि पवित्र आत्मा पाना और पवित्र आत्मा से बपतिस्मा एक ही बात को कहने के दो भिन्न तरीके हैं, फिर भी इन गलत शिक्षाओं को सिखाने और फैलाने वाले, ‘से’ के स्थान पर ‘का’ लगाकर यही सिखाने और दिखाने का प्रयास करते हैं कि यह एक अलग बात है, जो मनुष्य के अपने प्रयासों के द्वारा संभव है; इसलिए सेवकाई में लगे मसीही विश्वासियों को अवश्य ही इसके लिए प्रयास और प्रार्थना करनी चाहिए। यह न केवल उनका ध्यान और समय उनकी सेवकाई से हटाकर व्यर्थ बात में फंसाना और उन्हें प्रभु के लिए उपयोगी होने से बाधित करना, उनकी सेवकाई और प्रभु के लिए उनकी उपयोगिता में व्यर्थ का विलंब करवाना है; वरन उनके मनों में यह बात डालना भी है कि वे परमेश्वर को बाध्य कर सकते हैं कि वह उनके लिए उनकी इच्छा के अनुसार करे। 

  • यदि यह कहा जाए कि पवित्र आत्मा का बपतिस्मा विश्वासी के अंदर उद्धार पाते ही आकर बस जाने वाले पवित्र आत्मा को प्राप्त करना नहीं अपितु उसे सक्रिय (activate) कर देना है; तो इसका अभिप्राय हो जाता है कि परमेश्वर पवित्र आत्मा, जो पश्चाताप और प्रभु में विश्वास करने के साथ ही विश्वासी को परमेश्वर की ओर से दे दिया गया, वह आकर विश्वासी के अंदर शांत और निष्क्रिय बैठा हुआ होता है, और तब तक इस स्थिति में रहेगा, जब तक कि विश्वासी उसे जागृत कर के सक्रिय और कार्यकारी न कर दे। अर्थात कार्य करवाने वाला परमेश्वर पवित्र आत्मा नहीं, वरन उसे नियंत्रित करने वाला मनुष्य है, जिसमें पवित्र आत्मा विद्यमान है। जबकि ऐसी कोई शिक्षा पवित्र आत्मा के बारे में प्रभु यीशु ने न तो यूहन्ना 14 और 16 अध्यायों में, न ही पत्रियाँ लिखने वाले प्रेरितों और शिष्यों ने किसी अन्य स्थान पर कभी भी, कहीं पर भी दी; न ही बाइबल में किसी अन्य स्थान पर ऐसी कोई बात कही गई है। यह केवल शैतान के बहकावे में आकर मनुष्य द्वारा परमेश्वर पर हावी होने का प्रयास करना है। 

  • यदि यह कहा जाए कि पवित्र आत्मा मिलता तो सभी विश्वासियों को है, किन्तु कुछ ऐसे भी होते हैं जिन्हें उनकी सेवकाई के लिए कुछ अधिक सामर्थ्य की आवश्यकता होती है, इसलिए उन्हें एक और अनुभव, पवित्र आत्मा का बपतिस्मा प्राप्त करने की आवश्यकता होती है, तो यह भी वचन की किसी भी शिक्षा के साथ मेल नहीं खाता है। भक्ति और धार्मिकता के नाम पर यह मसीही विश्वासियों में भिन्नता और मतभेद उत्पन्न करने का प्रयास है; उन्हें घमंड में गिराने का तरीका है। यदि इसे स्वीकार किया जाता है तो, इस विचारधारा के परिणाम समझना कुछ कठिन नहीं है:

    • यह मसीही विश्वासियों को विभाजित करती है - पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाए हुए और न पाए हुए में बाँट देती है। वचन स्पष्ट दिखाता है कि जब भी किसी भी आधार पर लोगों ने अपने आप को भिन्न देखने या दिखाने का प्रयास किया है, तो कलीसिया में परेशानियाँ ही आई हैं, फूट ही पड़ी है, कभी कोई उन्नति नहीं हुई - (i) अगुवों के नाम और अनुसरण पर विभाजन के कारण कुरिन्थुस की मंडली में फूट पड़ी (1 कुरिन्थियों 1:11-13)। (ii) इब्रानी और यूनानी विश्वासी कहलाए जाने से फूट और बैर आया, जिसका बुरा प्रभाव प्रेरितों के प्रार्थना और वचन की सेवा पर पड़ने लगा (प्रेरितों 6:1-4)। (iii) यहूदी और गैर-यहूदी मसीही विश्वासियों के मध्य खींच-तान और अलगाव से सभी प्रेरितों और पौलुस को भी जूझते ही रहना पड़ा (प्रेरितों 15:1-2, 5, 10-11; इफिसियों 2:17-22)। यही स्थिति, इस प्रकार बपतिस्मा पाए और न पाए हुओं के मध्य उत्पन्न होकर प्रभु के लोगों में और उसकी कलीसिया में फूट और मतभेद उत्पन्न करती है। 

    • जो अपने आप को अलग से पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाए हुए समझते हैं, वे अपने आप को अन्य विश्वासियों से कुछ उच्च श्रेणी का समझने लगते हैं; घमंड में आ जाते हैं, जो उनकी मसीही सेवकाई, तथा संसार में मसीही गवाही और कलीसिया के काम के लिए घातक है, क्योंकि परमेश्वर मनुष्य के घमंड के साथ नहीं निभा सकता है, उसके साथ कोई समझौता नहीं कर सकता है। इसके विपरीत जिन्होंने यह तथाकथित बपतिस्मा नहीं पाया है, और बहुत प्रयास करने के बाद भी उन्हें यह अनुभव नहीं मिला है, और क्योंकि ऐसा कुछ है ही नहीं इसलिए कभी मिलेगा भी नहीं, उनमें निराशा और हीन भावना आने लगती है, और वे अपनी सेवकाई में कमज़ोर पड़ने लगते हैं। दोनों ही स्थितियों में हानि प्रभु के लोगों और उनकी सेवकाई तथा परमेश्वर के सुसमाचार के प्रचार और प्रसार ही की होती है, और लाभ शैतान को मिलता है। 

    • इस विचारधारा से यह समझ भी फैलती है कि अलग सेवकाइयों के लिए अलग वरदानों ही की नहीं वरन अलग अतिरिक्त सामर्थ्य की भी आवश्यकता होती है; जिसका अभिप्राय यह निकलता है कि कुछ सेवकाई प्रमुख हैं, जिनके लिए विशेष सामर्थ्य की आवश्यकता होती है, और शेष हलकी या गौण हैं, जिनके लिए किसी विशेष सामर्थ्य की आवश्यकता नहीं है। यह फिर से मसीही सेवकों में दरार और ऊँच-नीच की भावना को जन्म देता है। यह सेवकाई के लिए दिए जाने वाले पवित्र आत्मा के वरदानों की शिक्षा के बिल्कुल विरुद्ध है। वरदान कोई भी हो, सब मिलकर एक ही देह के अंग हैं, कोई बड़ा या छोटा, अथवा महत्वपूर्ण या गौण नहीं है (रोमियों 12:3-5)। परमेश्वर प्रत्येक को उसे सौंपी गई सेवकाई के आधार पर प्रतिफल देगा, न कि वरदानों के अधिक अथवा कम महत्वपूर्ण होने की धारणा के अनुसार (मत्ती 20:9-15)। पवित्र आत्मा की आज्ञाकारिता से ही उसकी सामर्थ्य उपलब्ध है।


परमेश्वर ने हम मसीही विश्वासियों को अपनी पवित्र आत्मा के द्वारा, हमारे उद्धार पाने के साथ ही मसीही जीवन एवं सेवकाई के लिए आवश्यक सामर्थ्य तथा अपने वचन के द्वारा उपयुक्त मार्गदर्शन दे रखा है; अब यह हम पर है कि हम उसका सदुपयोग करें और प्रभु के योग्य गवाह बनें।


यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी। 


एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • यहेजकेल 42-44   

  • 1 यूहन्ना   


बुधवार, 1 दिसंबर 2021

मसीही सेवकाई, पवित्र आत्मा, और बपतिस्मा - 8

 

पवित्र आत्मा का बपतिस्मा – निहितार्थ भाग 1


परमेश्वर पवित्र आत्मा के विषय फैलाई जा रही गलत शिक्षाओं के मसीही विश्वासी के जीवन और उसकी सेवकाई पर आने वाले दुष्प्रभावों को हमने पिछले लेखों में अध्ययन किया है। इस शृंखला के निष्कर्ष पर पहुँचने पर आज और कल हम इन गलत शिक्षाओं में शैतान द्वारा छिपाए गए निहितार्थों को देखेंगे। 


जैसे हम पहले भी देख चुके हैं, पवित्र आत्मा कोई वस्तु नहीं है जिसे विभाजित करके टुकड़ों में या अंश-अंश करके दिया जा सके। वह ईश्वरीय व्यक्तित्व है, और जब भी, जिसे भी दिया जाता है, उसमें वह अपनी संपूर्णता में ही वास करता है, टुकड़ों में नहीं। इसलिए जब मसीही विश्वासियों को पवित्र आत्मा एक बार मिल जाता है, और यदि पवित्र आत्मा का बपतिस्मा यदि कोई अलग अनुभव है, तो फिर उस संपूर्णता में मिले हुए परमेश्वर पवित्र आत्मा के विश्वासी में विद्यमान होने के बाद, उसके उद्धार के लिए अपने पुत्र को बलिदान कर देने के बाद, उद्धार पाने पर उसे अपनी संतान बनाकर स्वर्ग का वारिस बना लेने के बाद, उसे अब परमेश्वर की ओर से और क्या दिया जाना शेष रह गया है? 


इन गलत शिक्षाओं के अनुसार पवित्र आत्मा तो फिर परमेश्वर नहीं रहा वरन मनुष्य के हाथों की कठपुतली हो गया। और क्योंकि त्रिएक परमेश्वर के तीनों स्वरूप – परमेश्वर पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा समान और एक ही हैं, इसलिए या तो फिर शेष दोनों स्वरूप भी उस कठपुतली के समान हो गए, अन्यथा पवित्र त्रिएक परमेश्वर में विभाजन है, तीनों समान और एक नहीं हैं। पवित्र आत्मा से संबंधित ‘पवित्र आत्मा का बपतिस्मा’ की इस गलत शिक्षा को स्वीकार करने का अर्थ है, मसीह की देह, उसकी कलीसिया को दो भागों में विभाजित करना – वे जिन के पास यह पवित्र आत्मा की भरपूरी या परिपूर्णता ‘है’, और वे जिन के पास यह ‘नहीं है।’ और फिर इस से, जिनके पास ‘है’ उन में ‘उच्च श्रेणी का होने,’ ‘बेहतर क्षमता और कार्य-कुशलता वाले होने,’ और ‘परमेश्वर से आशीष और प्रतिफल पाने पर अधिक दावा रखने’ की भावनाओं के द्वारा उनमें उनकी आत्मिकता के बारे में, उनके औरों से अधिक श्रेष्ठ और परमेश्वर के लिए उपयोगी होने के बारे में घमंड उत्पन्न करना। तथा जिनके पास ‘नहीं है’ उन्हें इस ‘विशिष्ट विश्वासियों’ के समूह में सम्मिलित होने और उस समूह के लाभ अर्जित कर पाने के निष्फल व्यर्थ प्रयासों को करते रहने के चक्करों में फंसा देना। दोनों ही स्थितियों में, अंततः परिणाम एक ही है – वास्तविक मसीही परिपक्वता और प्रभु के लिए प्रभावी होने में गिरावट आना, परस्पर ऊँच-नीच, अनबन, और कलह की स्थिति उत्पन्न होना (1 कुरिन्थियों 3:1-3)। जिनके पास ‘है’ उन में इस के कारण उठने वाले घमंड, वर्चस्व, तथा औरों पर अधिकार रखने की भावनाओं तथा घमंड के कारण; और जिनके पास ‘नहीं है’ उन्हें एक पूर्णतः अनावश्यक और अनुचित कार्य में समय गंवाने और व्यर्थ प्रयास करने में लगा देने के द्वारा, मसीही विश्वास, परमेश्वर के वचन, और प्रभु के लिए प्रभावी होने में बढ़ने से बाधित कर देना।


इस के अतिरिक्त, इस एक छोटी सी और अ-हानिकारक प्रतीत होने वाली बात से संबंधित गलत शिक्षा में शैतान ने एक बार फिर से परमेश्वर के विरुद्ध बहुत बड़ा षड्यंत्र लपेट कर ‘भक्ति की आदरणीय बात’ के रूप छिपा कर हम में घुसा दिया है। और हमारा इसलिए इस बात के प्रति सचेत होना, उस की सही समझ रखना, इस गलत शिक्षा से निकलना, और बच के रहना अनिवार्य है (2 कुरिन्थियों 2:11)। पवित्र आत्मा प्राप्त कर लेने के पश्चात, उस की प्रभावी उपस्थिति एवं सामर्थ्य को बढ़ाने के लिए बाद में किसी अन्य प्रक्रिया के द्वारा पवित्र आत्मा से भर जाने अथवा ‘परिपूर्ण’ होने के एक भिन्न अनुभव का संभव होने की बात कहने से तो यही अर्थ निकलता है कि पवित्र आत्मा को बांटा जा सकता है, उसे घटाया या बढ़ाया जा सकता है, उसे किस्तों या टुकड़ों में लिया या दिया जा सकता है, मनुष्य पवित्र आत्मा की उपलब्ध ‘मात्रा’ और गुणवत्ता’ को प्रभावित तथा नियंत्रित कर सकता है; इत्यादि।


ये सभी बातें न केवल वचन के विरुद्ध हैं, वरन पवित्र आत्मा के त्रिएक परमेश्वर का स्वरूप होने का इनकार करने का प्रयास करती हैं, जिसका अर्थ हो जाता है कि पवित्र त्रिएक परमेश्वर का सिद्धांत झूठा है, और फिर इसलिए परमेश्वर का वचन जो कि यह सिद्धांत सिखाता है, वह भी झूठा ठहरा। यह गलत शिक्षा पवित्र आत्मा को पवित्र त्रिएक परमेश्वर के एक व्यक्ति के स्थान पर, एक वस्तु बना देती है जिसे काटा, छांटा, और बांटा जा सकता है और फिर मनुष्यों के प्रयासों द्वारा दिया या लिया जा सकता है। और सब से अनुचित यह कि यह शिक्षा, परमेश्वर पवित्र आत्मा को मनुष्य के हाथों का खिलौना बना देती हैं, जिसे मनुष्य अपने व्यवहार और आचरण, अर्थात अपने कर्मों के द्वारा निर्धारित और नियंत्रित कर सकता है कि पवित्र आत्मा कब, किसे, कैसे, और कितना दिया जाएगा, और फिर वह उस मनुष्य में क्या और कैसे कार्य करेगा!


