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रविवार, 11 नवंबर 2012

निस्वार्थ प्रेम


   घटना ४ दिसंबर २००६ की है, एक १९ वर्षीय सैनिक इराक में अपने साथियों के साथ गाड़ी में गश्त पर था और उसने किसी को गाड़ी पर हथगोला फेंकते हुए देखा। उसने प्रयास किया कि वह हथगोला उनकी गाड़ी के अन्दर ना गिरे, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। उस युवा सैनिक के पास समय था कि वह गाड़ी से कूदकर अपनी जान बचा लेता, लेकिन गाड़ी से बाहर कूदने की बजाए वह गाड़ी के अन्दर उस हथगोले पर कूदकर लेट गया - वह तो शहीद हो गया लेकिन भौंचक्का कर देने वाले उसके इस निस्वार्थ कार्य से उसके साथी बच गए।

   आत्मबलिदान की ऐसी महान और समझ से परे घटनाओं द्वारा हम समझ सकते हैं कि जब परमेश्वर का वचन बाइबल कहती है कि ऐसा प्रेम भी है जो बड़े ज्ञान और महान विश्वास से बढ़कर है तो उसका क्या तात्पर्य है (१ कुरिन्थियों १३:१-३)।

   इस प्रकार का निस्वार्थ प्रेम बहुत विरला होता है; इसीलिए प्रेरित पौलुस ने फिलिप्पियों के विश्वासीयों को लिखी अपनी पत्री में शोकित होते हुए लिखा कि लोग मसीह की सेवा की अपेक्षा अपने स्वार्थ-सिद्धी की अधिक परवाह करते हैं (फिलिप्पियों २:२०-२१)। इसीलिए पौलुस अपने साथी इपफ्रुदितुस की सेवा के लिए आभारी हुआ जिसने दूसरों की सेवा के लिए अपने प्राणों की परवाह नहीं की (फिलिप्पियों २:३०)।

   यदि आप सोचते हैं कि दूसरों के लिए आप अपने प्राण कभी दाँव पर नहीं लगा सकते तो इपफ्रुदितुस इस निस्वार्थ कार्य के लिए पहला कदम उठाने का उदाहरण हमारे सामने रखता है। ऐसा प्रेम ना तो साधारण होता है, ना सामन्य रीति से मिलता है और ना ही मनुष्य की इच्छा से आता है। यह निस्वार्थ प्रेम परमेश्वर की आत्मा से प्राप्त होता है। पवित्र आत्मा ही हमें दूसरों के प्रति संवेदनशील होने और उनकी प्रति उस महान निस्वार्थ प्रेम की एक झलक दिखाने की सामर्थ भी देती है, जो परमेश्वर ने हमसे किया और प्रभु यीशु में होकर संसार के समक्ष प्रदर्शित किया।

   क्या आपने प्रभु यीशु के इस महान निस्वार्थ प्रेम और बलिदान पर कभी गंभीरता से विचार किया है? क्या अपने जीवन में आपने उसके इस प्रेम को स्वीकार कर लिया है? - मार्ट डी हॉन


परमेश्वर के प्रति अपने प्रेम को आप दूसरों के प्रति प्रदर्शित अपने प्रेम के द्वारा जान सकते हैं।

क्‍योंकि वही मसीह के काम के लिये अपने प्राणों पर जोखिम उठाकर मरने के निकट हो गया था, ताकि जो घटी तुम्हारी ओर से मेरी सेवा में हुई, उसे पूरा करे। - फिलिप्पियों २:३०

