ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

बुधवार, 18 मई 2016

सूचि


   मेरे एक मित्र ने हाल ही में मुझे बताया कि उसने अपनी बहन को यूरोप की यात्रा करवा कर, उसने अपनी मृत्युपूर्व इच्छाओं की सूचि में से एक और पूरी कर ली है। मेरा वह मित्र स्वयं तो अनेक बार यूरोप जा चुका था, लेकिन उसकी बहन कभी यूरोप नहीं गई थी, और वह चाहता था कि उसकी बहन भी यूरोप देख सके। उस मित्र की इच्छा सूचि में यह निःस्वार्थ इच्छा का होना मेरे लिए विस्मयकारी था; इसने मुझे विचार करने पर बाध्य किया कि मेरी इच्छाएं कितनी अपने आप पर और कितनी दूसरों पर केंद्रित होती हैं।

   परमेश्वर के वचन बाइबल में रोम के मसीही विश्वासियों को लिखी अपनी पत्री में प्रेरित पौलुस ने हम मसीही विश्वासियों को परमेश्वर द्वारा दिए गए वरदानों तथा उनके सदुपयोग के बारे में निर्देश दिए (रोमियों 12)। यदि हम इन वरदानों पर थोड़ा विचार करें तो पाएंगे कि यह सभी वरदान दूसरों की भलाई से संबंधित हैं; उदाहरणस्वरूप, सिखाने का वरदान शिक्षक की ही नहीं वरन उसके विद्यार्थियों की उन्नति और भलाई के लिए है। इसी प्रकार पद 6 से 8 में उल्लेखित अन्य वरदानों के साथ भी यही बात है। पौलुस ने परमेश्वर की इस उदार भावना को हमारे अनुसरण के लिए पद 10 में रेखंकित किया: "भाईचारे के प्रेम से एक दूसरे पर दया रखो; परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़ चलो।"

   पौलुस ने ना केवल इस रवैये को अपनी शिक्षाओं में कहा, वरन उसने इसे अपने जीवन में जी कर भी दिखाया; उसने औरों को अपने साथ अपनी मसीही सेवकाई में सम्मिलित किया, उन्हें सिखाया और आने वाली मसीही विश्वासियों की पीढ़ी की भलाई के लिए उन्हें तैयार किया। साथ ही पौलुस ने उदारता, आतिथ्य, क्षमा, अनुकंपा आदि को अपने दैनिक व्यवहार का एक अभिन्न अंग बनाकर अपने साथियों तथा हमारे लिए एक सजीव उदाहरण भी प्रस्तुत किया।

   जीवन के हमारे उद्देश्यों की सूचि में एक अनिवार्य बात होनी चाहिए, परमेश्वर द्वारा हमें दिए गए वरदानों का दूसरों की भलाई तथा परमेश्वर की महिमा के लिए सदुपयोग। - डेविड मैक्कैसलैंड


स्वस्थ आत्मिक जीवन के लिए नम्रता और दूसरों की भलाई का अभ्यास करते रहें।

विरोध या झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो। हर एक अपनी ही हित की नहीं, वरन दूसरों की हित की भी चिन्‍ता करे। जैसा मसीह यीशु का स्‍वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्‍वभाव हो। - फिलिप्पियों 2:3-5

बाइबल पाठ: रोमियों 12
Romans 12:1 इसलिये हे भाइयों, मैं तुम से परमेश्वर की दया स्मरण दिला कर बिनती करता हूं, कि अपने शरीरों को जीवित, और पवित्र, और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान कर के चढ़ाओ: यही तुम्हारी आत्मिक सेवा है। 
Romans 12:2 और इस संसार के सदृश न बनो; परन्तु तुम्हारी बुद्धि के नये हो जाने से तुम्हारा चाल-चलन भी बदलता जाए, जिस से तुम परमेश्वर की भली, और भावती, और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो। 
Romans 12:3 क्योंकि मैं उस अनुग्रह के कारण जो मुझ को मिला है, तुम में से हर एक से कहता हूं, कि जैसा समझना चाहिए, उस से बढ़कर कोई भी अपने आप को न समझे पर जैसा परमेश्वर ने हर एक को परिमाण के अनुसार बांट दिया है, वैसा ही सुबुद्धि के साथ अपने को समझे। 
Romans 12:4 क्योंकि जैसे हमारी एक देह में बहुत से अंग हैं, और सब अंगों का एक ही सा काम नहीं। 
Romans 12:5 वैसा ही हम जो बहुत हैं, मसीह में एक देह हो कर आपस में एक दूसरे के अंग हैं। 
Romans 12:6 और जब कि उस अनुग्रह के अनुसार जो हमें दिया गया है, हमें भिन्न भिन्न वरदान मिले हैं, तो जिस को भविष्यद्वाणी का दान मिला हो, वह विश्वास के परिमाण के अनुसार भविष्यद्वाणी करे। 
Romans 12:7 यदि सेवा करने का दान मिला हो, तो सेवा में लगा रहे, यदि कोई सिखाने वाला हो, तो सिखाने में लगा रहे। 
Romans 12:8 जो उपदेशक हो, वह उपदेश देने में लगा रहे; दान देने वाला उदारता से दे, जो अगुवाई करे, वह उत्साह से करे, जो दया करे, वह हर्ष से करे। 
Romans 12:9 प्रेम निष्कपट हो; बुराई से घृणा करो; भलाई में लगे रहो। 
Romans 12:10 भाईचारे के प्रेम से एक दूसरे पर दया रखो; परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़ चलो। 
Romans 12:11 प्रयत्न करने में आलसी न हो; आत्मिक उन्माद में भरो रहो; प्रभु की सेवा करते रहो। 
Romans 12:12 आशा में आनन्दित रहो; क्लेश में स्थिर रहो; प्रार्थना में नित्य लगे रहो। 
Romans 12:13 पवित्र लोगों को जो कुछ अवश्य हो, उस में उन की सहायता करो; पहुनाई करने में लगे रहो। 
Romans 12:14 अपने सताने वालों को आशीष दो; आशीष दो श्राप न दो। 
Romans 12:15 आनन्द करने वालों के साथ आनन्द करो; और रोने वालों के साथ रोओ। 
Romans 12:16 आपस में एक सा मन रखो; अभिमानी न हो; परन्तु दीनों के साथ संगति रखो; अपनी दृष्टि में बुद्धिमान न हो। 
Romans 12:17 बुराई के बदले किसी से बुराई न करो; जो बातें सब लोगों के निकट भली हैं, उन की चिन्ता किया करो। 
Romans 12:18 जहां तक हो सके, तुम अपने भरसक सब मनुष्यों के साथ मेल मिलाप रखो। 
Romans 12:19 हे प्रियो अपना पलटा न लेना; परन्तु क्रोध को अवसर दो, क्योंकि लिखा है, पलटा लेना मेरा काम है, प्रभु कहता है मैं ही बदला दूंगा। 
Romans 12:20 परन्तु यदि तेरा बैरी भूखा हो तो उसे खाना खिला; यदि प्यासा हो, तो उसे पानी पिला; क्योंकि ऐसा करने से तू उसके सिर पर आग के अंगारों का ढेर लगाएगा। 
Romans 12:21 बुराई से न हारो परन्तु भलाई से बुराई का जीत लो।

एक साल में बाइबल: 
  • 1 इतिहास 4-6
  • यूहन्ना 6:1-21


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें