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मंगलवार, 17 अगस्त 2021

परमेश्वर का वचन – बाइबल – और विज्ञान – 5


मनुष्य की रचना

               बाइबल में हर प्रकार की जानकारी परमेश्वर ने लिखवाई है। हम सृष्टि,  अंतरिक्ष,  पृथ्वी से संबंधित बातों को देख चुके हैं। बाइबल की प्रथम पुस्तक,  उत्पत्ति का पहला अध्याय, परमेश्वर के द्वारा समस्त सृष्टि की रचना किए जाने का वृतांत है। उत्पत्ति के आरंभिक अध्यायों से हम देखते हैं कि मनुष्य परमेश्वर की सबसे उत्कृष्ट रचना है। अन्य सभी की सृष्टि परमेश्वर ने कहने के द्वारा,  अपने शब्द या वचन की सामर्थ्य से की - परमेश्वर ने कहा और वह वैसा ही हो गया। किन्तु मनुष्य को परमेश्वर ने अपने हाथों से, अपने ही स्वरूप में सृजा; उसमें जीवन डालने के लिए परमेश्वर ने अपनी ही श्वास डाली,  और उसके लिए ही अदन की वाटिका लगाई, जहाँ परमेश्वर उस के साथ संगति करता था,  और फिर अपने ही हाथों से पहले मनुष्य आदम के लिए एक सहायक बनाया (उत्पत्ति 1:26-28; 2:8, 15, 18; 3:8)। परमेश्वर ने पृथक मनुष्य की नर और मादा स्वरूप में सृष्टि की, और उन्हें आशीष देकर कहा कि वे सारी पृथ्वी में फैल जाएं, उसे अपनी अधीनता में ले लें। 

               क्रमिक विकासवाद (Evolution) के पास इसका कोई उत्तर नहीं है कि क्यों और कैसे विभिन्न जीव-जंतुओं और वनस्पतियों आदि में प्रजनन और जाति को बढ़ाने के विभिन्न तरीके आए। जंतुओं और वनस्पतियों की विभिन्न प्रजातियों में ऐसे कितने ही उदाहरण हैं जिनमें नर और मादा का भेद नहीं है; वे अपने एक ही स्वरूप से अपने समान अगली पीढ़ी उत्पन्न करते हैं। कई पौधों की प्रजातियों में एक ही पौधे में नर और मादा फूल अलग-अलग होते हैं - एक ही डाली या एक ही पौधे में दोनों प्रकार के फूल, तथा अन्य प्रजातियों में एक ही फूल में दोनों नर और मादा अंश,  और उनके बीज से फिर एक नया पौधा उत्पन्न हो जाता है। यदि प्रजाति का ज़ारी रहना बिना नर-मादा के भिन्न होने से संभव है, और हो रहा है, तो फिर यह नर और मादा स्वरूप क्यों और कैसे विकसित हुए - क्रमिक विकासवाद के पास इसका कोई उत्तर नहीं है। किन्तु उपरोक्त बाइबल के हवाले स्पष्ट बताते हैं कि परमेश्वर ने आरंभ से ही मनुष्य को नर और मादा की भिन्नता के साथ,  अलग-अलग दायित्वों के निर्वाह के लिए उत्पन्न किया (देखिए उत्पत्ति 2:24; मरकुस 10:6-8) 

               विज्ञान ने मनुष्य के शरीर की रचना और कार्य विधि की जटिलता और उसके अद्भुत होने को अपने नए उपकरणों के द्वारा पहचानना आरंभ किया है; किन्तु परमेश्वर ने अपने भक्त राजा दाऊद, जिसका जन्म 1085 ईस्वी पूर्व में हुआ था, के द्वारा लिखे गए एक भजन में इस तथ्य को आज से लगभग 2800 से भी अधिक वर्ष पूर्व लिखवा दिया था, “मैं तेरा धन्यवाद करूंगा, इसलिये कि मैं भयानक और अद्भुत रीति से रचा गया हूं। तेरे काम तो आश्चर्य के हैं, और मैं इसे भली भांति जानता हूं” (भजन 139:14 ) 

               इसी प्रकार मनुष्य के जीवन और स्वास्थ्य के बारे में भी बहुत सी बातें हैं, जिन्हें विज्ञान ने अब पहचाना और माना है, किन्तु परमेश्वर ने अपने वचन बाइबल की पुस्तकों में उन्हें हजारों वर्षों से लिखवा रखा है। 

 

मनुष्य और मनुष्य के जीवन से संबंधित तथ्यों के कुछ उदाहरण देखते हैं:

               आज से लगभग 2000 वर्ष पूर्व, पौलुस प्रेरित ने अपने एक सुसमाचार प्रचार में कहा था, “उसने एक ही मूल से मनुष्यों की सब जातियां सारी पृथ्वी पर रहने के लिये बनाईं हैं; और उन के ठहराए हुए समय, और निवास के सिवानों को इसलिये बान्धा है” (प्रेरितों 17:26); और उत्पत्ति की पुस्तक जो आज से लगभग 3400 वर्ष पूर्व लिखी गई,  उसके 5 अध्याय में आदम और हव्वा से उत्पन्न होने वाली संतानों के नाम और उनकी संक्षिप्त वंशावली दी गई है - अर्थात सारी मानवजाति उस एक ही मूल, आदि पुरुष, आदम की संतान हैं। वैज्ञानिकों ने जब मनुष्य के डीएनए के अध्ययन किए,  तो उन्हें मनुष्य की रचना और इतिहास के बारे में कई अद्भुत बातें पता चलीं। 1995 में 38 विभिन्न जातियों के वंशों के डीएनए के अध्ययन के द्वारा यह सामने आया कि चाहे वे आज विभिन्न और पृथक जातियाँ हैं,  किन्तु मूल में वे सभी एक ही मूल पुरुष से निकलकर आए हैं! यह बात बाइबल में हजारों वर्ष पहले लिखी गई बात के पूर्णतः अनुरूप है।

               वैज्ञानिकों में असमंजस है कि गर्भ-धारण होने से कितने समय बाद भ्रूण को जीवित कहा जा सकता है। किन्तु बाइबल बताती है कि भ्रूण के गर्भ में आने के समय,  उसके आरंभ से ही वह एक जीवित प्राणी है, जिसके विषय परमेश्वर ने योजना बना रखी है, उद्देश्य निर्धारित किया हुआ हैगर्भ में रचने से पहिले ही मैं ने तुझ पर चित्त लगाया, और उत्पन्न होने से पहिले ही मैं ने तुझे अभिषेक किया; मैं ने तुझे जातियों का भविष्यद्वक्ता ठहराया” (यिर्मयाह 1:5); अर्थात परमेश्वर की दृष्टि में वह आरंभ से ही एक जीवित व्यक्ति है, जो कुछ समय के बाद मनुष्य के स्वरूप में दिखने लगेगा, जन्म लेगा, और फिर बड़ा होकर परमेश्वर के उद्देश्यों को पूरा करेगा। आज विज्ञान भी यह जानता और मानता है कि उस भ्रूण के गर्भ में स्थापित होने के समय, जब वह एक ही कोशिका (cell) दिखाई देता है, तब भी उस एक कोशिका में वही जीवन होता है जो उसके गर्भ से बाहर जन्म लेने के समय होता है, और उस एक कोशिका में विद्यमान डीएनए में वह संपूर्ण जानकारी विद्यमान होती है जिसके द्वारा वह भ्रूण एक कोशिका से बढ़कर मनुष्य रूप में जन्म लेता, और बढ़ता है, कार्य करता है। 

              

               जिस परमेश्वर ने आपको और मुझे अपने स्वरूप में, अद्भुत रीति से रचा है, अपनी श्वास से हमें जीवन दिया है, जो आज दिन तक हमारी देखभाल करता आ रहा है, और हमें अपनी पृथ्वी और प्रकृति के संसाधनों का प्रयोग खुले दिल से करने दे रहा है, वह हम में से प्रत्येक को, हमारे मनों की भावनाओं और विचारों को, हमारी भीतरी-बाहरी वास्तविक दशा को, हमारे मन, विचार, शरीर में किए गए हर पाप को जानता है। चाहे हम उसे स्वीकार करें या न करें; उसके आज्ञाकारी बनें अथवा न बनें; वह हम से बहुत प्रेम भी रखता है, हमारी चिंता भी करता है। वह चाहता है कि उसका रचा हुआ प्रत्येक जन, जिस भी दशा में वह है, वैसा ही उसके पास आ जाए, उस से मेल-मिलाप कर ले, जिससे परमेश्वर उसे पापों से स्वच्छ और शुद्ध करे, तथा शैतान द्वारा बहकाए जाकर अनन्त-विनाश में डाल देने से बचा सके। उसने इस मेल-मिलाप का मार्ग प्रभु यीशु मसीह में होकर तैयार किया और उपलब्ध करवाया है। वह अपेक्षा रखता है कि हम उसकी सृष्टि और अपनी रचना द्वारा उसके अस्तित्व को पहचानें और स्वेच्छा से समय रहते उसके पास आ जाएं, उसे समर्पित और उसकी आज्ञाकारिता का जीवन व्यतीत करें, और उसकी आशीषों की भरपूरी का आनन्द प्राप्त करें। सच्चे मन और स्वेच्छा से की गई आपकी एक छोटी सी प्रार्थना, “हे प्रभु यीशु मैं स्वीकार करता हूँ कि मैं पापी हूँ, और आपने मेरे पापों के लिए क्रूस पर अपना बलिदान दिया है। कृपया मेरे पाप क्षमा करें, मुझे स्वीकार करें, अपनी शरण में लेकर मुझे अपना आज्ञाकारी जन बनाएंआपको अनन्त विनाश से अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों में लाकर खड़ा कर देगी। क्या आप आज, अभी यह निर्णय लेंगे? आपको अद्भुत रीति से रचने वाला आपका सृष्टिकर्ता परमेश्वर उसके पक्ष में किए गए आपके निर्णय की लालसा रखे हुए प्रतीक्षा कर रहा है! 