निष्कर्ष यह कि इस गलत शिक्षा को स्वीकार करने का अर्थ है कि परमेश्वर का वचन संपूर्ण एवं पूर्णतः सत्य नहीं है - उसमें मनुष्यों द्वारा जोड़ा या घटाया जा सकता है, उसमें फेर-बदल की जा सकती है; तथा यह भी कि परमेश्वर मनुष्य की मुठ्ठी में किया जा सकता है; और मनुष्य उसे अपनी इच्छानुसार नियंत्रित और उपयोग कर सकता है! परमेश्वर इस घोर विधर्म के विचार से भी हमारी रक्षा करे, हमें इस के घातक फरेब में कभी भी न पड़ने दे। ये सभी गलत शिक्षाएं परमेश्वर और उसके पवित्र वचन को झुठलाने और उसे हमारे जीवनों में अप्रभावी करने के लिए बड़ी चतुराई तथा परोक्ष रीति से किए गए शैतान के हमले हैं; हमारे लिए इन शैतानी षड्यंत्रों को ध्यान दे कर समझना और उन से दूर रहना, और शैतान के इन छलावों में फँसने से बच कर रहना बहुत अनिवार्य है।


परमेश्वर ने हम मसीही विश्वासियों को अपनी पवित्र आत्मा के द्वारा, हमारे उद्धार पाने के साथ ही मसीही जीवन एवं सेवकाई के लिए आवश्यक सामर्थ्य तथा अपने वचन के द्वारा उपयुक्त मार्गदर्शन दे रखा है; अब यह हम पर है कि हम उसका सदुपयोग करें और प्रभु के योग्य गवाह बनें।


यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी। 



एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • यहेजकेल 40-41   

  • 2 पतरस 3


मंगलवार, 30 नवंबर 2021

मसीही सेवकाई, पवित्र आत्मा, और बपतिस्मा - 7


पवित्र आत्मा का बपतिस्मा – भाग 3  1 कुरिन्थियों 12:13 से समझना 

पिछले दो लेखों में हमने देखा और समझा है किपवित्र आत्मा से भरनाकोई पृथक या किसी-किसी को ही प्राप्त होने वाला विलक्षण अनुभव नहीं है; और न ही यहपवित्र आत्मा से बपतिस्माके साथ संबंधित है, या उसके समान है। आज हमपवित्र आत्मा का बपतिस्माकहकर गलत शिक्षाओं के फैलाने वालों के द्वारा प्रयोग किए जाने वाले बाइबल के एक और पद की व्याख्या के द्वारा उनकी गलत शिक्षाओं को देखेंगे और समझेंगे। 

इस संदर्भ में एक और महत्वपूर्ण पद 1 कुरिन्थियों 12:13 “क्योंकि हम सब ने क्या यहूदी हो, क्या युनानी, क्या दास, क्या स्वतंत्र एक ही आत्मा के द्वारा एक देह होने के लिये बपतिस्मा लिया, और हम सब को एक ही आत्मा पिलाया गयाको देखिए, उसपर विचार कीजिए, और उसकी बातों पर ध्यान दीजिए:

  • ध्यान दीजिए कि यहाँ पर भी बपतिस्मे के संबंध में प्रयोग किया गया वाक्यांश हैआत्मा के द्वारा”, न किआत्मा का” - जैसा अन्य उदाहरणों में हम पहले देख चुके हैं कि पवित्र आत्मा केवल  माध्यम है, उसका अपना अलग से कोई बपतिस्मा नहीं है। 
  • दूसरी बात, मसीही विश्वासियों की मण्डली में विभिन्न पृष्ठभूमियों से आए हुए लोगों के प्रभु में विश्वास के द्वारा एक हो जाने के विषय में पवित्र आत्मा की अगुवाई से लिखते हुए पौलुस प्रेरित ने कुरिन्थुस के मसीही विश्वासियों को पवित्र आत्मा के द्वारा मिले बपतिस्मे का उद्देश्य समझाया -हम सब ने क्या यहूदी हो, क्या युनानी, क्या दास, क्या स्वतंत्र एक ही आत्मा के द्वारा एक देह होने के लिये बपतिस्मा लिया”! कितना स्पष्ट लिखा गया है कि पवित्र आत्मा से बपतिस्मा सभी मसीही विश्वासियों को एक दूसरे के साथ एकता में ले आने के लिए है; सबको प्रभु में एक देह कर देने के लिए। अब इसके समक्ष कोई भी जन किस आधार पर कह सकता है कि पवित्र आत्मा से बपतिस्मा कुछ ही विश्वासी पा सकते हैं? या यह कि इसकी आवश्यकता अधिक सामर्थी होकर सेवकाई करने, आश्चर्यकर्म करने और चंगाइयाँ देने के लिए है? यहाँ पर तो ऐसा कुछ नहीं लिखवाया गया है; वरन पवित्र आत्मा ने स्वयं लिखवा दिया कि उसमें मिलने वाले बपतिस्मे से लोग एक देह किए जाएंगे, इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं होगा। तो फिर अब इस उद्देश्य और प्रयोजन को छोड़ कर, और ही बातें पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाने के साथ जोड़ना क्या वचन में मनुष्यों की बातों, विचारों, और धारणाओं की मिलावट करना नहीं है? क्या ऐसा करना उचित है? क्या सच्चे और समर्पित मसीही विश्वासियों के द्वारा परमेश्वर के वचन के साथ इस प्रकार की हेरा-फेरी स्वीकार की जा सकती है
  • इसी पद की तीसरी बात पर ध्यान कीजिए, लिखा है, “बपतिस्मा लिया; baptized into”; पवित्र आत्मा ने यहाँ परभूत काल’ (past tense) का प्रयोग करवाया है। तात्पर्य यह, कि पवित्र आत्मा से यह बपतिस्मा सभी मसीही विश्वासियों द्वारा (हम सब ने क्या यहूदी हो, क्या युनानी, क्या दास, क्या स्वतंत्र”) पहले लिया जा चुका है; अब उसे दोहराने के लिए या उसे मांगने के लिए किसी प्रयास अथवा प्रार्थना की कोई आवश्यकता नहीं है; ऐसा करना व्यर्थ है। न ही यह सिखाया गया है कि भावी मसीही विश्वासी भी इसकी लालसा रखें और इसके लिए प्रयास करते रहें। 

