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गुरुवार, 3 मई 2012

शब्दों का महत्व

  समाज द्वारा भाषा प्रयोग करने का स्तर हाल ही के कुछ वर्षों में बहुत गिर गया है। इसका यह अर्थ नहीं है कि हम अपने स्तर को भी गिरा लें। यदि हम सभी अपने स्तर को ना केवल बनाए रखने, वरन बेहतर करने की ठान लें, तो समाज का स्तर भी स्वतः ही उठ जाएगा; समाज हमारे संयुक्त आचरण ही से तो बनता है।

  एक किशोर ने, जो मसीही परिवार से था, कहा, "मेरी माँ कसम खाने वाले या बात का दबाव बनाने के लिए कहे गए शब्दों को बुरा नहीं मानती" और फिर उसने उन शब्दों की एक सुची दी जिन से उसकी माँ को कोई आपत्ति नहीं था; सूची के सभी शब्द ऐसे शब्द थे जो आम समाज में साधारण वार्तालाप में प्रयुक्त होने के लिए अनुचित माने जाते हैं या जिनके प्रयोग पर आपत्ति होना स्वाभाविक है।

   मसीही विश्वास और परमेश्वर का वचन बाइबल ऐसी कोई छूट किसी को नहीं देता, वरन चिताता है कि, "इसलिये ध्यान से देखो, कि कैसी चाल चलते हो; निर्बुद्धियों की नाईं नहीं पर बुद्धिमानों की नाईं चलो" (इफिसीयों ५:१५)। हमारी बोलचाल से संबंधित और भी कई निर्देष परमेश्वर के वचन में हमें मिलते हैं, जैसे:- हमारा शब्दों के चुनाव और उपयोग में समझ-बूझ दिखाना, बुद्धिमता की निशानी है, "जहां बहुत बातें होती हैं, वहां अपराध भी होता है, परन्तु जो अपने मुंह को बन्द रखता है वह बुद्धि से काम करता है" (नीतिवचन १०:१९)।- हमें अपने भले के लिए अपने मूँह से निकलने वाले शब्दों को नाप-तौल कर ही बाहर निकलने देना है, "जो अपने मुंह को वश में रखता है वह अपने प्राण को विपत्तियों से बचाता है" (नीतिवचन २१:२३)।- कठिन परिस्थितियों में भी मृदु भाषा का उपयोग भला होता है, "कोमल उत्तर सुनने से जलजलाहट ठण्डी होती है, परन्तु कटुवचन से क्रोध धधक उठता है" (नीतिवचन १५:१)।

   प्रेरित पौलुस ने चिताया कि मसीही विश्वासियों को ऐसे शब्द प्रयोग करने से बचना चाहिए जो हमारे परमेश्वर की संतान होने के अनुरूप नहीं हैं, "कोई गन्‍दी बात तुम्हारे मुंह से न निकले, पर आवश्यकता के अनुसार वही जो उन्नति के लिये उत्तम हो, ताकि उस से सुनने वालों पर अनुग्रह हो" (इफिसीयों ४:२९)। पौलुस द्वारा दिया गया शब्दों के उपयोग का यह मापदण्ड हमें सदा स्मरण रहना चहिए, और इसी के अनुसार ही हमें ना केवल अपने वार्तालाप को वरन अपने सोच-विचार को भी निर्देषित करना चाहिए, क्योंकि जो और जैसा हमारे मन में होगा, वह और वैसा ही हमारे मूँह से भी निकलेगा।

   अपने जीवन द्वारा परमेश्वर का आदर करने के लिए, अपने शब्दों के प्रयोग को उस पवित्र परमेश्वर की गरिमा के अनुसार निर्धारित करें। - डेव ब्रैनन


हम जो बोलते हैं उससे हम जो हैं प्रगट होता है।
यदि कोई अपने आप को भक्त समझे, और अपनी जीभ पर लगाम न दे, पर अपने हृदय को धोखा दे, तो उस की भक्ति व्यर्थ है। - याकूब १:२६
बाइबल पाठ: नीतिवचन १५:१-७
Pro 15:1  कोमल उत्तर सुनने से जलजलाहट ठण्डी होती है, परन्तु कटुवचन से क्रोध धधक उठता है।
Pro 15:2  बुद्धिमान ज्ञान का ठीक बखान करते हैं, परन्तु मूर्खों के मुंह से मूढ़ता उबल आती है।
Pro 15:3  यहोवा की आंखें सब स्थानों में लगी रहती हैं, वह बुरे भले दोनों को देखती रहती हैं।
Pro 15:4  शान्ति देने वाली बात जीवन-वृक्ष है, परन्तु उलट फेर की बात से आत्मा दु:खित होती है।
Pro 15:5  मूढ़ अपने पिता की शिक्षा का तिरस्कार करता है, परन्तु जो डांट को मानता, वह चतुर हो जाता है।
Pro 15:6  धर्मी के घर में बहुत धन रहता है, परन्तु दुष्ट के उपार्जन में दु:ख रहता है।
Pro 15:7  बुद्धिमान लोग बातें करने से ज्ञान को फैलाते हैं, परन्तु मूर्खों का मन ठीक नहीं रहता।
एक साल में बाइबल: 
  • १ राजा १४-१५ 
  • लूका २२:२१-४६