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प्रभु की मेज़ - शैतान क्यों और कैसे बहकाने पाया है
अभी तक हमने प्रभु-भोज के प्ररूप फसह, जिसका वर्णन निर्गमन 12 में दिया गया है, और फिर नए नियम में सुसमाचारों में दिए गए वर्णनों के द्वारा प्रभु भोज और प्रभु यीशु द्वारा उसे फसह की सामग्री के द्वारा स्थापित करने के बारे में सीखा है। जो विभिन्न बातें अभी तक हमने प्रभु भोज तथा उसमें भाग लेने के बारे में सीखीं हैं, उनमें से कुछ बातें हैं जो बहुत प्रबल रीति से हमारे सामने आई हैं, जो बहुत महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि इन बातों पर ध्यान नहीं दिया गया है, इसीलिए शैतान प्रभु की मेज़ के बारे में बहुत सारी गलत शिक्षाएं, गलत धारणाएं, और गलतफहमियाँ ले आया है, और ईसाई या मसीही समाज में मेज़ का अर्थ और मूल्य जाते रहे हैं, यह केवल एक रीति, एक परंपरा बन कर रह गई है, जिसका निर्वाह इसके बारे में विभिन्न डिनॉमिनेशंस, समुदायों, और समूहों के धार्मिक अगुवों की समझ के अनुसार, उनके द्वारा बनाई गई विधियों और नियमों के अनुसार किया जाता है। इसीलिए, पवित्र आत्मा की अगुवाई में, प्रेरित पौलुस ने कोरिन्थ की कलीसिया के नाम लिखी पत्री में, उनमें पाई जाने वाली बहुत सी गलत शिक्षाओं को सुधारने के लिए लिखा, और उन गलत बातों में प्रभु भोज के बारे में भी गलतियाँ थीं। अगले लेख से हम कोरिन्थ की कलीसिया में घुस आई गलतियों के बारे में देखना आरंभ करेंगे।
अभी तक प्रभु भोज के बारे में जिन गलत शिक्षाओं और गलत सिद्धांतों को हमने देखा है, जिन्हें सुधारे जाने की आवश्यकता है, और जिनका उपयोग शैतान प्रभु भोज के बारे में लोगों को बहकाने के लिए करता है, वे तथा उनसे संबंधित बाइबल के तथ्य ये हैं:
जो कोई प्रभु का नाम ले और उसमें विश्वास करने का दावा करे, वह प्रभु भोज में भाग ले सकता है। बाइबल का तथ्य यह है कि जैसे फसह में केवल इस्राएली, अर्थात परमेश्वर के चुने हुए लोग, तथा वे अन्य-जाति लोग जो अपने आप को परमेश्वर तथा अब्राहम के मध्य बंधी वाचा के अधीन ले आए थे, तथा खतने के द्वारा इसकी गवाही दी थी, वे ही भाग ले सकते थे; उसी प्रकार से केवल नया-जन्म पाए हुए मसीही विश्वासी, अर्थात प्रभु के प्रति समर्पित और प्रतिबद्ध प्रभु के सच्चे शिष्य ही प्रभु भोज में भाग ले सकते हैं।
प्रभु भोज में भाग लेने से व्यक्ति परमेश्वर की दृष्टि में धर्मी और पवित्र हो जाता है, उसके पाप क्षमा हो जाते हैं, वह परमेश्वर को स्वीकार्य, तथा स्वर्ग में प्रवेश के योग्य बन जाता है। बाइबल का तथ्य यह है कि केवल परमेश्वर के लोगों को ही फसह में भाग लेने का अधिकार था; न कि फसह में भाग लेने से वे परमेश्वर के लोग बन जाते थे। उसी प्रकार से केवल वे ही, जिनके पाप क्षमा हो गए हैं, और जो प्रभु में सच्चे विश्वास तथा अपना जीवन उसे समर्पित करने के द्वारा प्रभु के लोग हो गए हैं, प्रभु की मेज़ में भाग ले सकते हैं। प्रभु की मेज़ में भाग लेने से वे प्रभु के जन, धर्मी, पवित्र, परमेश्वर को स्वीकार्य, और स्वर्ग में जाने के योग्य नहीं बन जाते हैं।
प्रभु की मेज़ में व्यक्ति अपने डिनॉमिनेशंस, समुदाय, या समूह की रीतियों, परंपराओं और विधियों के अनुसार भाग ले सकते हैं, इन बातों से इस पर कोई अंतर नहीं आता है। बाइबल का तथ्य यही है कि परमेश्वर अपनी आराधना की उसके द्वारा दी गई विधि और स्वरूप के प्रति, जो वह अपने वचन में पहले ही दे चुका है, सदा ही बहुत विशिष्ट और जलन रखने वाला रहा है। उसने जो निर्धारित कर के दे दिया है, उसमें वह किसी मनुष्य के द्वारा कोई भी परिवर्तन या “सुधार” सहन अथवा स्वीकार नहीं करता है। उसकी दृष्टि में मनुष्यों द्वारा बनाई गई विधियों से की गई आराधना व्यर्थ है, उसे अस्वीकार्य है, और निष्फल है। यहाँ तक कि जो लोग ऐसे अपने आप को परमेश्वर पर थोपते हैं, और सोचते हैं कि परमेश्वर इसके लिए कुछ नहीं कहेगा, उनके लिए इस बात के बहुत हानिकारक परिणाम भी हो सकते हैं।