 

बाइबल पाठ: भजन 139:1-4, 13-18, 23-24 

भजन 139:1 हे यहोवा, तू ने मुझे जांच कर जान लिया है।

भजन 139:2 तू मेरा उठना बैठना जानता है; और मेरे विचारों को दूर ही से समझ लेता है।

भजन 139:3 मेरे चलने और लेटने की तू भली भांति छानबीन करता है, और मेरी पूरी चालचलन का भेद जानता है।

भजन 139:4 हे यहोवा, मेरे मुंह में ऐसी कोई बात नहीं जिसे तू पूरी रीति से न जानता हो।

भजन 139:13 मेरे मन का स्वामी तो तू है; तू ने मुझे माता के गर्भ में रचा।

भजन 139:14 मैं तेरा धन्यवाद करूंगा, इसलिये कि मैं भयानक और अद्भुत रीति से रचा गया हूं। तेरे काम तो आश्चर्य के हैं, और मैं इसे भली भांति जानता हूं।

भजन 139:15 जब मैं गुप्त में बनाया जाता, और पृथ्वी के नीचे स्थानों में रचा जाता था, तब मेरी हड्डियां तुझ से छिपी न थीं।

भजन 139:16 तेरी आंखों ने मेरे बेडौल तत्व को देखा; और मेरे सब अंग जो दिन दिन बनते जाते थे वे रचे जाने से पहिले तेरी पुस्तक में लिखे हुए थे।

भजन 139:17 और मेरे लिये तो हे ईश्वर, तेरे विचार क्या ही बहुमूल्य हैं! उनकी संख्या का जोड़ कैसा बड़ा है।

भजन 139:18 यदि मैं उन को गिनता तो वे बालू के किनकों से भी अधिक ठहरते। जब मैं जाग उठता हूं, तब भी तेरे संग रहता हूं।

भजन 139:23 हे ईश्वर, मुझे जांच कर जान ले! मुझे परख कर मेरी चिन्ताओं को जान ले!

भजन 139:24 और देख कि मुझ में कोई बुरी चाल है कि नहीं, और अनन्त के मार्ग में मेरी अगुवाई कर!

 

एक साल में बाइबल: 

  • भजन 97-99
  • रोमियों 16

सोमवार, 16 अगस्त 2021

परमेश्वर का वचन – बाइबल – और विज्ञान – 4


            सृष्टि और अंतरिक्ष से संबंधित बातों को बाइबल में से देखने के बाद, पृथ्वी से संबंधित बाइबल में लिखी कुछ वैज्ञानिक बातों को देखते हैं, जिन्हें विज्ञान के जानने से पहले ही परमेश्वर ने अपने वचन में लिखवा दिया था। साथ ही हम यह भी देखेंगे कि पृथ्वी को लेकर जो बाइबल के बारे में प्रचलित गलत धारणाएं हैं, वे निराधार और झूठ हैं; बाइबल ऐसा कुछ नहीं कहती है जैसा उसके विषय गलत फैलाया जाता रहा है।  

            पृथ्वी पर जीवन अनायास अथवा आकस्मिक ही नहीं पनप गया। परमेश्वर ने पृथ्वी को एक बहुत योजनाबद्ध तरीके से बनाया है। पृथ्वी की भीतरी, सतही, वायुमंडलीय, आकाश, और अंतरिक्ष में स्थिति तथा पृथ्वी पर इन सब बातों के प्रभाव बहुत ही बारीकी से रचे और स्थिर किए गए हैं, जिससे जीवन, विशेषकर मानवीय जीवन इस पृथ्वी पर संभव हो सके। पृथ्वी की संरचना और सूर्य से उसकी दूरी, तथा उसकी धुरी का झुकाव जीवन को बनाए रखने के लिए उपयुक्त है। यदि सूर्य से दूरी बढ़ जाए, तो पृथ्वी पर ठंड बहुत हो जाएगी,  तथा जल जम जाएगा, जिससे जीवन संभव नहीं रहेगा; यदि पृथ्वी की दूरी सूर्य के कुछ निकट हो जाए, तो गर्मी बहुत बढ़ जाएगी और पानी भाप कर उड़ जाएगा, और जीवन संभव नहीं होगा; सूर्य से इस उपयुक्त दूरी के क्षेत्र को “Goldilock’s Zone” या “वास योग्य क्षेत्र कहते हैं (Goldilock’s Zone : https://hi.wikipedia.org/wiki/वासयोग्य_क्षेत्र ;अंग्रेजी में यह विवरण अधिक विस्तृत और रोचक है)। पृथ्वी की संरचना और जीवन के योग्य होने के लिए विशेषताओं का वर्णन, जिसे वैज्ञानिकों ने पिछले कुछ समयों से समझना आरंभ किया है, बहुत बड़ा है (Earth: https://hi.wikipedia.org/wiki/पृथ्वी)। पृथ्वी की धुरी का झुकाव, पृथ्वी पर मौसम उत्पन्न करता है, जिससे जीव-जन्तुओं  और वनस्पतियों  की विविधता तथा जीवन के लिए सहायता, साधन और उपयुक्त वातावरण बना रहता है। इसी प्रकार पृथ्वी की भीतरी रचना, उसकी सतह की धरती की गतिविधियां, उसके चारों ओर का वातावरण, उसके चारों ओर बना हुआ उसका चुंबकीय क्षेत्र, चंद्रमा तथा अन्य ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण बल के द्वारा उसे मिलने वाली स्थिरता तथा सुरक्षा, आदि भी उसे जीवन के लिए विशिष्ट और उपयुक्त बनाते हैं; क्योंकि ये बातें अन्य किसी गृह में नहीं पाई जाती हैं, इसलिए किसी भी अन्य गृह पर जीवन नहीं है।

