स्वर्ग के सबसे बड़े आनन्दों में से एक क्या होगा?
जोनी एरिकस्न किशोर अवस्था में तैराकी के लिये गोता लगाते समय गर्दन पर घायल हो गई और ४० वर्षों से भी अधिक समय पहले उसके चारों हाथ-पैर पक्षाघात से शिथिल हो गए। हमारी सोच से सम्भवतः जोनी की सबसे बड़ी इच्छा होगी कि स्वर्ग वह स्वतंत्र चल सके, दौड़ सके और अपनी पहिये वाली कुर्सी के बन्धन से स्वतंत्र हो सके।
किंतु जोनी बताती है कि उसकी सबसे बड़ी इच्छा है कि स्वर्ग में वह "परमेश्वर को पवित्र आराधना अर्पित कर सके।" वह इसे समझाती है: "वहाँ मैं अपना ध्यान बंटने के कारण पंगु नहीं होऊँगी, छल-कपट द्वारा बाधित नहीं होऊँगी, अनमनेपन या उत्साहहीनता से रुकुंगी नहीं। मेरा मन आपके मन के साथ मिलके परमेश्वर को उमड़ती हुई आराधना अर्पित करेगा। आखिरकर हम परमेश्वर पिता और पुत्र के साथ सहभागिता कर सकेंगे। मेरे लिये यही स्वर्ग का सबसे बड़ा आनन्द होगा।"
जोनी की यह बात मेरे विभाजित मन और अकेंद्रित आत्मा के लिये गम्भीर शिक्षा है। परमेश्वर को "पवित्र आराधना" अरपित करना कैसी आशीश की बात है - ऐसी आराधना जिसमें मन इधर-उधर नहीं भटकता, कोई स्वार्थी इच्छा की माँग सम्मिलित नहीं होती और जो पृथ्वी की भाषाओं की सीमाओं से बहुत उपर उठती है।
स्वर्ग में "फिर स्राप न होगा और परमेश्वर और मेम्ने का सिंहासन उस नगर में होगा, और उसके दास उस की सेवा करेंगे" (प्रकाशितवाक्य २२:३)। स्वर्ग की अभिलाशा रखते हुए, काश हम अभी इस पृथ्वी पर ही परमेश्वर को महिमा देने वाली आराधना के चढ़ाने वाले बन सकें। - वेर्नन ग्राउंड्स
परन्तु जैसा लिखा है, कि जो आंख ने नहीं देखी, और कान ने नहीं सुना, और जो बातें मनुष्य के चित्त में नहीं चढ़ी वे ही हैं, जो परमेश्वर ने अपने प्रेम रखनेवालों के लिये तैयार की हैं। - १ कुरिन्थियों २:९
एक साल में बाइबल:
जोनी एरिकस्न किशोर अवस्था में तैराकी के लिये गोता लगाते समय गर्दन पर घायल हो गई और ४० वर्षों से भी अधिक समय पहले उसके चारों हाथ-पैर पक्षाघात से शिथिल हो गए। हमारी सोच से सम्भवतः जोनी की सबसे बड़ी इच्छा होगी कि स्वर्ग वह स्वतंत्र चल सके, दौड़ सके और अपनी पहिये वाली कुर्सी के बन्धन से स्वतंत्र हो सके।
किंतु जोनी बताती है कि उसकी सबसे बड़ी इच्छा है कि स्वर्ग में वह "परमेश्वर को पवित्र आराधना अर्पित कर सके।" वह इसे समझाती है: "वहाँ मैं अपना ध्यान बंटने के कारण पंगु नहीं होऊँगी, छल-कपट द्वारा बाधित नहीं होऊँगी, अनमनेपन या उत्साहहीनता से रुकुंगी नहीं। मेरा मन आपके मन के साथ मिलके परमेश्वर को उमड़ती हुई आराधना अर्पित करेगा। आखिरकर हम परमेश्वर पिता और पुत्र के साथ सहभागिता कर सकेंगे। मेरे लिये यही स्वर्ग का सबसे बड़ा आनन्द होगा।"
जोनी की यह बात मेरे विभाजित मन और अकेंद्रित आत्मा के लिये गम्भीर शिक्षा है। परमेश्वर को "पवित्र आराधना" अरपित करना कैसी आशीश की बात है - ऐसी आराधना जिसमें मन इधर-उधर नहीं भटकता, कोई स्वार्थी इच्छा की माँग सम्मिलित नहीं होती और जो पृथ्वी की भाषाओं की सीमाओं से बहुत उपर उठती है।
स्वर्ग में "फिर स्राप न होगा और परमेश्वर और मेम्ने का सिंहासन उस नगर में होगा, और उसके दास उस की सेवा करेंगे" (प्रकाशितवाक्य २२:३)। स्वर्ग की अभिलाशा रखते हुए, काश हम अभी इस पृथ्वी पर ही परमेश्वर को महिमा देने वाली आराधना के चढ़ाने वाले बन सकें। - वेर्नन ग्राउंड्स
यीशु के साथ होना स्वर्ग का सबसे महान आनन्द होगा।
बाइबल पाठ: प्रकाशितवाक्य २२:१-५परन्तु जैसा लिखा है, कि जो आंख ने नहीं देखी, और कान ने नहीं सुना, और जो बातें मनुष्य के चित्त में नहीं चढ़ी वे ही हैं, जो परमेश्वर ने अपने प्रेम रखनेवालों के लिये तैयार की हैं। - १ कुरिन्थियों २:९
एक साल में बाइबल:
- अय्युब ३६, ३७
- प्रेरितों के काम १५:२२-४१
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