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मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

प्राथमिकताएं

एक शिक्षक अपने शिष्यों को एक महत्वपूर्ण बात समझाना चाहता था। उसने एक चौड़े मुँह वाला मर्तबान लिया और उसे पत्थरों से भर दिया। फिर उसने कक्षा से पूछा, "क्या यह मर्तबान भर गया?" उत्तर मिला "हाँ।" उसने कहा "क्या सच में?" और फिर उस मर्तबान में पत्थरों के बीच की जगह में कंकर भर दिये, और फिर पूछा, "क्या अब यह भर गया?" फिर उत्तर मिला "हाँ।" उसने फिर कहा, "वाकई?" और फिर पत्थरों और कंकरों के बीच की जगह को रेत से भर दिया। उसने फिर पूछा, " क्या अब यह भर गया?" अब उत्तर मिला "शायद नहीं।" उसने एक बर्तन में पानी लेकर उस मर्तबान में डाल दिया, और पानी पत्थर, कंकर और रेत के बीच की जगहों में भर गया।

तब उसने कक्षा से पूछा, "इस से हम क्या सीखते हैं?" किसी ने कहा कि "मर्तबान जितना भी भरा क्यों न दिखे, उसमें और डालने के लिये जगह रहती है।" शिक्षक बोला "नहीं, यह नहीं। वास्तविक शिक्षा है कि मर्तबान में सब कुछ भरना है तो सबसे पहले सबसे बड़ी चीज़ डालो और फिर क्रमशः छोटी।"

अपने पहाड़ी उपदेश में भी यीशु ने कुछ ऐसा ही सिद्धांत दिया। वह जानता था कि हम अपना समय छोटी छोटी बातों की चिंता करके व्यर्थ कर देते हैं क्योंकि वे हमें महत्वपूर्ण लगती हैं, किंतु होती नहीं हैं; और उन के कारण हमारे अनन्तकाल के लिये महत्वपूर्ण बड़ी बातों की उपेक्षा हो जाती है। यीशु ने अपने सुनने वालों को याद दिलाया "तुम्हारा स्वर्गीय पिता जानता है कि तुम्हें यह सब वस्तुएं चाहियें। इसलिये पहले तुम उसके राज्य और धार्मिकता की खोज करो तो यह सब वस्तुएं भी तुम्हें मिल जाएंगी" (मत्ती ६:३३)।

आप अपने जीवन में किसे प्राथमिकता देते हैं? - डेनिस डी हॉन

व्यवाहारिक उपाय:
  • योजना से पहले प्रार्थना करो।
  • वस्तुओं से अधिक मनुष्यों से प्रेम करो।
  • हर कार्य परमेश्वर को प्रसन्न करने के लिये करो।

पृथ्वी पर सबसे धनी वे हैं जिन्होंने स्वर्ग में ख़ज़ाना जमा किया है।


बाइबल पाठ: मत्ती ६:२५-३४


पहले तुम उसके राज्य और धार्मिकता की खोज करो। - मत्ती ६:३३


ऎक साल में बाइबल:
  • १ राजा १, २
  • लूका १९:२८-४८

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