शैतान के अपनी धूर्त युक्तियों और बातों को घुसा कर लोगों को बहका देने का मूल कारण है कि लोगों ने परमेश्वर के वचन का अध्ययन करने, उसे सीखने और अपने जीवन में उसे लागू करने में रुचि लेना छोड़ दिया है। आज मसीही विश्वासी भी जो कुछ भी परमेश्वर के नाम में पुल्पिट से कह दिया जाता उसे परमेश्वर के वचन से बिना जाँचे-परखे मान लेने और स्वीकार कर लेने में संतुष्ट रहते हैं। क्योंकि आजकल कलीसिया के लोग सांसारिक संस्थानों द्वारा दी गई शैक्षिक योग्यताओं और प्रमाण-पत्रों पर अधिक भरोसा करने लग गए हैं, न कि उनके प्रचारक और शिक्षक प्रभु यीशु के प्रति समर्पण और प्रतिबद्धता के जीवन के। इसीलिए लोग उसे स्वीकार कर लेने तथा पालन करने की प्रवृत्ति रखते हैं जो उन्हें तर्क पूर्ण रीति से, रोचक और लुभावनी बातों के साथ, और ज्ञान के प्रदर्शन के द्वारा बता दिया जाता है; और वे यह मान कर चलते हैं कि यह सभी परमेश्वर के वचन के अनुसार भी होगा। क्योंकि कोई भी उन बातों और शिक्षाओं को परमेश्वर के वचन से जाँचता-परखता नहीं है, प्रचारक से प्रश्न नहीं करता है, इसीलिए गलत शिक्षाएं न केवल अन्दर आ गई हैं, बल्कि कलीसियाओं में उन्होंने इतनी गहरी पकड़ बना ली है कि आज लोग बाइबल के सत्यों को झूठ, और गलतियाँ करने की प्रवृत्ति रखने वाले मनुष्यों के ज्ञान और बुद्धि से कही गई बातों को सत्य मानने लगे हैं।
यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, और प्रभु की मेज़ में भाग लेते रहे हैं, तो कृपया अपने जीवन को जाँच कर देख लें कि आप वास्तव में पापों से छुड़ाए गए हैं तथा आप ने अपना जीवन प्रभु की आज्ञाकारिता में जीने के लिए उस को समर्पित किया है। आपके लिए यह अनिवार्य है कि आप परमेश्वर के वचन की सही शिक्षाओं को जानने के द्वारा एक परिपक्व विश्वासी बनें, तथा सभी शिक्षाओं को वचन की कसौटी पर परखने, और बेरिया के विश्वासियों के समान, लोगों की बातों को पहले वचन से जाँचने और उनकी सत्यता को निश्चित करने के बाद ही उनको स्वीकार करने और मानने वाले बनें (प्रेरितों 17:11; 1 थिस्सलुनीकियों 5:21)। अन्यथा शैतान द्वारा छोड़े हुए झूठे प्रेरित और भविष्यद्वक्ता मसीह के सेवक बन कर (2 कुरिन्थियों 11:13-15) अपनी ठग विद्या और चतुराई से आपको प्रभु के लिए अप्रभावी कर देंगे और आप के मसीही जीवन एवं आशीषों का नाश कर देंगे।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
उत्पत्ति 1-3
मत्ती 1
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The Lord’s Table - How & Why Satan Has Been Able to Deceive Christians
So far, through the Passover, the antecedent of the Holy Communion described in Exodus 12, and then through the Gospel accounts of the New Testament we have learnt about the Holy Communion, and the Lord’s instituting it using the elements of the Passover. Amongst the various things we have learnt regarding the Holy Communion and participating in it, some things have stood out very strongly, and are very important. Because these things have not been paid attention to, therefore, Satan has been able to bring in many wrong teachings, misconceptions, and misunderstandings about the Lord’s Table, it has lost its purpose and value in Christendom, and has become more of a ritual, a tradition to be followed in the manner advocated and taught by religious leaders of denominations, sects, and groups, according to their understanding about it. This trend had started in the initial Churches itself; like for most of the other things related to the Christian Faith, Satan had beguiled and misled the Churches about the Lord’s Table too. That is why, under the guidance of the Holy Spirit the Apostle Paul wrote to the Corinthian Church for correcting many of the wrong teachings and false doctrines Satan had brought amongst them, including about the Holy Communion. From the next article we will start considering the wrong concepts and false teachings that had crept into the Church in Corinth.
