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सोमवार, 7 नवंबर 2022

भ्रामक शिक्षाओं का पहला विषय - प्रभु यीशु मसीह / First Theme of Deceptive Teachings - Lord Jesus Christ


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प्रभु यीशु के विषय प्रेरितों के काम में दी गई शिक्षाएं

पिछले कुछ लेखों से हम इफिसियों 4:14 में दी गई बातों में से, बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों और कलीसियाओं को प्रभावित करने वाले तीसरे दुष्प्रभाव, भ्रामक या गलत उपदेशों के बारे में देखते आ रहे हैं। इन गलत या भ्रामक शिक्षाओं के मुख्य स्वरूपों के बारे में परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस के द्वारा 2 कुरिन्थियों 11:4 में लिखवाया है कि इन भ्रामक शिक्षाओं के, गलत उपदेशों के, मुख्यतः तीन स्वरूप होते हैं, “यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता”, जिन्हें शैतान और उसके लोग चतुराई से प्रभु यीशु के झूठे प्रेरित, धर्म के सेवक, और ज्योतिर्मय स्‍वर्गदूतों का रूप धारण कर के बताते और सिखाते हैं। ये शैतानी लोग अपनी चतुराई और ठग-विद्या के द्वारा कई चिन्ह और चमत्कार दिखाकर लोगों को प्रभावित करते हैं, उन्हें अपने ईश्वरीय होने के बारे में झूठा विश्वास दिलाते हैं। हमारे लिए सच्चाई को पहचानने और शैतान के झूठ से बचने के लिए इन तीनों स्वरूपों के साथ इस पद में एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी दी गई है। इस पद में लिखा है कि शैतान की युक्तियों के तीनों विषयों, प्रभु यीशु मसीह, पवित्र आत्मा, और सुसमाचार के बारे में जो यथार्थ और सत्य है वह वचन में पहले से ही बता दिया गया है। इसलिए, स्वाभाविक है कि जो भी व्यक्ति वचन में दृढ़ और स्थापित होगा, जो भी वचन में इन तीनों के विषय दी गई बातों से भली-भांति अवगत होगा, वह इनके विषय शैतान की युक्तियों में नहीं फँसेगा, गलती में नहीं पड़ेगा, वरन उन शिक्षाओं के गलत होने को पहचान जाएगा, क्योंकि वे गलत शिक्षाएं वचन में पहले से लिखवाई गई बातों से भिन्न होंगी, उनके अतिरिक्त होंगी।

 

इन तीनों प्रकार की गलत शिक्षाओं में से इस पद में सबसे पहली है कि शैतान और उस के जन, प्रभु यीशु के विषय ऐसी शिक्षाएं देते हैं जो वचन में नहीं दी गई हैं। इस पद में इस विषय में लिखे गए वाक्य “यदि कोई तुम्हारे पास आकर, जिस का प्रचार हम ने नहीं किया” पर ध्यान कीजिए। अर्थात, प्रभु यीशु के बारे में पौलुस, अन्य प्रेरितों, और प्रभु के शिष्यों द्वारा जो प्रचार किया गया है, जो बताया गया है, वही सच्ची शिक्षा है; अन्य सभी मिथ्या हैं। इसलिए यदि हम यह देख और संकलित कर लें कि वचन में इन प्रेरितों और प्रभु के शिष्यों ने क्या सिखाया है, तो उसके अतिरिक्त प्रभु यीशु के विषय जो कुछ भी सिखाया है, वह गलत शिक्षा है। पौलुस, अन्य प्रेरितों, और प्रभु के शिष्यों द्वारा जो प्रचार किया गया है, उसका संकलन प्रेरितों के काम नामक पुस्तक है। आज हम इसी पुस्तक से, प्रभु के इन अनुयायियों द्वारा किए गए प्रचार में से, प्रभु यीशु के विषय कही गई बातों को देखते और सूचीबद्ध करते हैं। यह सूची प्रभु यीशु के विषय गलत शिक्षाओं को पहचानने के लिए हमारी सहायता करेगी। हमें अपनी इस सूची के साथ मिलाकर, यीशु होने का दावा करने वाले व्यक्ति में, या लोगों द्वारा यीशु के विषय बताई जा रही बातों को जाँच कर देखना होगा कि वे सच्चे यीशु के विषय वचन में दी गई इस सूची की बातों से मेल खाती हैं कि नहीं, उनके अनुसार हैं कि नहीं। जो भी शिक्षा इस सूची में प्रभु यीशु के विषय पाई जाने वाली बातों से मेल नहीं खाती है, उसे तुरंत ही स्वीकार नहीं करना होगा, वरन उसे वचन से भली-भांति जाँच-परख कर, उसकी वास्तविकता और खराई की वचन से पुष्टि करने के बाद ही स्वीकार किया जाए, अन्यथा उसका तिरस्कार कर दिया जाए। 


