एक जवान ने अपने पिता से कहा, "पिताजी, मैं शादी करने जा रहा हूँ।" पिता ने पूछा, "रॉन, तुम कैसे जानने पाए कि तुम शादी के लिए तैयार हो? क्या तुम्हें किसी से प्रेम हुआ है?" रॉन ने उत्तर दिया, "जी हाँ, निःसन्देह ही, मुझे प्रेम हुआ है।" पिता ने फिर पूछा, "रॉन, तुमने यह कैसे जाना कि तुम्हें वास्तव में प्रेम हुआ है?" रॉन का उत्तर था, "पिताजी कल रात जब मैं अपनी प्रेमिका को चूमकर उससे विदा ले रहा था, तो उसके कुत्ते ने मुझे टांग पर काट लिया, किंतु उस काटे का दर्द मुझे वापस घर पहुँचने के बाद ही अनुभव हुआ!"
रॉन के अन्दर वह प्रेम जैसी भावना तो है, किंतु परिपक्वता नहीं। अभी रॉन को परिपक्व होने और प्रेम की वास्तविकता और गहराई को ठीक से समझने की बहुत आवश्यक्ता है। वर्नन ग्राउंड्स ने, जो Our Daily Bread के लिए लेखक रहे हैं और जिनका ७० वर्ष से भी अधिक का वैवाहिक जीवन का अनुभव है, प्रेम के परिपक्व होने के लिए कुछ बातों पर ध्यान रखने और करने के बारे में बताया:
- मसीह यीशु में होकर मिलने वाले परमेश्वर के प्रेम के बारे में मनन करो: इस बात पर ध्यान करो कि कैसे उसने आपके लिए अपने जीवन को बलिदान किया। उसकी जीवनी को परमेश्वर के वचन बाइबल में लिखे सुसमाचारों में पढ़ो और उसका धन्यवाद करो।
- परमेश्वर के प्रेम के लिए प्रार्थना करो: परमेश्वर से प्रार्थना करो कि वह अपने प्रेम की समझ आपको दे, और आपको सिखाए कि उस प्रेम को अपने जीवन में, अपनी रिश्तेदारियों में और अपने जीवन साथी के साथ कैसे प्रगट किया जाना चाहिए (१ कुरिन्थियों १३)।
- परमेश्वर के प्रेम का अभ्यास करो: जैसे परमेश्वर ने अपने आप को आप के लिए दे दिया, आप भी अपने आप को दुसरों के लिए समर्पित कर दें। एक नवविवाहित पति ने मुझ से कहा, "मेरी ज़िम्मेदारी यह है कि मैं अपनी पत्नी के लिए जीवन सुगम बना सकूँ।" प्रेम के अभ्यास का एक और भी पहलू है, जो आसान नहीं है; वह है एक दुसरे को परमेश्वर की इच्छानुसार जीवन व्यतीत करने के लिए उभारते रहना, चुनौती देते रहना।
जब हम सच्चे प्रेम पर मनन करेंगे, उसके लिए प्रार्थना करेंगे, उसका अभ्यास अपने जीवनों में करेंगे, तो वह प्रेम हमारे जीवनों में परिपक्व होगा, कार्यकारी होगा, और हमारे कुछ कहे बिना ही हमारे जीवन से प्रगट होगा। - ऐनी सेटास
जैसे जैसे मसीह का प्रेम हम में बढता जाता है, वह हमारे जीवनों से वह प्रेम प्रवाहित भी होता जाता है।
वह [प्रेम] अनरीति नहीं चलता, वह अपनी भलाई नहीं चाहता, झुंझलाता नहीं, बुरा नहीं मानता। - १ कुरिन्थियों १३:५
बाइबल पाठ: १ कुरिन्थियों १३
1Co 13:1 यदि मैं मनुष्यों, और सवर्गदूतों की बोलियां बोलूं, और प्रेम न रखूं, तो मैं ठनठनाता हुआ पीतल, और झंझनाती हुई झांझ हूं।
1Co 13:2 और यदि मैं भविष्यद्वाणी कर सकूं, और सब भेदों और सब प्रकार के ज्ञान को समझूं, और मुझे यहां तक पूरा विश्वास हो, कि मैं पहाड़ों को हटा दूं, परन्तु प्रेम न रखूं, तो मैं कुछ भी नहीं।
1Co 13:3 और यदि मैं अपनी सम्पूर्ण संपत्ति कंगालों को खिला दूं, या अपनी देह जलाने के लिये दे दूं, और प्रेम न रखूं, तो मुझे कुछ भी लाभ नहीं।