इस पद के द्वारा भी एक बार फिर उन गलत शिक्षाओं को देने वालों का झूठ और आधार-रहित बातें कहना और सिखाना प्रकट है। वे कहते हैंपवित्र आत्मा का बपतिस्माप्राप्त कर लेने के लिए प्रयास करो जिससे सामर्थी बन कर कार्य कर सको, पवित्र आत्मा से भरे जा सको। जबकि पवित्र आत्मा अपने द्वारा लिखवाए वचन में कहता है बपतिस्मा पवित्र आत्मा से है, पवित्र आत्मा का नहीं है। पवित्र आत्मा से भरने का अर्थ है उद्धार प्राप्त करते ही मसीही विश्वासी में आ कर रहने वाले परमेश्वर पवित्र आत्मा से निरंतर सीखते रहना और उनके प्रति समर्पण तथा आज्ञाकारिता में होकर उनकी सामर्थ्य से कार्य करते रहना। पवित्र आत्मा से बपतिस्मे का उद्देश्य मसीह में विश्वास के द्वारा सभी विश्वासियों को एक देह करना है; उन्हें आश्चर्यकर्म और सामर्थ्य के कार्य करने के लिए सामर्थी बनाना नहीं। पवित्र आत्मा के नाम से गलत शिक्षाएं देने वाले सिखाते हैं कि भविष्य में भी इस बपतिस्मे को प्राप्त करने के प्रयास करना है, जबकि पवित्र आत्मा ने लिखवाया है कि यह बपतिस्मा सभी विश्वासियों को स्वतः ही उनके बिना किसी अतिरिक्त प्रयास या मांगने के पहले ही दे दिया गया है। अब किस की शिक्षा सच्ची, अनन्तकालीन, और विश्वास योग्य है जिसे माना जाए - इन गलतियों से भरे हुए मनुष्यों की, या परमेश्वर पवित्र आत्मा की?

इसी पद में दी गई एक और बात पर ध्यान कीजिए - ऐसी बात जो पवित्र आत्मा से, मसीही विश्वासी में उनके कार्य से सीधे से संबंधित है, किन्तु जिसका कोई उल्लेख, कोई प्रयोग, जिसकी कोई बात ये गलत शिक्षाएं देने वाले नहीं करते हैं। 1 कुरिन्थियों 12:13 के अंतिम वाक्यऔर हम सब को एक ही आत्मा पिलाया गयापर ध्यान कीजिए। परमेश्वर पवित्र आत्मा के नाम का प्रयोग करते हुए इन गलत शिक्षाएं देने वालों में से क्या आज तक कभी किसी को यह कहते सुना है किहमें पवित्र आत्मा को पीना या पिलाया जाना भी आवश्यक है; इसलिए पवित्र आत्मा को पी लेने की प्यास रखो, या पवित्र आत्मा के लिए अपने जीवन में प्यास विकसित करो?” यदि वेपवित्र आत्मा से बपतिस्मालेने की बात कोपवित्र आत्मा का बपतिस्माबताकर फिर उसे इतना महत्व दे सकते हैं, उससे संबंधित इतने मन-गढ़न्त सिद्धांत बना सकते हैं, इतने बलपूर्वक उनका प्रचार कर सकते हैं, उन मन-गढ़न्त सिद्धांतों को मानने के लिए इतना ज़ोर दे सकते हैं, तो फिर इस वचन के अनुसारपवित्र आत्मा के पी लेनेके विषय क्यों चुप हैं? सच तो यह है कि यह पूरा पद उनकी शिक्षाओं और सिद्धांतों के विरुद्ध जाता है, उनकी झूठी शिक्षाओं की पोल खोलता है, इसलिए वे इस पद को छिपाए रखते हैं; या बस इसके एक वाक्यांशपवित्र आत्मा द्वारा बपतिस्मा लियाभर को लेकर, उसपर अपने ही अर्थ लगा कर, उसका दुरुपयोग अपनी गलत शिक्षाओं और धारणाओं को अनुचित समर्थन देने के लिए करते हैं। 

परमेश्वर ने हम मसीही विश्वासियों को अपनी पवित्र आत्मा के द्वारा, हमारे उद्धार पाने के साथ ही मसीही जीवन एवं सेवकाई के लिए आवश्यक सामर्थ्य तथा अपने वचन के द्वारा उपयुक्त मार्गदर्शन दे रखा है; अब यह हम पर है कि हम उसका सदुपयोग करें और प्रभु के योग्य गवाह बनें।

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी। 

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • यहेजकेल 37-39   

  • 2 पतरस 2

सोमवार, 29 नवंबर 2021

मसीही सेवकाई, पवित्र आत्मा, और बपतिस्मा - 6


पवित्र आत्मा से भरना या परिपूर्ण होना क्या है? – भाग 2 समझना 

पिछले लेख में हमने वचन के उदाहरणों से तथा इफिसियों 5:18 की व्याख्या द्वारा देखा था किपवित्र आत्मा से भरनाकोई पृथक या किसी-किसी को ही प्राप्त होने वाला विलक्षण अनुभव नहीं है; और न ही यहपवित्र आत्मा से बपतिस्माके साथ संबंधित है, या उसके समान है। क्योंकिपवित्र आत्मा का बपतिस्माकहकर गलत शिक्षाओं के फैलाने वालों नेपवित्र आत्मा से भरनाके संबंध में भी बहुत सी गलत शिक्षाएं फैला रखी हैं, इसलिए आज के लेख में कुछ सामान्य जीवन की बातों और उदाहरणों के द्वारा इसे विस्तार से और ठीक से समझेंगे। 

यदि मसीही विश्वासी पवित्र आत्मा के निर्देशानुसार (गलातियों 5:16, 25) नहीं चलता है, उसकी आज्ञाकारिता के द्वारा उसकी सामर्थ्य को प्रयोग नहीं करता है, तो पवित्र आत्मा उसके जीवन में शोकित, अप्रभावी, तथा निष्फल रहता है (इफिसियों 4:30; 1 थिस्सलुनीकियों 5:19)। इसे इस उदाहरण द्वारा समझिए - आपके घर में बिजली का कनेक्शन और तार लगे हैं और उन तारों में बिजली प्रवाहित भी होती रहती है। किन्तु जब तक आप कोई कार्यशील, एवं बिजली से चलने वाला उपयुक्त उपकरण उसके साथ जोड़कर बिजली को अपना कार्य नहीं करने देते हैं, तब तक उस बिजली की आपके घर में उपस्थिति निष्क्रिय, निष्फल, एवं प्रभाव रहित है। आप जैसा और जितना शक्तिवान उपकरण जोड़ेंगे और बिजली को उस में से प्रवाहित होकर कार्यकारी होने देंगे, उतना ही आप उस विद्यमान बिजली की सामर्थ्य को प्रत्यक्ष देखेंगे, और उसका सदुपयोग करेंगे। उपकरण चाहे छोटा एवं कम शक्ति का हो, अथवा बड़ा एवं अधिक शक्ति का, उसमें प्रवाहित होने वाली बिजली एक ही और समान गुणवत्ता की होगी। उस बिजली की सामर्थ्य का प्रदर्शन तथा उपयोग उस उपकरण द्वारा बिजली का प्रयोग करने की क्षमता पर निर्भर होगा, क्योंकि प्रवाहित होने वाली बिजली तो सारे घर के सभी तारों और उपकरणों में एक ही है।

