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आरम्भिक बातें – 66
मरे हुओं का जी उठना – 1
हम इब्रानियों 6:1-2 में दी गई छः आरम्भिक बातों पर विचार कर रहे हैं और उन के बारे में सीख रहे हैं। इन आरम्भिक बातों के बारे में हमारे परिचय से संबंधित लेखों में हम ने देखा था कि प्रत्येक मसीही विश्वासी के लिए इन के बारे में सीखना और समझना अनिवार्य है, क्योंकि इन से एक दृढ़ आत्मिक आधार प्रदान होता है, जिस पर मसीही विश्वास में स्थिर खड़ा रह सकता है और अपने सही आत्मिक जीवन का निर्माण कर सकता है। जो मसीही विश्वासी इन छः आरम्भिक बातों को भली-भाँति सीख और समझ लेता है, वह शैतान और उसके लोगों द्वारा प्रचार की जाने वाली और सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं, गलत व्याख्याओं, और गलत जानकारी में आसानी से नहीं पड़ेगा, और शैतानी लोगों की दुष्ट युक्तियों में फँसने से बचा रहेगा। पिछले लेख में हम ने चौथी आरम्भिक बात, “हाथ रखना” पर विचार करना का समापन किया था। आज से हम इब्रानियों के इस खण्ड में दी गई पाँचवीं आरम्भिक बात, “मरे हुओं के जी उठने” पर विचार करना और उस के बारे में सीखना आरम्भ करेंगे।
मसीही विश्वास, सुसमाचार के कथन, “इसी कारण मैं ने सब से पहिले तुम्हें वही बात पहुंचा दी, जो मुझे पहुंची थी, कि पवित्र शास्त्र के वचन के अनुसार यीशु मसीह हमारे पापों के लिये मर गया। ओर गाड़ा गया; और पवित्र शास्त्र के अनुसार तीसरे दिन जी भी उठा” (1 कुरिन्थियों 15:3-4) के तथ्य पर आधारित है। इस सुसमाचार कथन के तीन भाग हैं:
· यीशु मसीह हमारे पापों के लिए मारा गया; अर्थात, प्रभु यीशु मसीह ने सारी मानवजाति के सभी पापों को – बीते समय के, वर्तमान के, और भविष्य काल के, अपने ऊपर ले लिया, और पापों के दण्ड – मृत्यु को, कलवरी के क्रूस पर अपना जीवन बलिदान करने के द्वारा सभी मनुष्यों के लिए चुका दिया।
· वह मारा गया और तीसरे दिन मृतकों में से जी उठा। उस की मृत्यु पुष्टि और प्रमाणित किया हुआ तथ्य है। उसे क्रूस पर से उतार कर, उस के कुछ अनुयायियों के द्वारा कब्र में गाड़ दिया गया, और वह तीसरे दिन मरे हुओं में से जी उठा, चालीस दिन तक अनेकों लोगों को दिखाई दिया, उन से मिला, फिर स्वर्ग को उठा लिया गया। उस की मृत्यु, गाड़े जाने, और पुनरुत्थान के अकाट्य प्रमाण उपलब्ध हैं।
· उस का मारा जाना, गाड़ा जाना, और तीसरे दिन मृतकों में से जी उठना, सभी पवित्र शास्त्र के अनुसार हुआ। इन में से कुछ भी अनायास या अप्रत्याशित नहीं था। प्रभु यीशु मसीह के बारे में अन्य तथा इन सभी बातों की, उस के जन्म से सैकड़ों और हजारों साल पहले पवित्र शास्त्र में भविष्यवाणी की गई थी। उस का जन्म, जीवन, मृत्यु, गाड़ा जाना, और पुनरुत्थान, सभी मानवजाति के पापों से छुटकारे और उद्धार की योजना का भाग हैं।
क्योंकि हम सुसमाचार के बारे में, इस श्रृंखला, परमेश्वर के वचन से बढ़ोतरी, के पहले भाग में देख चुके हैं, इस लिए हम दोबारा इस में नहीं जाएँगे। पाठकों से निवेदन है कि सुसमाचार से सम्बन्धित शिक्षाओं के लिए इस श्रृंखला के आरंभिक लेखों को देख लें। अब हम मरे हुओं के जी उठने पर विचार करना आरंभ करेंगे – दोनों, प्रभु यीशु के, और प्रभु यीशु के अनुयायियों के भी।
प्रभु यीशु का पुनरुत्थान उसे सारे सँसार के किसी भी अन्य धार्मिक व्यक्तित्व से बिल्कुल अलग करता है। मानवजाति के सम्पूर्ण इतिहास में, सँसार भर में कहीं पर भी, कभी भी, ऐसा कोई नहीं हुआ है जो मर कर फिर से उसी देह में, जिस में वह मरा था, जी उठा हो, और फिर कभी नहीं मरा, वरन उसी देह में स्वर्ग को उठा लिया गया। यह घटना इतनी महत्वपूर्ण है कि परमेश्वर ने प्रभु यीशु के पुनरुत्थान को मानवजाति के लिए उस के ईश्वरत्व और आने वाले समय में जगत का न्याय करने वाला होने के प्रमाण के रूप में रखा है (प्रेरितों 17:31)। यदि प्रभु यीशु मसीह का मृतकों में से पुनरुत्थान हटा लिया जाता है, या गलत प्रमाणित कर दिया जाता है, तो फिर सुसमाचार का और मसीही विश्वास का आधार ही नष्ट हो जाता है; मसीही विश्वास में फिर कुछ भी शेष नहीं रहता है और फिर तो मसीही विश्वास सँसार की किसी भी अन्य धार्मिक कथा के समान हो जाता है। परन्तु सुसमाचार और प्रभु यीशु का पुनरुत्थान परमेश्वर की सामर्थ्य हैं (रोमियों 1:4, 16), और साथ ही प्रभु यीशु के पुनरुत्थान के बहुत महत्वपूर्ण अभिप्राय भी हैं। परमेश्वर ने ऐसे ही पुनरुत्थान की प्रतिज्ञा सभी नया-जन्म पाए हुए मसीही विश्वासियों को दी है। प्रभु यीशु ने अपने शिष्यों को आश्वासन दिया है कि वह उन्हें अपने पास ले जाने के लिए आएगा; वे फिर से जी उठेंगे और अनन्तकाल के लिए उस के साथ स्वर्ग में रहेंगे।
हम अगले लेख से, मरे हुओं में से जी उठने के अपने अध्ययन का आरम्भ, प्रभु यीशु के पुनरुत्थान के अभिप्रायों को देखने के साथ करेंगे।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
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The Elementary Principles – 66
Resurrection of the Dead - 1
