पाप और उद्धार को समझना – 42
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पाप का समाधान - उद्धार - 39
कुछ संबंधित प्रश्न और उनके उत्तर (5b)
पिछले लेख में हमने प्रश्न "क्या उद्धार पा लेने, प्रभु यीशु मसीह का शिष्य बन जाने से व्यक्ति संसार के दुख-तकलीफों, बीमारियों, समस्याओं, आदि से मुक्त हो जाता है, और सांसारिक समस्याओं से निश्चिंत होकर जीवन जीने लगता है?" पर विचार करना, और बाइबल स इसके उत्तर को देखना आरंभ किया था। हमने देखा था कि बाइबल में, सुसमाचारों में, न तो प्रभु यीशु मसीह ने, और न ही प्रभु के बाद मसीही सेवकाई में संलग्न उनके शिष्यों ने कभी ऐसा कोई आश्वासन, ऐसी कोई शिक्षा दी। वरन प्रभु ने भी, और प्रभु के शिष्यों ने भी यह स्पष्ट कर दिया कि मसीही विश्वास का जीवन दुख, क्लेश, सताव, आदि को सहते रहने का जीवन है। इसलिए जो भी सुसमाचार प्रचार यह कहते हुए करते हैं कि मसीही विश्वास में आ जाने से व्यक्ति संसार के दुख-तकलीफों, बीमारियों, समस्याओं, आदि से मुक्त हो जाता है, वह एक मन-गढ़न्त झूठे आश्वासन का प्रचार करते हैं, बाइबल की सच्चाई का नहीं। आज हम इस विषय पर अपने मनन को आगे ज़ारी रखेंगे।
परमेश्वर के वचन बाइबल में और भी अनेकों पद हैं जो यह दिखाते हैं कि मसीही जीवन संघर्ष का और संसार के लोगों के बैर और विरोध का निरंतर सामना करते रहने का जीवन है; और जो भी प्रभु यीशु के पीछे चलना चाहता है, उसे यह सब सहने के लिए तैयार रहना चाहिए। किन्तु साथ ही प्रत्येक मसीही विश्वासी को यह परमेश्वर से आश्वासन भी है कि उसकी प्रत्येक परिस्थिति में प्रभु उसके साथ होगा, उसे समझ, शक्ति, और शांति देगा कि वह उन परिस्थितियों का सामना कर सके “मैं ने ये बातें तुम से इसलिये कही हैं, कि तुम्हें मुझ में शान्ति मिले; संसार में तुम्हें क्लेश होता है, परन्तु ढाढ़स बांधो, मैं ने संसार को जीत लिया है” (यूहन्ना 16:33), और उसे उन सब में से भी सुरक्षित निकाल कर लाएगा, और अंततः सब बातें मिलकर प्रभु के जन के लिए भलाई ही को उत्पन्न करेंगी “और हम जानते हैं, कि जो लोग परमेश्वर से प्रेम रखते हैं, उन के लिये सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्पन्न करती है; अर्थात उन्हीं के लिये जो उस की इच्छा के अनुसार बुलाए हुए हैं” (रोमियों 8:28)।
पूरा नया नियम इस बात का गवाह है कि प्रभु यीशु मसीह के शिष्यों को हर स्थान पर, अपनी सारी सेवकाई के दिनों में बहुत से दुखों, क्लेशों, और सताव का सामना करना पड़ा है। जीवन कभी भी उनके लिए सहज और सरल नहीं रहा; वरन जिनके मध्य में होकर उन्होंने प्रभु की सेवकाई की और जिन लोगों की भलाई की, उन्हीं में से उनके बैरियों-विरोधियों ने निकलकर उनके लिए बहुत परेशानियाँ उत्पन्न कीं। किन्तु फिर भी जिसने एक बार प्रभु के प्रेम, कृपा, अनुग्रह, और उद्धार के स्वाद को चख लिया, एक बार जिसने प्रभु की शान्ति और आशीष को अपने जीवन में तमाम कठिनाइयों और मुसीबतों के मध्य में अनुभव कर लिया, जिसने एक बार प्रभु यीशु मसीह की वास्तविकता और खराई को पहचान लिया, फिर संसार के ये क्लेश उसके लिए निराश का नहीं, वरन उस अद्भुत, उत्तम स्वर्गीय आशा का प्रमाण बन गए, जो परमेश्वर ने उसके लिए रखी हुई है, और उस उत्तम आशीष की लालसा रखते हुए वे इन सभी बातों को सहर्ष सहन कर लेते हैं “क्योंकि हमारा पल भर का हल्का सा क्लेश हमारे लिये बहुत ही महत्वपूर्ण और अनन्त महिमा उत्पन्न करता जाता है। और हम तो देखी हुई वस्तुओं को नहीं परन्तु अनदेखी वस्तुओं को देखते रहते हैं, क्योंकि देखी हुई वस्तुएं थोड़े ही दिन की हैं, परन्तु अनदेखी वस्तुएं सदा बनी रहती हैं” (2 कुरिन्थियों 4:17-18)। फिर शारीरिक चंगाई का उसके लिए कोई विशेष महत्व नहीं है, क्योंकि वह व्यक्ति जानता है कि एक दिन तो शरीर ने मिटना ही है; और जो भी रोग या अस्वस्थता उसमें है, प्रभु उसमें भी उसकी सहायता करेगा, उसे आशीष देगा “और उसने मुझ से कहा, मेरा अनुग्रह तेरे लिये बहुत है; क्योंकि मेरी सामर्थ्य निर्बलता में सिद्ध होती है; इसलिये मैं बड़े आनन्द से अपनी निर्बलताओं पर घमण्ड करूंगा, कि मसीह की सामर्थ्य मुझ पर छाया करती रहे। इस कारण मैं मसीह के लिये निर्बलताओं, और निन्दाओं में, और दरिद्रता में, और उपद्रवों में, और संकटों में, प्रसन्न हूं; क्योंकि जब मैं निर्बल होता हूं, तभी बलवन्त होता हूं” (2 कुरिन्थियों 12:9-10)।
