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आरम्भिक बातें – 68
मरे हुओं का जी उठना – 3
प्रभु यीशु का पुनरुत्थान – प्रमाणित (1)
इब्रानियों 6:1-2 में दी गई छः आरंभिक बातों में से हम अब पाँचवीं, “मरे हुओं का जी उठना” पर अध्ययन कर रहे हैं। हम ने देखा है कि परमेश्वर की सन्तानों को जिस जिलाए जाने की प्रतिज्ञा दी गई है, वह प्रभु यीशु मसीह के मृतकों में से जिलाए जाने पर आधारित है; और प्रभु यीशु का जिलाया जाना मसीही विश्वास की धुरी है। यदि प्रभु यीशु मसीह ने कलवरी के क्रूस पर समस्त मानव जाति के पापों के लिए अपने प्राणों का बलिदान न दिया होता, यदि वह गाड़ा गया और फिर जी उठा न होता, तो फिर मसीहियत में ऐसा कुछ भी नहीं है जो उसे सँसार के अन्य किसी भी धार्मिक विश्वास या प्रचलन से अलग करे। इस लिए मसीही विश्वासियों के लिए प्रभु यीशु के पुनरुत्थान के अर्थ और अभिप्रायों को जानना और सीखना बहुत महत्वपूर्ण है, और हम इन्हें तीन शीर्षकों के अन्तर्गत देख रहे हैं। पिछले लेख में हम ने पहले अभिप्राय को देखा था कि प्रभु यीशु का पुनरुत्थान पवित्र शास्त्र में, प्रभु यीशु के जन्म से सैकड़ों और हजारों वर्ष पहले से भविष्यवाणी की हुई बात है। आज से हम दूसरे अभिप्राय को देखना आरम्भ करेंगे कि प्रभु यीशु का पुनरुत्थान एक प्रमाणित घटना है।
प्रभु यीशु का मृतकों में से जिलाया जाना कोई मन-गढ़न्त कहानी नहीं है। क्योंकि प्रभु यीशु का मृतकों में से जिलाया जाना मसीही विश्वास का केंद्र, उस का आधार है, इसी लिए, प्रभु यीशु के पुनरुत्थान को नकारने या बिगाड़ने के लिए उस से सम्बन्धित बहुत सारी गलत शिक्षाएँ और झूठी बातें प्रचार की जाती हैं, सिखाई जाती हैं। प्रभु यीशु मसीह की कलीसिया के आरंभ के साथ ही प्रभु यीशु के पुनरुत्थान की वास्तविकता पर हमले होने, उसका इनकार करने के प्रयास आरंभ हो गए थे। पुनरुत्थान को झुठलाने के शैतान के ये प्रयास दिखाते हैं कि यह तथ्य उसके तथा उसके राज्य के लिए कितना खतरनाक और घातक है। प्रभु के पुनरुत्थान से संबंधित सामान्यतः देखी और कही जाने वाली गलत शिक्षाएं हैं:
· पुनरुत्थान को झूठा ठहराने का पहला प्रयास तो पुनरुत्थान के दिन ही किया गया था – मत्ती 28:11-15 – लोगों में यह बात फैला दी गई कि प्रभु जी नहीं उठा, वरन उसकी लोथ उसके चेलों ने चुरा ली – किन्तु कोई भी, कभी भी, उन भयभीत और प्रभु को छोड़ कर भागे हुए, अपनी जान बचाकर लोगों से छुपे हुए शिष्यों के पास से उस लोथ को निकलवाकर, नहीं ला सका, और कुछ ही दिन के बाद उन शिष्यों के द्वारा किए जा रहे प्रभु के पुनरुत्थान के प्रचार को आज तक भी झूठ प्रमाणित नहीं कर सका। यदि लोथ को निकलवा कर दिखा दिया जाता तो तुरन्त ही पुनरुत्थान की बात झूठी प्रमाणित हो जाती; किन्तु ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि दिखाए जाने के लिए कोई लोथ थी ही नहीं।
· प्रभु की लोथ चुराने से संबंधित कुछ अन्य कहानियाँ यह भी हैं:
o अरिमतिया के यूसुफ ने, जिसने निकुदेमुस के साथ मिल कर प्रभु यीशु को दफनाया था (यूहन्ना 19:38-42), बाद में उसी ने प्रभु को किसी और स्थान पर ले जाकर दफना दिया, क्योंकि उस दिन सबत आरंभ होने वाला था, इसलिए उसे दफनाने का कार्य शीघ्रता से करना पड़ा था। इसीलिए जहाँ यीशु को पहले दफनाया गया, वह कब्र खाली पाई गई। किन्तु, यूसुफ क्योंकि एक गुप्त शिष्य था, इसलिए उस ने बाद में, बिना अन्य शिष्यों को बताए, गाड़े जाने के स्थान को बदल दिया। उसके द्वारा बिना अन्य शिष्यों को इसके विषय बताए, किसी और स्थान पर ले जाकर दफनाना उचित नहीं लगता है; और ऐसा करने से या करने पर उसे गुप्त रखने से क्या लाभ होने वाला था? और फिर यदि वे जानते थे कि यीशु जी नहीं उठा है तो फिर शिष्यों में इतनी हिम्मत कैसे आ गई कि वे हर सताव और दुःख सहते हुए भी प्रभु के पुनरुत्थान और सुसमाचार का प्रचार करने से रोके नहीं जा सके?