नए नियम में प्रेरितों के काम पुस्तक में प्रेरितों और शिष्यों द्वारा दी गई प्रभु यीशु के विषय सही शिक्षाएं हैं :

  • प्रेरितों 2:22 हे इस्राएलियों, ये बातें सुनो: कि यीशु नासरी एक मनुष्य था जिस का परमेश्वर की ओर से होने का प्रमाण उन सामर्थ्य के कामों और आश्चर्य के कामों और चिह्नों से प्रगट है, जो परमेश्वर ने तुम्हारे बीच उसके द्वारा कर दिखलाए जिसे तुम आप ही जानते हो। प्रभु यीशु न केवल पूर्णतः परमेश्वर था, वरन पूर्णतः मनुष्य भी था। उसे परमेश्वर ने भेजा था, जिसका प्रमाण और पुष्टि परमेश्वर ने उसके द्वारा उन लोगों के मध्य सामर्थ्य के कार्यों और आश्चर्यकर्मों के द्वारा की थी। 

  • प्रेरितों 2:32 इसी यीशु को परमेश्वर ने जिलाया, जिस के हम सब गवाह हैं। प्रभु यीशु मृतकों में से जी उठा था। यह केवल सुनी-सुनाई बात नहीं थी, वरन उसके मारे जाने, गाड़े जाने, और पुनरुत्थान होने के गवाह भी थे (प्रेरितों 4:33; 5:30; 13:33)। 

  • प्रेरितों 2:36 सो अब इस्राएल का सारा घराना निश्‍चय जान ले कि परमेश्वर ने उसी यीशु को जिसे तुम ने क्रूस पर चढ़ाया, प्रभु भी ठहराया और मसीह भी। सच्चा यीशु क्रूस पर चढ़ाया गया था; और उसे जो आदर एवं महिमा मिली वह परमेश्वर ने दी, किसी मनुष्य, मत, या समुदाय ने नहीं। 

  • प्रेरितों 3:6 तब पतरस ने कहा, चान्दी और सोना तो मेरे पास है नहीं; परन्तु जो मेरे पास है, वह तुझे देता हूं: यीशु मसीह नासरी के नाम से चल फिर। सच्चे यीशु के नाम में आश्चर्यकर्म होते हैं (मरकुस 16:17-20; प्रेरितों 4:30; 9:34; 16:18)। 

  • प्रेरितों 3:20 और वह उस मसीह यीशु को भेजे जो तुम्हारे लिये पहिले ही से ठहराया गया है। सच्चे यीशु के विषय में पुराने नियम की सभी पुस्तकों में लिखा गया है (लूका 24:27; प्रेरितों 8:35)।  

  • प्रेरितों 4:12 और किसी दूसरे के द्वारा उद्धार नहीं; क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिस के द्वारा हम उद्धार पा सकें। पृथ्वी पर, मनुष्यों के उद्धार के लिए और कोई अन्य नाम दिया ही नहीं गया है; और किसी में उद्धार है ही नहीं (प्रेरितों 9:22; 15:11; 16:31; 17:3; 18:5; 18:28)। 

