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शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2022

कलीसिया में अपरिपक्वता के दुष्प्रभाव (13)

   

भ्रामक शिक्षाओं के स्वरूप - पवित्र आत्मा के विषय गलत शिक्षाएं (5) - अन्य-भाषाएं - पवित्र आत्मा प्राप्त करने का प्रमाण?

हम पिछले लेखों से देखते आ रहे हैं कि बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों की एक पहचान यह भी है कि वे बहुत सरलता से भ्रामक शिक्षाओं द्वारा बहकाए तथा गलत बातों में भटकाए जाते हैं। इन भ्रामक शिक्षाओं को शैतान और उस के दूत झूठे प्रेरितों और प्रभु के लोगों का भेस धारण कर के प्रस्तुत करते हैं। ये लोग, और उनकी शिक्षाएं, दोनों ही बहुत आकर्षक, रोचक, और ज्ञानवान, यहाँ तक कि भक्तिपूर्ण और श्रद्धापूर्ण भी प्रतीत हो सकती हैं, किन्तु साथ ही उनमें अवश्य ही बाइबल की बातों के अतिरिक्त भी बातें डली हुई होती हैं। इन गलत या भ्रामक शिक्षाओं के मुख्य स्वरूपों के बारे में, जिन्हें शैतान और उसके लोग प्रभु यीशु के झूठे प्रेरित, धर्म के सेवक, और ज्योतिर्मय स्‍वर्गदूतों का रूप धारण कर के बताते और सिखाते हैं, परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस के द्वारा 2 कुरिन्थियों 11:4 में लिखवाया है कि, “यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता। अर्थात, इन भ्रामक शिक्षाओं के, गलत उपदेशों के, मुख्यतः तीन विषय, होते हैं - प्रभु यीशु मसीह, पवित्र आत्मा, और सुसमाचार। साथ ही इस पद में सच्चाई को पहचानने और शैतान के झूठ से बचने के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी दी गई है। इस पद में यह भी लिखा है कि इन तीनों विषयों के बारे में शैतान की युक्तियों के जो यथार्थ और सत्य हैं, वे सब वचन में पहले से ही बता दिए गए हैं। इसलिए वचन से देखने, जाँचने, शिक्षाओं को परखने के द्वारा सही और गलत की पहचान करना कठिन नहीं है।

पिछले लेखों में हमने इन गलत शिक्षा देने वाले लोगों के द्वारा प्रभु यीशु से संबंधित सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं को देखने के बाद, परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित सामान्यतः बताई और सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं की वास्तविकता को वचन की बातों से देखना आरंभ किया है। हम देख चुके हैं कि प्रत्येक सच्चे मसीही विश्वासी के नया जन्म या उद्धार पाते ही, तुरंत उसके उद्धार पाने के पल से ही परमेश्वर पवित्र आत्मा अपनी संपूर्णता में आकर उसके अंदर निवास करने लगता है, और उसी में बना रहता है, उसे कभी छोड़ कर नहीं जाता है; और इसी को पवित्र आत्मा से भरना या पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाना भी कहते हैं। वचन स्पष्ट है कि पवित्र आत्मा से भरना या उससे बपतिस्मा पाना कोई दूसरा या अतिरिक्त अनुभव नहीं है, वरन उद्धार के साथ ही सच्चे मसीही विश्वासी में पवित्र आत्मा का आकर निवास करना ही है। इन गलत शिक्षकों की एक और बहुत प्रचलित और बल पूर्वक कही जाने वाले बात हैअन्य-भाषाओंमें बोलना, और उन लोगों के द्वाराअन्य-भाषाओंको अलौकिक भाषाएं बताना। इसके बारे में पिछले लेख में हम देख चुके हैं कि यह भी एक ऐसी गलत शिक्षा है जिसका वचन से कोई समर्थन या आधार नहीं है। प्रेरितों 2 अध्याय में जो अन्य भाषाएं बोली गईं, वे पृथ्वी ही की भाषाएं और उनकी बोलियाँ थीं; कोई अलौकिक भाषा नहीं। हमने यह भी देखा था कि वचन में इस शिक्षा का भी कोई आधार या समर्थन नहीं है किअन्य-भाषाएंप्रार्थना की भाषाएं हैं। 

एक अन्य संबंधित गलत शिक्षा उन लोगों के द्वारा बल-पूर्वक यह सिखाना है कि अन्य-भाषाएं बोलना ही पवित्र आत्मा प्राप्त करने का प्रमाण है। आज हम इसी के विषय परमेश्वर के वचन बाइबल से देखेंगे। यदि आप 1 कुरिन्थियों 12:4-11 को देखेंगे, जो पवित्र आत्मा द्वारा वचन की सेवकाई के लिए दिए जाने वाले आत्मिक वरदानों के बारे में है, तो उसके 10 पद से यह स्पष्ट हो जाएगा कि अन्य-भाषा में बोलना, अन्य आत्मिक वरदानों के समान ही पवित्र आत्मा द्वारा दिया गया एक आत्मिक वरदान है। साथ ही इसी खंड में पद 8 से 10 में हर आत्मिक वरदान के लिए, बारंबारकिसी कोभी लिखा गया है; जो यह दिखाता है कि हर किसी को एक ही समान आत्मिक वरदान नहीं दिए गए, किसी को एक, किसी अन्य को कोई और, और इसी प्रकार भिन्न लोगों को भिन्न आत्मिक वरदान, उनकी सेवकाई के अनुसार, पवित्र आत्मा की इच्छा के अनुसार (पद 11) दिए गए हैं। बाइबल का यह खंड स्पष्ट है कि हर किसी को अन्य-भाषा में बात करने का वरदान नहीं दिया गया है। साथ ही यहाँ पर अन्य भाषाओं के विषय ऐसी कोई बात या कोई संकेत तक भी नहीं है जिसके आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जाए कि अन्य-भाषा में बोलना पवित्र आत्मा प्राप्त करने का प्रमाण है। व्यक्ति में पवित्र आत्मा की उपस्थिति का प्रमाण तो उसका बदला हुआ जीवन, उसका पवित्र आत्मा के चलाए चलना और शारीरिक लालसाओं और अभिलाषाओं से दूर हो जाना, उसके जीवन में दिखने वाले आत्मा के फल हैं (गलातियों 5:22-26) 

 परमेश्वर पवित्र आत्मा के बारे में गलत शिक्षाएं फैलाने वाले ये लोग अपने इस दावे कोप्रमाणितकरने के लिए एक बहुत बड़ा झूठ बोलते हैं। वे दावे के साथ कहते हैं कि वचन में जब भी किसी ने पवित्र आत्मा प्राप्त किया है, उससे परिपूर्ण हुआ है, तो उसने अवश्य ही अन्य-भाषाएं भी बोली हैं; इसलिए यह मानने योग्य बात और प्रमाण है कि अन्य-भाषा बोलना ही पवित्र आत्मा प्राप्त करने का प्रमाण है। इस संदर्भ में शायद ही कभी किसी ने बेरिया के विश्वासियों के समान (प्रेरितों 17:11) इस बात की सच्चाई को जाँचने और उनके दावे की पुष्टि करने का प्रयास किया होगा - न तो उनके अपने साथियों और अनुयायियों ने, और न ही उन्होंने जिन्हें ये बड़ी हिम्मत के साथ यह बात कहते हैं।

जब हम वचन से उनके इस दावे को परखते हैं तो पाते हैं कि उनका यह तर्क भी कि वचन में जब भी पवित्र आत्मा प्राप्त करना आया है, साथ ही अन्य-भाषाएं बोलना भी आया है, इसी प्रकार से निराधार है। नए नियम में पवित्र आत्मा के किसी पर आने का सबसे पहला उल्लेख प्रभु यीशु की माता मरियम के लिए है (लूका 1:35), दूसरा उल्लेख यूहन्ना बपतिस्मा देने वाली की माता इलीशिबा का है (लूका 1:41), और तीसरा यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के पिता ज़कर्याह का है (लूका 1:67); किन्तु इन तीनों आरंभिक घटनाओं में कहीं कोई उल्लेख नहीं है कि इन में से किसी ने कभी कोईअन्य भाषाबोली - न तो उस समय जब वे पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हुए, और न ही उसके बाद किसी अन्य अवसर पर। 

इसी प्रकार से बिना अन्य भाषा बोले पवित्र आत्मा से भरने के लिए प्रेरितों के कार्य में अन्य स्थानों पर भी आया है:

  • प्रेरितों 4:8 में पतरस के लिए
  • प्रेरितों 4:31 में शिष्यों के लिए 
  • प्रेरितों 6:5 में स्तिफनुस के लिए
  • प्रेरितों 8:17 में सामरियों के विश्वास में आने और पवित्र आत्मा पाने के लिए
  • प्रेरितों 9:17 में पौलुस के लिए

पुराने नियम में पवित्र आत्मा प्राप्त करने पर साथ ही अन्य भाषा में बोलने का भी कोई उदाहरण नहीं है:

  • बेजलील निर्गमन 31:3 
  • ओतनिएल न्यायियों 3:10 
  • गिदोन न्यायियों 6:34   
  • यिपताह न्यायियों 11:29 
  • शिमशोन न्यायियों 13:25, 14:6, 14:19, 15:14 
  • शाऊल 1 शमूएल 10:6; 10:10; 11:6; 19:23 
  • दाऊद 1 शमूएल 16:13 
  • शाऊल के दूत 1 शमूएल 19:20 
  • आमासाई 1 इतिहास 12:18  
  • अज़रियाह 2 इतिहास 15:1  
  • जहाज़ीएल  2 इतिहास 20:14 
  • ज़कर्याह 2 इतिहास 24:20
  • दानिय्येल दानिय्येल 4:8, 9, 18; 5:11, 14 
  • मीका मीका 3:8 

परमेश्वर के वचन के ये सभी हवाले उनके इस दावे के बिलकुल झूठ और वचन का दुरुपयोग होने, लोगों को बहकाने और भरमाने का कार्य होने को दिखा देते हैं। 

यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए यह जानना और समझना अति-आवश्यक है कि आप परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित इन गलत शिक्षाओं में न पड़ जाएं; न खुद भरमाए जाएं, और न ही आपके द्वारा कोई और भरमाया जाए। लोगों द्वारा कही जाने वाले ही नहीं, वरन वचन में लिखी हुई बातों पर भी ध्यान दें, और लोगों की बातों को वचन की बातों से मिला कर जाँचें और परखें। यदि आप इन गलत शिक्षाओं में पड़ चुके हैं, तो अभी वचन के अध्ययन और बात को जाँच-परख कर, सही शिक्षा को, उसी के पालन को अपना लें।

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • गिनती 9-11         
  • मरकुस 5:1-20

गुरुवार, 24 फ़रवरी 2022

कलीसिया में अपरिपक्वता के दुष्प्रभाव (12)


भ्रामक शिक्षाओं के स्वरूप - पवित्र आत्मा के विषय गलत शिक्षाएं (4) - अन्य-भाषाएं - प्रार्थना की अलौकिक भाषाएं?

हम पिछले लेखों से देखते आ रहे हैं कि बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों की एक पहचान यह भी है कि वे बहुत सरलता से भ्रामक शिक्षाओं में बहकाए भटकाए जाते हैं। इन भ्रामक शिक्षाओं को शैतान और उस के दूत झूठे प्रेरितों और प्रभु के लोगों का भेस धारण कर के प्रस्तुत करते हैं। ये लोग और उनकी शिक्षाएं आकर्षक, रोचक, और ज्ञानवान, यहाँ तक कि भक्तिपूर्ण और श्रद्धापूर्ण भी प्रतीत हो सकती हैं, किन्तु उनमें अवश्य ही बाइबल की बातों के अतिरिक्त भी बातें डाली हुई होती हैं। इन गलत या भ्रामक शिक्षाओं के मुख्य स्वरूपों के बारे में परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस के द्वारा 2 कुरिन्थियों 11:4 में लिखवाया है कि इन भ्रामक शिक्षाओं के, गलत उपदेशों के, मुख्यतः तीन स्वरूप होते हैं, “यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता”, जिन्हें शैतान और उसके लोग प्रभु यीशु के झूठे प्रेरित, धर्म के सेवक, और ज्योतिर्मय स्‍वर्गदूतों का रूप धारण कर के बताते और सिखाते हैं। सच्चाई को पहचानने और शैतान के झूठ से बचने के लिए इन तीनों स्वरूपों के साथ इस पद में एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी दी गई है। इस पद में लिखा है कि शैतान की युक्तियों के तीनों विषयों, प्रभु यीशु मसीह, पवित्र आत्मा, और सुसमाचार के बारे में जो यथार्थ और सत्य है वह वचन में पहले से ही बता दिया गया है।

पिछले लेखों में हमने इन लोगों के द्वारा प्रभु यीशु से संबंधित सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं के बाद, परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित सामान्यतः बताई और सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं की वास्तविकता को वचन की बातों से देखना आरंभ किया है। हम देख चुके हैं कि प्रत्येक सच्चे मसीही विश्वासी के नया जन्म या उद्धार पाते ही, तुरंत उसके उद्धार पाने के पल से ही परमेश्वर पवित्र आत्मा अपनी संपूर्णता में आकर उसके अंदर निवास करने लगता है, और उसी में बना रहता है, उसे कभी छोड़ कर नहीं जाता है; और इसी को पवित्र आत्मा से भरना या पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाना भी कहते हैं। वचन स्पष्ट है कि पवित्र आत्मा से भरना या उससे बपतिस्मा पाना कोई दूसरा या अतिरिक्त अनुभव नहीं है, उद्धार के साथ ही सच्चे मसीही विश्वासी में पवित्र आत्मा का आकर निवास करना ही है। इन गलत शिक्षकों की एक और बहुत प्रचलित और बल पूर्वक कही जाने वाले बात हैअन्य-भाषाओंमें बोलना, और उन लोगों के द्वाराअन्य-भाषाओंको अलौकिक भाषाएं बताना। यह भी एक ऐसी गलत शिक्षा है जिसका वचन से कोई समर्थन या आधार नहीं है। आज हम इसी के विषय परमेश्वर के वचन बाइबल से देखेंगे। 

अन्य-भाषाओं के विषय सीखने और समझने के लिए हमें उनके प्रभु यीशु के शिष्यों के मध्य पहले प्रकटीकरण, प्रेरितों 2:4-11 का, उसके संदर्भ और वहाँ परभाषाके लिए प्रयोग किए गए मूल यूनानी भाषा के शब्दों का उनके अर्थ के साथ विश्लेषण करना आवश्यक है। यह करने के बाद ही हम सही निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं।  

प्रेरितों के काम के इस खंड (प्रेरितों 2:4-11) में, इन पदों में, मूल यूनानी भाषा में दो महत्वपूर्ण शब्द प्रयोग किए गए हैं, किन्तु हिन्दी में दोनों ही का अनुवादभाषाकिया गया है। ये शब्द हैं ग्लौसा (Tongue/Glossa), जिसका यहाँ पर और वचन में अन्य स्थानों पर, मनुष्यों द्वारा बोली जाने वाली कोई भाषा के अर्थ में प्रयोग किया गया है। वास्तव में ग्लौसा शब्द का शब्दार्थ होता हैजीभ”; और इसेजीभ के समान दिखने वालीकिसी वस्तु के लिए भी प्रयोग किया जाता है, जैसा कि पद 3 में हुआ है; और इसे जीभ से निकलने वाले शब्द या स्वरों के लिए भी प्रयोग किया जाता है। और इन पदों में प्रयोग किया गया दूसरा शब्द है डियालेकटौस (Language/Dialektos), बोली, जिसका अर्थ किसी बोली जाने वाली मुख्य भाषा का एक उप-स्वरूप याबोलीहोता है। उदाहरण के लिए पूरे उत्तर भारत में बोली जाने वाली भाषाहिन्दीहै; उत्तराखंड के मैदानी इलाकों से लेकर पूर्व में बिहार तक हिन्दी ही बोली जाती है। किन्तु जैसे-जैसे भौगोलिक क्षेत्र बदलते हैं, उस हिन्दी का स्वरूप भिन्न होता जाता है, मुख्य हिन्दी भाषा की बोलियाँ भिन्न होती चली जाती हैं। और हिन्दी की उन बोलियों के द्वारा यह पहचाना जा सकता है कि हिन्दी बोलने वाला वह व्यक्ति उत्तर भारत के किस क्षेत्र का है। अर्थात मुख्य भाषा का ही एक भिन्न स्वरूप बोली है। पद 4 और 11 में मुख्य भाषा दिखाने वाला शब्द गलौसा शब्द प्रयोग किया गया है; किन्तु, पद 6 और 8 में मुख्य भाषा के भिन्न स्वरूपबोलीको दिखाने वाला शब्द डियालेकटौस प्रयोग किया गया है।

यद्यपि यदि केवल इसके मूल अर्थ के अनुसार देखें तो ग्लौसा शब्द जीभ या मुँह से निकलने वाले हर शब्द के लिए सही है; और इसी अभिप्राय का प्रयोग करते हुए ये गलत शिक्षाओं को देने वाले उनकी जीभ या मुँह से निकलने वाले अज्ञात और निरर्थक शब्दों को भीभाषाकहते हैं। किन्तु शेष पदों के साथ मिला कर देखने से यह स्पष्ट है कि इन पदों में ग्लौसा का अर्थ पृथ्वी की ज्ञात और पहचानी जाने वाली भाषा है, कोई अलौकिक भाषा, अथवा मुँह से निकाली जाने वाली कोई भी ध्वनि नहीं। 

पद 4 में लिखा है कि उस स्थान पर एकत्रित सभी जन पवित्र आत्मा से भरने के साथ ही अन्य-अन्य भाषाओं (ग्लौसा) में बोलने लग गए। 