We are considering and learning about the six elementary principles given in Hebrews 6:1-2. In our introductory articles about these principles, we had seen that it is necessary that every Christian Believer learn and understand them, since they provide a firm spiritual foundation to stand firm upon for Christian faith and build stable spiritual lives. A Christian Believer, well-versed in the Biblical teachings about these six elementary principles, will not be easily drawn into the wrong teachings, misinterpretations, and misinformation preached and taught by satanic people and get entangled in their devious ploys. In the last article we had concluded our considerations of the fourth elementary principle, the “Laying on of hands.” From today we will begin considering the fifth principle, i.e., “Resurrection of the dead'' given in this passage from Hebrews.
The Christian Faith is based on the fact of the gospel statement “For I delivered to you first of all that which I also received: that Christ died for our sins according to the Scriptures, and that He was buried, and that He rose again the third day according to the Scriptures.” (1 Corinthians 15:3-4). This gospel statement has three components:
· Christ died for our sins; i.e., the Lord Jesus Christ took upon Himself the sins of all of mankind – past, present, and future, and paid the penalty of sins – death, for all of mankind, by sacrificing His life on the Cross of Calvary, for all of mankind.
· He was buried and rose again from the dead on the third day. His death was a verified and confirmed event. He was taken down from the Cross, was buried by His followers in a grave, He then rose again from the dead on the third day, and appeared to numerous people for forty days, till His ascension to heaven. There are incontrovertible proofs of His death, burial, and resurrection.
· His death, burial, and resurrection, were all according to the Scriptures. None of the above was incidental or unexpected. All of these things, besides many others, had been prophesied about the Lord Jesus hundreds and thousands of years before His birth, in the Scriptures. His birth, life, death, burial, and resurrection were all a part of God’s plan for the redemption of mankind and their deliverance from sins.
Since we have already studied about the gospel in the first part of this series on Growth Through God’s Word, therefore we will not go into it again. The readers are requested to see the initial articles of this series for the teachings related to the gospel. We will now be considering about the resurrection from the dead – of the Lord Jesus, as well as of the followers of the Lord Jesus.
The resurrection of the Lord Jesus is what sets Him apart from every other religious figure or leader of the world. In the entire history of mankind, anywhere in the world, never has there been anyone else who has died and then come back from the dead in the same body that they were at death, never to die again, but to be taken up into heaven, again in the same body that they had at their death and resurrection. So important is this event, that God has given the Lord Jesus’s resurrection as proof for mankind of His divinity, and of His being the God appointed judge of all (Acts 17:31). If the resurrection of the Lord Jesus from the dead is taken away or disproved, then the very basis of the gospel and the Christian Faith is destroyed, and there is nothing left in the Christian Faith; it is just like any other religious story of the world. But the gospel and the resurrection of the Lord Jesus from the dead are the power of God (Romans 1:4, 16) and the Lord’s resurrection has very important implications. God has promised a similar resurrection to all Born-Again Christian Believers. The Lord Jesus has assured His disciples that He will come to take them to be with Him; they will rise again and be with Him in heaven, for eternity.
We will begin our study on resurrection with the studying of the implications of the resurrection of the Lord Jesus, from the next article onwards.
If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life. Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.
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