बाइबल पाठ: फिलिप्पियों २:२०-३०
Php 2:20  क्‍योंकि मेरे पास ऐसे स्‍वाभाव का कोई नहीं, जो शुद्ध मन से तुम्हारी चिन्‍ता करे। 
Php 2:21  क्‍योंकि सब अपने स्‍वार्थ की खोज में रहते हैं, न कि यीशु मसीह की। 
Php 2:22   पर उसको तो तुम ने परखा और जान भी लिया है, कि जैसा पुत्र पिता के साथ करता है, वैसा ही उस ने सुसमाचार के फैलाने में मेरे साथ परिश्रम किया। 
Php 2:23  सो मुझे आशा है, कि ज्योंही मुझे जान पड़ेगा कि मेरी क्‍या दशा होगी, त्योंही मैं उसे तुरन्‍त भेज दूंगा। 
Php 2:24   और मुझे प्रभु में भरोसा है, कि मैं आप भी शीघ्र आऊंगा। 
Php 2:25   पर मैं ने इपफ्रदीतुस को जो मेरा भाई, और सहकर्मी और संगी योद्धा और तुम्हारा दूत, और आवश्यक बातों में मेरी सेवा टहल करने वाला है, तुम्हारे पास भेजना अवश्य समझा। 
Php 2:26  क्‍योंकि उसका मन तुम सब में लगा हुआ था, इस कारण वह व्याकुल रहता था क्‍योंकि तुम ने उस की बीमारी का हाल सुना था। 
Php 2:27  और निश्‍चय वह बीमार तो हो गया था, यहां तक कि मरने पर था, परन्‍तु परमेश्वर ने उस पर दया की; और केवल उस ही पर नहीं, पर मुझ पर भी, कि मुझे शोक पर शोक न हो। 
Php 2:28  इसलिये मैं ने उसे भेजने का और भी यत्‍न किया कि तुम उस से फिर भेंट करके आनन्‍दित हो जाओ और मेरा शोक घट जाए। 
Php 2:29  इसलिये तुम प्रभु में उस से बहुत आनन्‍द के साथ भेंट करना, और ऐसों का आदर किया करना। 
Php 2:30  क्‍योंकि वही मसीह के काम के लिये अपने प्राणों पर जोखिम उठाकर मरने के निकट हो गया था, ताकि जो घटी तुम्हारी ओर से मेरी सेवा में हुई, उसे पूरा करे। 

एक साल में बाइबल: 
  • यर्मियाह ५० 
  • इब्रानियों ८

शनिवार, 10 नवंबर 2012

प्रार्थना


   कई वर्ष पहले की बात है, मैं अपनी कार में जा रहा था कि अचानक कार का इंजन बन्द हो गया; मैंने कार सड़क के किनारे पर करी और कार रुक गई। मैंने कार का बोनट खोला और इंजन के देखने लगा। इंजन को देखते हुए मेरे मन में विचार आ रहा था: "मुझे इससे क्या लाभ? मैं इंजन के बारे में क्या जानता हूँ - कुछ नहीं! मुझे तो यह भी पता नहीं कि इंजन देखना आरंभ कहां से करूँ?"

   कुछ ऐसे ही विचार कई बार प्रार्थना के बारे में लोगों के मनों में उठते हैं: "हम इस बारे में क्या जानते हैं? कैसे और कहां से आरंभ करें?" यही बात प्रभु यीशु के चेलों के मन में भी थी जब उन्होंने प्रभु यीशु से कहा, "... हे प्रभु, जैसे यूहन्ना ने अपने चेलों को प्रार्थना करना सिखलाया वैसे ही हमें भी तू सिखा दे" (लूका ११:१)। प्रार्थना के विषय में सीखने के लिए सबसे अच्छा है कि इसके बारे में प्रभु यीशु के उदाहरणों और शिक्षाओं से सीखें।

   हमें कहां पर प्रार्थना करनी चाहिए? प्रभु यीशु ने मन्दिर में, बियाबान में (लूका ४), एकांत में (मत्ती १४:२२-२३), गतसमने के बाग़ में (लूका २२) और यहां तक कि क्रूस पर लटके और भयंकर वेदना सहते हुए भी प्रार्थना करी। प्रभु ने अकेले भी और दूसरों साथ भी प्रार्थना करी। प्रभु यीशु के जीवन को देखें, उसके उदाहरण का अनुसरण करें, और जहां भी अवसर मिले या आवश्यकता हो, प्रार्थना करें।

   हम किस विषय पर प्रार्थना करें? चेलों को सिखाई प्रार्थना में प्रभु यीशु ने सिखाया कि प्रार्थना करें कि परमेश्वर का नाम पृथ्वी पर पवित्र माना जाए और उसकी इच्छा यहां भी वैसे ही पूरी हो जैसी स्वर्ग में होती है। परमेश्वर से अपनी प्रतिदिन की आवश्यकताओं की पूर्ति को मांगे; अपने पापों की क्षमा को मांगें; बुराई और परीक्षाओं से बचने को मांगें (लूका ११:२-४)।

   यदि आप प्रार्थना करना आरंभ करना चाहते हैं तो प्रभु यीशु द्वारा अपने शिष्यों को सिखाई प्रार्थना का अनुसरण करना आपके लिए एक अच्छी शुरुआत होगी। - ऐने सेटास


यदि प्रभु यीशु के लिए प्रार्थना करना आवश्यक था तो फिर हमारे लिए कितना अधिक आवश्यक है?