पद 5-8 में लिखा है कि उस पिन्तेकुस्त के पर्व को मनाने के समय पर संसार के विभिन्न क्षेत्रों से आए हुए यहूदी यरूशलेम में एकत्रित थे; और साथ ही उन्हेंभक्त यहूदीकहा गया है। पद 6 और 8 में हिन्दी में जोभाषालिखा गया है वह मूल यूनानी मेंडियालेकटौस”, अर्थातबोलीहै। इसे इससे आगे के पदों के साथ अधिक सरलता से समझा जा सकता है। ये लोग अचंभित होकर कहने लगे किइस्राएल के गलील इलाके के रहने वाले ये लोग, अपनी गलीली बोली के स्थान पर, हमारीबोली” (डियालेकटौस) कैसे बोलने लग गए?” क्योंकि उन सभी भक्त यहूदियों को शिष्यों के मुँह से अपनी-अपनी जन्म-भूमि की बोलियाँ (डियालेकटौस) सुनाई दे रही थीं। 

पद 9-10 में पृथ्वी के 15 विभिन्न क्षेत्रों या भू-भागों का नाम दिया गया है जहाँ के लोग उस समय यरूशलेम में एकत्रित थे। और इन सभी लोगों को - जो हजारों की संख्या में थे (3000 का तो उद्धार हुआ और उन्होंने बपतिस्मा लिया), सभी को अपनी-अपनी ग्लौसा और डियालेकटौस में सुनाई दे रहा था कि प्रभु यीशु के वे शिष्य क्या कह रहे हैं। 

पद 11 में फिर से ग्लौसा अर्थात भाषा शब्द का प्रयोग किया गया है और साथ ही पवित्र आत्मा ने यह भी और स्पष्ट कर दिया है कि क्यों यह ग्लौसा पृथ्वी की ही भाषाएं थीं, स्वर्गीय या दिव्य भाषाएं नहीं थीं। इसके तीन प्रमाण पवित्र आत्मा ने यहाँ लिखवाए हैं:

1. जैसा हम ऊपर पद 6 और 8 में देख चुके हैं, न केवल उन लोगों ने मुख्य भाषाएं बोलीं, किन्तु साथ ही उन मुख्य भाषाओं से संबंधितबोलियाँया उन भाषाओं के क्षेत्रीय स्वरूपों को भी बोला। किन्तु आजअन्य-भाषाको पृथ्वी से बाहर की भाषा कहने वालों में कभी भी उन लोगों के द्वारा यह मुख्य भाषा और उसकी संबंधित विभिन्न बोलियों को बोलने की बात देखने में नहीं आती है, अर्थात यह कि कोई अपनी या किसी और की बोली जाने वालीअन्य-भाषाको किसी और मुख्य भाषा कीबोलीया क्षेत्रीय भाषा बताए। उन्हें तो अपने द्वारा बोली जाने वाली भाषा का ही नाम, अर्थ, व्याकरण, आदि पता नहीं होता है, तो किसी दूसरे की भाषा या बोली के लिए क्या कहेंगे? अन्य-भाषाओं से संबंधित वचन का यह प्रमुख गुण, आजअन्य-भाषाएंबोलने के नामे पर मुँह से निरर्थक ध्वनियाँ निकालने वालों में बिलकुल दिखाई नहीं देता है, तो फिर वे कैसे अपने इस व्यवहार कोवचन के अनुसारसही और जायज़ कह सकते हैं?

2. पद 6, 8 और 11 में लिखा है कि वहाँ एकत्रित सुनने वाले सभी यह पहचान रहे थे कि वे लोग उनकी भाषा या बोली में कुछ कह रहे हैं। यदि बोलने वाले पृथ्वी के बाहर की भाषाएं बोल रहे होते, तो फिर ये पृथ्वी के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों से एकत्रित हुए यहूदी मनुष्य यह कैसे कहने पाते कि उन्हें अपनी ही भाषा सुनाई दे रही है; क्योंकि उनकी अपनी भाषा का अभिप्राय तो उनके पृथ्वी के भौगोलिक क्षेत्र की भाषा या बोली से होता? आज जोअन्य-भाषाएंबोलने का दावा करते हैं, न तो उन्हें खुद ही और न ही उन्हें सुनने वालों को यह पता होता है कि उन्होंने क्या कहा है! जबकि प्रेरितों 2:4-11 में, और अन्य स्थानों पर भी, वचन में सदा ही यह स्पष्ट किया गया है कि सुनने वाले समझ रहे थे कि क्या कहा जा रहा है।

3. विभिन्न देशों से आए वे यहूदी न केवल अपनी भाषा और बोली पहचान रहे थे, वरन उन्हें यह भी समझ आ रहा था कि क्या कहा जा रहा है -परमेश्वर के बड़े-बड़े कामों की चर्चाकी जा रही है; अर्थात परमेश्वर के आराधना की जा रही है, उससे प्रार्थना नहीं की जा रही है। ध्यान कीजिए, वचन में न यहाँ पर, और न किसी अन्य स्थान पर अन्य-भाषा को प्रार्थना के लिए उपयोग किया गया दिखाया गया है। गलत शिक्षा वाले ये लोग अन्य-भाषाओं कोप्रार्थना करने की भाषाकहकर लोगों को भरमाते हैं, जबकि वचन में ऐसा कहीं नहीं लिखा है। अपनी बात के समर्थन में वे लोग रोमियों 8:26-27 “इसी रीति से आत्मा भी हमारी दुर्बलता में सहायता करता है, क्योंकि हम नहीं जानते, कि प्रार्थना किस रीति से करना चाहिए; परन्तु आत्मा आप ही ऐसी आहें भर भरकर जो बयान से बाहर है, हमारे लिये बिनती करता है। और मनों का जांचने वाला जानता है, कि आत्मा की मनसा क्या है क्योंकि वह पवित्र लोगों के लिये परमेश्वर की इच्छा के अनुसार बिनती करता हैका दुरुपयोग, उसमें अपने ही शब्द और तात्पर्य डालने के द्वारा करते हैं। 

रोमियों के इन पदों में साफ लिखा है कि परमेश्वर पवित्र आत्मा हमारी दुर्बलताओं की स्थिति में, जब हम नहीं जानते कि ऐसे में क्या प्रार्थना की जाए, तब स्वयं आहें भरकर हमारे लिए परमेश्वर की इच्छा के अनुसार विनती करता है। यहाँ यह कहीं नहीं लिखा या अर्थ दिया गया है कि पवित्र आत्मा मसीही विश्वासियों से अन्य-भाषा बोलने के द्वारा प्रार्थना करवाता है। आहें भरना, और वह भी किसी मनुष्य के द्वारा नहीं, वरन पवित्र आत्मा के द्वारा, अन्य भाषा बोलना नहीं है। इन पदों मेंहम नहीं जानतेमसीही विश्वासी की दुर्बलता की उस स्थिति के लिए आया है जिस में मसीही विश्वासी अपनी परिस्थिति से इतना अभिभूत या प्रभावित है कि उसे समझ ही नहीं आ रहा है कि वह क्या प्रार्थना करे; तब पवित्र आत्मा स्वयं उसके लिए प्रार्थना करके उसकी सहायता करता है। न तो रोमियों के ये पद मनुष्यों द्वारा अन्य-भाषाएं बोलने से संबंधित हैं, और न ही ये पद अन्य-भाषा बोलने को प्रार्थना की भाषा बताना जायज़ ठहराते हैं। इन पदों की इस प्रकार व्याख्या सर्वथा गलत है, वचन के साथ खिलवाड़ और वचन का जान-बूझ कर किया गया दुरुपयोग है। सामान्य समझ की बात है, जब हम परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं तो हमें पता होता है कि हम क्या और क्यूँ कह रहे हैं, परमेश्वर से क्या माँग रहे हैं। इन गलत शिक्षाओं वालों को तो स्वयं ही पता नहीं होता है कि उन्होंने कहा क्या है, तो फिर वे क्या प्रार्थना करते हैं, या क्या आराधना करते हैं, किसे पता है?

       आजअन्य-भाषाको पृथ्वी के बाहर की भाषा बताने वाले लोगों द्वारा मुँह से निकाली जाने वाली विचित्र आवाजों पर ऊपर कही गई तीनों में से एक भी बात लागू नहीं होती है। अर्थात, जब प्रेरितों 2:4-11 को उसके संदर्भ और शब्दों के अर्थ तथा अभिप्रायों के साथ देखा और अध्ययन किया जाए, तो इन गलत शिक्षाएं फैलाने वालों की बातों का झूठ तुरंत ही सामने आ जाता है। अगले लेख में हम अन्य-भाषाएं बोलने से संबंधित एक और बहुत फैलाई जाने वाली किन्तु बिलकुल गलत शिक्षा, कि अन्य-भाषा बोलना ही पवित्र आत्मा प्राप्त करने का प्रमाण है, के बारे में वचन से देखेंगे।   

यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए यह जानना और समझना अति-आवश्यक है कि आप परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित इन गलत शिक्षाओं में न पड़ जाएं; न खुद भरमाए जाएं, और न ही आपके द्वारा कोई और भरमाया जाए। लोगों द्वारा कही जाने वाले ही नहीं, वरन वचन में लिखी हुई बातों पर भी ध्यान दें, और लोगों की बातों को वचन की बातों से मिला कर जाँचें और परखें। यदि आप इन गलत शिक्षाओं में पड़ चुके हैं, तो अभी वचन के अध्ययन और बात को जाँच-परख कर, सही शिक्षा को, उसी के पालन को अपना लें।