1Co 13:4 प्रेम धीरजवन्त है, और कृपाल है; प्रेम डाह नहीं करता, प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं।
1Co 13:5 वह अनरीति नहीं चलता, वह अपनी भलाई नहीं चाहता, झुंझलाता नहीं, बुरा नहीं मानता।
1Co 13:6 कुकर्म से आनन्दित नहीं होता, परन्तु सत्य से आनन्दित होता है।
1Co 13:7 वह सब बातें सह लेता है, सब बातों की प्रतीति करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है।
1Co 13:8 प्रेम कभी टलता नहीं; भविष्यद्वाणियां हों, तो समाप्त हो जाएंगी, भाषाएं हो तो जाती रहेंगी, ज्ञान हो, तो मिट जाएगा।
1Co 13:9 क्योंकि हमारा ज्ञान अधूरा है, और हमारी भविष्यद्वाणी अधूरी।
1Co 13:10 परन्तु जब सवर्सिद्ध आएगा, तो अधूरा मिट जाएगा।
1Co 13:11 जब मैं बालक था, तो मैं बालकों की नाईं बोलता था, बालकों का सा मन था बालकों की सी समझ थी; परन्तु सियाना हो गया, तो बालकों की बातें छोड़ दीं।
1Co 13:12 अब हमें दर्पण में धुंधला सा दिखाई देता है; परन्तु उस समय आमने साम्हने देखेंगे, इस समय मेरा ज्ञान अधूरा है, परन्तु उस समय ऐसी पूरी रीति से पहिचानूंगा, जैसा मैं पहिचाना गया हूं।
1Co 13:13 पर अब विश्वास, आशा, प्रेम ये तीनों स्थाई हैं, पर इन में सब से बड़ा प्रेम है।
1Co 13:1 यदि मैं मनुष्यों, और सवर्गदूतों की बोलियां बोलूं, और प्रेम न रखूं, तो मैं ठनठनाता हुआ पीतल, और झंझनाती हुई झांझ हूं।
1Co 13:2 और यदि मैं भविष्यद्वाणी कर सकूं, और सब भेदों और सब प्रकार के ज्ञान को समझूं, और मुझे यहां तक पूरा विश्वास हो, कि मैं पहाड़ों को हटा दूं, परन्तु प्रेम न रखूं, तो मैं कुछ भी नहीं।
1Co 13:3 और यदि मैं अपनी सम्पूर्ण संपत्ति कंगालों को खिला दूं, या अपनी देह जलाने के लिये दे दूं, और प्रेम न रखूं, तो मुझे कुछ भी लाभ नहीं।
1Co 13:4 प्रेम धीरजवन्त है, और कृपाल है; प्रेम डाह नहीं करता, प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं।
1Co 13:5 वह अनरीति नहीं चलता, वह अपनी भलाई नहीं चाहता, झुंझलाता नहीं, बुरा नहीं मानता।
1Co 13:6 कुकर्म से आनन्दित नहीं होता, परन्तु सत्य से आनन्दित होता है।
1Co 13:7 वह सब बातें सह लेता है, सब बातों की प्रतीति करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है।
1Co 13:8 प्रेम कभी टलता नहीं; भविष्यद्वाणियां हों, तो समाप्त हो जाएंगी, भाषाएं हो तो जाती रहेंगी, ज्ञान हो, तो मिट जाएगा।
1Co 13:9 क्योंकि हमारा ज्ञान अधूरा है, और हमारी भविष्यद्वाणी अधूरी।
1Co 13:10 परन्तु जब सवर्सिद्ध आएगा, तो अधूरा मिट जाएगा।
1Co 13:11 जब मैं बालक था, तो मैं बालकों की नाईं बोलता था, बालकों का सा मन था बालकों की सी समझ थी; परन्तु सियाना हो गया, तो बालकों की बातें छोड़ दीं।
1Co 13:12 अब हमें दर्पण में धुंधला सा दिखाई देता है; परन्तु उस समय आमने साम्हने देखेंगे, इस समय मेरा ज्ञान अधूरा है, परन्तु उस समय ऐसी पूरी रीति से पहिचानूंगा, जैसा मैं पहिचाना गया हूं।
1Co 13:13 पर अब विश्वास, आशा, प्रेम ये तीनों स्थाई हैं, पर इन में सब से बड़ा प्रेम है।
एक साल में बाइबल:
- न्यायियों ४-६
- लूका ४:३१-४४
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