संकट के समय मैं ने यहोवा को पुकारा, और उस ने मेरी सुन ली। - भजन १२०:१

बाइबल पाठ: लूका ११:१-१०
Luk 11:1  फिर वह किसी जगह प्रार्थना कर रहा था: और जब वह प्रार्थना कर चुका, तो उसके चेलों में से एक ने उस से कहा, हे प्रभु, जैसे यूहन्ना ने अपने चेलों को प्रार्थना करना सिखलाया वैसे ही हमें भी तू सिखा दे। 
Luk 11:2  उस ने उन से कहा, जब तुम प्रार्थना करो, तो कहो: हे पिता, तेरा नाम पवित्र माना जाए, तेरा राज्य आए। 
Luk 11:3  हमारी दिन भर की रोटी हर दिन हमें दिया कर। 
Luk 11:4 और हमारे पापों को क्षमा कर, क्‍योंकि हम भी अपने हर एक अपराधी को क्षमा करते हैं, और हमें परीक्षा में न ला।
Luk 11:5  और उस ने उन से कहा, तुम में से कौन है कि उसका एक मित्र हो, और वह आधी रात को उसके पास आकर उस से कहे, कि हे मित्र; मुझे तीन रोटियां दे। 
Luk 11:6 क्‍योंकि एक यात्री मित्र मेरे पास आया है, और उसके आगे रखने के लिये मेरे पास कुछ नहीं है। 
Luk 11:7 और वह भीतर से उत्तर दे, कि मुझे दुख न दे; अब तो द्वार बन्‍द है, और मेरे बालक मेरे पास बिछौने पर हैं, इसलिये मैं उठकर तुझे दे नहीं सकता; 
Luk 11:8  मैं तुम से कहता हूं, यदि उसका मित्र होने पर भी उसे उठकर न दे, तौभी उसके लज्ज़ा छोड़ कर मांगने के कारण उसे जितनी आवश्यकता हो उतनी उठ कर देगा। 
Luk 11:9  और मैं तुम से कहता हूं कि मांगो, तो तुम्हें दिया जाएगा; ढूंढ़ों तो तुम पाओगे; खटखटाओ, तो तुम्हारे लिये खोला जाएगा। 
Luk 11:10 क्‍योंकि जो कोई मांगता है, उसे मिलता है; और जो ढूंढ़ता है, वह पाता है; और जो खटखटाता है, उसके लिये खोला जाएगा। 

एक साल में बाइबल: 
  • यर्मियाह ४८-४९ 
  • इब्रानियों ७

शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

एक विशेष सदगुण


   अपनी पुस्तक Food in the Medieval Times में लेखिका मेलिटा ऐडमसन ने मध्य युग में युरोप के लोगों के भोजन के बारे में बताया है। शिकार करना, केक-पेस्ट्री-पुडिंग आदि व्यंजन बनाना और खाना उस समय के लोगों की रुचि होती थी। इस रुचि के साथ एक समस्या भी थी - पेटुपन, अर्थात अपनी आवश्यकता से अधिक खाना। अत्याधिक खा लेने की प्रवृति साल भर त्यौहारों और मनाए जाने वाले दिवसों की बहुतायत के कारण और भी विकट हो जाती थी। यदि कुछ समय का उपवास भी होता था, तो उसके तुरंत बाद लोग फिर टूट कर भोजन पर जा पड़ते थे।

   इस समस्या के निवारण के लिए धर्मशास्त्री और शिक्षक थोमस एक्वीनस ने मसीही विश्वास के एक सदगुण - संयम को एक विशेष सदगुण का स्थान दिया और उसे जीवन के प्रत्येक पहलू में लागू करने से होने वाली भलाई के बारे में लोगों को सिखाया।

   संयम का यह सदगुण किसी मानवीय दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण उत्पन्न नहीं होता। मसीही विश्वासी के लिए यह सदगुण परमेश्वर के पवित्र आत्मा द्वारा दिए गए आत्मा के फलों में से एक है: "पर आत्मा का फल प्रेम, आनन्‍द, मेल, धीरज, और कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता, और संयम हैं; ऐसे ऐसे कामों के विरोध में कोई व्यवस्था नहीं" (गलतियों ५:२२-२३)। संयम, पवित्र आत्मा द्वारा दी गई वह सामर्थ है जो हमें हर बात में समझ-बूझ के साथ जो और जितना उचित है उतने तक ही करने की योग्यता देती है।