इसी प्रकार से आप जितना अधिक परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारी और समर्पित रहेंगे, जितना उसके वचन के अनुसार चलेंगे, जितना परमेश्वर को और उसके वचन को अपने जीवन में उच्च स्थान और आदर देंगे, उतना अधिक पवित्र आत्मा की सामर्थ्य आप में होकर कार्य करेगी, प्रकट होगी। यदि आपका आत्मिक जीवन कमज़ोर रहेगा, तो आपको अपने जीवन में पवित्र आत्मा की सामर्थ्य भी उतनी ही कम अनुभव होगी तथा दिखाई देगी। यदि आप मात्र औपचारिकता पूरी करने के लिए बाइबल का एक छोटा खंड पढ़ना, और कुछ औपचारिक प्रार्थना दोहराना भर ही कर सकते हैं – और बहुतेरे तो यह भी नहीं करते हैं, तो फिर आप कैसे आशा रख सकते हैं कि आप वचन की अच्छे समझ रखेंगे और के जीवन में पवित्र आत्मा की जीवन्त, प्रभावी, तथा सामर्थी उपस्थिति दिखाई देगी?

परमेश्वर पवित्र आत्मा से परमेश्वर के वचन को सीखने के लिए एक और उदाहरण पर विचार कीजिए। किसी भी स्तर की शिक्षा प्राप्त करने के लिए बच्चों को नियमित स्कूल में जाना होता है, बैठ कर, और ध्यान देकर पढ़ना होता है, ठीक से अपना गृह कार्य करना होता है, परीक्षाओं में उत्तीर्ण होना पड़ता है, तभी वे ज्ञान और समझ में बढ़ने पाते हैं, और जीवन में कुछ कर पाने के योग्य होने पाते हैं। यह उनके प्रतिदिन कुछ मिनिट तक स्कूल के विभिन्न गलियारों में हो कर घूमने-फिरने और निकलने, और फिर वापस घर भाग आने तथा फिर शेष दिन को अन्य बातों में व्यतीत करने के द्वारा नहीं हो सकता है। इसी प्रकार से आत्मिक पाठशाला में भी उचित समय के लिए एकाग्र मन के साथ सीखने के उद्देश्य और तैयारी के साथ बैठना, वहां पर्याप्त समय बिताना, तथा ध्यान दे कर पवित्र आत्मा की बात को सुनना तथा उनसे सीखना, और जीवन के अनुभवों की परीक्षाओं से हो कर निकलना होता है। तब ही परमेश्वर का वचन सीखा जा सकता है, तथा प्रभु का जीवन और सामर्थ्य व्यक्ति के जीवन में दिखाई देती है।

प्रत्येक वास्तविक नया जन्म पाया हुआ मसीही विश्वासी पवित्र आत्मा का मंदिर है और पवित्र आत्मा मसीही विश्वासी में सदा विद्यमान है, बसा हुआ है (2 तीमुथियुस 1:14)। मसीही विश्वासी जब अपने आत्मिक स्तर एवं परिपक्वता के अनुसार, पवित्र आत्मा की सामर्थ्य और आज्ञाकारिता में होकर परमेश्वर की महिमा एवं कार्य के लिए कुछ ऐसा करने पाता है, जो उसके लिए अपने आप से, या किसी मानवीय सामर्थ्य, अथवा ज्ञान, या अपनी किसी योग्यता से कर पाना संभव नहीं था, तो यही पवित्र आत्मा से भरकर कार्य करना होता है, जैसा कि हम पहले पतरस, यूहन्ना और पौलुस के जीवनों के उदाहरणों से देख चुके हैं।

क्योंकि सामान्यतः सभी मसीही विश्वासी परमेश्वर और उसके वचन के प्रति अपने विश्वास, समर्पण, और आज्ञाकारिता में न तो एक समान स्तर के होते हैं, और न ही सभी उस उच्च-स्तर के होते हैं जितने कुछ विशिष्ट लोग अपने मसीही समर्पण, आज्ञाकारिता, और परिपक्वता के कारण हो जाते हैं, इसलिए ऐसा लगता है कि पवित्र आत्मा से भरकर कार्य करना, अर्थात पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से कुछ अद्भुत या विलक्षण काम करना, केवल कुछ विशिष्ट लोगों के लिए ही संभव है। किन्तु यह लोगों को बहकाए रखने और मसीही सेवकाई में अनुपयोगी एवं निष्फल करने के लिए शैतान द्वारा फैलाई जाने वाले भ्रान्ति है; और इस भ्रान्ति का दुरुपयोगपवित्र आत्मा से भरनेकी आवश्यकता की गलत शिक्षा को सिखाने और प्रचार करने के लिए किया जाता है। मसीही विश्वास, आत्मिकता, और परमेश्वर की आज्ञाकारिता में बढ़िए, और आप भी पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से भरकर कार्य करने वाले हो जाएंगे।

बड़ा ही सामान्य और स्वाभाविक सा उदाहरण है, आप किसी भी दुर्बल और रोगी मनुष्य से वैसा और उतना ही शारीरिक परिश्रम करने की आशा नहीं रखेंगे जो एक स्वस्थ और बलवंत मनुष्य सहजता से कर सकता है। जब तक संसार और सांसारिकता के साथ समझौते का रोग हम मसीही विश्वासियों को आत्मिक रीति से दुर्बल और आत्मिक रीति से अस्वस्थ बनाए रखेगा; जब तक हम संसार के लोगों, मतों और समुदायों या डिनोमेनेशंस की आज्ञाएँ मानने और उन लोगों के लिए काम करते रहने को प्राथमिकता तथा इसके कारण परमेश्वर और उस के वचन की आज्ञाकारिता को अपने जीवनों में उन की बातों से निचले दर्जे का स्थान देते रहेंगे, तथा हम जब तक प्रभु की संगति और उसके वचन के अध्ययन एवं आज्ञाकारिता को एक सर्वोपरि अनिवार्यता के स्थान नहीं देंगे; बल्कि इसे सांसारिकता के कार्यों के पश्चात उपलब्ध समय और सुविधा के अनुसार किया गया कार्य बना कर करते रहेंगे, तब तक हम अपनी आत्माओं को दुर्बल बनाए रखेंगे, तब तक हम भी वह सब कदापि नहीं करने पाएंगे जो एक आत्मिक जीवन में स्वस्थ और सबल व्यक्ति के लिए कर पाना संभव है। और हम भी इस प्रकार की गलत शिक्षाओं को गढ़ने और प्रचार करने वालों के भ्रम द्वारा ठगे जाते रहेंगे, इधर-उधर उछाले जाते रहेंगे (इफिसियों 4:14)

परमेश्वर ने हम मसीही विश्वासियों को अपनी पवित्र आत्मा के द्वारा, हमारे उद्धार पाने के साथ ही मसीही जीवन एवं सेवकाई के लिए आवश्यक सामर्थ्य तथा अपने वचन के द्वारा उपयुक्त मार्गदर्शन दे रखा है; अब यह हम पर है कि हम उसका सदुपयोग करें और प्रभु के योग्य गवाह बनें।

