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गुरुवार, 8 नवंबर 2012

ऊँचा लक्ष्य


   हम परिवार के रूप में घूमने निकले थे। महिलाएं खरीददारी में लग गईं तो मुझे अवसर मिला और मैं अपने पुत्र और दो दामादों के साथ निकट के एक निशाना साधने के स्थल पर निशानेबाज़ी करने के लिए चला गया। हमने किराए पर दो बन्दूकें लीं और हम चारों बारी बारी निशाना लगाने लगे। हमने तुरंत ही जान लिया कि एक बन्दूक के निशाना साधने के बिन्दु में गड़बड़ थी और उस से जब हम निशाने के मध्य पर गोली चलाते थे तो वह गोली निशाने की निचले सिरे पर लगती थी। सही जगह का निशाना लगाने के लिए हमें ऊँचाई पर निशाना लगाना पड़ता था, तब गोली सही स्थान के आस-पास लगती थी।

   क्या जीवन भी ऐसा ही नहीं है? यदि हम अपने लक्ष्य सीमित या निचले स्तर के रखते हैं तो हम कुछ विशेष हासिल नहीं कर पाते। किसी अच्छे निर्धारित लक्ष्य पर पहुँचने के लिए हमें ऊँचा निशाना साधना पड़ता है। जीवन में हमारा लक्ष्य क्या है? हमें अपनी अभिलाषाएं कितनी ऊँची रखनी चाहिऐं?

   क्योंकि हम मसीही विश्वासियों का मार्गदर्शक परमेश्वर का वचन है इसलिए उस पवित्र शास्त्र के अनुसार आत्मिक प्रौढ़ता ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए। पौलुस प्रेरित ने कुरिन्थियों के विश्वासियों को लिखी अपनी दूसरी पत्री के अन्त में निर्देश देते समय लिखा "...सिद्ध बनते जाओ..." (२ कुरिन्थियों १३:११); अर्थात हमारे जीवनों के लिए यह एक अविरल प्रक्रिया होनी चाहिए। इसी सिद्धता के ऊँचे लक्ष्य के लिए प्रभु यीशु ने भी अपने चेलों से कहा था: "इसलिये चाहिये कि तुम सिद्ध बनो, जैसा तुम्हारा स्‍वर्गीय पिता सिद्ध है" (मत्ती ५:४८)।

   परमेश्वर पिता जैसी सिद्धता एक बहुत ऊँचा लक्ष्य है और मानव जीवन में ऐसी सिद्धता प्राप्त कर लेना संभव नहीं; किंतु यदि उस ऊँचे लक्ष्य पर निशाना नहीं साधेंगे तो आत्मिक सिद्धता में बढ़ने भी नहीं पाएंगे, जैसा पौलुस ने लिखा। जब हम इस सिद्धता में बढ़ने की प्रक्रिया में सक्रीय रहते हैं "...तो प्रभु के द्वारा जो आत्मा है, हम उसी तेजस्‍वी रूप में अंश अंश कर के बदलते जाते हैं" (२ कुरिन्थियों ३:१८)।

   यदि प्रभु यीशु की समानता में बदलते जाना है तो अपने लक्ष्य को ऊँचा ही रखें। - डेव ब्रैनन


प्रभु यीशु को स्वीकार करना क्षण भर का कार्य है, प्रभु यीशु में परिपक्व होना सारे जीवन की साधना है।

निदान, हे भाइयो, आनन्‍दित रहो; सिद्ध बनते जाओ; ढाढ़स रखो; एक ही मन रखो; मेल से रहो, और प्रेम और शान्‍ति का दाता परमेश्वर तुम्हारे साथ होगा। - २ कुरिन्थियों १३:११

बाइबल पाठ: इब्रानियों ५:१२-६:३
Heb 5:12  समय के विचार से तो तुम्हें गुरू हो जाना चाहिए था, तौभी क्‍या यह आवश्यक है, कि कोई तुम्हें परमेश्वर के वचनों की आदि शिक्षा फिर से सिखाए? और ऐसे हो गए हो, कि तुम्हें अन्न के बदले अब तक दूध ही चाहिए। 
Heb 5:13  क्‍योंकि दूध पीने वाले बच्‍चे को तो धर्म के वचन की पहिचान नहीं होती, क्‍योंकि वह बालक है। 
Heb 5:14  पर अन्न सयानों के लिये है, जिन के ज्ञानेन्‍द्रिय अभ्यास करते करते, भले बुरे में भेद करने के लिये पक्के हो गए हैं।
Heb 6:1  इसलिये आओ मसीह की शिक्षा की आरम्भ की बातों को छोड़ कर, हम सिद्धता की ओर बढ़ते जाएं, और मरे हुए कामों से मन फिराने, और परमेश्वर पर विश्वास करने। 
Heb 6:2 और बपतिस्मों और हाथ रखने, और मरे हुओं के जी उठने, और अन्‍तिम न्याय की शिक्षा रूपी नेव, फिर से न डालें। 
Heb 6:3  और यदि परमेश्वर चाहे, तो हम यहीं करेंगे। 

एक साल में बाइबल: 
  • यर्मियाह ४३-४५ 
  • इब्रानियों ५