   हम सबको जीवन के हर क्षेत्र में संयम के प्रयोग से लाभ ही मिलता है; चाहे वह भोजन करना, कार्य करना, आराम करना, सेवकाई में जाना या अन्य कुछ भी हो। कोई भी बात जो संतुलन और उचित मात्रा में लभदायक होती है, उसकी अति नुकसान ही देती है। आज अपने जीवन का विशलेषण करके देखिए, कहीं आप किसी बात में उचित और संतुलित की सीमा से बाहर तो नहीं हैं? वह उचित और संतुलित को लागू करने के लिए परमेश्वर से संयम मांगने की प्रार्थना में आपको कुछ पल ही लगाने पड़ेंगे, परन्तु उसके लाभ जीवन भर आपके साथ रहेंगे।

   संयम - पवित्र आत्मा का फल और एक विशेष सदगुण जो जीवन में भलाई ही लेकर आता है। अपने जीवनों में इसे अवश्य ही एक विशेष स्थान दीजिए। - डेनिस फिशर


संयम पाने के लिए परमेश्वर के आत्मा की आधीनता में आ जाईए।

पर आत्मा का फल प्रेम, आनन्‍द, मेल, धीरज, और कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता, और संयम हैं; ऐसे ऐसे कामों के विरोध में कोई व्यवस्था नहीं। - गलतियों ५:२२-२३

बाइबल पाठ: १ कुरिन्थियों ९:२४-२७
1Co 9:24  क्‍या तुम नहीं जानते, कि दौड़ में तो दौड़ते सब ही हैं, परन्‍तु इनाम एक ही ले जाता है तुम वैसे ही दौड़ो, कि जीतो। 
1Co 9:25  और हर एक पहलवान सब प्रकार का संयम करता है, वे तो एक मुरझाने वाले मुकुट को पाने के लिये यह सब करते हैं, परन्‍तु हम तो उस मुकुट के लिये करते हैं, जो मुरझाने का नहीं। 
1Co 9:26  इसलिये मैं तो इसी रीति से दौड़ता हूं, परन्‍तु बेठिकाने नहीं, मैं भी इसी रीति से मुक्कों से लड़ता हूं, परन्‍तु उस की नाईं नहीं जो हवा पीटता हुआ लड़ता है। 
1Co 9:27   परन्तु मैं अपनी देह को मारता कूटता, और वश में लाता हूं, ऐसा न हो कि औरों को प्रचार करके, मैं आप ही किसी रीति से निकम्मा ठहरूं। 

एक साल में बाइबल: 
  • यर्मियाह ४६-४७ 
  • इब्रानियों ६

गुरुवार, 8 नवंबर 2012

ऊँचा लक्ष्य


   हम परिवार के रूप में घूमने निकले थे। महिलाएं खरीददारी में लग गईं तो मुझे अवसर मिला और मैं अपने पुत्र और दो दामादों के साथ निकट के एक निशाना साधने के स्थल पर निशानेबाज़ी करने के लिए चला गया। हमने किराए पर दो बन्दूकें लीं और हम चारों बारी बारी निशाना लगाने लगे। हमने तुरंत ही जान लिया कि एक बन्दूक के निशाना साधने के बिन्दु में गड़बड़ थी और उस से जब हम निशाने के मध्य पर गोली चलाते थे तो वह गोली निशाने की निचले सिरे पर लगती थी। सही जगह का निशाना लगाने के लिए हमें ऊँचाई पर निशाना लगाना पड़ता था, तब गोली सही स्थान के आस-पास लगती थी।

   क्या जीवन भी ऐसा ही नहीं है? यदि हम अपने लक्ष्य सीमित या निचले स्तर के रखते हैं तो हम कुछ विशेष हासिल नहीं कर पाते। किसी अच्छे निर्धारित लक्ष्य पर पहुँचने के लिए हमें ऊँचा निशाना साधना पड़ता है। जीवन में हमारा लक्ष्य क्या है? हमें अपनी अभिलाषाएं कितनी ऊँची रखनी चाहिऐं?