            बाइबल में यशायाह नबी (सेवकाई का काल लगभग 700 ईस्वी पूर्व, या आज से लगभग 2700 वर्ष पूर्व) और यिर्मयाह नबी (सेवकाई का काल लगभग 600 ईस्वी पूर्व, या आज से लगभग 2600 वर्ष पूर्व) की पुस्तकों से हम कुछ पदों को देखेंगे जो यह प्रकट कर देते हैं कि पृथ्वी को परमेश्वर ने मनुष्य को बसाने के लिए बनाया था “क्योंकि यहोवा जो आकाश का सृजनहार है, वही परमेश्वर है; उसी ने पृथ्वी को रचा और बनाया, उसी ने उसको स्थिर भी किया; उसने उसे सुनसान रहने के लिये नहीं परन्तु बसने के लिये उसे रचा है। वही यों कहता है, मैं यहोवा हूं, मेरे सिवा दूसरा और कोई नहीं है” (यशायाह 45:18); और “अपने अपने स्वामी से यों कहो कि पृथ्वी को और पृथ्वी पर के मनुष्यों और पशुओं को अपनी बड़ी शक्ति और बढ़ाई हुई भुजा के द्वारा मैं ने बनाया, और जिस किसी को मैं चाहता हूँ उसी को मैं उन्हें दिया करता हूँ” (यिर्मयाह 27:5)। परमेश्वर द्वारा पृथ्वी को मनुष्यों के निवास के लिए बनाए जाने, उसे इस उद्देश्य के लिए स्थिर या उपयुक्त करने, और इसके लिए आकाश को उसके ऊपर 'तानने' के संदर्भ में बाइबल के कुछ अन्य पदों को भी देखिए: यशायाह 45:12; यिर्मयाह 10:12; 32:17; 51:15। यह सब तब लिखा गया जब न विज्ञान था, न खगोल-शास्त्र और खगोल-विद्या थी, और न ही आज के समान दूरबीन, उपकरण और कंप्यूटर थे जिनके द्वारा इन जटिल बातों का विश्लेषण और आँकलन किया जा सकता। किन्तु परमेश्वर ने अपने वचन बाइबल में यह आज से लगभग 2700 -2600 वर्ष पहले ही लिखवा दिया था कि उसने पृथ्वी की विशेष रीति से मनुष्य के निवास के लिए रचना की है; और उसे इस उद्देश्य के लिए स्थिर भी किया।

 

पृथ्वी से संबंधित कुछ अन्य बातें हैं:

            जबकि अन्य धर्म और मतों की पौराणिक कथाओं में पृथ्वी को किसी पशु अथवा मनुष्य द्वारा उठा कर रखा गया बताया गया है, बाइबल में अय्यूब की पुस्तक में, जो लगभग 2000 ईस्वी पूर्व अर्थात, आज से लगभग 4000 वर्ष पुरानी है, स्पष्ट लिखा है कि  पृथ्वी अंतरिक्ष के रिक्त स्थान में मुक्त लटकी हुई है: "वह उत्तर दिशा को निराधार फैलाए रहता है, और बिना टेक पृथ्वी को लटकाए रखता है" (अय्यूब 26:7)।

            जबकि प्रचलित विश्वास, और विज्ञान की भी धारणा यही थी कि पृथ्वी सपाट (flat) है, बाइबल में यशायाह नबी की पुस्तक में (आज से लगभग 2700 वर्ष पहले) लिखा गया था कि पृथ्वी गोलाकार है "यह वह है जो पृथ्वी के घेरे के ऊपर आकाशमण्डल पर विराजमान है; और पृथ्वी के रहने वाले टिड्डी के तुल्य है; जो आकाश को मलमल के समान फैलाता और ऐसा तान देता है जैसा रहने के लिये तम्बू ताना जाता है" (यशायाह 40:22)।