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • गिनती 7-8         
  • मरकुस 4:21-41

बुधवार, 23 फ़रवरी 2022

कलीसिया में अपरिपक्वता के दुष्प्रभाव (11)

 

भ्रामक शिक्षाओं के स्वरूप - पवित्र आत्मा के विषय गलत शिक्षाएं (3) - पवित्र आत्मा से बपतिस्मा

हम पिछले लेखों से देखते आ रहे हैं कि बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों की एक पहचान यह भी है कि वे बहुत सरलता से भ्रामक शिक्षाओं में बहकाए भटकाए जाते हैं। इन भ्रामक शिक्षाओं को शैतान और उस के दूत झूठे प्रेरितों और प्रभु के लोगों का भेस धारण कर के प्रस्तुत करते हैं। ये लोग और उनकी शिक्षाएं आकर्षक, रोचक, और ज्ञानवान, यहाँ तक कि भक्तिपूर्ण और श्रद्धापूर्ण भी प्रतीत हो सकती हैं, किन्तु उनमें अवश्य ही बाइबल की बातों के अतिरिक्त भी बातें डाली हुई होती हैं। इन गलत या भ्रामक शिक्षाओं के मुख्य स्वरूपों के बारे में परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस के द्वारा 2 कुरिन्थियों 11:4 में लिखवाया है कि इन भ्रामक शिक्षाओं के, गलत उपदेशों के, मुख्यतः तीन स्वरूप होते हैं, “यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता”, जिन्हें शैतान और उसके लोग प्रभु यीशु के झूठे प्रेरित, धर्म के सेवक, और ज्योतिर्मय स्‍वर्गदूतों का रूप धारण कर के बताते और सिखाते हैं। सच्चाई को पहचानने और शैतान के झूठ से बचने के लिए इन तीनों स्वरूपों के साथ इस पद में एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी दी गई है। इस पद में लिखा है कि शैतान की युक्तियों के तीनों विषयों, प्रभु यीशु मसीह, पवित्र आत्मा, और सुसमाचार के बारे में जो यथार्थ और सत्य है वह वचन में पहले से ही बता दिया गया है।

पिछले लेखों में हमने इन लोगों के द्वारा प्रभु यीशु से संबंधित सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं के बाद, परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित सामान्यतः बताई और सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं की वास्तविकता को वचन की बातों से देखना आरंभ किया है। हम देख चुके हैं कि प्रत्येक सच्चे मसीही विश्वासी के नया जन्म या उद्धार पाते ही, तुरंत उसके उद्धार पाने के पल से ही परमेश्वर पवित्र आत्मा अपनी संपूर्णता में आकर उसके अंदर निवास करने लगता है, और उसी में बना रहता है, उसे कभी छोड़ कर नहीं जाता है; और इसी को पवित्र आत्मा से भरना भी कहते हैं। वचन स्पष्ट है कि पवित्र आत्मा से भरना कोई दूसरा या अतिरिक्त अनुभव नहीं है, उद्धार के साथ ही सच्चे मसीही विश्वासी में पवित्र आत्मा का आकर निवास करना ही है। इन गलत शिक्षकों द्वारा इसी बात को एक और रूप मेंपवित्र आत्मा का बपतिस्मापाने की आवश्यकता के रूप में भी प्रस्तुत किया जाता है। उनकी शिक्षा है कि प्रभावी और उपयोगी मसीही जीवन के लिएपवित्र आत्मा का बपतिस्मापाना अनिवार्य है, तब ही व्यक्ति प्रभु के लिए कार्य कर सकता है। यह भी एक ऐसी गलत शिक्षा है जिसका वचन से कोई समर्थन या आधार नहीं है। आज हम इसी के विषय परमेश्वर के वचन बाइबल से देखेंगे। 

प्रेरितों 1:4 के विचार, कि प्रभु यीशु के शिष्य पवित्र आत्मा प्राप्त होने तक (पद 8) यरूशलेम में प्रतीक्षा करते रहें, को आगे बढ़ाते हुए, प्रभु यीशु ने इस पद में अपने शिष्यों कहा कि थोड़े ही दिनों में वे पवित्र आत्मा से (‘कानहीं; not ‘of’, but ‘with’) बपतिस्मा पाएंगे। पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाने को लेकर बहुत सी ऐसी शिक्षाएं और विचार मसीही समाज और विश्वासियों में फैली हुई हैं और फैलाई  भी जा रही हैं, जो बाइबल की शिक्षाओं के अनुसार नहीं हैं। ये शिक्षाएं चीनी में लिपटे हुए कड़वे और घातक ज़हर  के समान हैं, जो विश्वासियों के विश्वास और सेवकाई की बहुत हानि करते हैं, उन्हें सत्य के मार्ग से भटका कर, गलत धारणाओं और निष्फल कार्यों की ओर ले जाते हैं। 

वास्तविकता में, पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाना, शिष्यों के सेवकाई पर निकलने से पहले पवित्र आत्मा की सामर्थ्य प्राप्त करने की प्रभु की बात का पूरा होना है। यहाँ पर दो छोटे शब्दों, “सेऔरकामें हेरा-फेरी करने के द्वारा एक बिलकुल ही गलत अर्थ, जिसका कोई अभिप्राय था ही नहीं, इन गलत शिक्षकों के द्वारा डाल दिया गया है। शब्दसेएक माध्यम को, जिसमें या जिससे बपतिस्मा दिया जाता है दिखाता है; जबकि शब्दकाकिसी के अधिकार या स्वामित्व को दिखाता है। इसे 1 कुरिन्थियों  1:11-12 से समझिए -काकहने का अर्थ है अन्य से हटकर उस जन का हो जाना। पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाना कहने अर्थात हो जाता है कि एक बपतिस्मा वह है जिसे प्रभु ने कहा है, और अब पवित्र आत्मा प्रभु द्वारा कहे गए उस बपतिस्मे से एक भिन्न बपतिस्मा भी देता है; एक छोटे से शब्द का अनुचित उपयोग, सारे अर्थ को बदल देता है। 

यह बहुत ध्यान देने और विचार करने की बात है कि पूरे नए नियम में कहीं पर भी वाक्यांश पवित्र आत्मा का बपतिस्माप्रयोग नहीं किया गया है। जहाँ भी प्रयोग हुआ है, “पवित्र आत्मा से बपतिस्माप्रयोग हुआ है।सेका अर्थ  होता है वह माध्यम जो बपतिस्मा देने के लिए प्रयोग होगा; कासे अर्थ बनता है बपतिस्मा किसके अधिकार या आज्ञा के अनुसार होगा।प्रभु यीशु का बपतिस्माकहने का अर्थ है वह बपतिस्मा जो प्रभु यीशु के कहे के अनुसार या उसकी आज्ञाकारिता के अनुसार दिया गया; और इसी अभिप्राय के अनुसारपवित्र आत्मा का बपतिस्माका अर्थ है वह बपतिस्मा जो पवित्र आत्मा के कहे के अनुसार या उसके अधिकार से दिया गया। मसीही विश्वासी के जीवन में परमेश्वर पवित्र आत्मा की भूमिका के बारे में प्रभु यीशु ने सिखाया है कि परमेश्वर पवित्र आत्मा केवल वही बताता, स्मरण करवाता, और सिखाता है जो प्रभु यीशु बता और सिखा चुका है (यूहन्ना 14:26; 16:13); वह अपनी ओर से कुछ नहीं कहता या करता है। इसलिए एक अन्यपवित्र आत्मा का बपतिस्मापाने की बात करना, पवित्र आत्मा के विषय प्रभु यीशु द्वारा वर्णित की गई, और उनकी निर्धारित सेवकाई में विरोधाभास (contradiction) लाना और परमेश्वर के वचन में अपनी ओर से जोड़ना होगा, जो स्वीकार्य नहीं है, वरन दण्डनीय है (प्रकाशितवाक्य 22:18-19) 

इस से संबंधित वचनों के द्वारासेऔरकाके अर्थ की भिन्नता को समझते हैं:

  • मत्ती 3:11 मैं तो पानी से तुम्हें मन फिराव का बपतिस्मा देता हूं, परन्तु जो मेरे बाद आने वाला है, वह मुझ से शक्तिशाली है; मैं उस की जूती उठाने के योग्य नहीं, वह तुम्हें पवित्र आत्मा और आग से बपतिस्मा देगा
  • मरकुस 1:8 मैं ने तो तुम्हें पानी से बपतिस्मा दिया है पर वह तुम्हें पवित्र आत्मा से बपतिस्मा देगा।
  • लूका 3:16 तो यूहन्ना ने उन सब से उत्तर में कहा: कि मैं तो तुम्हें पानी से बपतिस्मा देता हूं, परन्तु वह आने वाला है, जो मुझ से शक्तिमान है; मैं तो इस योग्य भी नहीं, कि उसके जूतों का बन्ध खोल सकूं, वह तुम्हें पवित्र आत्मा और आग से बपतिस्मा देगा।
  • यूहन्ना 1:33 और मैं तो उसे पहचानता नहीं था, परन्तु जिसने मुझे जल से बपतिस्मा देने को भेजा, उसी ने मुझ से कहा, कि जिस पर तू आत्मा को उतरते और ठहरते देखे; वही पवित्र आत्मा से बपतिस्मा देनेवाला है।
  • प्रेरितों के काम 11:16 तब मुझे प्रभु का वह वचन स्मरण आया; जो उसने कहा; कि यूहन्ना ने तो पानी से बपतिस्मा दिया, परन्तु तुम पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाओगे।
  • प्रेरितों के काम 18:25 उसने प्रभु के मार्ग की शिक्षा पाई थी, और मन लगाकर यीशु के विषय में ठीक ठीक सुनाता, और सिखाता था, परन्तु वह केवल यूहन्ना के बपतिस्मा की बात जानता था। - यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के अनुसार या उसके अधिकार से, जल से दिया गया बपतिस्मा।
  • 1 कुरिन्थियों 1:12 मेरा कहना यह है, कि तुम में से कोई तो अपने आप को पौलुस का, कोई अपुल्लोस का, कोई कैफा का, कोई मसीह का कहता है। कुरिन्थुस के विश्वासियों ने अपने आप को व्यक्तियों के अधिकार के आधार पर विभाजित करना आरंभ कर दिया था, कलीसिया में विभाजन आने लग गए थे।
  • 1 कुरिन्थियों 10:2 और सब ने बादल में, और समुद्र में, मूसा का बपतिस्मा लिया। मूसा के अधिकार के अंतर्गत इस्राएलियों के लिए बपतिस्मे का अभिप्राय।
  • रोमियों 6:3 क्या तुम नहीं जानते, कि हम जितनों ने मसीह यीशु का बपतिस्मा लिया तो उस की मृत्यु का बपतिस्मा लिया। प्रभु यीशु के कहे के अनुसार और अधिकार के अंतर्गत प्रभु यीशु के अनुयायियों का बपतिस्मा।

हर स्थान परपवित्र आत्मा सेप्रयोग किया गया है, अर्थात, पानी के समान ही पवित्र आत्मा वह माध्यम होगा जिसके द्वारा या जिसमें बपतिस्मा मिलेगा; “पवित्र आत्मा काकहीं पर भी प्रयोग नहीं हुआ है, अर्थात, परमेश्वर पवित्र आत्मा अपनी ओर से या अपने अधिकार से कुछ भी नया नहीं करेगा, नहीं सिखाएगा, नहीं बताएगा । 

बहुधा, इस बपतिस्मे के विषय लोगों में यह धारणा दी जाती है कि यह बपतिस्मा पाना पवित्र आत्मा पाने से पृथक, एक अतिरिक्त (extra) अनुभव है, जो मसीही विश्वासी को सामान्य से और अधिक सक्षम करता है, उसे परमेश्वर के लिए और अधिक उपयोगी और सामर्थी बनाता है। इसलिए जो प्रभु के लिए उपयोगी होना चाहता है, या सामर्थ्य के कार्य करना चाहता है, उसे प्रभु से यह अनुभव प्राप्त करना चाहिए, इसके लिए प्रयास और प्रार्थना करनी चाहिए। जबकि सत्य यह है कि बाइबल में ऐसी कोई शिक्षा कहीं पर भी नहीं दी गई है। ध्यान करें, न तो उन 3000 प्रथम विश्वासियों से, जिन्होंने पतरस के प्रचार पर विश्वास के द्वारा उद्धार पाया यह, या ऐसी कोई भी बात कही गई, और न ही पौलुस, या पतरस, या अन्य किसी प्रेरित अथवा प्रचारक के द्वारा कभी भी कहीं भी उनकी अपनी सेवकाई के विषय में कहा गया कि उसने एक अतिरिक्तपवित्र आत्मा का बपतिस्मापाया था, जिसके फलस्वरूप वह और अधिक सामर्थी होकर प्रभु के लिए उपयोगी हो सका। क्या उन आरंभिक प्रेरितों और प्रभु के शिष्यों से अधिक सामर्थी सेवकाई किसी की हो सकती है, जिन्होंने सारे संसार में सुसमाचार फैला दिया और संसार को उलट-पुलट कर दिया (प्रेरितों 17:6)? किन्तु उन्हें कभी कोई अतिरिक्तपवित्र आत्मा का बपतिस्मापाने की आवश्यकता नहीं पड़ी। उन्होंने अपने विषय यहपवित्र आत्मा का बपतिस्मापाने की कभी कोई बात नहीं की; साथ ही पौलुस ने कहा कि मसीही विश्वासी उस के समान प्रभु यीशु का अनुसरण करें (1 कुरिन्थियों 4:16-17; 11:1; 1 थिस्सलुनीकियों 4:1); अर्थात जो उसके समान प्रभु यीशु का अनुसरण करेगा, वह उसके समान प्रभु के लिए प्रभावी और उपयोगी भी होगा। यही एक तथ्य अपने आप में इसपवित्र आत्मा का बपतिस्मापाने की आवश्यकता एवं औचित्य से संबंधित गलत शिक्षा के व्यर्थ एवं अनुचित होने को स्पष्ट दिखा देता है।   

प्रेरितों 1:5 का वाक्य, प्रभु द्वारा पद 4 में कही जा रही बात का ही ज़ारी रखा जाना है, और प्रभु की बात में कोई चकराने वाली बात (confusion) नहीं है। प्रभु ने सीधे और साफ शब्दों में पद 4 की प्रतिज्ञा - उन शिष्यों के द्वारा पवित्र आत्मा को प्राप्त करना, को ही पद 5 में पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाना कहा है, जिसकी पुष्टि एक बार फिर से पद 8 में प्रभु की बात से हो जाती है। 

न ही प्रभु ने यहाँ पर या अन्य किसी स्थान पर किसी से भी यह कहा किपवित्र आत्मा प्राप्त कर लेने के बाद, प्रयास और प्रार्थना करना कि तुम्हें पवित्र आत्मा से बपतिस्मा भी मिल जाए; उसके लिए यत्न करते रहना, जिससे तुम और भी अधिक सामर्थी होकर सेवकाई कर सको।अर्थात, उन शिष्यों को यह विशेष बपतिस्मा पाने के लिए अपनी ओर से और कुछ नहीं करना था; कोई लालसा नहीं, कोई प्रतीक्षा नहीं, कोई प्रयास नहीं, कोई प्रार्थना नहीं। जो होना था वह प्रभु के द्वारा स्वतः ही किया जाना था; यह उनके किसी कार्य के परिणाम स्वरूप नहीं होना था। इस पद में ऐसा कोई संकेत भी नहीं है जिससे यह आभास हो कि पवित्र आत्मा प्राप्त करना और पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाना कोई दो पृथक कार्य अथवा अनुभव हैं। यह बिलकुल स्पष्ट है कि प्रेरितों 1:4 और 5 में एक ही बात को दो विभिन्न प्रकार से व्यक्त किया गया है। 

जैसे हम पहले भी देख चुके हैं, पवित्र आत्मा कोई वस्तु नहीं है जिसे विभाजित करके टुकड़ों में या अंश-अंश करके दिया जा सके। वह ईश्वरीय व्यक्तित्व है, और जब भी, जिसे भी दिया जाता है, उसमें वह अपनी संपूर्णता में ही वास करता है, टुकड़ों में नहीं (यूहन्ना 3:34)। तो यदि प्रेरितों 1:4 की प्रतिज्ञा के अनुसार शिष्यों को जब पवित्र आत्मा एक बार मिल जाएगा, तो फिर पद 5 में यदि पवित्र आत्मा का बपतिस्मा यदि कोई अलग अनुभव, अलग सामर्थ्य पाना है, तो फिर उस संपूर्णता में मिले हुए पवित्र आत्मा के विश्वासी के अंदर विद्यमान होने के बाद, अब और क्या सामर्थ्य दिया जाना शेष है?

यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए यह जानना और समझना अति-आवश्यक है कि आप परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित इन गलत शिक्षाओं में न पड़ जाएं; न खुद भरमाए जाएं, और न ही आपके द्वारा कोई और भरमाया जाए। लोगों द्वारा कही जाने वाले ही नहीं, वरन वचन में लिखी हुई बातों पर भी ध्यान दें, और लोगों की बातों को वचन की बातों से मिला कर जाँचें और परखें। यदि आप इन गलत शिक्षाओं में पड़ चुके हैं, तो अभी वचन के अध्ययन और बात को जाँच-परख कर, सही शिक्षा को, उसी के पालन को अपना लें।

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • गिनती 5-6         
  • मरकुस 4:1-20

मंगलवार, 22 फ़रवरी 2022

कलीसिया में अपरिपक्वता के दुष्प्रभाव (10)


भ्रामक शिक्षाओं के स्वरूप - पवित्र आत्मा के विषय गलत शिक्षाएं (2) - पवित्र आत्मा से भरना

 

पिछले कुछ लेखों से हम इफिसियों 4:14 में दी गई बातों में से, बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों और कलीसियाओं को प्रभावित करने वाले तीसरे दुष्प्रभाव, भ्रामक या गलत उपदेशों के बारे में देखते आ रहे हैं। इन गलत या भ्रामक शिक्षाओं के मुख्य स्वरूपों के बारे में परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस के द्वारा 2 कुरिन्थियों 11:4 में लिखवाया है कि इन भ्रामक शिक्षाओं के, गलत उपदेशों के, मुख्यतः तीन स्वरूप होते हैं, “यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता”, जिन्हें शैतान और उसके लोग प्रभु यीशु के झूठे प्रेरित, धर्म के सेवक, और ज्योतिर्मय स्‍वर्गदूतों का रूप धारण कर के बताते और सिखाते हैं। सच्चाई को पहचानने और शैतान के झूठ से बचने के लिए इन तीनों स्वरूपों के साथ इस पद में एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी दी गई है। इस पद में लिखा है कि शैतान की युक्तियों के तीनों विषयों, प्रभु यीशु मसीह, पवित्र आत्मा, और सुसमाचार के बारे में जो यथार्थ और सत्य है वह वचन में पहले से ही बता दिया गया है। 

इन तीनों प्रकार की गलत शिक्षाओं में से इस पद में सबसे पहली है कि शैतान और उस के जन, प्रभु यीशु के विषय ऐसी शिक्षाएं देते हैं जो वचन में नहीं दी गई हैं, और इसके बारे में हम पहले दो लेखों में विस्तार से देख चुके हैं। दूसरी बात जिसके बारे में भ्रामक शिक्षा और गलत बातें सिखाई, फैलाई जाती हैं, वह है परमेश्वर पवित्र आत्मा के विषय।कोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था”, गलत शिक्षा के पहले विषय के समान ही, इस दूसरी के लिए भी यहाँ यही लिखा गया है, “जो पहिले न मिला था” - अर्थात, जो भी गलत शिक्षाएं और बातें होंगी, वे उन शिक्षाओं और बातों के अतिरिक्त होंगी जो परमेश्वर के वचन में पहले से लिखवा दी गई हैं, और जिनके आधार पर उन शिक्षाओं को परखा, जाँचा, और उनकी सत्यता को स्थापित किया जा सकता है। 

पिछले लेख से हमने परमेश्वर पवित्र आत्मा के संबंध में बताई और फैलाई जाने वाली कुछ सामान्य गलत शिक्षाओं के विषय देना आरंभ किया, और यह सीखा था कि मसीही विश्वासी के उद्धार पाते ही, उसी क्षण से, पवित्र आत्मा आकर मसीही विश्वासियों में निवास करने लग जाता है। किसी को भी पवित्र आत्मा पाने के लिए अलग से कोई प्रयास करने, या प्रतीक्षा करने, या प्रार्थनाएं करने की को आवश्यकता नहीं है। परमेश्वर पवित्र आत्मा प्रत्येक सच्चे, नया जन्म अर्थात उद्धार पाए हुए विश्वासी में, उसके उद्धार पाने के पल से ही विद्यमान है। परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित गलत शिक्षाएं देने वाले ये लोग सिखाते हैं कि पवित्र आत्मा प्राप्त करना एक बात है, किन्तु प्रभावी मसीही जीवन और सेवकाई के लिए एक दूसरे अनुभव - पवित्र आत्मा से भरने, और पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाने की आवश्यकता होती है, और जिसे पवित्र आत्मा प्राप्त होता है वह फिर अन्य-भाषाएं बोलने लगता है, जो कि पवित्र आत्मा प्राप्त हो जाने का प्रमाण है। उनकी ये शिक्षाएं भी वचन के कुछ भाग को उसके संदर्भ से बाहर लेकर, अन्य संबंधित बातों का ध्यान रखे बिना, अपनी ही धारणा बना लेने के कारण हैं। आज हम उनके द्वारा दी जाने वाली पवित्र आत्मा से भरना की व्याख्या और शिक्षा के गलत होने बारे में देखेंगे, और वचन से इस बात के सही अर्थ को समझेंगे।

पवित्र आत्मा से भर जाने का पहला उल्लेख प्रभु यीशु के शिष्यों के द्वारा पिन्तेकुस्त के दिन पवित्र आत्मा प्राप्त करने के साथ किया गया है। प्रेरितों के काम 2:4 में लिखा है,“और वे सब पवित्र आत्मा से भर गए, और जिस प्रकार आत्मा ने उन्हें बोलने की सामर्थ्य दी, वे अन्य अन्य भाषा बोलने लगेध्यान कीजिए, इस पहले ही उल्लेख में यह नहीं लिखा है कि उन्होंने पवित्र आत्मा प्राप्त किया; वरन इस पद 4 का आरंभिक वाक्य कहता है किऔर वे सब पवित्र आत्मा से भर गए। यह भी नहीं लिखा है कि उन सभी ने पवित्र आत्मा की थोड़ी-थोड़ी सामर्थ्य प्राप्त कर ली; वरन यह के वे सभी पवित्र आत्मा से भर गए। अर्थात, पवित्र आत्मा जब आया, तब सभी एकत्रित शिष्यों पर, वे चाहे जो भी हों और अपने चाहे विश्वास में कितने भी दृढ़ अथवा दुर्बल थे, एक ही रीति से, एक जैसा ही, तथा अपनी परिपूर्णता के साथ आया। किसी पर कम किसी पर ज़्यादा नहीं आया, और उस स्थान पर उपस्थित सभी जन (प्रेरितों 1:15 - गिनती में लगभग 120) पवित्र आत्मा से भर गए। यहाँ पर वचन यह स्पष्ट कर देता है कि पवित्र आत्मा का विश्वासी में आना और उस विश्वासी का पवित्र आत्मा से भर जाना एक ही बात है। बाइबल में पवित्र आत्मा से भरने के लिए किसी अतिरिक्त प्रार्थना, प्रतीक्षा, या प्रयास करने का न तो कोई उदाहरण है, और न ही कोई निर्देश अथवा शिक्षा है। इसे एक अलग या विशेष अनुभव बताना और सिखाना इन लोगों की अपनी मन-गढ़ंत बात है; वचन की शिक्षा नहीं है। पवित्र आत्मा परमेश्वर है, पवित्र त्रिएक परमेश्वर का एक व्यक्तित्व, उसे बांटा नहीं जाता है, वह टुकड़ों या किस्तों में नहीं मिलता है (यूहन्ना 3:34), न ही किसी व्यक्ति में उसे घटाया या बढ़ाया जा सकता है, और वह हर किसी सच्चे मसीही विश्वासी में मात्रा तथा गुणवत्ता में समान ही विद्यमान होता है।

सामान्य वार्तालाप एवं उपयोग में वाक्यांशभर जानेयापरिपूर्ण हो जानेके विभिन्न अभिप्राय होते हैं, और इस वाक्यांश के विषय ऐसा ही हम परमेश्वर के वचन बाइबल में भी देखते हैं। इन विभिन्न अभिप्रायों के कुछ उदाहरण हैं:

  • किसी रिक्त/खाली स्थान में समा जाना और उसे अपनी उपस्थिति सेभरदेना या परिपूर्ण अथवा ओतप्रोत कर देना। बाइबल में इस अभिप्राय का एक जाना-माना उदाहरण है मरियम द्वारा प्रभु के पाँवों पर इत्र उडेलना, जिसकी सुगंध से घर सुगंधित हो गया (अंग्रेज़ी में filled with the fragrance) अर्थात सुगंध से भर गया। बाइबल से इसी अभिप्राय का एक और परिचित उदाहरण है राजा के कहने पर सभी स्थानों से लोगों को लाकर ब्याह के भोज के लिए बैठाना जिससे ब्याह का घर जेवनहारों से भर गया” (मत्ती 22:10) 
  • किसी बात या भावना के वशीभूत होकर कुछ कार्य अथवा व्यवहार करना; जैसे कि 
    • लोगों का प्रभु या उसके शिष्यों के विरुद्ध क्रोध से भर जाना और हानि पहुँचाने का प्रयास करना (लूका 4:28-29; 6:11-english; प्रेरितों 5:17; 13:45)
    • आश्चर्यकर्म को देखकर अचरज और भय के वशीभूत हो जाना (लूका 5:26-english; प्रेरितों 3:10-english)
    • अत्यधिक आनंदित हो जाना (प्रेरितों 13:52)
  • पवित्र आत्मा को प्राप्त करना (प्रेरितों 9:17) - यहाँ एक बार फिर से पवित्र आत्मा प्राप्त करना और उससे परिपूर्ण हो जाने, या उस से भर जाने को एक ही समान बताया गया है।
  • पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से अभूतपूर्व कार्य करना (प्रेरितों 4:8, 31; 13:9-11)