   क्योंकि हम मसीही विश्वासियों का मार्गदर्शक परमेश्वर का वचन है इसलिए उस पवित्र शास्त्र के अनुसार आत्मिक प्रौढ़ता ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए। पौलुस प्रेरित ने कुरिन्थियों के विश्वासियों को लिखी अपनी दूसरी पत्री के अन्त में निर्देश देते समय लिखा "...सिद्ध बनते जाओ..." (२ कुरिन्थियों १३:११); अर्थात हमारे जीवनों के लिए यह एक अविरल प्रक्रिया होनी चाहिए। इसी सिद्धता के ऊँचे लक्ष्य के लिए प्रभु यीशु ने भी अपने चेलों से कहा था: "इसलिये चाहिये कि तुम सिद्ध बनो, जैसा तुम्हारा स्‍वर्गीय पिता सिद्ध है" (मत्ती ५:४८)।

   परमेश्वर पिता जैसी सिद्धता एक बहुत ऊँचा लक्ष्य है और मानव जीवन में ऐसी सिद्धता प्राप्त कर लेना संभव नहीं; किंतु यदि उस ऊँचे लक्ष्य पर निशाना नहीं साधेंगे तो आत्मिक सिद्धता में बढ़ने भी नहीं पाएंगे, जैसा पौलुस ने लिखा। जब हम इस सिद्धता में बढ़ने की प्रक्रिया में सक्रीय रहते हैं "...तो प्रभु के द्वारा जो आत्मा है, हम उसी तेजस्‍वी रूप में अंश अंश कर के बदलते जाते हैं" (२ कुरिन्थियों ३:१८)।

   यदि प्रभु यीशु की समानता में बदलते जाना है तो अपने लक्ष्य को ऊँचा ही रखें। - डेव ब्रैनन


प्रभु यीशु को स्वीकार करना क्षण भर का कार्य है, प्रभु यीशु में परिपक्व होना सारे जीवन की साधना है।

निदान, हे भाइयो, आनन्‍दित रहो; सिद्ध बनते जाओ; ढाढ़स रखो; एक ही मन रखो; मेल से रहो, और प्रेम और शान्‍ति का दाता परमेश्वर तुम्हारे साथ होगा। - २ कुरिन्थियों १३:११

बाइबल पाठ: इब्रानियों ५:१२-६:३
Heb 5:12  समय के विचार से तो तुम्हें गुरू हो जाना चाहिए था, तौभी क्‍या यह आवश्यक है, कि कोई तुम्हें परमेश्वर के वचनों की आदि शिक्षा फिर से सिखाए? और ऐसे हो गए हो, कि तुम्हें अन्न के बदले अब तक दूध ही चाहिए। 
Heb 5:13  क्‍योंकि दूध पीने वाले बच्‍चे को तो धर्म के वचन की पहिचान नहीं होती, क्‍योंकि वह बालक है। 
Heb 5:14  पर अन्न सयानों के लिये है, जिन के ज्ञानेन्‍द्रिय अभ्यास करते करते, भले बुरे में भेद करने के लिये पक्के हो गए हैं।
Heb 6:1  इसलिये आओ मसीह की शिक्षा की आरम्भ की बातों को छोड़ कर, हम सिद्धता की ओर बढ़ते जाएं, और मरे हुए कामों से मन फिराने, और परमेश्वर पर विश्वास करने। 
Heb 6:2 और बपतिस्मों और हाथ रखने, और मरे हुओं के जी उठने, और अन्‍तिम न्याय की शिक्षा रूपी नेव, फिर से न डालें। 
Heb 6:3  और यदि परमेश्वर चाहे, तो हम यहीं करेंगे। 

एक साल में बाइबल: 
  • यर्मियाह ४३-४५ 
  • इब्रानियों ५

बुधवार, 7 नवंबर 2012

उपस्थिति का अनुभव


   मुझे चर्च के बाहर लिख कर लगाए गए वाक्य पढ़ने में दिलचस्पी है। हाल ही में मैंने एक वाक्य पढ़ा जो मुझे काफी रोचक लगा; लिखा था "अन्दर आईये और परमेश्वर की उपस्थिति अनुभव कीजिए।" मुझे यह रोचक इसलिए लगा क्योंकि ऐसा कहना एक ऐसी महत्वपूर्ण प्रतिज्ञा करना है जिसको निभाना सरल नहीं है। सरल इसलिए नहीं है क्योंकि इस संदर्भ में चर्च के सदस्यों की ज़रा सी लापरवाही चर्च में परमेश्वर की उपस्थिति प्रतिबिंबित करने की बजाए चर्च के लोगों को ही प्रतिबिंबित करने लगती है।