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी। 

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • यहेजकेल 35-36  
  • 2 पतरस 1    

रविवार, 28 नवंबर 2021

मसीही सेवकाई, पवित्र आत्मा, और बपतिस्मा - 5


पवित्र आत्मा से भरना या परिपूर्ण होना क्या है? – भाग 1 इफिसियों 5:18

सामान्य वार्तालाप एवं उपयोग में वाक्यांशभर जानेयापरिपूर्ण हो जानेके विभिन्न अभिप्राय होते हैं, और इस वाक्यांश के विषय ऐसा ही हम परमेश्वर के वचन बाइबल में भी देखते हैं। इन विभिन्न अभिप्रायों के कुछ उदाहरण हैं:

  • किसी रिक्त स्थान में समा जाना और उसे अपनी उपस्थिति सेभरदेना या परिपूर्ण अथवा ओतप्रोत कर देना। बाइबल में इस अभिप्राय का एक उदाहरण है मरियम द्वारा प्रभु के पाँवों पर इत्र उडेलना, जिसकी सुगंध से घर सुगंधित हो गया (अंग्रेज़ी में filled with the fragrance) अर्थात सुगंध से भर गया। बाइबल से इसी अभिप्राय का एक और उदाहरण है राजा के कहने पर सभी स्थानों से लोगों को लाकर ब्याह के भोज के लिए बैठाना जिससे ब्याह का घर जेवनहारों से भर गया” (मत्ती 22:10) 
  • किसी बात या भावना के वशीभूत होकर कुछ कार्य अथवा व्यवहार करना; जैसे कि 
    • लोगों का प्रभु या उसके शिष्यों के विरुद्ध क्रोध से भर जाना और हानि पहुँचाने का प्रयास करना  (लूका 4:28-29; 6:11; प्रेरितों 5:17; 13:45)
    • आश्चर्यकर्म को देखकर अचरज और भय के वशीभूत हो जाना (लूका 5:26; प्रेरितों 3:10)
    • अत्यधिक आनंदित हो जाना (प्रेरितों 13:52)
  • पवित्र आत्मा को प्राप्त करना (प्रेरितों 9:17)
  • पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से अभूतपूर्व कार्य करना (प्रेरितों 2:4; 4:8, 31; 13:9-11)

इनके अतिरिक्त वाक्यांशभर जानेयापरिपूर्ण हो जानेके और भी प्रयोग बाइबल में दिए गए हैं, जैसा कि सामान्य भाषा में भी अन्य प्रयोग होते हैं। किन्तु, हमारे संदर्भ के विषय के लिए, बाइबल में कहीं पर भी इस वाक्यांश का अर्थ पवित्र आत्मा से बपतिस्मा प्राप्त करना नहीं दिया गया है; न हीभर जानेयापरिपूर्ण हो जानेको पवित्र आत्मा से बपतिस्मा प्राप्त करने के समतुल्य बताया गया है, और न ही ऐसा कोई संकेत भी किया गया है। सामान्यतः बाइबल में वाक्यांशभर जानेयापरिपूर्ण हो जानेका अर्थ और प्रयोग किसी की सामर्थ्य अथवा उपस्थिति के वशीभूत होकर अथवा उससे प्रेरित होकर कुछ अद्भुत या अभूतपूर्व कर पाने के संदर्भ में होता है। पवित्र आत्मा से भर जाना से अभिप्राय है पवित्र आत्मा की सामर्थ्य, उसके नियंत्रण में होकर कार्य करना।

इसके लिए इफिसियों 5:18 “और दाखरस से मतवाले न बनो, क्योंकि इस से लुचपन होता है, पर आत्मा से परिपूर्ण होते जाओके आधार पर पवित्र आत्मा के विषय गलत शिक्षाओं को बताने और सिखाने वालों के द्वारा दावा किया जाता है कि पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होने या भर जाने की शिक्षा बाइबल में दी गई है। किन्तु यदि हम बहुधा ज़ोर देकर दोहराई जाने वाली पवित्र आत्मा संबंधी गलत शिक्षाओं के प्रभाव से निकल कर इस वाक्य को साधारण समझ से देखें, और वह भी उसके सही सन्दर्भ में, तो यहाँ असमंजस की कोई बात ही नहीं है। इस वाक्य का सीधा सा और स्पष्ट अर्थ है; इस वाक्य में दाखरस द्वारा मनुष्य को नियंत्रित कर लेने वाले प्रभाव को उदाहरण के समान प्रयोग किया गया है। पौलुस ने इस पद में पवित्र आत्मा की प्रेरणा से जो लिखा है उसे समझने के लिए इस प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है, “जिस प्रकार दाखरस सेपरिपूर्णव्यक्ति का मतवालापन, या लुचपन का व्यवहार प्रकट कर देता है कि वह व्यक्ति उसमें भरे हुए दाखरस के प्रभाव तथा नियंत्रण में है, उसी प्रकार मसीही विश्वासी को अपने आत्मा से भरे हुए यापरिपूर्णहोने को अपने आत्मिक व्यवहार के द्वारा प्रदर्शित और व्यक्त करना है कि वह पवित्र आत्मा से भरा हुआ है, उसके नियंत्रण में हैऔर फिर इससे आगे के पद 19 से 21 में वह पवित्र आत्मा सेभरेहुए होने पर किए जाने वाले अपेक्षित व्यवहार की बातें बताता है।

इस वाक्य में एक और बात पर ध्यान कीजिए, पौलुस ने लिखा है, ‘...परिपूर्ण होते जाओयानि कि यह लगातार होती रहने वाली प्रक्रिया है। अर्थात, इसे यदा-कदा किए जाने वाला कार्य मत समझो वरन लगातार पवित्र आत्मा के प्रभाव और नियंत्रण में बने रहो। इस कथन का न तो यह अर्थ है, और न ही हो सकता है, कि तुम्हें पवित्र आत्मा की कुछ मात्रा बारंबार लेते रहना पड़ेगा जब तक कि तुम उस सेभरनहीं जाते हो; और न ही यह अर्थ है कि क्योंकि पवित्र आत्मा व्यक्ति में से रिस कर निकलता रहता है, इस लिए जब भी ऐसा हो जाए तो उसे फिर सेभरलेने के लिए पर्याप्त मात्रा में उसे ले लो। यह तो कभी हो ही नहीं सकता है, क्योंकि जैसा पहले देखा जा चुका है, पवित्र आत्मा परमेश्वर है, पवित्र त्रिएक परमेश्वर का एक व्यक्तित्व, उसे बांटा नहीं जाता है, वह टुकड़ों या किस्तों में नहीं मिलता है, न ही किसी व्यक्ति में उसे घटाया या बढ़ाया जा सकता है, और वह हर किसी सच्चे मसीही विश्वासी में मात्रा तथा गुणवत्ता में समान ही विद्यमान होता है। क्योंकि यही वचन का सच है तो फिर संभव भी केवल यही है कि व्यक्ति के सच्चे मसीही विश्वास में आते ही जैसे ही पवित्र आत्मा उसे मिला, वह तुरंत ही उससेभर गयायापरिपूर्णभी हो गया। 