o रोमियों ने लोथ ले जाकर कहीं और दफना दी – ध्यान कीजिए कि पिलातुस ने यीशु के निर्दोष होने पर भी उसको इसलिए क्रूस पर चढ़ाए जाने दिया क्योंकि वह यरूशलेम में शान्ति बनाए रखना चाहता था – यीशु की लोथ को निकालने और इधर से उधर करने से तो यहूदियों में अशान्ति फैलने की सम्भावना अधिक थी।
o यहूदियों ने ही लोथ निकाल कर कहीं और दफना दी – तो फिर जब शिष्य उसके पुनरुत्थान का प्रचार करने लगे, तो उन्होंने वह लोथ निकालकर क्यों नहीं दिखाई, और उन के प्रचार का अंत कर दिया?
हम अगले लेख में प्रभु यीशु की मृत्यु और पुनरुत्थान पर सन्देह उत्पन्न करने या उसे नकारने के लिए गढ़ी गई कुछ अन्य कहानियों पर विचार करेंगे।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
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The Elementary Principles – 68
Resurrection of the Dead – 3
Lord Jesus’s Resurrection – Proven (1)
Of the six elementary principles given in Hebrews 6:1-2, we are now studying about the fifth, i.e., “Resurrection from the Dead.” We have seen that the resurrection promised to God’s Children, the truly Born-Again Christian Believers, is based upon the resurrection of the Lord Jesus Christ from the dead; and the resurrection of the Lord Jesus is the pivotal event of the Christian Faith. If the Lord Jesus had not sacrificed His life for the sins of mankind on the Cross of Calvary, had not been buried, and then risen again from the dead, then there is nothing is Christianity, to set it apart from any other religious belief or system of the world. Therefore, it is important for the Christian Believers to learn about the implications of the Lord’s resurrection, which we are doing under three headings. In the last article we have seen the first implication, that the resurrection of the Lord Jesus was a prophesied event, prophesied in the Scriptures hundreds and thousands of years before the birth of the Lord Jesus. From today we will begin considering the second heading, that the resurrection of the Lord Jesus is a proven event.
The resurrection of Christ is not a concocted story. Since the resurrection of the Lord Jesus is central to the Christian Faith, therefore, many wrong things are preached and propagated about the resurrection of the Lord Jesus, to negate it or to bring doubts into it. From the inception of the Church of the Lord Jesus, attacks and attempts to falsify and discredit the fact of the Lord’s resurrection had started. These satanic attempts at falsifying and disproving the resurrection of the Lord Jesus indicate how detrimental and fatal this fact of the Lord’s resurrection is for the satanic kingdom. Some of the commonly preached wrong teachings about the Lord’s resurrection are:
· The first attempt of showing the resurrection to be false was made on the very day of the resurrection of the Lord Jesus - Matthew 28:11-15 - it was spread among the people that the Lord did not rise again, rather, His dead body was stolen away by His disciples - but no one could ever bring back and show the dead body of the Lord from those frightened disciples who had abandoned Him and run away for their lives, hidden themselves, and did not have any courage to face the people; but who within a few days started talking and preaching about the resurrection of the Lord, to show that their preaching was false. If the body could have been produced, the resurrection would have been proven false immediately, but it never happened because the dead body was never there; nor has it ever been presented till date!
· Some more stories about the body being taken away are:
o Joseph of Arimathea, who along with Nicodemus, had buried the Lord Jesus, later took the body, and buried it at some other location, because on the day of crucifixion he could not do the last rites properly since the Sabbath was about to begin, and so he had done them hurriedly. Therefore, the place where the Lord was first buried was found to be empty. But since Joseph was a ‘secret disciple’ of the Lord, therefore he later changed the burial site without informing the other disciples. But this is hardly an acceptable explanation; why would Joseph not inform the disciples, then or later; and how would keeping this a secret be of any benefit? Moreover, if the disciples knew that their Lord had not risen again from the dead, how did so much courage and commitment come in them, that undaunted by the severe persecution for their faith, they could not keep themselves from preaching the Gospel of the Lord Jesus?
o The Romans took the body of the Lord and buried it elsewhere - remember, Pilate though well aware that He was innocent allowed Jesus to be crucified because he wanted to maintain peace in Jerusalem - by taking out the buried body of Jesus and moving it elsewhere, the possibility of unrest and protests by the Jews was far more; so why would he allow and risk it?
o The Jews took the body and buried it at some other place. If so, then when the disciples started to claim and preach the resurrection of the Lord, then why did the Jews not show them where the body was and put an end to their preaching?
We will look up some more concocted stories created to deny or bring doubts about the death and resurrection of the Lord Jesus in the next article.
If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life. Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.
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