   इसलिए, परमेश्वर की उपस्थिति दिखाने के लिए चर्च के लोगों को परमेश्वर प्रभु यीशु के समान जीवन जीकर दिखाना चाहिए, अर्थात उनमें ऐसे सक्रीय गुण होने चाहिऐं जैसे प्रभु यीशु में थे - सेवा, हर प्रकार के लोगों को सहर्ष स्वीकार करना, सहायता करने को सदा तत्पर, लोगों से ऐसा प्रत्यक्ष सच्चा प्रेम जो बिना किसी रंग या जाति या अन्य किसी बात का भेद किए सबको समान आदर देता है और उन्हें सुरक्षित अनुभव करवाता है, दूसरों की कमज़ोरीयों के प्रति सहिष्णुता आदि।

   प्रेरित पौलुस ने कहा "...तुम्हारा चाल-चलन प्रभु के योग्य हो..." (कुलुस्सियों १:१०); और इस योग्य चाल-चलन के विषय में लिखा: "सो मैं जो प्रभु में बन्‍धुआ हूं तुम से बिनती करता हूं, कि जिस बुलाहट से तुम बुलाए गए थे, उसके योग्य चाल चलो। अर्थात सारी दीनता और नम्रता सहित, और धीरज धर कर प्रेम से एक दूसरे को सह लो। और मेल के बन्‍ध में आत्मा की एकता रखने का यत्‍न करो" (इफीसियों ४:१-३)।

   यही हम मसीही विश्वासियों को जी कर दिखाना है जिससे हमारे तथा जगत के उद्धारकर्ता प्रभु यीशु की उपस्थिति हमारे व्यक्तिगत जीवनों में और चर्च में संसार को स्पष्ट दिखाई दे और संसार प्रभु यीशु की वास्तविकता को जान सके। - जो स्टोवैल


जो मसीह के साथ चलते हैं, वे अपने आस-पास वालों को अपने जीवनों से उसकी उपस्थिति का एहसास भी कराते हैं।

...तुम्हारा चाल-चलन प्रभु के योग्य हो... - कुलुस्सियों १:१०

बाइबल पाठ: कुलुस्सियों १:९-१४
Col 1:9  इसी लिये जिस दिन से यह सुना है, हम भी तुम्हारे लिये यह प्रार्थना करने और बिनती करने से नहीं चूकते कि तुम सारे आत्मिक ज्ञान और समझ सहित परमेश्वर की इच्‍छा की पहिचान में परिपूर्ण हो जाओ। 
Col 1:10  ताकि तुम्हारा चाल-चलन प्रभु के योग्य हो, और वह सब प्रकार से प्रसन्न हो, और तुम में हर प्रकार के भले कामों का फल लगे, और परमेश्वर की पहिचान में बढ़ते जाओ। 
Col 1:11 और उस की महिमा की शक्ति के अनुसार सब प्रकार की सामर्थ से बलवन्‍त होते जाओ, यहां तक कि आनन्‍द के साथ हर प्रकार से धीरज और सहनशीलता दिखा सको। 
Col 1:12  और पिता का धन्यवाद करते रहो, जिस ने हमें इस योग्य बनाया कि ज्योति में पवित्र लोगों के साथ मीरास में समभागी हों। 
Col 1:13 उसी ने हमें अन्‍धकार के वश से छुड़ा कर अपने प्रिय पुत्र के राज्य में प्रवेश कराया। 
Col 1:14 जिस से हमें छुटकारा अर्थात पापों की क्षमा प्राप्‍त होती है।

एक साल में बाइबल: 
  • यर्मियाह ४०-४२ 
  • इब्रानियों ४

मंगलवार, 6 नवंबर 2012

अभी करें!


   कुछ वर्ष पहले मेरा एक मित्र मुझे जीवन के कार्यों में प्रोत्साहन और प्रेर्णा सिखाने वाले एक सेमिनार में ले कर गया, जो मुझे बहुत अच्छा लगा। उस सेमिनार में सिखाने वालों ने धन और सफलता पर ध्यान केंद्रित करने की बजाए हमारा ध्यान हमारी विशिष्ट पहचान और जीवन में हमारे उद्देश्य की ओर खींचा। उन्होंने हमें कुछ बातें सिखाईं जो प्रभावी जीवन जीने में हमारी सहायक हैं। उनकी सिखाई हुई बातों में से एक थी "अभी करें।" उनका इस बात के पीछे सिद्धांत था कि किसी कार्य को टालने में भी उतनी ही ऊर्जा व्यय होती है जितनी उसे करने में; टालने से समय और शक्ति क्ष्यय होते हैं, कर लेने से राहत मिलती है।

