एक ६२ वर्षीय वृद्ध महिला को चर्च से $७३,००० चुराने का दोषी पाया गया। चोरी के बारे में पूछताछ के समय उस महिला का कहना था कि: "इस चोरी में मुख्य भूमिका शैतान की है!" वह कहना चाह रही थी कि यह कार्य शैतान ने उससे करवाया है, इसलिए दोषी वह नहीं शैतान है। अवश्य ही उसके निर्णय लेने में शैतान की भूमिका रही होगी; किंतु प्रलोभन और पाप के विषय में उसकी सोच सही नहीं है। शैतान हमें प्रलोभन दे सकता है किंतु पाप करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता।
कुछ लोग इसके विपरीत, अपने पापों के लिए परमेश्वर को दोषी ठहराते हैं। इस संदर्भ में परमेश्वर के वचन बाइबल में याकूब ने लिखा, "जब किसी ही परीक्षा हो, तो वह यह न कहे, कि मेरी परीक्षा परमेश्वर की ओर से होती है; क्योंकि न तो बुरी बातों से परमेश्वर की परीक्षा हो सकती है, और न वह किसी की परीक्षा आप करता है" (याकूब १:१३)। परमेश्वर पवित्र और भला है, बुराई से उसका कोई सरोकार नहीं है।
तो फिर हमारे पापों की जिम्मेदारी किसकी है? याकूब ही ने आगे लिखा, "परन्तु प्रत्येक व्यक्ति अपनी ही अभिलाषा में खिंचकर, और फंसकर परीक्षा में पड़ता है" (याकूब १:१४)। जैसे मछली मारने के लिए कांटे पर चारा लगाया जाता है, किंतु उस चारे को स्वीकार करना और खा लेना मछली का निर्णय होता है; वैसे ही शैतान हमारे सामने प्रलोभन रखता है किंतु उन प्रलोभनों में फंसकर दुराचार करना प्रत्येक व्यक्ति का अपना निर्णय होता है। परमेश्वर के वचन और आज्ञाओं की अनदेखी करते हुए हमारा अनियंत्रित अभिलाषाएं रखना, हमारे स्वार्थ, हमारा अपने लाभ के लिए बुराई तथा दुषकर्म के साथ समझौता करना और अपने ही निर्धारित तरीकों से दूसरों से आगे बढ़ निकलने की हमारी इच्छाएं ही हमें प्रलोभनों में पड़कर पाप में फंसा देती हैं।
जब हम परमेश्वर की आज्ञाओं का उल्लंघन कर के पाप में पड़ जाते हैं तो इसके लिए परमेश्वर को जिम्मेदार नहीं ठहराएं और ना ही "शैतान ने मुझसे करवाया" वाला बहाना बनाएं। जब भी हम पाप में पड़ें तो इसकी जिम्मेदारी अपने ऊपर लेकर अपने अनुग्रहकारी और दयालु परमेश्वर पिता के समक्ष अपने पापों को मान लें, पश्चाताप के साथ उस से उनकी क्षमा मांग लें, और फिर से उस के द्वारा दिखाए सही मार्ग पर चलने के प्रयास में लग जाएं। - मार्विन विलियम्स
जब हम पाप करते हैं तो उसकी जिम्मेदारी भी हमारी ही होती है।
परन्तु प्रत्येक व्यक्ति अपनी ही अभिलाषा में खिंचकर, और फंसकर परीक्षा में पड़ता है। - याकूब १:१४
बाइबल पाठ: याकूब १:१२-१८
Jas 1:12 धन्य है वह मनुष्य, जो परीक्षा में स्थिर रहता है; क्योंकि वह खरा निकल कर जीवन का वह मुकुट पाएगा, जिस की प्रतिज्ञा प्रभु ने अपने प्रेम करने वालों को दी है।
Jas 1:13 जब किसी ही परीक्षा हो, तो वह यह न कहे, कि मेरी परीक्षा परमेश्वर की ओर से होती है; क्योंकि न तो बुरी बातों से परमेश्वर की परीक्षा हो सकती है, और न वह किसी की परीक्षा आप करता है।
Jas 1:14 परन्तु प्रत्येक व्यक्ति अपनी ही अभिलाषा में खिंचकर, और फंसकर परीक्षा में पड़ता है।
Jas 1:15 फिर अभिलाषा गर्भवती होकर पाप को जनती है और पाप बढ़ जाता है तो मृत्यु को उत्पन्न करता है।
Jas 1:16 हे मेरे प्रिय भाइयों, धोखा न खाओ।
Jas 1:17 क्योंकि हर एक अच्छा वरदान और हर एक उत्तम दान ऊपर ही से है, और ज्योतियों के पिता की ओर से मिलता है, जिस में न तो कोई परिवर्तन हो सकता है, ओर न अदल बदल के कारण उस पर छाया पड़ती है।
Jas 1:18 उस ने अपनी ही इच्छा से हमें सत्य के वचन के द्वारा उत्पन्न किया, ताकि हम उस की सृष्टि की हुई वस्तुओं में से एक प्रकार के प्रथम फल हों।
एक साल में बाइबल:
- भजन ६८-६९
- रोमियों ८:१-२१
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