  • प्रेरितों 4:13 जब उन्होंने पतरस और यूहन्ना का हियाव देखा, ओर यह जाना कि ये अनपढ़ और साधारण मनुष्य हैं, तो अचम्भा किया; फिर उन को पहचाना, कि ये यीशु के साथ रहे हैं। सच्चे यीशु के साथ बने रहने से जीवन बदल जाते हैं, डरपोक लोग निडर हो जाते हैं, साधारण और अनपढ़ मनुष्य भी परमेश्वर के वचन के प्रभावी प्रचारक और ज्ञानी बन जाते हैं। 

  • प्रेरितों 7:55-56 परन्तु उसने पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो कर स्वर्ग की ओर देखा और परमेश्वर की महिमा को और यीशु को परमेश्वर की दाहिनी ओर खड़ा देखकर कहा; देखो, मैं स्वर्ग को खुला हुआ, और मनुष्य के पुत्र को परमेश्वर के दाहिनी ओर खड़ा हुआ देखता हूं। सच्चे यीशु के पुनरुत्थान और स्वर्गारोहण के बाद से वे स्वर्ग में परमेश्वर के साथ हैं (1 यूहन्ना 2:1)। 

  • प्रेरितों 9:5 उसने पूछा; हे प्रभु, तू कौन है? उसने कहा; मैं यीशु हूं; जिसे तू सताता है। सच्चा यीशु अपने अनुयायियों के साथ बना रहता है; उनके दुख और सताव को अपना व्यक्तिगत दुख और सताव मानता है (प्रेरितों 22:8; 26:15)। 

  • प्रेरितों 10:36 जो वचन उसने इस्राएलियों के पास भेजा, जब कि उसने यीशु मसीह के द्वारा (जो सब का प्रभु है) शान्‍ति का सुसमाचार सुनाया। सच्चे यीशु का सुसमाचार शांति का सुसमाचार है, वह मतभेद, अलगाव, और अशान्ति नहीं, वर्ण परमेश्वर के एक ही परिवार के सदस्यों के समान प्रेम और मेल-मिलाप के साथ मिलकर रहना सिखाता है; यीशु ही के प्रभु होने को बताता है। 

  • प्रेरितों 17:30-31 इसलिये परमेश्वर अज्ञानता के समयों में आनाकानी कर के, अब हर जगह सब मनुष्यों को मन फिराने की आज्ञा देता है। क्योंकि उसने एक दिन ठहराया है, जिस में वह उस मनुष्य के द्वारा धर्म से जगत का न्याय करेगा, जिसे उसने ठहराया है और उसे मरे हुओं में से जिलाकर, यह बात सब पर प्रमाणित कर दी है। सच्चा यीशु ही जगत के अंत में, अपने सुसमाचार के अनुसार सभी मनुष्यों का उनकी सभी बातों के विषय न्याय करेगा। 


यह सूची अंतिम या पूर्ण नहीं है। हम अपने अगले लेखों में वचन के अन्य स्थानों पर प्रभु यीशु के विषय पाई जाने वाली बातों को भी देखेंगे, तथा उन गलत शिक्षाओं को भी देखेंगे जिन्हें उस प्रथम, आरंभिक कलीसिया के समय से ही शैतान ने मसीहियों और अन्य लोगों में फैलाना आरंभ कर दिया था, जिससे लोग प्रभु यीशु में विश्वास न लाएं।

 

यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं तो प्रभु यीशु के विषय जिन शिक्षाओं को आप जानते और मानते हैं, या जिन्हें औरों को बताते हैं, उन्हें उपरोक्त सूची के समक्ष जाँच-परख लीजिए, और जो सही हों केवल उन्हें थामे रहिए (1 थिस्सलुनीकियों 5:21)। अन्य सभी बातों या शिक्षाओं के आधार और सामग्री की, प्रभु यीशु के विषय वचन की अन्य बातों के साथ बारीकी से जाँच-पड़ताल करने के बाद ही निर्णय लें के वे स्वीकार्य हैं अथवा अस्वीकार्य। वचन से असंगत किसी भी बात या शिक्षा से बचकर रहें। प्रचार करने वाले व्यक्ति की वाक्पटुता, उसके ज्ञान, बोलने के आकर्षक ढंग, शिक्षा की रोचक बातों, और मनुष्यों में उसके आदर और प्रशंसा के स्तर पर मत जाइए। केवल परमेश्वर के वचन की सत्यता के आधार पर ही उसकी बातों और शिक्षाओं के विषय निर्णय कीजिए।