   यही सिद्धांत परमेश्वर के वचन बाइबल के इब्रानियों के नाम लिखी पत्री के तीसरे अध्याय में भी देखने को मिलता है। इस अध्याय में तत्परता के साथ एक विशिष्ट कार्य - परमेश्वर की आज्ञाकारिता करने पर ज़ोर दिया गया है। बार बार वहां आया है कि आज यदि परमेश्वर की आज्ञा या आवाज़ सुनो तो उस बात को टालो मत; मनों को पाप के धोखे में आकर कठोर होने और अनाज्ञाकारी होने से बचाए रखो (इब्रानियों ३:७, ८, १३)। इस सिद्धांत की उपेक्षा के दुष्परिणामों का उदाहरण इस्त्राएल की ४० वर्षीय जंगल यात्रा से दिया गया है, जो उन्हें अपनी अनाज्ञाकारिता के कारण करनी पड़ी। यद्यपि इस्त्राएल वाचा किए हुए कनान देश में पहुँचने के निकट था, किंतु अपनी ढिठाई और परमेश्वर की आज्ञा की अवहेलना के कारण उन्हें प्रवेश करने के लिए ४० वर्ष इंतिज़ार और यात्रा करनी पड़ी जब तक परमेश्वर के विरुद्ध बलवा करने वाली वह पूरी पीढ़ी उस यात्रा में जाती ना रही।

   जब हम जानते हैं कि परमेश्वर हम से कैसे जीवन की आशा रखता है, तो वैसा जीवन जीने के लिए "हां" क्यों नहीं कर लेते? परमेश्वर की आज्ञा टालने से क्या लाभ होगा? अनाज्ञाकारिता से तो हम केवल अपनी आशीषें और अपना जीवन गंवाएंगे। ठान लें और विवाद और विलंब छोड़कर परमेश्वर की कही बात को अभी करें! - डेविड मैक्कैसलैंड


आज ही और अभी कर लें। आज का दिन, कल को बीता हुआ कल बन जाएगा।

वरन जिस दिन तक आज का दिन कहा जाता है, हर दिन एक दूसरे को समझाते रहो, ऐसा न हो, कि तुम में से कोई जन पाप के छल में आकर कठोर हो जाए। - इब्रानियों ३:१३

बाइबल पाठ: इब्रानियों ३:७-१५
Heb 3:7 सो जैसा पवित्र आत्मा कहता है, कि यदि आज तुम उसका शब्‍द सुनो। 
Heb 3:8  तो अपने मन को कठोर न करो, जैसा कि क्रोध दिलाने के समय और परीक्षा के दिन जंगल में किया था। 
Heb 3:9  जहां तुम्हारे बापदादों ने मुझे जांच कर परखा और चालीस वर्ष तक मेरे काम देखे। 
Heb 3:10  इस कारण मैं उस समय के लोगों से रूठा रहा, और कहा, कि इन के मन सदा भटकते रहते हैं, और इन्‍होंने मेरे मार्गों को नहीं पहिचाना। 
Heb 3:11  तब मैं ने क्रोध में आकर शपथ खाई, कि वे मेरे विश्राम में प्रवेश करने न पाएंगे। 
Heb 3:12  हे भाइयो, चौकस रहो, कि तुम में ऐसा बुरा और अविश्वासी मन न हो, जो जीवते परमेश्वर से दूर हट जाए। 
Heb 3:13  वरन जिस दिन तक आज का दिन कहा जाता है, हर दिन एक दूसरे को समझाते रहो, ऐसा न हो, कि तुम में से कोई जन पाप के छल में आकर कठोर हो जाए। 
Heb 3:14  क्‍योंकि हम मसीह के भागी हुए हैं, यदि हम अपने प्रथम भरोसे पर अन्‍त तक दृढ़ता से स्थिर रहें।

एक साल में बाइबल: 
  • यर्मियाह ३७-३९ 
  • इब्रानियों ३

सोमवार, 5 नवंबर 2012

छाप


   इंग्लैंड में एक गांव है सैर्लिओन जिसका बड़ा ऐतिहासिक महत्व है। यह गांव उन तीन स्थानों में से एक है जहां रोम की सेनाएं तैनात रहती थीं, जब उन्होंने ब्रिटैन पर कब्ज़ा किया हुआ था। यद्यपि लगभग १५०० वर्ष पहले वहां पर उन रोमी सेनाओं की उपस्थिति समाप्त हो गई लेकिन आज भी उनकी तब की मौजूदगी की छाप वहां देखी जा सकती है। संसार भर से सैलानी वहां आते हैं कि वहां के सैनिक दुर्ग, सैनिकों के निवास स्थल, उनके मनोरंजन स्थल आदि और रोम द्वारा संसार पर राज्य के स्मारकों को देख सकें।

   मुझे इस बात से अचरज होता है कि १५ शताब्दियों के बाद भी रोम की उपस्थिति की छाप उस स्थान पर आज भी स्पष्ट देखी जा सकती है। लेकिन साथ ही मैं एक और छाप के बारे में भी सोचता हूँ - हम मसीही विश्वासियों के जीवन में हमारे उद्धारकर्ता प्रभु यीशु की छाप!

