एलियाह के उत्तर ने वही बात उजागर करी जो परमेश्वर पहले से जानता था - उसकी घोर निराशा और भय। एलियाह के उत्तर का सार था (देखिये पद १४), "प्रभु, जब औरों ने तुझे छोड़ दिया तब भी मैं अकेला ही तेरे लिये बहुत उत्साहित रहकर तेरे लिये कार्य करता रहा। मुझे ऐसे तेरे लिये अकेले खड़े रहने से क्या मिला?"
क्या वास्तव में एलियाह अकेला ही परमेश्वर के लिये खड़ा रहने वाला था? नहीं; परमेश्वर ने ७००० इस्त्राएलियों को बचा रखा था जिन्होंने बल देवता के आगे घुटने नहीं टेके थे (पद १८)।
अपनी निराशाओं में घिरकर हम भी यह सोच सकते हैं कि केवल हम ही हैं जो परमेश्वर के लिये काम कर रहे हैं; या ऐसा किसी बड़ी उपलब्धी के तुरन्त बाद भी हो सकता है, जैसा एलियाह के लिये हुआ। भजन ४६:१० हमें स्मरण दिलाता है कि "शांत हो जाओ, और जान लो, कि मैं ही परमेश्वर हूं।" जितना जल्दी हम हम उस पर और उसकी सामर्थ पर केंद्र्ति होंगे, उतनी ही शीघ्र हम अपने भय और निराशाओं से मुक्ति पाएंगे।
दोनो ही बातें, हमारी विफलताओं के पीटे जाते कर्कश झांझ या हमारी उपलब्धियों की फुंकी जाती तुरहियां, हमारे जीवन में परमेश्वर के शांत और स्थिर स्वर को दबा सकती हैं। यह समय है कि हम अपने मनों को शांत कर, उसके वचन पर मनन करते हुए उसकी आवाज़ को सुने। - एल्बर्ट ली
अगर परमेश्वर की आवाज़ सुननी है तो हमें संसार की आवाज़ से कान मोड़ने होंगे।
बाइबल पाठ: १ राजा १९:११-१८शांत हो जाओ, और जान लो, कि मैं ही परमेश्वर हूं। मैं जातियों में महान् हूं, मैं पृथ्वी भर में महान् हूं! - भजन ४६:१०
एक साल में बाइबल:
- १ राजा १९, २०
- लूका २३:१-२५
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