इस बात की पुष्टि प्रेरितों 2:3-4 “और उन्हें आग की सी जीभें फटती हुई दिखाई दीं; और उन में से हर एक पर आ ठहरीं। और वे सब पवित्र आत्मा से भर गए, और जिस प्रकार आत्मा ने उन्हें बोलने की सामर्थ्य दी, वे अन्य अन्य भाषा बोलने लगे” से भी हो जाती है - पवित्र आत्मा उन एकत्रित और प्रतीक्षा कर रहे शिष्यों पर उतरा, साथ ही लिखा है कि वे शिष्य पवित्र आत्मा से भर गए - उन शिष्यों द्वारा पवित्र आत्मा को प्राप्त करना ही पवित्र आत्मा से भर जाना था। उन्हें पवित्र आत्मा से भरने के लिए अलग से कोई प्रयास नहीं करना पड़ा; और साथ ही वहाँ जीतने जन उपस्थिति थे, वे सभी एक साथ ही, समान रूप से पवित्र आत्मा से भर गए, कोई कम कोई अधिक नहीं, या कोई भर गया कोई रह गया नहीं। प्रेरितों 1:4, 5, 8 में प्रभु ने स्पष्ट कर दिया था कि पवित्र आत्मा प्राप्त करना ही पवित्र आत्मा से बपतिस्मा प्राप्त करना है; और यहाँ पर वचन यह स्पष्ट कर देता है कि पवित्र आत्मा का विश्वासी में आना और उसका पवित्र आत्मा से भर जाना एक ही बात है। अर्थात पवित्र आत्मा का विश्वासी में आना ही पवित्र आत्मा से बपतिस्मा तथा पवित्र आत्मा से भर जाना है। अब जो पवित्र आत्मा अपनी संपूर्णता में उस व्यक्ति में आ गया है, क्योंकि उससे अतिरिक्त, या अधिक, या दोबारा तो किसी को कभी मिल ही नहीं सकता है; पवित्र आत्मा उसमें अपनी संपूर्णता में हमेशा वही, वैसा ही, और उतना ही रहेगा; इसलिए अब तो बस उस व्यक्ति को अपने में विद्यमान पवित्र आत्मा की उपस्थिति को अपने आचरण द्वारा व्यक्त करते रहना है, अपने व्यवहारिक जीवन में पवित्र आत्मा के प्रभाव एवं नियंत्रण को दिखाते रहना है। 

तो इसलिए अब, किसी अन्य की तुलना में, उस व्यक्ति में विद्यमान पवित्र आत्मा के कार्यों और सामर्थ्य के दिखाए जाने में जो भी भिन्नता हो सकती है वह उस व्यक्ति में विद्यमान पवित्र आत्मा कीमात्राके भिन्न होने कारण कदापि नहीं होगी – क्योंकि न तो पवित्र आत्मा की मात्रा और न उसकी गुणवत्ता कभी भी बदल सकती है, और न ही कभी किसी अन्य से भिन्न हो सकती है। किन्तु यह परस्पर भिन्नता केवल उन व्यक्तियों में पवित्र आत्मा के प्रति समर्पण एवं आज्ञाकारिता में बने रहने और इसे अपने व्यवहारिक जीवन में प्रदर्शित करते रहने में भिन्न होने के द्वारा ही हो सकती है। किसी व्यक्ति का यह पवित्र आत्मा के प्रति आज्ञाकारिता एवं समर्पण का व्यवहार एवं आचरण, उस में पवित्र आत्मा कीमात्राका मान अथवा सूचक नहीं है। इस भिन्नता को पवित्र आत्मा की मात्रा के सूचक के रूप में प्रयोग करने या कहने की शिक्षा बाइबल की शिक्षाओं से संगत नहीं है, बल्कि इसका संकेत है कि ऐसी शिक्षाएं देने वाले पवित्र आत्मा के बारे में कितना कम और गलत जानते तथा सिखाते हैं। इस भिन्नता को समझने के बारे में कुछ विस्तार से हम अगले लेख में देखेंगे। 

       यदि आप मसीही विश्वासी हैं तो यह आपके लिए अनिवार्य है कि आप परमेश्वर पवित्र आत्मा के विषय वचन में दी गई शिक्षाओं को गंभीरता से सीखें, समझें और उनका पालन करें; और सत्य को जान तथा समझ कर ही उचित और उपयुक्त व्यवहार करें, सही शिक्षाओं का प्रचार करें। किसी के भी द्वारा प्रभु, परमेश्वर, पवित्र आत्मा के नाम से प्रचार की गई हर बात को 1 थिस्सलुनीकियों 5:21 तथा प्रेरितों 17:11 के अनुसार जाँच-परख कर, यह स्थापित कर लेने के बाद कि उस शिक्षा का प्रभु यीशु द्वारा सुसमाचारों में प्रचार किया गया है; प्रेरितों के काम में प्रभु के उस प्रचार का निर्वाह किया गया है; और पत्रियों में उस प्रचार तथा कार्य के विषय शिक्षा दी गई है, तब ही उसे स्वीकार करें तथा उसका पालन करें, उसे औरों को सिखाएं या बताएं। आपको अपनी हर बात का हिसाब प्रभु को देना होगा (मत्ती 12:36-37)। जब वचन आपके हाथ में है, वचन को सिखाने के लिए पवित्र आत्मा आपके साथ है, तो फिर बिना जाँचे और परखे गलत शिक्षाओं में फँस जाने, तथा मनुष्यों और उनके समुदायों और उनकी गलत शिक्षाओं को आदर देते रहने के लिए, उन गलत शिक्षाओं में बने रहने के लिए क्या आप प्रभु परमेश्वर को कोई उत्तर दे सकेंगे?

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • यहेजकेल 33-34  
  • 1 पतरस 5

