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रविवार, 23 जनवरी 2011

औकात एवं घमंड

ब्रिटिश संसद के लिये एक नवनिर्वाचित व्यक्ति अपने परिवार को लंडन शहर दिखाने लाया, और बड़े घमंड से उन्हें लंडन का दौरा करवाने लगा। जब वे लंडन की भवय और विशाल वेस्टमिनिस्टर ऐब्बी में पहुंचे तो उसकी ८ वर्षीय पुत्री उस भवन की सुन्दरता और विशाल आकार देखकर भौंचक रह गई। उसकी इस प्रतिक्रिया पर उसके पिता ने गर्व से पूछा, "बेटी, तुम किस सोच में पड़ गईं?" उसने कहा, "पिताजी मैं सोच रही थी कि अपने घर में आप तो आप कितने बड़े लगते हैं लेकिन यहां इस भवन में कितने छोटे लग रहे हैं!"

घमंड अनजाने ही हमारे जीवनों मे घर बना लेता है और हमें पता भी नहीं चलता। जैसा हमें अपने आप को सोचना चाहिये, उस से अधिक कभी न सोचें (रोमियों १२:३)।

जब हम अपने ही दायरों में रहते हैं तो घमंडी हो जाना आसान होता है, लेकिन हमें अपनी औकात का पता तब ही चलता है जब हमें बड़े कामों, बड़ी परिस्थितियों, बड़ी चुनौतियों और बड़ी प्रतियोगिताओं का सामना करना पड़ता है। जैसे छोटे तालाबों में बड़ी बड़ी लगने वाली मछलियां सागर में पहुंच कर अपना असली आकार समझने पाती हैं, वैसे ही ऐसी बड़ी बातों के सम्मुख ही हमें अपनी असली औकात का पता चलता है।

परमेश्वर के वचन में जो एक बात स्पष्ट है वह यह कि उसे घंडियों से घृणा है। भजनकार ने परमेश्वर की अगुवाई में उसके संबंध में लिखा "...जिसकी आंखें चढ़ी हों और जिसका मन घमण्डी है, उसकी मैं न सहूंगा।" (भजन १०१:५); तथा याकूब ने कहा "...इस कारण यह लिखा है, कि परमेश्वर अभिमानियों से विरोध करता है, पर दीनों पर अनुग्रह करता है।" (याकूब ४:६)

यदि हम परमेश्वर के आत्मा के आगे दीन होकर उससे अनुरोध करें, तो वह हमारी वास्तविक स्थिति हमें दिखाने में हमारी सहायता करेगा और हमें घमंड से भी बचाए रखेगा। - रिचर्ड डी हॉन


जो परमेश्वर को जानते हैं वे नम्र रहेंगे, जो स्वयं अपनी हकीकत को जानते पहचानते हैं वे कभी घमंडी नहीं होंगे।

क्‍योंकि मैं उस अनुग्रह के कारण जो मुझ को मिला है, तुम में से हर एक से कहता हूं, कि जैसा समझना चाहिए, उस से बढ़ कर कोई भी अपने आप को न समझे पर जैसा परमेश्वर ने हर एक को परिमाण के अनुसार बांट दिया है, वैसा ही सुबुद्धि के साथ अपने को समझे। - रोमियों १२:३


बाइबल पाठ: याकूब ४:१-१०

तुम में लड़ाइयां और झगड़े कहां से आ गए? क्‍या उन सुख-विलासों से नहीं जो तुम्हारे अंगों में लड़ते-भिड़ते हैं?
तुम लालसा रखते हो, और तुम्हें मिलता नहीं, तुम हत्या और डाह करते हो, ओर कुछ प्राप्‍त नहीं कर सकते, तुम झगड़ते और लड़ते हो; तुम्हें इसलिये नहीं मिलता, कि मांगते नहीं।
तुम मांगते हो और पाते नहीं, इसलिये कि बुरी इच्‍छा से मांगते हो, ताकि अपने भोग विलास में उड़ा दो।
हे व्यभिचारिणयों, क्‍या तुम नहीं जानतीं, कि संसार से मित्रता करनी परमेश्वर से बैर करना है सो जो कोई संसार का मित्र होना चाहता है, वह अपने आप को परमेश्वर का बैरी बनाता है।
क्‍या तुम यह समझते हो, कि पवित्र शास्‍त्र व्यर्थ कहता है जिस आत्मा को उस ने हमारे भीतर बसाया है, क्‍या वह ऐसी लालसा करता है, जिस का प्रतिफल डाह हो?
वह तो और भी अनुग्रह देता है; इस कारण यह लिखा है, कि परमेश्वर अभिमानियों से विरोध करता है, पर दीनों पर अनुग्रह करता है।
इसलिये परमेश्वर के आधीन हो जाओ और शैतान का साम्हना करो, तो वह तुम्हारे पास से भाग निकलेगा।
परमेश्वर के निकट आओ, तो वह भी तुम्हारे निकट आएगा: हे पापियों, अपने हाथ शुद्ध करो और हे दुचित्ते लोगों अपने हृदय को पवित्र करो।
दुखी होओ, और शोक करा, और रोओ: तुम्हारी हंसी शोक में और तुम्हारा आनन्‍द उदासी में बदल जाए।
प्रभु के साम्हने दीन बनो, तो वह तुम्हें शिरोमणि बनाएगा।

एक साल में बाइबल:
  • निर्गमन ७-८
  • मत्ती १५:१-२०