The main things, the false teachings and wrong doctrines that Satan uses to beguile people regarding the Holy Communion, which we have seen so far, and which should be corrected, along with their related Biblical facts are:
Anyone who takes the name of the Lord and claims to believe in the Lord can participate in it. The Biblical fact is like only the Israelites, the chosen people of God, and those gentiles who had brought themselves under the covenant of God with Abraham, and had witnessed for it through getting circumcised could partake of the Passover; similarly only the Born-Again Christian Believers, the surrendered and committed disciples of the Lord Jesus can participate in the Holy Communion.
Participating in the Lord’s Table makes one righteous and holy in God’s eyes, provides forgiveness for their sins, makes them acceptable to God and worthy of entering heaven. The Biblical fact is like it was only the people of God who were permitted to partake of the Passover; their participation did not make them God’s people, but already being God’s people gave them the permission to participate in the Passover. Similarly, participating in the Lord’s Table does not make anyone a person of the Lord; does not make anyone righteous, holy, acceptable to God and worthy of heaven, does not forgive their sins. Rather only those whose sins have been forgiven and who have become the people of the Lord Jesus by sincere faith and surrender to Him, have been given the privilege to participate in the Holy Communion.
In participating in the Lord’s Table, one can do it according to the rites, rituals, and manner of their denomination, or sect, or group, and it will not matter. The Biblical fact is that God always has been very particular and jealous for the manner He has already prescribed and given in His Word for people to worship Him. He does not accept any alterations or modifications by any man, in what He has prescribed. Any worship through man-made methods is vain worship in His eyes, is unacceptable to Him, is inconsequential, and could even have deleterious consequences for those who impose themselves upon God, and think that they can get away with it.
The basic reason for Satan being able to infiltrate his devious ploys and mislead people away is that people have lost interest in studying God’s Word, in learning it and applying it to their lives. Today even the Christian Believers are content with listening to whatever is preached from the pulpit in the name of God, accepting the messages without any questions or cross-checking it from God’s Word. Because nowadays the congregation trusts the academic qualifications and certificates granted by worldly institutions, instead of the personal commitment and surrender of their preacher and teacher to the Lord Jesus. Therefore, people remain inclined and satisfied with accepting anything seemingly logical, interesting, attractive, and knowledgeable; and assume that it would be according to God’s word as well. Since no cross-checks and questions the teachings, therefore wrong teachings and false doctrines have not only come in but have taken such strong roots in the Churches, that today people disbelieve Biblical truth, but accept as truth things from the wisdom and knowledge of fallible men.
If you are a Christian Believer and have been participating in the Lord’s Table, then please examine your life and make sure that you are actually a disciple of the Lord, i.e., are redeemed from your sins, have submitted and surrendered your life to the Lord Jesus to live in obedience to Him and His Word. You should also always, like the Berean Believers, first check and test all teachings that you receive from the Word of God, and only after ascertaining the truth and veracity of the teachings brought to you by men, should you accept and obey them (Acts 17:11; 1 Thessalonians 5:21). If you do not do this, the false apostles and prophets sent by Satan as ministers of Christ (2 Corinthians 11:13-15), will by their trickery, cunningness, and craftiness render you ineffective for the Lord and cause severe damage to your Christian life and your rewards.
If you have not yet accepted the discipleship of the Lord Jesus, then to ensure your eternal life and heavenly rewards, take a decision in favor of the Lord Jesus now. Wherever there is surrender and obedience towards the Lord Jesus, the Lord’s blessings and safety are also there. If you are still not Born Again, have not obtained salvation, or have not asked the Lord Jesus for forgiveness for your sins, then you have the opportunity to do so right now. A short prayer said voluntarily with a sincere heart, with heartfelt repentance for your sins, and a fully submissive attitude, “Lord Jesus, I confess that I have disobeyed You, and have knowingly or unknowingly, in mind, in thought, in attitude, and in deeds, committed sins. I believe that you have fully borne the punishment of my sins by your sacrifice on the cross, and have paid the full price of those sins for all eternity. Please forgive my sins, change my heart and mind towards you, and make me your disciple, take me with you." God longs for your company and wants to see you blessed, but to make this possible, is your personal decision. Will you not say this prayer now, while you have the time and opportunity to do so - the decision is yours.
Through the Bible in a Year:
Genesis 1-3
Matthew 1
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Good evening Sir i am heartily grateful to you for the articles sent by you, it is my fault that I am not able to read the articles sent daily.But my effort will be that I read all the articles sent by you and what I have learned I can write and send those things to you in the form of an answer. Once again thank you and God bless you 🙂
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