किसी भी मसीही विश्वासी को इन परिस्थितियों से घबराने की आवश्यकता नहीं है, “...क्योंकि उसने आप ही कहा है, कि मैं तुझे कभी न छोडूंगा, और न कभी तुझे त्यागूंगा। इसलिये हम बेधड़क हो कर कहते हैं, कि प्रभु, मेरा सहायक है; मैं न डरूंगा; मनुष्य मेरा क्या कर सकता है” (इब्रानियों 13:5-6), और साथ ही प्रभु का अपने विश्वासियों, अपने शिष्यों के लिए यह भी आश्वासन है कि उन्हें उनके सहने की सीमा से बाहर कभी किसी परीक्षा का सामना नहीं करना पड़ेगा “तुम किसी ऐसी परीक्षा में नहीं पड़े, जो मनुष्य के सहने से बाहर है: और परमेश्वर सच्चा है: वह तुम्हें सामर्थ्य से बाहर परीक्षा में न पड़ने देगा, वरन परीक्षा के साथ निकास भी करेगा; कि तुम सह सको” (1 कुरिन्थियों 10:13)। शैतान और उसके लोग तो हमें निराश करने और गिराने, विश्वास से भटकाने, प्रभु पर संदेह करने के लिए बहुत से प्रयास करेंगे। इसलिए शैतान के द्वारा फैलाई जा रही इन बातों पर ध्यान मत दीजिए। प्रभु के आपके प्रति प्रमाणित किए गए प्रेम, कृपा, और अनुग्रह, तथा उसके द्वारा आपको प्रदान किए जा रहे पाप-क्षमा प्राप्त करने के अवसर के मूल्य को समझिए, और अभी इस अवसर का लाभ उठा लीजिए।
आप को पाप से मुक्ति दिलाने और परमेश्वर से मेल-मिलाप करके, उसकी सन्तान बनकर अनन्तकाल तक रहने के लिए प्रभु यीशु ने तो अपना काम कर के दे दिया है; किन्तु क्या आपने उसके इस आपकी ओर बढ़े हुए प्रेम और अनुग्रह के हाथ को थाम लिया है, उसकी भेंट को स्वीकार कर लिया है? या आप अभी भी अपने ही प्रयासों के द्वारा वह करना चाह रहे हैं जो मनुष्यों के लिए कर पाना असंभव है? आपके द्वारा स्वेच्छा से, सच्चे और पूर्णतः समर्पित मन से, अपने पापों के प्रति सच्चे पश्चाताप के साथ आपके द्वारा की गई एक छोटी प्रार्थना, “हे प्रभु यीशु मैं मान लेता हूँ कि मैंने जाने-अनजाने में, मन-ध्यान-विचार और व्यवहार में आपकी अनाज्ञाकारिता की है, पाप किए हैं। मैं मान लेता हूँ कि आपने क्रूस पर दिए गए अपने बलिदान के द्वारा मेरे पापों के दण्ड को अपने ऊपर लेकर पूर्णतः सह लिया, उन पापों की पूरी-पूरी कीमत सदा काल के लिए चुका दी है। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मेरे मन को अपनी ओर परिवर्तित करें, और मुझे अपना शिष्य बना लें, अपने साथ कर लें” आपका सच्चे मन से लिया गया मन परिवर्तन का यह निर्णय आपके इस जीवन तथा परलोक के जीवन को आशीषित तथा स्वर्गीय जीवन बना देगा। अभी अवसर है, अभी प्रभु का निमंत्रण आपके लिए है - उसे स्वीकार कर लीजिए।
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Understanding Sin and Salvation – 42
The Solution For Sin - Salvation - 39
Some Related Questions and their Answers (5b)
In the previous article we had started to consider the question "By being saved and Born-Again, and becoming a disciple of Lord Jesus Christ, is a person delivered from the worldly problems and pains, from sickness, adverse situations etc. and begins to live a life free of problems of the world?" and seek its answer from the Bible. We had seen that in the Bible, in the gospel accounts, neither the Lord Jesus, nor after the Lord His disciples engaged in Christian Ministry, ever give any such teaching or assurance to anyone. Rather, not only the Lord, but also the Disciples made it very clear that the life of Christian Faith is a life of continually suffering pain, persecution, and problems. Therefore, those who while preaching the gospel say that, after coming into the Christian Faith a person delivered from the worldly problems and pains, from sickness, adverse situations etc. and begins to live a life free of problems of the world preach their own contrived idea and not the facts of the Bible. Today we will continue to further ponder over this topic.
