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गुरुवार, 13 सितंबर 2012

संयम


   दुसरे विश्वयुद्ध के निर्णायक समय में संगठित सेना के सर्वोच्च सेनापति ड्वाईट डी. आईज़नहावर संसार के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति थे। उनके नेतृत्व में, संसार के इतिहास में जल-थल सेना का सबसे बड़ा जमावड़ा, युरोप को नाट्ज़ी प्रभुसत्ता से छुड़ाने के लिए तैयार हुआ। इतनी विशाल सेना का संचालन आईज़नहावर कैसे करने पाए? इस प्रश्न के उत्तर का एक भाग है उनकी अन्य और भिन्न प्रवृत्ति के लोगों के साथ भी मिलकर कार्य कर पाने की विलक्षण प्रतिभा।

   लेकिन जो बात बहुत से लोग नहीं जानते वह यह है कि आईज़नहावर बचपन से ऐसे नहीं थे, वरन इसके विपरीत स्कूल के दिनों में वे अकसर अन्य बच्चों के साथ लड़ते-झगड़ते रहते थे। लेकिन उनकी माता एक बहुत संयमी और ध्यान रखने वाली महिला थीं जो उन्हें परमेश्वर के वचन बाइबल से सिखाती रहती थीं। एक बार जब वे ऐसी ही किसी लड़ाई में लगी आईज़नहावर की चोटों की मरहम-पट्टी कर रहीं थीं तो उन्होंने परमेश्वर के वचन बाइबल में नीतिवचन १६:३२ में लिखे पद को उनके सामने रखा, "विलम्ब से क्रोध करना वीरता से, और अपने मन को वश में रखना, नगर के जीत लेने से उत्तम है"। वर्षों बाद आईज़नहावर ने इसके बारे में लिखा, "माँ से हुए उस वार्तालाप को मैं अपने जीवन के सबसे मुल्यवान समयों में मानता हूँ।" निश्चय ही संयम और क्रोध को वश में करने की उस शिक्षा ही ने आईज़नहावर को दुसरों के साथ मिलकर कार्य करने और प्रभावी होने वाला बनाया और इतनी ऊँचाईयों तक पहुँचाया।

   हम सब के जीवनों में ऐसे समय अवश्य ही आएंगे जब किसी अन्य व्यक्ति पर क्रोध और आवेश में आकर कुछ कहने और करने का मन होगा। लेकिन ये ही संयम दिखाने के सबसे बहुमूल्य अवसर हैं जहां परमेश्वर और उसके वचन की सहायता से, अपने उद्धारकर्ता प्रभु यीशु के समान, हम ना केवल अपने क्रोध को वश में रखना और धैर्य से काम लेना सीख सकते हैं, वरन ऐसा करके संसार के लोगों में प्रभावी और परमेश्वर की महिमा का कारण भी बन सकते हैं।

   एक नम्र और संयमी आत्मा ही प्रभावी और प्रभु को प्रीय आत्मा है। - डेनिस फिशर


जो क्रोध पर जयवन्त है वह एक बहुत प्रबल शत्रु पर जयवन्त है।

विलम्ब से क्रोध करना वीरता से, और अपने मन को वश में रखना, नगर के जीत लेने से उत्तम है। - नीतिवचन १६:३२

बाइबल पाठ: नीतिवचन १६:२१-३३
Pro 16:21  जिसके हृदय में बुद्धि है, वह समझ वाला कहलाता है, और मधुर वाणी के द्वारा ज्ञान बढ़ता है। 
Pro 16:22  जिसके बुद्धि है, उसके लिये वह जीवन का सोता है, परन्तु मूढ़ों को शिक्षा देना मूढ़ता ही होती है। 
Pro 16:23  बुद्धिमान का मन उसके मुंह पर भी बुद्धिमानी प्रगट करता है, और उसके वचन में विद्या रहती है। 
Pro 16:24  मनभावने वचन मधुभरे छते की नाईं प्राणों को मीठे लगते, और हड्डियों को हरी-भरी करते हैं। 
Pro 16:25  ऐसा भी मार्ग है, जो मनुष्य को सीधा देख पड़ता है, परन्तु उसके अन्त में मृत्यु ही मिलती है। 
Pro 16:26  परिश्रमी की लालसा उसके लिये परिश्रम करती है, उसकी भूख तो उसको उभारती रहती है। 
Pro 16:27  अधर्मी मनुष्य बुराई की युक्ति निकालता है, और उसके वचनों से आग लग जाती है। 
Pro 16:28  टेढ़ा मनुष्य बहुत झगड़े को उठाता है, और कानाफूसी करने वाला परम मित्रों में भी फूट करा देता है। 
Pro 16:29  उपद्रवी मनुष्य अपने पड़ोसी को फुसलाकर कुमार्ग पर चलाता है। 
Pro 16:30  आंख मूंदने वाला छल की कल्पनाएं करता है, और ओंठ दबाने वाला बुराई करता है। 
Pro 16:31  पक्के बाल शोभायमान मुकुट ठहरते हैं; वे धर्म के मार्ग पर चलने से प्राप्त होते हैं। 
Pro 16:32  विलम्ब से क्रोध करना वीरता से, और अपने मन को वश में रखना, नगर के जीत लेने से उत्तम है। 
Pro 16:33  चिट्ठी डाली जाती तो है, परन्तु उसका निकलना यहोवा ही की ओर से होता है।

एक साल में बाइबल: 
  • नीतिवचन १६-१८ 
  • २ कुरिन्थियों ६