            आज से लगभग 2000 वर्ष पहले लिखी गई प्रभु यीशु मसीह की जीवनियों में इस बात का संकेत विद्यमान है कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है। प्रभु यीशु मसीह ने अंत के दिनों के एक विशिष्ट समय के संदर्भ में कहा था "मैं तुम से कहता हूं, उस रात दो मनुष्य एक खाट पर होंगे, एक ले लिया जाएगा, और दूसरा छोड़ दिया जाएगा। दो स्त्रियां एक साथ चक्की पीसती होंगी, एक ले ली जाएगी, और दूसरी छोड़ दी जाएगी। जन खेत में होंगे एक ले लिया जाएगा और दूसरा छोड़ा जाएगा" (लूका 17:34-36)। एक ही साथ, एक ही घटना के लिए पृथ्वी के अलग अलग स्थानों पर रात, प्रातः (चक्की पीसना), और दिन-दोपहर (खेत में कार्य करना) के उल्लेख देना एक गोलाकार और घूमती हुई पृथ्वी के द्वारा ही संभव है।

            विज्ञान को यह 1970 के दशक में पता चला, जब समुद्र की गहराइयों के दबाव को सहन कर पाने वाली पनडुब्बियाँ और सागर तल के गहरे अंधकार में रौश्नी डालकर चित्र लेने वाले कैमरे बन गए, कि गहरे सागर तल में पानी के सोते भी हैं, जिनसे निकलकर पानी सागरों के जल के साथ मिलता रहता है; केवल वर्षा और नदियां ही सागरों के जल का स्त्रोत नहीं हैं। किन्तु आज से लगभग 4000 वर्ष पुरानी अय्यूब की पुस्तक में यह बात परमेश्वर ने अय्यूब को बता रखी थी "क्या तू कभी समुद्र के सोतों तक पहुंचा है, या गहिरे सागर की थाह में कभी चला फिरा है?" (अय्यूब 38:16); उस समय पर जब अय्यूब या किसी अन्य के लिए सागर की अंधियारी गहराइयों में जाकर कुछ देख पाना कदापि संभव नहीं था।

            इसी प्रकार से इन गहरे सागरों की गहराइयों की खोज करने की क्षमता विकसित होने के बाद ही वैज्ञानिक यह भी जानने पाए के सागर तल में विशाल पर्वत तथा गहरे खाइयाँ भी हैं। किन्तु लगभग 750 ईस्वी पूर्व, अर्थात आज से लगभग 2750 वर्ष पहले लिखी गई योना नबी की पुस्तक में सागर के अंदर के पर्वत और उन पहाड़ों की 'जड़', उनकी भूमि के अंदर 'गड़हे', अर्थात सागर तल की खाइयों का उल्लेख है  "मैं जल से यहां तक घिरा हुआ था कि मेरे प्राण निकले जाते थे; गहरा सागर मेरे चारों ओर था, और मेरे सिर में सिवार लिपटा हुआ था। मैं पहाड़ों की जड़ तक पहुंच गया था; मैं सदा के लिये भूमि में बन्द हो गया था; तौभी हे मेरे परमेश्वर यहोवा, तू ने मेरे प्राणों को गड़हे में से उठाया है" (योना 2:5-6)।

            इस अद्भुत और विलक्षण पृथ्वी को अद्भुत और विलक्षण योजनाबद्ध रीति से रच कर, उस पर रहने के लिए आपकी भी रचना करने वाला, प्रेमी परमेश्वर है। उसे आपकी लालसा है, आप चाहे जैसे भी हों – भले-बुरे, अमीर-गरीब, शिक्षित-अशिक्षित, किसी भी जाति, समाज, रंग, देश, धर्म के मानने वाले या न मानने वाले, या परमेश्वर को न भी मानने वाले क्यों न हों, फिर भी उसे आप से प्रेम है, आपके जीवन की कोई भी बात या बुराई उसकी क्षमा की सीमा से बाहर नहीं है। चाहे आप अपने आप को कितना भी क्षमा के अयोग्य क्यों न समझते हों, वह तब भी आप से प्रेम करता है, आपको अपने साथ लेना चाहता है - यदि आप आने को तैयार हैं तो!। आपको केवल स्वेच्छा और सच्चे मन से अपने पापों को मानते हुए, उससे क्षमा माँगनी है, और अपना जीवन उसे समर्पित करना है। स्वेच्छा और सच्चे मन से की गई एक छोटी प्रार्थना, "हे  प्रभु यीशु मेरे पाप क्षमा कर, और मुझे अपनी शरण में लेकर अपनी आज्ञाकारी संतान बना, मुझे मेरे पापों से मुक्त करके अपने लिए उपयोगी जन बना" आपको अभी से लेकर अनन्तकाल के लिए परमेश्वर की संतान होकर उसके साथ स्वर्ग में निवास करने का आदर प्रदान कर देगी। क्या आप यह निर्णय करेंगे?

 

बाइबल पाठ: भजन 94:1-11

भजन 94:1 हे यहोवा, हे पलटा लेने वाले ईश्वर, हे पलटा लेने वाले ईश्वर, अपना तेज दिखा!

भजन 94:2 हे पृथ्वी के न्यायी उठ; और घमण्डियों को बदला दे!

भजन 94:3 हे यहोवा, दुष्ट लोग कब तक, दुष्ट लोग कब तक डींग मारते रहेंगे?

