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मंगलवार, 8 जून 2010

एक जीवन की यादें

"डैडी, मेरी मदद कीजिए" - ये वे आखिरी शब्द थे जो डायेन और गैरी क्रोनिन ने सांस लेने के लिये ज़ोर लगाती अपनी बेटी के मुंह से सुने। क्रिस्टिन, १४ वर्ष की आयु में अचानक ही चल बसी। केवल दो दिन पहले उसने कहा कि वह कुछ ठीक महसूस नहीं कर रही है; गुरुवार को उसके शरीर में संक्रमण हुआ और शनिवार को वह अपने पिता से मदद की गुहार करती हुई चल बसी।

क्रिस्टिन की मृत्यु होने से पहले ही मेरा उसके पारिवारिक चर्च में बोलना निर्धारित हो चुका था। परमेश्वर के समय निर्धारण में, उसकी मृत्यु और अन्तिम संस्कार के एक दिन बाद मुझे उस मण्डली के सामने खड़े होकर सन्देश देना पड़ा।

क्रिस्टिन एक सजीव और सदा प्रफुल्लित रहने वाली किशोर थी, वह यीशु से प्रेम रखती थी और उसी के लिये जीती थी इसलिये उसकी अचानक मृत्यु हमारे सामने अनगिनित प्रश्न उठाती है। क्योंकि मैं भी कुछ वर्ष पहले अपनी किशोर बेटी की अचानक म्रुत्यु की ऐसी ही दुखःदायी परिस्थिति से निकला था, मैं उस स्तब्ध और दुखी मण्डली को संबोधित कर सका और उन्हें समझा सका। मैंने उन से कहा, सबसे पहले हमें परमेश्वर के सर्वाधिकारी होने को नहीं भूलना है; भजन १३९:१६ हमें स्मरण दिलाता है कि क्रिस्टिन का जीवन काल परमेश्वर द्वारा निर्धारित था। दूसरी बात जिसे सदा याद रखना है वह है उसका परिवार। चाहे २ महीने बीतें या ५ साल, वह परिवार उसकी मृत्यु को कभी भुला नहीं पाएगा। उन्हें सदा ऐसे मसीहीयों की आवश्यक्ता रहेगी जो उनकी सुधी रखें और उन्हें सांत्वना दें।

ऐसे कठिन समयों में हम कभी यह न भूलें कि परमेश्वर हर परिस्थिति पर अधिकार रखता है और उसकी इच्छा हमें अपने शान्तिवाहक बनाकर दूसरों तक शान्ति पहुंचाना है। - डेव ब्रैनन


निराशा की हर मरुभूमि में परमेश्वर ने सांत्वना की हरियाली प्रदान की है।


बाइबल पाठ: भजन १३९:१-१६


वह हमारे सब क्‍लेशों में शान्‍ति देता है, ताकि हम उस शान्‍ति के कारण जो परमेश्वर हमें देता है, उन्‍हें भी शान्‍ति दे सकें, जो किसी प्रकार के क्‍लेश में हों। - २ कुरिन्थियों १:४


एक साल में बाइबल: २ इतिहास ३०, ३१ यूहन्ना १८:१-१८

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