प्रार्थना का उत्तर न मिलने का एक कारण जो अकसर दिया जाता है वह है प्रार्थना मांगने वाले के विश्वास की घटी। परन्तु यीशु ने लूका १७:६ में चेलों से कहा "कि यदि तुम को राई के दाने के बराबर भी विश्वास होता, तो तुम इस तूत के पेड़ से कहते कि जड़ से उखड़कर समुद्र में लग जा, तो वह तुम्हारी मान लेता।" कहने का तातपर्य था कि प्रार्थना का प्रभावी होना विश्वास की मात्रा पर नहीं वरन विश्वास की मौजूदगी पर निर्भर है।
लूका एक रोमी सूबेदार के बारे में बताता है कि जो "बड़ा विश्वासी" था (लूका ७:९)। उसके विश्वास के बड़े होने का प्रगटीकरण सबसे पहले प्रभु यीशु से उसके बीमार दास को चंगा करने की विनती से हुआ, फिर इस बात से कि उसने माना कि यीशु कहीं से भी और कभी भी उसके सेवक को चंगा कर सकता है। उस सूबेदार ने अपनी इच्छा के अनुसार करने के लिये यीशु को मजबूर नहीं किया।
विश्वास की एक परिभाषा है "परमेश्वर की सामर्थ और उसके मन पर भरोसा रखना।" कुछ प्रार्थनाओं के निरुत्तर रहने का कारण हो सकता है कि परमेश्वर ने अपने प्रेम में हमारी इच्छाओं को खारिज कर दिया, क्योंकि वह जानता है कि जो हमने मांगा उसमें हमारी भलाई नहीं है; अथवा हो सकता है कि प्रार्थना में मांगी गई बात के लिये हमारे और परमेश्वर के समय में अन्तर हो; या यह भी हो सकता है कि परमेश्वर हमारे लिये उससे भी कुछ अधिक और अच्छा चाहता है, इसलिये जो हमने मांगा वह न देकर अपने समय में मांगे हुए से भी उत्तम देगा। हमें नहीं भूलना चाहिये कि प्रभु यीशु ने भी प्रार्थना करी कि "...मेरी नहीं परन्तु तेरी ही इच्छा पूरी हो।" (लूका २२:४२)
क्या हमारा विश्वास उस सूबेदार के समान बड़ा है - ऐसा विश्वास जो परमेश्वर को उसका काम उस ही के तरीके से करने देता है? - सी. पी. हिया
यह सुनकर यीशु ने अचम्भा किया, और उस ने मुंह फेरकर उस भीड़ से जो उसके पीछे आ रही यी कहा, मैं तुम से कहता हूं, कि मैं ने इस्राएल में भी ऐसा विश्वास नहीं पाया। - लूका ७:९
बाइबल पाठ: लूका ७:१-१०
जब वह लोगों को अपनी सारी बातें सुना चुका, तो कफरनहूम में आया।
और किसी सूबेदार का एक दास जो उसका प्रिय था, बीमारी से मरने पर था।
उस ने यीशु की चर्चा सुनकर यहूदियों के कई पुरिनयों को उस से यह बिनती करने को उसके पास भेजा, कि आकर मेरे दास को चंगा कर।
वे यीशु के पास आकर उस से बड़ी बिनती करके कहने लगे, कि वह इस योग्य है, कि तू उसके लिये यह करे।
क्योंकि वह हमारी जाति से प्रेम रखता है, और उसी ने हमारे आराधनालय को बनाया है।
यीशु उन के साथ साथ चला, पर जब वह घर से दूर न था, तो सूबेदार ने उसके पास कई मित्रों के द्वारा कहला भेजा, कि हे प्रभु दुख न उठा, क्योंकि मैं इस योग्य नहीं, कि तू मेरी छत के तले आए।
इसी कारण मैं ने अपने आप को इस योग्य भी न समझा, कि तेरे पास आऊं, पर वचन ही कह दे तो मेरा सेवक चंगा हो जाएगा।
मैं भी पराधीन मनुष्य हूं, और सिपाही मेरे हाथ में हैं, और जब एक को कहता हूं, जा, तो वह जाता है, और दूसरे से कहता हूं कि आ, तो आता है; और अपने किसी दास को कि यह कर, तो वह उसे करता है।
यह सुन कर यीशु ने अचम्भा किया, और उस ने मुंह फेर कर उस भीड़ से जो उसके पीछे आ रही थी कहा, मैं तुम से कहता हूं, कि मैं ने इस्राएल में भी ऐसा विश्वास नहीं पाया।