भजन 94:4 वे बकते और ढिठाई की बातें बोलते हैं, सब अनर्थकारी बड़ाई मारते हैं।

भजन 94:5 हे यहोवा, वे तेरी प्रजा को पीस डालते हैं, वे तेरे निज भाग को दु:ख देते हैं।

भजन 94:6 वे विधवा और परदेशी का घात करते, और अनाथों को मार डालते हैं;

भजन 94:7 और कहते हैं, कि याह न देखेगा, याकूब का परमेश्वर विचार न करेगा।।

भजन 94:8 तुम जो प्रजा में पशु सरीखे हो, विचार करो; और हे मूर्खों तुम कब तक बुद्धिमान हो जाओगे?

भजन 94:9 जिसने कान दिया, क्या वह आप नहीं सुनता? जिसने आंख रची, क्या वह आप नहीं देखता?

भजन 94:10 जो जाति जाति को ताड़ना देता, और मनुष्य को ज्ञान सिखाता है, क्या वह न समझाएगा?

भजन 94:11 यहोवा मनुष्य की कल्पनाओं को तो जानता है कि वे मिथ्या हैं।

 

एक साल में बाइबल: 

  • भजन 94-96
  • रोमियों 15:14-33

रविवार, 15 अगस्त 2021

परमेश्वर का वचन – बाइबल – और विज्ञान – 3

 

            पिछले लेख में हमने सृष्टि की रचना से संबंधित कुछ वैज्ञानिक बातों के द्वारा देखा था कि वे बातें और जानकारियाँ परमेश्वर के वचन बाइबल का समर्थन करती हैं, और वैज्ञानिकों द्वारा उनके खोजे जाने से सदियों पहले, परमेश्वर ने अपने वचन में उन्हें लिखवा दिया था।

            आज हम देखेंगे कि किस प्रकार से अंतरिक्ष से संबंधित बातें भी यही दिखाती हैं कि वैज्ञानिकों की खोज परमेश्वर के वचन बाइबल के तथ्यों की ही पुष्टि करती है; जिसे वे नई खोज कहते हैं, वह बाइबल में हजारों वर्ष पहले ही लिख दी गई थी।

अंतरिक्ष अर्थात खगोल-शास्त्र से संबंधित कुछ तथ्यों पर ध्यान कीजिए:

·        दूरबीन और अंतरिक्ष में स्थापित किए गए हबल टेलिस्कोप से भी लगभग 4000 हजार वर्ष पहले बाइबल में व्यवस्थाविवरण 10:14 में "स्वर्ग(आकाश) और सबसे ऊंचा स्वर्ग (आकाश)" ("heavens and the highest heavens") तथा "सबसे ऊंचे स्वर्ग; heaven of heavens" (1 राजाओं 8:27) की बात लिखी है। अब दूरबीन तथा हबल टेलिस्कोप के द्वारा विज्ञान यह कहने पाया है कि आकाशमण्डल में एक तो हमारे चारों ओर का वातावरण वाला 'आकाश' है, तथा उससे आगे फिर सुदूर अंतरिक्ष है जिसमें सितारे और नक्षत्र आदि स्थित हैं।

·        बिना किसी उपकरण की सहायता के, मानवीय आँखों से देखे जा सकने वाले सितारों की संख्या लगभग 5000 ही आँकी गई है। दूरबीन के आविष्कार से हजारों वर्ष पहले, जब किसी भी मनुष्य के पास अंतरिक्ष में दूर तक देख पाने का कोई साधन नहीं था, आज से लगभग 2600 वर्ष पहले परमेश्वर ने अपने नबी, यिर्मयाह की भविष्यवाणी में अपने लोगों की संख्या में बढ़ोतरी की तुलना देने के लिए लिखवाया था, "जैसा आकाश की सेना की गिनती और समुद्र की बालू के किनकों का परिमाण नहीं हो सकता है उसी प्रकार मैं अपने दास दाऊद के वंश और अपने सेवक लेवियों को बढ़ा कर अनगिनत कर दूंगा" (यिर्मयाह 33:22); अर्थात समुद्र-तट  के बालू के किनकों के समान आकाशमंडल के सितारों की संख्या अनगिनत है। गैलीलियो ने 17वीं शताब्दी में दूरबीन का आविष्कार किया और आकाशमंडल के सितारों और नक्षत्रों को देखना तथा अध्ययन करना आरंभ किया, और पहचाना कि अंतरिक्ष कितना विशाल है और उसके खगोलीय पिंड कितने अनगिनत हैं। आज भी वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष में अनेकों प्रकार के बहुत दूर तक देख पाने वाले उपकरणों के द्वारा अरबों-खरबों सितारों, नक्षत्रों, खगोल पिंडों के होने का अनुमान लगाया है, उनके बारे में बहुत सी बातों की खोज की है, किन्तु अंतरिक्ष की सीमाएं और सितारों की सही संख्या अभी भी एक अनुमान है, स्थापित तथ्य नहीं। यिर्मयाह में होकर परमेश्वर द्वारा बाइबल में लिखवाई गई बात, लिखवाए जाने के 2600 वर्ष बाद भी सही है, अकाट्य है।