जब सामान्य भाषा और प्रयोग में कहा जाए किउसने प्रेम से भर कर यह कर दिया”, याउसने क्रोध से भर कर ऐसा कर दिया”, यावह घृणा से भर गया”, आदि, तो क्या हम यह समझते हैं कि उस व्यक्ति ने कहीं से या किसी प्रकार प्रेम, या क्रोध, या घृणा की कुछ अधिक मात्रा प्राप्त की और फिर वह कार्य किया? या फिर हम सीधी भाषा में यह समझ लेते हैं कि किसी बात के कारण वह व्यक्ति, उस में पहले से ही विद्यमान प्रेम, या क्रोध, या घृणा, आदि, की भावना के वशीभूत हो गया और उस वशीभूत होने की स्थिति में उसने वह कार्य कर दिया, जो वह अन्यथा नहीं करता! यही बातपवित्र आत्मा से भरना, या भरकर कुछ कार्य करनापर भी लागू होती है। सामान्यतः बाइबल में वाक्यांशभर जानेयापरिपूर्ण हो जानेका अर्थ और प्रयोग किसी की सामर्थ्य अथवा उपस्थिति के वशीभूत होकर अथवा उससे प्रेरित होकर कुछ अद्भुत या अभूतपूर्व कर पाने के संदर्भ में होता है। अर्थात, पवित्र आत्मा से भर जाना से अभिप्राय है पवित्र आत्मा की सामर्थ्य, उसके नियंत्रण में होकर कार्य करना।

 प्रभु ने यूहन्ना 14:16 में कहाऔर मैं पिता से बिनती करूंगा, और वह तुम्हें एक और सहायक देगा, कि वह सर्वदा तुम्हारे साथ रहेतो अर्थ स्पष्ट है कि अब जब उद्धार के समय एक बार पवित्र आत्मा शिष्यों को दे दिया गया, और पवित्र आत्मा जब उनमें आ गया तो सर्वदा, उनके जीवन भर उनके साथ रहने के लिए आ गया। जब पवित्र आत्मा अपनी संपूर्णता में किसी व्यक्ति में आ गया तो फिर इसके बाद उससे अतिरिक्त, या अधिक, या दोबारा तो किसी को कभी मिल ही नहीं सकता है; परमेश्वर पवित्र आत्मा उस व्यक्ति में अपनी संपूर्णता में हमेशा वही, वैसा ही, और उतना ही रहेगा। तथाकथितपवित्र आत्मा का बपतिस्माया अलग सेपवित्र आत्मा से भरनाइससे अधिक और क्या दे सकता है? इसलिए अब तो बस उस व्यक्ति को अपने में विद्यमान पवित्र आत्मा की उपस्थिति को अपने आचरण द्वारा व्यक्त करते रहना है, अपने व्यवहारिक जीवन में पवित्र आत्मा के प्रभाव एवं नियंत्रण को दिखाते रहना है। इसलिए अब बार-बार पवित्र आत्मा मांगने या भरने की प्रार्थना करने और इससे संबंधित गीत गाने का क्या औचित्य हैअगले लेख में हम वचन सेपवित्र आत्मा का बपतिस्मापाने के बारे में देखेंगे।

यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए यह जानना और समझना अति-आवश्यक है कि आप परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित इन गलत शिक्षाओं में न पड़ जाएं; न खुद भरमाए जाएं, और न ही आपके द्वारा कोई और भरमाया जाए। यदि आप इन गलत शिक्षाओं में प चुके हैं, तो अभी वचन के अध्ययन और बात को जाँच-परख कर, सही शिक्षा को, उसी के पालन को अपना लें।

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।  

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • गिनती 3-4         
  • मरकुस 3:20-35

सोमवार, 21 फ़रवरी 2022

कलीसिया में अपरिपक्वता के दुष्प्रभाव (9)

 भ्रामक शिक्षाओं के स्वरूप - पवित्र आत्मा के विषय गलत शिक्षाएं (1)

पिछले कुछ लेखों से हम इफिसियों 4:14 में दी गई बातों में से, बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों और कलीसियाओं को प्रभावित करने वाले तीसरे दुष्प्रभाव, भ्रामक या गलत उपदेशों के बारे में देखते आ रहे हैं। इन गलत या भ्रामक शिक्षाओं के मुख्य स्वरूपों के बारे में परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस के द्वारा 2 कुरिन्थियों 11:4 में लिखवाया है कि इन भ्रामक शिक्षाओं के, गलत उपदेशों के, मुख्यतः तीन स्वरूप होते हैं, “यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता”, जिन्हें शैतान और उसके लोग प्रभु यीशु के झूठे प्रेरित, धर्म के सेवक, और ज्योतिर्मय स्‍वर्गदूतों का रूप धारण कर के बताते और सिखाते हैं। सच्चाई को पहचानने और शैतान के झूठ से बचने के लिए इन तीनों स्वरूपों के साथ इस पद में एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी दी गई है। इस पद में लिखा है कि शैतान की युक्तियों के तीनों विषयों, प्रभु यीशु मसीह, पवित्र आत्मा, और सुसमाचार के बारे में जो यथार्थ और सत्य है वह वचन में पहले से ही बता दिया गया है। 

इन तीनों प्रकार की गलत शिक्षाओं में से इस पद में सबसे पहली है कि शैतान और उस के जन, प्रभु यीशु के विषय ऐसी शिक्षाएं देते हैं जो वचन में नहीं दी गई हैं, और इसके बारे में हम पिछले दो लेखों में विस्तार से देख चुके हैं। दूसरी बात जिसके बारे में भ्रामक शिक्षा और गलत बातें सिखाए, फैलाई जाती हैं, वह हैकोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था। गलत शिक्षा के पहले विषय के समान ही, इस दूसरी के लिए भी यहाँ यही लिखा गया है, “जो पहिले न मिला था” - अर्थात, जो भी गलत शिक्षाएं और बातें होंगी, वे उन शिक्षाओं और बातों के अतिरिक्त होंगी जो परमेश्वर के वचन में पहले से लिखवा दी गई हैं, और जिनके आधार पर उन शिक्षाओं को परखा, जाँचा, और उनकी सत्यता को स्थापित किया जा सकता है। 

यहाँ, इस पद और वाक्य में ध्यान कीजिए कि पवित्र आत्मा मिलने की बात भूत-काल (past tense) में की गई है - उन विश्वासियों को पवित्र आत्मा दिया जा चुका था; भविष्य में नहीं मिलना था। साथ ही झूठे शिक्षकों द्वारा जिस आत्मा को देने की बात की जा रही थी, उसेकोई और आत्माकहा गया है। जो आत्मा पवित्र आत्मा के अतिरिक्त कोई और आत्मा होगा, और व्यक्ति के अंदर आकर उसे प्रभावित एवं नियंत्रित करेगा, निःसंदेह वह परमेश्वर का, या फिर परमेश्वर से तो नहीं होगा। इसलिए यह कोई और आत्मा शैतान का दुष्ट आत्मा ही होगा, क्योंकि इन दोनों आत्माओं के अतिरिक्त तो तीसरी किसी श्रेणी का आत्मा हो ही नहीं सकता है। 

आज से हम परमेश्वर पवित्र आत्मा के संबंध में बताई और फैलाई जाने वाली कुछ सामान्य गलत शिक्षाओं के विषय देखेंगे। 

परमेश्वर पवित्र आत्मा प्रभु की ओर से सहायक के रूप में प्रत्येक मसीही विश्वासी को दिया गया है। किन्तु प्रभु की इस आशीष को ये गलत शिक्षा फैलाने वाले लोग मनुष्यों द्वारा नियंत्रित और निर्देशित करने का प्रयास करते हैं। परमेश्वर के वचन बाइबल की स्पष्ट शिक्षाओं के विरुद्ध, उनकी एक मुख्य गलत शिक्षा है कि मसीही विश्वासियों को पवित्र आत्मा उद्धार पाते ही नहीं मिलता है, वरन उसके लिए प्रतीक्षा, प्रार्थनाएं और प्रयास करने पड़ते हैं। और फिर ये झूठे प्रेरित और शिक्षक अपने उन प्रयासों, प्रार्थनाओं, विधियों को बताते हैं, जो उनके अनुसार पवित्र आत्मा प्राप्त करने के लिए आवश्यक हैं, और बाइबल के हवालों को संदर्भ से बाहर दुरुपयोग करके, अपनी बात को सही ठहराने के प्रयास करते हैं। साथ ही पवित्र आत्मा पाने के लिए प्रतीक्षा करने के लिए वे प्रेरितों 1:4-8 का भी हवाला देते हैं, इस हवाले का संदर्भ के बाहर दुरुपयोग करते हैं। 

प्रेरितों 1:4-8 में प्रभु यीशु ने अपने स्वर्गारोहण से पहले शिष्यों को आज्ञा दी कि वे यरूशलेम को न छोड़ें, वरन वहीं बने रहकर परमेश्वर पिता द्वारा जो प्रतिज्ञा दी गई है, और जिसकी चर्चा प्रभु यीशु ने पहले उन से की है, उसकी प्रतीक्षा करते रहें – यह प्रतिज्ञा स्पष्ट शब्दों में इससे अगले पद, पद 5 में, तथा पद 8 में बताई गई है। पद 5 और 8 से यह स्पष्ट है कि प्रभु शिष्यों से जिस प्रतिज्ञा के पूरे होने की प्रतीक्षा करने को कह रहा था, वह शिष्यों के द्वारा पवित्र आत्मा प्राप्त करना था।

यहाँ दो बातों पर ध्यान देना आवश्यक है:

पहली बात, शिष्यों को सेवकाई पर निकलने से पहले, प्रतिज्ञा के पूरा होने तक प्रतीक्षा करनी थी, सेवकाई पर जाने के लिए परमेश्वर के सही समय का इंतजार करना था। किन्तु प्रभु ने उन्हें यह नहीं कहा कि उस प्रतीक्षा के समय के दौरान उन्हें कुछ विशेष करते रहने होगा जिसे करने के द्वारा ही फिर उन्हें पवित्र आत्मा दिया जाएगा; या उनके परमेश्वर से विशेष रीति से मांगने से, आग्रह करने या गिड़गिड़ाने से, अथवा कोई अन्य विशेष प्रयास करने के परिणामस्वरूप फिर परमेश्वर उन्हें पवित्र आत्मा देगा, जैसे कि आज बहुत से लोग और डिनॉमिनेशन सिखाते हैं, करने के लिए बल देते हैं, विशेष सभाएं रखते हैं। पवित्र आत्मा प्राप्त होने की प्रतिज्ञा का पूरा किया जाना परमेश्वर के द्वारा, उसके समय और उसके तरीके से होना था, न कि इन शिष्यों के किसी विशेष रीति से मांगने या कोई विशेष कार्य अथवा प्रयास करने से होना था।

बाइबल के गलत अर्थ निकालने और अनुचित शिक्षा देने का सबसे प्रमुख और सामान्य कारण है किसी बात या वाक्य को संदर्भ से बाहर लेकर, और उस से संबंधित किसी संक्षिप्त वाक्यांश के आधार पर, अपनी ही समझ के अनुसार एक सिद्धांत (doctrine) खड़ा कर लेना, उसे सिखाने लग जाना। प्रभु की कही इस बात के आधार पर भी ऐसे ही यह गलत शिक्षा दी जाती है कि पवित्र आत्मा प्राप्त करने के लिए प्रतीक्षा करना और प्रयास करना आवश्यक है।

इस विषय पर यह ध्यान देने योग्य एक बहुत महत्वपूर्ण तथ्य है कि सम्पूर्ण नए नियम में फिर कहीं यह प्रतीक्षा करना न तो सिखाया गया है, और ना इस बात के लिए कभी किसी को कोई उलाहना दिया गया है कि उन्होंने प्रतीक्षा अथवा प्रयास क्यों नहीं किया। न ही किसी में विश्वास अथवा सामर्थ्य की कमी के लिए उससे कहा गया कि कुछ विशेष प्रयास अथवा प्रतीक्षा कर के वे पवित्र आत्मा को प्राप्त करें, और उससे प्रभु की सेवकाई के लिए सामर्थी बनें। वरन अन्य सभी स्थानों पर यही बताया और सिखाया गया है कि पवित्र आत्मा प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करते ही, तुरंत ही दे दिया जाता है।

·        प्रेरितों 10:44; 11:15, 17 – विश्वास करने के साथ ही

·        प्रेरितों 19:2 – विश्वास करते समय

·        इफिसियों 1:13-14 – विश्वास करते ही छाप लगी

·        गलातियों 3:2 – विश्वास के समाचार से

·        तीतुस 3:5 – नए जन्म का स्नान और पवित्र आत्मा द्वारा नया बनाया जाना, एक साथ ही और एक ही बात के लिए लिखे गए हैं। 

दूसरी बात, प्रभु उन्हें स्मरण दिला रहा है कि वह उन्हें पहले भी इसके बारे में न केवल बता  चुका है, वरन इसके विषय उनसे चर्चा भी कर चुका है, अर्थात विस्तार से उन्हें बता और समझा चुका है। उन शिष्यों के साथ, सेवकाई के दिनों में, प्रभु ने कई बार उन से पवित्र आत्मा प्राप्त करने की बात कही थी; किन्तु हर बार यह भविष्य काल में ही होने की बात थी; अर्थात प्रभु ने उन्हें यही सिखाया था पवित्र आत्मा उन्हें बाद में उचित समय पर दिया जाएगा। किन्तु अपनी बात को सही दिखाने के लिए ये गलत शिक्षाओं वाले लोग वचन के हवालों और वहाँ लिखी बात को अनुचित रीति से बताते हैं। इस बारे में उनके द्वारा सामान्यतः प्रयोग किए जाने वाले हवाले और उनसे संबंधित बातें हैं :

  • लूका 11:13 – इस पद का दुरुपयोग यह बताने के लिए किया जाता है कि प्रभु ने कहा है कि पवित्र आत्मा परमेश्वर से मांगने पर मिलता है। जबकि यदि इस पद को उसके संदर्भ (पद 11-13) में देखें, तो यह स्पष्ट है कि यह आलंकारिक भाषा का प्रयोग है, एक तुलनात्मक कथन है। प्रभु, किसी सांसारिक पिता के अपनी संतान की आवश्यकता के लिए उसे सर्वोत्तम देने की मनसा रखने की बात कर रहा है। जैसे सांसारिक पिता अपने बच्चों को यथासंभव उत्तम देता है, वैसे ही परमेश्वर भीअपनेलोगों को – जो उससे पवित्र आत्मा को मांगने का साहस और समझ रखते हैं; उसका प्रयोग करना जानते हैं, उन्हें अपना यथासंभव उत्तम, यहाँ तक कि अपना पवित्र आत्मा भी दे देगा। साथ ही, हर किसी मांगने वाले को पवित्र आत्मा देने के लिए परमेश्वर बाध्य नहीं है; मांगने वाले का मन भी इसके लिए ठीक होना चाहिए। प्रेरितों 8:18-23 में शमौन टोन्हा करने वाले को गलत मनसा रखते हुए पवित्र आत्मा मांगने से अच्छी डाँट-फटकार मिली, न कि पवित्र आत्मा; यद्यपि वह प्रभु में विश्वास करने का दावा करता था, उसने बपतिस्मा भी लिया था, और विश्वासियों की संगति में भी रहता था (प्रेरितों 8:13)
  • यूहन्ना 7:37-39 – “बह निकलेंगी”; “पाने पर थे” – भविष्य काल – और साथ ही शर्त भी कह दी गई है कि ऐसा उनके लिए होगाजो उस पर विश्वास करने वालेहोंगे – जैसा ऊपर देख चुके हैं, जो विश्वास करेगा, उसे विश्वास करते ही तुरंत ही उसे मिल जाएगा; जिसने सच्चा विश्वास नहीं किया (यह केवल प्रभु ही जानता है, कोई मनुष्य नहीं), उसे नहीं मिलेगा, वह चाहे कितनी भी प्रार्थनाएं, प्रतीक्षा, या प्रयास करता रहे। जिसने विश्वास किया, उसे फिर कुछ और करने की आवश्यकता नहीं है, और न ही करने के लिए कहा गया है।
  • यूहन्ना 14:16-17 – “देगा”, “होगा” – भविष्य काल – पिता देगा, और फिर वह सर्वदा साथ रहेगा – आएगा और जाएगा नहीं, जैसे पुराने नियम में था (ओत्निएल न्यायियों 3:9,10; गिदोन न्यायियों 6:34; यिप्ताह, शमसून, राजा शाऊल 1 शमूएल 10:6, 10; दाऊद 1 शमूएल 16:13)
  • यूहन्ना 16:7 – “आएगा” – भविष्य काल – भविष्य में आना था; उसी समय नहीं
  • यूहन्ना 20:22 – “लो” – अभी तक जो भविष्य की बात कही जा रही थी, अब उसका समय आ गया था, अब इस बात को पूरा होना था, एक प्रक्रिया के अंतर्गत प्राप्त करना था।  प्रभु ने यह अपने पुनरुत्थान के बाद शिष्यों से कहा – उन्हें पहले की प्रतिज्ञा स्मरण करवाई, और स्वर्गारोहण के समय उसकी प्रक्रिया भी बताई (लूका 24:49)। पवित्र आत्मा प्रभु की फूँक में नहीं था, और न ही कभी फूंकने के द्वारा किसी को दिया गया।

 

       पवित्र आत्मा से संबंधित कुछ अन्य गलत शिक्षाओं, जैसे के अन्य भाषाएँ बोलना, पवित्र आत्मा के उद्देश्य और कार्य, आदि को हम आगे के लेखों में देखेंगे। 

       यदि आप एक सच्चे मसीही विश्वासी हैं, पापों से पश्चाताप करने और प्रभु यीशु से उनकी क्षमा माँगने, अपना जीवन प्रभु को समर्पित करने के द्वारा आपने नया जन्म अर्थात उद्धार पाया है, तो आपके उद्धार पाने के पल से ही परमेश्वर पवित्र आत्मा आप में निवास कर रहा है, आपकी सहायता और शिक्षा के लिए आप में विद्यमान है। इसलिए किसी गलत शिक्षा में न फंसे, और यदि पड़ गए हैं तो उपरोक्त पदों का ध्यान करते हुए, उन शिक्षाओं से बाहर आ जाएं। पवित्र आत्मा परमेश्वर है, किसी मनुष्य के हाथों की कठपुतली नहीं जिसे कोई मनुष्य अपने किन्हीं प्रयासों द्वारा नियंत्रित और निर्देशित कर सके।

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।   

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • गिनती 1-2         
  • मरकुस 3:1-19