   प्रभु यीशु ने कहा: "...तुम्हारा उजियाला मनुष्यों के साम्हने चमके कि वे तुम्हारे भले कामों को देख कर तुम्हारे पिता की, जो स्‍वर्ग में हैं, बड़ाई करें" (मत्ती ५:१६)। हमारे कार्यों और हमारी गवाही के प्रकाश के द्वारा लोगों को दिखना चाहिए कि परमेश्वर हमारे जीवनों में है। हमारी जीवन शैली ऐसी होनी चाहिए कि लोगों को संसार से भिन्नता दिखाई भी दे और वे हमारे जीवनों और कार्यों के लिए परमेश्वर को महिमा देने पाएं।

   क्या हम अपने जीवनों में अपने उद्धारकर्ता परमेश्वर की छाप संसार के सामने स्पष्ट रीति से प्रदर्षित होने देते हैं? क्या वे लोग जो हमारे संपर्क में आते हैं पहचानने पाते हैं कि प्रभु यीशु हमारे जीवन में निवास करता है? क्या हमारे उद्धारकर्ता की छाप हमारे जीवन में दिखाई देती है? - बिल क्राउडर


अपनी गवाही इतने बड़े अक्षरों में दिखाएं कि संसार उसे स्पष्ट पढ़ सके।

उसी प्रकार तुम्हारा उजियाला मनुष्यों के साम्हने चमके कि वे तुम्हारे भले कामों को देख कर तुम्हारे पिता की, जो स्‍वर्ग में हैं, बड़ाई करें। - मत्ती ५:१६

बाइबल पाठ: मत्ती ५:१३-२०
Mat 5:13  तुम पृथ्वी के नमक हो, परन्‍तु यदि नमक का स्‍वाद बिगड़ जाए, तो वह फिर किस वस्‍तु से नमकीन किया जाएगा? फिर वह किसी काम का नहीं, केवल इस के कि बाहर फेंका जाए और मनुष्यों के पैरों तले रौंदा जाए। 
Mat 5:14  तुम जगत की ज्योति हो; जो नगर पहाड़ पर बसा हुआ है वह छिप नहीं सकता। 
Mat 5:15  और लोग दिया जलाकर पैमाने के नीचे नहीं परन्‍तु दीवट पर रखते हैं, तब उस से घर के सब लोगों को प्रकाश पहुंचता है। 
Mat 5:16  उसी प्रकार तुम्हारा उजियाला मनुष्यों के साम्हने चमके कि वे तुम्हारे भले कामों को देख कर तुम्हारे पिता की, जो स्‍वर्ग में हैं, बड़ाई करें।
Mat 5:17  यह न समझो, कि मैं व्यवस्था या भविष्यद्वक्ताओं की पुस्‍तकों को लोप करने आया हूं। 
Mat 5:18  लोप करने नहीं, परन्‍तु पूरा करने आया हूं, क्‍योंकि मैं तुम से सच कहता हूं, कि जब तक आकाश और पृथ्वी टल न जाएं, तब तक व्यवस्था से एक मात्रा या बिन्‍दु भी बिना पूरा हुए नहीं टलेगा। 
Mat 5:19  इसलिये जो कोई इन छोटी से छोटी आज्ञाओं में से किसी एक को तोड़े, और वैसा ही लोगों को सिखाए, वह स्‍वर्ग के राज्य में सब से छोटा कहलाएगा; परन्‍तु जो कोई उन का पालन करेगा और उन्‍हें सिखाएगा, वही स्‍वर्ग के राज्य में महान कहलाएगा। 
Mat 5:20  क्‍योंकि मैं तुम से कहता हूं, कि यदि तुम्हारी धामिर्कता शास्‍त्रियों और फरीसियों की धामिर्कता से बढ़कर न हो, तो तुम स्‍वर्ग के राज्य में कभी प्रवेश करने न पाओगे।

एक साल में बाइबल: 
  • यर्मियाह ३४-३६ 
  • इब्रानियों २