 

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी। 


एक साल में बाइबल पढ़ें: 

  • यिर्मयाह 40-42 

  • इब्रानियों 4


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English Translation


Teachings about the Lord Jesus in Acts


In the previous articles we have been considering from Ephesians 4:14 about the deceptive teachings and trickeries that immature Christian Believers are prone to. Through the Apostle Paul God the Holy Spirit has had it written that, “For if he who comes preaches another Jesus whom we have not preached, or if you receive a different spirit which you have not received, or a different gospel which you have not accepted--you may well put up with it!” (2 Corinthians 11:4); i.e., there are mainly three themes or topics on which Satan and his followers usually present their false teachings to beguile and mislead the people. They disguise themselves as false apostles, ministers of righteousness, and angels of light to preach and teach these deceptive doctrines, using various tricks to impress and influence people, and cunningly making them think that these satanic agents are actually divine. In this verse we have also been given another very important fact, that helps us to identify the deceptions of Satan and escape falling for them. This verse tells us that all things that are true, factual, and to be accepted about the Lord Jesus, the Holy Spirit, and the Gospel, have already been given in God’s Word; thereby implying that anything outside of God’s Word is from Satan, and is not to be accepted. Therefore, anyone who is established in God’s Word and is well versed with Biblical teachings about the Lord Jesus, the Holy Spirit, and the Gospel, will immediately be able to identify the false doctrines and wrong teachings, the unBiblical things, deceptively being brought in by Satan, and will not fall for them.


Of these three themes, the first one given in this verse is teachings about the Lord Jesus that have not been given in the Bible. Pay attention to the sentence in this verse about this, “For if he who comes preaches another Jesus whom we have not preached.” The implication is evident, anything other than what Paul and the other Apostles and the disciples of Christ have preached about the Lord Jesus, is wrong and deceptive teaching, is not to be accepted. What Paul and the other Apostles and the disciples of Christ have preached about the Lord Jesus to the early Church is mainly given in the Book of Acts. today, we will see and list what has been said and preached about the Lord Jesus from this Book of Acts. This list will help us identify the wrong preaching and teachings that are spread about the Lord Jesus. Many people claim themselves to be the Lord Jesus Christ come back to earth; and many people preach and teach unBiblical things about the Lord. This list will help us to discern the truth and identify the deception; anything that is not consistent with this list, will have to be evaluated and considered very carefully, verified from the Word of God, and accepted only if it is in accordance with Biblical teachings, else it has to be rejected.


The true teachings given in the New Testament Book of Acts, about the Lord Jesus are:

  • Acts 2:22 “Men of Israel, hear these words: Jesus of Nazareth, a Man attested by God to you by miracles, wonders, and signs which God did through Him in your midst, as you yourselves also know.” The Lord Jesus was fully God and fully man. He had been sent by God, which was proven by the miracles, wonders, and signs which He did amongst the people.

  • Acts 2:32 “This Jesus God has raised up, of which we are all witnesses.” The Lord Jesus was also raised from the dead; this is not conjecture or a folklore, but there were witnesses of His death, burial, and resurrection (Acts 4:33; 5:30; 13:33).

  • Acts 2:36 “Therefore let all the house of Israel know assuredly that God has made this Jesus, whom you crucified, both Lord and Christ.” The true Jesus was crucified and died on the cross; the honour and glory that He received, were given to Him by God, not by any man or sect, group, or denomination.

  • Acts 3:6 “Then Peter said, "Silver and gold I do not have, but what I do have I give you: In the name of Jesus Christ of Nazareth, rise up and walk."” In the name of Lord Jesus, His disciples could, and still can work miracles (Mark 16:17-20; Acts 4:30; 9:34; 16:18).

  • Acts 3:20 “and that He may send Jesus Christ, who was preached to you before” The Books of the Old Testament testify about the Lord Jesus, in them is written about Him.