·        यद्यपि सितारों, नक्षत्रों और विभिन्न खगोल पिंडों की कुल संख्या मनुष्य आज तक ठीक जान नहीं पाया है, किन्तु यह भी एक वैज्ञानिक तथ्य है कि यह संख्या चाहे बहुत विशाल हो, किन्तु अंततः सीमित (finite) है। बाइबल में परमेश्वर के एक अन्य नबी, यशायाह ने यह बात आज से लगभग 2750 वर्ष पहले अपने भविष्यवाणी की पुस्तक में परमेश्वर की प्रेरणा से लिख दी थी: "अपनी आंखें ऊपर उठा कर देखो, किस ने इन को सिरजा? वह इन गणों को गिन गिनकर निकालता, उन सब को नाम ले ले कर बुलाता है? वह ऐसा सामर्थी और अत्यन्त बली है कि उन में के कोई बिना आए नहीं रहता" (यशायाह 40:26)। न केवल यहाँ पर, वरन भजन संहिता में भी परमेश्वर ने लिखवा दिया था कि वह तारों को गिनता है, उनमें से प्रत्येक का नाम रखता है: "वह तारों को गिनता, और उन में से एक एक का नाम रखता है" (भजन 147:4) - अर्थात उनकी संख्या कितनी भी विशाल क्यों न हो, सीमित है।

·        दूरबीन के आविष्कार से सदियों पहले बाइबल में लिख दिया गया था कि प्रत्येक सितारा या नक्षत्र अपने आप में अनुपम है, अनूठा है:  "सूर्य का तेज और है, चान्‍द का तेज और है, और तारागणों का तेज और है, (क्योंकि एक तारे से दूसरे तारे के तेज में अन्तर है)" (1 कुरिन्थियों 15:41)। जिसे वैज्ञानिक अब जानने और पहचानने लगे हैं, वह बाइबल में लगभग दो हज़ार वर्ष पहले लिखा जा चुका था।

·        बाइबल में परमेश्वर ने बारंबार यह कहा है कि वह आकाश या आकाशमण्डल को 'तानता' या 'फैलाता' है:

o   अय्युब 9:8 – वह आकाशमण्डल को अकेला ही फैलाता है, और समुद्र की ऊंची ऊंची लहरों पर चलता है;

o    यशायाह 42:5 – ईश्वर जो आकाश का सृजने और तानने वाला है, जो उपज सहित पृथ्वी का फैलाने वाला और उस पर के लोगों को सांस और उस पर के चलने वालों को आत्मा देने वाला यहोवा है, वह यों कहता है:

o   यिर्मयाह 51:15 – उसी ने पृथ्वी को अपने सामर्थ्य से बनाया, और जगत को अपनी बुद्धि से स्थिर किया; और आकाश को अपनी प्रवीणता से तान दिया है

o   ज़कर्याह 12:1 इस्राएल के विषय में यहोवा का कहा हुआ भारी वचन: यहोवा को आकाश का तानने वाला, पृथ्वी की नेव डालने वाला और मनुष्य की आत्मा का रचने वाला है, उसकी यह वाणी है

            बीसवीं सदी के आरंभिक समय तक भी वैज्ञानिकों (आईंस्टाईन सहित) का यही मानना था कि अंतरिक्ष या आकाशमण्डल गतिहीन या स्थिर (static) है। कुछ अन्य यह कहते थे कि गुरुत्वाकर्षण के बल के कारण अंतरिक्ष को सिकुड़ कर संक्षिप्त (collapsed) हो जाना चाहिए था। फिर खगोल-शास्त्री और अंतरिक्ष वैज्ञानिक एडविन हबल ने 1929 में यह दिखाया कि दूर स्थित नक्षत्र (galaxies) पृथ्वी से और भी दूर होते चले जा रहे हैं, तथा वे जितने अधिक दूर स्थित हैं, उतनी ही अधिक तेजी से और दूर होते चले जा रहे हैं। इस खोज ने अंतरिक्ष विज्ञान में खलबली मचा दी, और अनेकों नई धारणाओं को जन्म दिया, तथा आईंस्टाईन ने भी अपनी गलती को माना और सुधारा। जिसे अंतरिक्ष वैज्ञानिक आज तथ्य मानने लगे हैं, वह परमेश्वर ने 4000 वर्ष से भी पहले अपने वचन बाइबल में लिख दिया था।

·        बाइबल की प्राचीनतम पुस्तकों में से एक, अय्यूब की पुस्तक में, लगभग 4000 वर्ष पहले, परमेश्वर अय्यूब से प्रश्न करता है, “क्या तू कचपचिया (Pleiades) का गुच्छा गूंथ सकता वा मृगशिरा (Orion) के बन्धन खोल सकता है? ["Can you bind the cluster of the Pleiades, Or loose the belt of Orion?]” (अय्यूब 38:31)। यह विज्ञान को अब पता चला है कि कचपचिया (Pleiades) का गुच्छा गुरुत्वाकर्षण के बल के द्वारा परस्पर गूँथा या बंधा हुआ है; जबकि मृगशिरा (Orion) के बन्धन खुले हुए हैं और इस कारण उसके सितारे एक-दूसरे से दूर होते चले जा रहे हैं क्योंकि उनका परस्पर गुरुत्वाकर्षण बल उन्हें एक साथ बांधे रखने के लिए पर्याप्त नहीं है।