और भेजे हुए लोगों ने घर लौट कर, उस दास को चंगा पाया।
एक साल में बाइबल:
लूका एक रोमी सूबेदार के बारे में बताता है कि जो "बड़ा विश्वासी" था (लूका ७:९)। उसके विश्वास के बड़े होने का प्रगटीकरण सबसे पहले प्रभु यीशु से उसके बीमार दास को चंगा करने की विनती से हुआ, फिर इस बात से कि उसने माना कि यीशु कहीं से भी और कभी भी उसके सेवक को चंगा कर सकता है। उस सूबेदार ने अपनी इच्छा के अनुसार करने के लिये यीशु को मजबूर नहीं किया।
विश्वास की एक परिभाषा है "परमेश्वर की सामर्थ और उसके मन पर भरोसा रखना।" कुछ प्रार्थनाओं के निरुत्तर रहने का कारण हो सकता है कि परमेश्वर ने अपने प्रेम में हमारी इच्छाओं को खारिज कर दिया, क्योंकि वह जानता है कि जो हमने मांगा उसमें हमारी भलाई नहीं है; अथवा हो सकता है कि प्रार्थना में मांगी गई बात के लिये हमारे और परमेश्वर के समय में अन्तर हो; या यह भी हो सकता है कि परमेश्वर हमारे लिये उससे भी कुछ अधिक और अच्छा चाहता है, इसलिये जो हमने मांगा वह न देकर अपने समय में मांगे हुए से भी उत्तम देगा। हमें नहीं भूलना चाहिये कि प्रभु यीशु ने भी प्रार्थना करी कि "...मेरी नहीं परन्तु तेरी ही इच्छा पूरी हो।" (लूका २२:४२)
क्या हमारा विश्वास उस सूबेदार के समान बड़ा है - ऐसा विश्वास जो परमेश्वर को उसका काम उस ही के तरीके से करने देता है? - सी. पी. हिया
परमेश्वर के उत्तर हमारी प्रार्थनाओं से अधिक समझदार हैं।
यह सुनकर यीशु ने अचम्भा किया, और उस ने मुंह फेरकर उस भीड़ से जो उसके पीछे आ रही यी कहा, मैं तुम से कहता हूं, कि मैं ने इस्राएल में भी ऐसा विश्वास नहीं पाया। - लूका ७:९
बाइबल पाठ: लूका ७:१-१०
जब वह लोगों को अपनी सारी बातें सुना चुका, तो कफरनहूम में आया।
और किसी सूबेदार का एक दास जो उसका प्रिय था, बीमारी से मरने पर था।
उस ने यीशु की चर्चा सुनकर यहूदियों के कई पुरिनयों को उस से यह बिनती करने को उसके पास भेजा, कि आकर मेरे दास को चंगा कर।
वे यीशु के पास आकर उस से बड़ी बिनती करके कहने लगे, कि वह इस योग्य है, कि तू उसके लिये यह करे।
क्योंकि वह हमारी जाति से प्रेम रखता है, और उसी ने हमारे आराधनालय को बनाया है।
यीशु उन के साथ साथ चला, पर जब वह घर से दूर न था, तो सूबेदार ने उसके पास कई मित्रों के द्वारा कहला भेजा, कि हे प्रभु दुख न उठा, क्योंकि मैं इस योग्य नहीं, कि तू मेरी छत के तले आए।
इसी कारण मैं ने अपने आप को इस योग्य भी न समझा, कि तेरे पास आऊं, पर वचन ही कह दे तो मेरा सेवक चंगा हो जाएगा।
मैं भी पराधीन मनुष्य हूं, और सिपाही मेरे हाथ में हैं, और जब एक को कहता हूं, जा, तो वह जाता है, और दूसरे से कहता हूं कि आ, तो आता है; और अपने किसी दास को कि यह कर, तो वह उसे करता है।
यह सुन कर यीशु ने अचम्भा किया, और उस ने मुंह फेर कर उस भीड़ से जो उसके पीछे आ रही थी कहा, मैं तुम से कहता हूं, कि मैं ने इस्राएल में भी ऐसा विश्वास नहीं पाया।
और भेजे हुए लोगों ने घर लौट कर, उस दास को चंगा पाया।
एक साल में बाइबल:
- नीतिवचन १, २
- १ कुरिन्थियों १६
अच्छा लेख है .....
जवाब देंहटाएंयहाँ भी आइये ........
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_06.html
परमेश्वर के उत्तर हमारी प्रार्थनाओं से अधिक समझदार हैं।
जवाब देंहटाएंसहमत !!