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गुरुवार, 17 नवंबर 2011

सर्वाधिक महिमा

   प्रभु यीशु के अनेक सच्चे विश्वासी यह मानते हैं कि अस्वस्थता मनुष्य के लिए परमेश्वर की इच्छा में नहीं है। इसलिए हमें पूरा ज़ोर लगाकर चंगाई के लिए प्रार्थना करते रहना चाहिए और प्रार्थना के उत्तर में इन्कार को स्वीकार कभी नहीं करना चाहिए। उनका मानना है कि शारीरिक अस्वस्थता इसलिए बनी रहती है क्योंकि हम उसके आदी हो गए हैं; और इस से निकलने के लिए जो हमें चाहिए वह है और भी अधिक विश्वास। वे इस बात को विश्वास की कमी का सूचक मानते हैं जब प्रार्थना में परमेश्वर से लोग कहते हैं कि "यदि आपकी इच्छा हो तो..."।

   किंतु अपने क्रूस पर चढ़ाए जाने के लिए पकड़वाए जाने से पहले गतसमनी के बाग़ में प्रभु यीशु की प्रार्थना पर विचार करें। यद्यपि उनकी प्रार्थना किसी बीमारी के लिए नहीं वरन उस आने वाले दुख से निकल पाने के विष्य में थी जो वे भोगने को थे, उस प्रार्थना के लिए परमेश्वर का प्रत्युत्तर स्पष्ट दिखाता है कि उसकी महिमा हमेशा परिस्थितियों के तुरंत या नाटकीय रूप से निवारण द्वारा नहीं होती।

   प्रभु जो पाप से अनजान था, निष्पाप और निष्कलंक था, समस्त मानव जाति के पापों को अपने ऊपर लेने जा रहा था, सबके लिए पाप बनकर प्रत्येक व्यक्ति के लिए पाप का दण्ड भोगने जा रहा था। ऐसे में उसका विचिलित होना, और उसका प्रार्थना करना कि यदि सम्भव हो तो यह दुख का प्याला उसे ना पीना पड़े स्वभाविक था। लेकिन उस ने अपनी इच्छा मनवाने के लिए परमेश्वर को बाध्य नहीं किया; अपने भाव व्यक्त करने के पश्चात, जो भी होना हो उसने वह परमेश्वर के हाथों में छोड़ दिया, और अपने आप को उसकी आज्ञाकारिता को समर्पित कर दिया।

   अपने प्रभु के समान हमें भी अपने दुखों और आवश्यक्ताओं में अपने परमेश्वर के सन्मुख अपनी भावनाएं व्यक्त करने और प्रार्थनाएं करने की स्वतंत्रता है, लेकिन प्रभु के समान ही उन विषयों के लिए परमेश्वर की इच्छा पुरी होने देने की भी ज़िम्मेदारी है।

   नौर्वे के एक बाइबल शिक्षक ओले हैल्सबी ने कहा कि अपनी अस्वस्थताओं के लिए हमें कुछ इस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिए: "प्रभु, यदि आपकी महिमा हो तो मुझे तुरंत ठीक कर दीजिए; यदि अधिक महिमा उस में हो तो धीरे धीरे ठीक कीजिए; यदि उससे भी अधिक महिमा उससे होती हो तो अपने दास को कुछ समय अस्वस्थ रहने दीजिए; और यदि उससे सर्वाधिक महिमा होती हो तो अपने दास को अपने पास स्वर्ग में बुला लीजिए।"

   हर बात में हमें यह विचार करना चाहिए कि परमेश्वर की सर्वाधिक महिमा किस बात से होगी? - डेनिस डी हॉन

यदि परमेश्वर किसी बात के लिए हमें इन्कार करता है तो वह इसलिए कि वो हमें कुछ बेहतर दे सके।

और वह थोड़ा आगे बढ़ा, और भूमि पर गिर कर प्रार्थना करने लगा, कि यदि हो सके तो यह घड़ी मुझ पर से टल जाए। और कहा, हे अब्‍बा, हे पिता, तुझ से सब कुछ हो सकता है; इस कटोरे को मेरे पास से हटा ले: तौभी जैसा मैं चाहता हूं वैसा नहीं, पर जो तू चाहता है वही हो। - मरकुस १४:३५, ३६

बाइबल पाठ: मरकुस १४:३२-३८
    Mar 14:32  फिर वे गतसमने नाम एक जगह में आए, और उस ने अपने चेलों से कहा, यहां बैठे रहो, जब तक मैं प्रार्थना करूं।
    Mar 14:33  और वह पतरस और याकूब और यूहन्ना को अपने साथ ले गया: और बहुत ही अधीर, और व्याकुल होने लगा।
    Mar 14:34  और उन से कहा, मेरा मन बहुत उदास है, यहां तक कि मैं मरने पर हूं: तुम यहां ठहरो, और जागते रहो।
    Mar 14:35  और वह थोड़ा आगे बढ़ा, और भूमि पर गिर कर प्रार्थना करने लगा, कि यदि हो सके तो यह घड़ी मुझ पर से टल जाए।
    Mar 14:36  और कहा, हे अब्‍बा, हे पिता, तुझ से सब कुछ हो सकता है; इस कटोरे को मेरे पास से हटा ले: तौभी जैसा मैं चाहता हूं वैसा नहीं, पर जो तू चाहता है वही हो।
    Mar 14:37  फिर वह आया, और उन्‍हें सोते पाकर पतरस से कहा, हे शमौन तू सो रहा है? क्‍या तू एक घड़ी भी न जाग सका?
    Mar 14:38  जागते और प्रार्थना करते रहो कि तुम परीक्षा में न पड़ो: आत्मा तो तैयार है, पर शरीर र्दुबल है।
 
एक साल में बाइबल: 
  • यहेजकेल ५-७ 
  • इब्रानियों १२