In God's Word the Bible, there are many other verses that show that the Christian life is a life of struggles, of facing the opposition of the world and persecution from the worldly people; and anyone who wants to follow the Lord Jesus, should be ready to face and suffer all of this. But every Christian Believer also has this assurance from God that in every problem and situation he faces, God will be with him, give him the required wisdom, power, and peace to face those situations, “These things I have spoken to you, that in Me you may have peace. In the world you will have tribulation; but be of good cheer, I have overcome the world." (John 16:33), will safely carry him through those circumstances safe and secure, and eventually all things will work together for the good of the follower of the Lord “And we know that all things work together for good to those who love God, to those who are the called according to His purpose” (Romans 8:28).
The whole of the New Testament is a witness to this fact that the followers of the Lord Jesus faced a lot of problems, pains, and persecutions during their ministry and Christian service. Life was never easy or convenient for them; rather, the very people amongst whom they served the Lord and did good for them, from those very people many turned against them and created a lot of problems for them. Nevertheless, anyone who has once experienced the Lord’s love, kindness, grace, and salvation, anyone who has experienced the peace and blessings of the Lord Jesus, even in all the hardships and problems he had to face, he who has come to realize the truth and reality of the Lord Jesus Christ, for him these problems and persecutions of the world became not a cause of being despondent, but a proof of the wonderful, excellent heavenly blessings that God has kept for them; and for the hope of those blessings, they continued to suffer all of this with joy “For our light affliction, which is but for a moment, is working for us a far more exceeding and eternal weight of glory, while we do not look at the things which are seen, but at the things which are not seen. For the things which are seen are temporary, but the things which are not seen are eternal” (2 Corinthians 4:17-18). For such a person, physical healing has no significance, since he knows that eventually the body will die, someday; and presently whatever illness or weakness he may be having, the Lord will help him through it, and bless him because of it “And He said to me, "My grace is sufficient for you, for My strength is made perfect in weakness." Therefore, most gladly I will rather boast in my infirmities, that the power of Christ may rest upon me. Therefore, I take pleasure in infirmities, in reproaches, in needs, in persecutions, in distresses, for Christ's sake. For when I am weak, then I am strong” (2 Corinthians 12:9-10).
No Christian Believer should get perturbed about these circumstances and situations, “Let your conduct be without covetousness; be content with such things as you have. For He Himself has said, "I will never leave you nor forsake you." So, we may boldly say: "The Lord is my helper; I will not fear. What can man do to me?"” (Hebrews 13:5-6). Moreover, the Lord has also assured His disciples that He will never allow them to be tempted beyond their limits “No temptation has overtaken you except such as is common to man; but God is faithful, who will not allow you to be tempted beyond what you are able, but with the temptation will also make the way of escape, that you may be able to bear it” (1 Corinthians 10:13). Satan and his people will make many attempts and efforts to discourage us and make us fail and fall, to become weak and distracted in our faith, to doubt the Lord and His Word. But do not get carried away by the things being spread by Satan, but make full use of the opportunity you have to utilize the Lord’s love, kindness, grace, and offer of forgiveness of sins being extended to you. The Lord Jesus has done His part; He has made ready and available salvation with all the benefits freely to everyone; but have you accepted His offer? Have you taken His hand of love and grace extended towards you and the free gift He offers; or are you still determined to do that which no man can ever accomplish through his own efforts?
If you are still not Born Again, have not obtained salvation, have not asked the Lord Jesus for forgiveness for your sins, then you have the opportunity to do so right now. A short prayer said voluntarily with a sincere heart, with heart-felt repentance for your sins, and a fully submissive attitude, “Lord Jesus, I confess that I have disobeyed You, and have knowingly or unknowingly, in mind, in thought, in attitude, and in deeds, committed sins. I believe that you have fully borne the punishment of my sins by your sacrifice on the cross, and have paid the full price of those sins for all eternity. Please forgive my sins, change my heart and mind towards you, and make me your disciple, take me with you." God longs for your company, wants to see you blessed; but to make this possible, is your personal decision. Will you not say this prayer now, while you have the time and opportunity to do so - the decision is yours.