·        बाइबल में लगभग 3000 वर्ष पहले भजन 19:6 में, सूर्य के विषय लिखा है “वह आकाश की एक छोर से निकलता है, और वह उसकी दूसरी छोर तक चक्कर मारता है; और उसकी गर्मी सब को पहुंचती है।” एक समय था जब वैज्ञानिक बाइबल के इस पद का उपहास करते थे, और उन्हें लगता था कि यह पद पृथ्वी को केंद्र और सूर्य को उसके चारों ओर घूमने वाला बताता है। साथ ही, उनकी यह भी धारणा थी कि सूर्य अंतरिक्ष में अपने स्थान पर स्थिर (stationary) है। किन्तु अब विज्ञान यह जान गया है कि बाइबल की बात सही है, सूर्य एक स्थान पर स्थिर नहीं है, वरन वास्तव में अंतरिक्ष में एक बहुत विशाल चक्र की परिधि पर लगभग 600,000 मील प्रति घंटे की गति से चक्कर लगा रहा है।

 

            एक बार फिर, सृष्टि अपने सृष्टिकर्ता की पुष्टि करती है, उसकी महिमा करती है; उसके विरुद्ध कोई गवाही नहीं देती है। यही अद्भुत सृष्टिकर्ता, आपके प्रति अपने महान प्रेम के अंतर्गत, आपको अपने साथ रहने और संसार पर आने वाले विनाश से बच जाने के लिए निमंत्रण दे रहा है। क्योंकि उसने अपने इस महान प्रेम के अंतर्गत आपके पापों की सजा को अपने ऊपर लेकर क्रूस पर दिए गए अपने बलिदान के द्वारा सह लिया, और आपके लिए उस सजा से मुक्त होने का प्रावधान तैयार कर के दे दिया है; इसलिए सच्चे मन और वास्तविक पश्चाताप से की गई आपकी एक प्रार्थना, “हे प्रभु यीशु मेरे पाप क्षमा करें, और मुझे अपनी शरण में ले लें; मुझे अपना लें” आपके अनन्तकाल को सदा के लिए बदल कर सुरक्षित कर देगी।

            क्या आप अपने सृष्टिकर्ता के इस प्रेम और क्षमा भरे निमंत्रण को स्वीकार करेंगे, और उसकी शरण में आ जाएँगे, और सुरक्षित हो जाएँगे? वह आपसे प्रेम करता है, आपका भला ही चाहता है, और आपकी प्रतीक्षा कर रहा है।

 

बाइबल पाठ: भजन 139:1-14

भजन 139:1 हे यहोवा, तू ने मुझे जांच कर जान लिया है।

भजन 139:2 तू मेरा उठना बैठना जानता है; और मेरे विचारों को दूर ही से समझ लेता है।

भजन 139:3 मेरे चलने और लेटने की तू भली भांति छानबीन करता है, और मेरी पूरी चालचलन का भेद जानता है।

भजन 139:4 हे यहोवा, मेरे मुंह में ऐसी कोई बात नहीं जिसे तू पूरी रीति से न जानता हो।

भजन 139:5 तू ने मुझे आगे पीछे घेर रखा है, और अपना हाथ मुझ पर रखे रहता है।

भजन 139:6 यह ज्ञान मेरे लिये बहुत कठिन है; यह गम्भीर और मेरी समझ से बाहर है।

भजन 139:7 मैं तेरे आत्मा से भाग कर किधर जाऊं? या तेरे सामने से किधर भागूं?

भजन 139:8 यदि मैं आकाश पर चढूं, तो तू वहां है! यदि मैं अपना बिछौना अधोलोक में बिछाऊं तो वहां भी तू है!

भजन 139:9 यदि मैं भोर की किरणों पर चढ़ कर समुद्र के पार जा बसूं,

भजन 139:10 तो वहां भी तू अपने हाथ से मेरी अगुवाई करेगा, और अपने दाहिने हाथ से मुझे पकड़े रहेगा।

भजन 139:11 यदि मैं कहूं कि अन्धकार में तो मैं छिप जाऊंगा, और मेरे चारों ओर का उजियाला रात का अन्‍धेरा हो जाएगा,

भजन 139:12 तौभी अन्धकार तुझ से न छिपाएगा, रात तो दिन के तुल्य प्रकाश देगी; क्योंकि तेरे लिये अन्धियारा और उजियाला दोनों एक समान हैं।

भजन 139:13 मेरे मन का स्वामी तो तू है; तू ने मुझे माता के गर्भ में रचा।

भजन 139:14 मैं तेरा धन्यवाद करूंगा, इसलिये कि मैं भयानक और अद्भुत रीति से रचा गया हूं। तेरे काम तो आश्चर्य के हैं, और मैं इसे भली भांति जानता हूं।

 

एक साल में बाइबल: 

  • भजन 91-93
  • रोमियों 15:1-13