शनिवार, 27 नवंबर 2021

मसीही सेवकाई, पवित्र आत्मा, और बपतिस्मा - 4


बपतिस्मा - पवित्र आत्मा का बपतिस्मा - 2

पिछले लेख में हमने देखा कि वाक्यांशपवित्र आत्मा का बपतिस्माबाइबल में कहीं नहीं दिया गया है, जहाँ भी लिखा है, वहाँ  “पवित्र आत्मा से बपतिस्मालिखा है, और इन छोटे से शब्दों के हेर-फेर से कही गई बात के अर्थ में बहुत अंतर आ जाता है; फिर बाइबल की बात प्रभु की न रहकर मनुष्य की बात बन जाती है। बहुधा, इसपवित्र आत्मा का बपतिस्माके विषय को लेकर लोगों में यह धारणा दी जाती है कि यह बपतिस्मा पाना पवित्र आत्मा पाने से पृथक, एक अतिरिक्त (extra) अनुभव है, जो मसीही विश्वासी को सामान्य से और अधिक सक्षम करता है, उसे परमेश्वर के लिए और अधिक उपयोगी और सामर्थी बनाता है। इसलिए जो प्रभु के लिए उपयोगी होना चाहता है, या आश्चर्यकर्म तथा सामर्थ्य के कार्य करना चाहता है, उसे प्रभु से यह अनुभव प्राप्त करना चाहिए, इसके लिए प्रयास और प्रार्थना करनी चाहिए। जबकि सत्य यह है कि बाइबल में ऐसी कोई शिक्षा कहीं पर भी नहीं दी गई है। ध्यान करें, न तो उन 3000 प्रथम विश्वासियों से, जिन्होंने पतरस के प्रचार पर विश्वास के द्वारा उद्धार पाया यह बात कही गई, और न ही पौलुस, या पतरस, या अन्य किसी प्रेरित अथवा प्रचारक के द्वारा कभी भी कहीं भी अपने विषय में कहा गया कि उस प्रचारक या सेवक ने एक अतिरिक्तपवित्र आत्मा का बपतिस्मापाया था, जिसके फलस्वरूप वह और अधिक सामर्थी होकर प्रभु के लिए उपयोगी हो सका। इन सेवकों के लिए लिखा है कि इन्होंने कुछ विशेष कार्यपवित्र आत्मा से भरकरकिए - किन्तु यह कहीं नहीं लिखा है कि ऐसा उनके द्वारापवित्र आत्मा का बपतिस्मा लेने के कारण हुआ। साथ ही एक ही सेवक के एक से अधिक बार पवित्र आत्मा से भर जाने के लिए भी लिखा है। हम पवित्र आत्मा से भरकर कार्य करने के विषय में आगे के अध्ययन में देखेंगे।    

       प्रेरितों 1:5 का वाक्य, प्रभु द्वारा वहाँ पर पद 4 में कही जा रही बात का ही ज़ारी रखा जाना है, और प्रभु की बात में कोई चकराने वाली बात (confusion) नहीं है। प्रभु ने सीधे और साफ शब्दों में पद 4 की प्रतिज्ञा - उन शिष्यों के द्वारा पवित्र आत्मा को प्राप्त करना, को ही पद 5 में पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाना कहा है, जिसकी पुष्टि फिर पद 8 में प्रभु की बात से हो जाती है। साथ ही पतरस ने भी कुरनेलियुस के घर में जब अन्यजातियों को प्रचार किया, और उन्होंने उद्धार पाया, पवित्र आत्मा उन पर उतरा, तब भी पतरस ने प्रेरितों 1:5 की बात के अनुसार ही उसे भी, अर्थात प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करने से तुरंत ही पवित्र आत्मा प्राप्त कर लेने को ही पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाना कहा (प्रेरितों 11:16) 

       न ही प्रभु ने प्रेरितों 1:5 पर अथवा किसी अन्य स्थान पर शिष्यों से यह कहा किपवित्र आत्मा की सामर्थ्य प्राप्त कर लेने के बाद, फिर और प्रयास तथा प्रार्थना करना कि तुम्हें पवित्र आत्मा से भी बपतिस्मा मिल जाए; उसके लिए यत्न करते रहना, जिससे तुम और भी अधिक सामर्थी होकर सेवकाई कर सको – जबकि ऐसा करना उनकी आने वाली विषय-व्यापी सेवकाई के लिए बहुत महत्वपूर्ण था, किन्तु अपनी महान आज्ञा में अथवा कहीं और कभी भी प्रभु ने शिष्यों से इसके विषय कोई बात नहीं कही। अर्थात, उन शिष्यों को पवित्र आत्मा से यह बपतिस्मा या अपनी विश्व-व्यापी सेवकाई के लिए उपयुक्त सामर्थ्य पाने के लिए अपनी ओर से और कुछ भी नहीं करना था; कोई प्रतीक्षा नहीं, कोई प्रयास नहीं, कोई प्रार्थना नहीं, कोई अतिरिक्त बपतिस्मा नहीं। जो होना था वह प्रभु के द्वारा स्वतः ही किया जाना था; यह उनके किसी कार्य के परिणाम स्वरूप नहीं होना था। इस पद में ऐसा कोई संकेत भी नहीं है जिससे यह आभास हो कि पवित्र आत्मा प्राप्त करना और पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाना कोई दो पृथक कार्य अथवा अनुभव हैं, क्योंकि यह स्पष्ट है कि पद 4 और 5 में एक ही बात को दो विभिन्न प्रकार से व्यक्त किया गया है। 

       जैसे हम पहले भी देख चुके हैं, पवित्र आत्मा कोई वस्तु नहीं है जिसे विभाजित करके टुकड़ों में या अंश-अंश करके दिया जा सके। वह ईश्वरीय व्यक्तित्व है, और जब भी, जिसे भी दिया जाता है, उसमें वह अपनी संपूर्णता में ही वास करता है, टुकड़ों में नहीं (यूहन्ना 3:34); और एक बार आने के बाद वह सर्वदा साथ रहता है (यूहन्ना 14:16)। तो यदि प्रेरितों 1:4 की प्रतिज्ञा के अनुसार शिष्यों को पवित्र आत्मा एक बार मिल जाना था, जो फिर उनके साथ सर्वदा बना रहता, तो फिर प्रेरितों 1:5 में कहा गया पवित्र आत्मा का बपतिस्मा यदि कोई अलग अनुभव है, तो फिर अब इस तथाकथितपवित्र आत्मा का बपतिस्माके द्वारा और क्या भिन्न, या अधिक, या अतिरिक्त, दिया जाना शेष है? क्योंकि मसीही विश्वासी को पहले से ही, विश्वास करने पर तुरंत ही, पवित्र आत्मा उसकी संपूर्णता में सर्वदा के लिए दे दिया गया है; तो फिर सेवकाई के लिए और क्या देना रह गया है?

       यदि आप मसीही विश्वासी हैं तो यह आपके लिए अनिवार्य है कि आप परमेश्वर पवित्र आत्मा के विषय वचन में दी गई शिक्षाओं को गंभीरता से सीखें, समझें और उनका पालन करें; और सत्य को जान तथा समझ कर ही उचित और उपयुक्त व्यवहार करें, सही शिक्षाओं का प्रचार करें। किसी के भी द्वारा प्रभु, परमेश्वर, पवित्र आत्मा के नाम से प्रचार की गई हर बात को 1 थिस्सलुनीकियों 5:21 तथा प्रेरितों 17:11 के अनुसार जाँच-परख कर, यह स्थापित कर लेने के बाद कि उस शिक्षा का प्रभु यीशु द्वारा सुसमाचारों में प्रचार किया गया है; प्रेरितों के काम में प्रभु के उस प्रचार का निर्वाह किया गया है; और पत्रियों में उस प्रचार तथा कार्य के विषय शिक्षा दी गई है, तब ही उसे स्वीकार करें तथा उसका पालन करें, उसे औरों को सिखाएं या बताएं। आपको अपनी हर बात का हिसाब प्रभु को देना होगा (मत्ती 12:36-37)। जब वचन आपके हाथ में है, वचन को सिखाने के लिए पवित्र आत्मा आपके साथ है, तो फिर बिना जाँचे और परखे गलत शिक्षाओं में फँस जाने, तथा मनुष्यों और उनके समुदायों और उनकी गलत शिक्षाओं को आदर देते रहने के लिए, उन गलत शिक्षाओं में बने रहने के लिए क्या आप प्रभु परमेश्वर को कोई उत्तर दे सकेंगे?

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • यहेजकेल 30-32  
  • 1 पतरस 4