  • Acts 4:12 “Nor is there salvation in any other, for there is no other name under heaven given among men by which we must be saved.” On earth, amongst men, no other name has been given to be saved; salvation is not through anyone else (Acts 9:22; 15:11; 16:31; 17:3; 18:5; 18:28).

  • Acts 4:13 “Now when they saw the boldness of Peter and John, and perceived that they were uneducated and untrained men, they marveled. And they realized that they had been with Jesus.” Being with the true Jesus Christ changes the lives of people, the fearful become fearless, even the simple uneducated and untrained people become knowledgeable and very effective preachers.

  • Acts 7:55-56 “But he, being full of the Holy Spirit, gazed into heaven and saw the glory of God, and Jesus standing at the right hand of God, and said, "Look! I see the heavens opened and the Son of Man standing at the right hand of God!"” The true Lord Jesus, since His resurrection and ascension, is with God the Father in heaven, till now (1 John 2:1).

  • Acts 9:5 “And he said, "Who are You, Lord?" Then the Lord said, "I am Jesus, whom you are persecuting. It is hard for you to kick against the goads."” The real Lord Jesus remains with His followers, and considers their pains and sorrows as His personal pain and sorrow (Acts 22:8; 26:15).

  • Acts 10:36 “The word which God sent to the children of Israel, preaching peace through Jesus Christ--He is Lord of all” The true Jesus is the Lord of all, entire mankind, not of any particular group of people; and this Jesus teaches everyone to live together as members of one family of God, in unity and love, without any differences, dissensions, and tensions of any kind.

  • Acts 17:30-31 “Truly, these times of ignorance God overlooked, but now commands all men everywhere to repent, because He has appointed a day on which He will judge the world in righteousness by the Man whom He has ordained. He has given assurance of this to all by raising Him from the dead.” The true Lord Jesus, at the end of the world, will judge everyone, by His Word, for everything.



This list about the Lord Jesus is neither exhaustive nor complete. In our next article we will see some more things about the Lord Jesus written at some other places in God’s Word, and will also look at some false teachings that Satan and his followers started to spread about the Lord Jesus amongst the initial Christian Believers, so that people may not come to faith in the Lord Jesus.


If you are a Christian Believer, then check and verify the teachings about the Lord Jesus that you have learnt, obey, and share with others, with the help of the list given above, and hold on to only those which are true (1 Thessalonians 5:21). For everything else, every other message or teachings, very minutely and carefully examine and ascertain with the help of God’s Word, and only then accept them. Stay away and be wary of anything that is not consistent with God’s Word. Do not ever be carried away by the knowledge, impressive mannerisms, eloquence, being able to say attractive and interesting things, and the respect or status amongst people of the preacher or speaker. Evaluate him and decide about him only on the basis of the facts and truth of God’s Word, nothing else.


If you have not yet accepted the discipleship of the Lord Jesus, then to ensure your eternal life and heavenly rewards, take a decision in favor of the Lord Jesus now. Wherever there is surrender and obedience towards the Lord Jesus, the Lord’s blessings and safety are also there. If you are still not Born Again, have not obtained salvation, or have not asked the Lord Jesus for forgiveness for your sins, then you have the opportunity to do so right now. A short prayer said voluntarily with a sincere heart, with heartfelt repentance for your sins, and a fully submissive attitude, “Lord Jesus, I confess that I have disobeyed You, and have knowingly or unknowingly, in mind, in thought, in attitude, and in deeds, committed sins. I believe that you have fully borne the punishment of my sins by your sacrifice on the cross, and have paid the full price of those sins for all eternity. Please forgive my sins, change my heart and mind towards you, and make me your disciple, take me with you." God longs for your company and wants to see you blessed, but to make this possible, is your personal decision. Will you not say this prayer now, while you have the time and opportunity to do so - the decision is yours. 


Through the Bible in a Year: 

  • Jeremiah 40-42 

  • Hebrews 4



1 टिप्पणी:

  1. Parbhu yeshu Masih k madhur naam me aap ko jai masih ki ek baar fir se iss margdarshan k liye me dil se aap ki aabhari hu parbhu aap ko ir bi jyada apane mahima k liye isatemal kare or aap ko Ashishit kare

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