हाल के एक रेडियो प्रोग्राम में प्रस्तुतकर्ता एक विशेषज्ञ से किसी विषम परिस्थिति को संभालने के बारे में चर्चा कर रहा था। उस विशेषज्ञ की सलाह थी कि ऐसी परिस्थितियों का सामना करने के लिए आवश्यक्ता होती है कि अच्छे मित्रों को बना कर रखें जो संकट में साथ खड़े हों, सहायता करें और बात को संभालने तथा परिस्थिति से उभारने में सक्षम हों।
यह एक बुद्धिमानी की सलाह है, क्योंकि हर प्रकार के संकट और परिस्थितियों का सामना करने के लिए यह बोध होना अनिवार्य है कि हम अपनी क्षमता से सब कुछ नहीं कर सकते, हमें सहायक की आवश्यक्ता होती ही है। कुछ चुनौतियां बहुत बड़ी होती हैं; कुछ पहाड़ बहुत ऊँचे होते हैं; कई बार हमारी अपनी सामर्थ और योग्यता कम पड़ जाती है; और तब हमें कोई ऐसा सहायक चाहिए होता है जो हमारे साथ मिलकर परिस्थिति से जूझ सके और पार लगवा सके। इसीलिए हम मसीही विश्वासियों के लिए यह बहुत तसल्ली की बात है कि हमारे साथ एक ऐसा ही सहायक सदा बना रहता है।
राजा दाऊद ने इस साहायक को जाना तथा अनुभव किया था; इसीलिए वह भजन १८:६ में लिखता है: "अपने संकट में मैं ने यहोवा परमेश्वर को पुकारा; मैं ने अपने परमेश्वर को दोहाई दी। और उस ने अपने मन्दिर में से मेरी बातें सुनी। और मेरी दोहाई उसके पास पहुंचकर उसके कानों में पड़ी।" हमारे संकट में परमेश्वर से बढ़कर भला और सामर्थी सहायक और कोई हो नहीं सकता। वह ही है जो हमें जीवन के संकटों और परिस्थितियों में से सुरक्षित निकाल कर ले जा सकता है। उसने हमें अपने अटल वायदे से आश्वासन दिया है: "...उस ने आप ही कहा है, कि मैं तुझे कभी न छोडूंगा, और न कभी तुझे त्यागूंगा" (इब्रानियों १३:५)।
जब संकट और विषम परिस्थितियां आएं तो हमें अपने आप को अकेला और असहाय समझने की आवश्यक्ता नहीं है; हमारे पास हर बात और परिस्थिति के लिए बिलकुल उपयुक्त सहायता सदैव विद्यमान है। हम अपने प्रभु परमेशवर पर निर्भर रह सकते हैं क्योंकि वह ही हमारा सबसे बड़ा, सबसे विश्वासयोग्य, सदैव उपलब्ध और सबसे सामर्थी सहायक है।
क्या आपने प्रभु यीशु को अपने जीवन का सहायक बना लिया है? - बिल क्राउडर
यहां नीचे हमारी सबसे उत्तम आशा है वहां ऊपर से मिलने वाली सहायता।
अपने संकट में मैं ने यहोवा परमेश्वर को पुकारा; मैं ने अपने परमेश्वर को दोहाई दी। और उस ने अपने मन्दिर में से मेरी बातें सुनी। और मेरी दोहाई उसके पास पहुंचकर उसके कानों में पड़ी। - भजन १८:६
भजन १८:१-६; १६-२४
Psa 18:1 हे परमेश्वर, हे मेरे बल, मैं तुझ से प्रेम करता हूं।
Psa 18:2 यहोवा मेरी चट्टान, और मेरा गढ़ और मेरा छुड़ाने वाला है; मेरा ईश्वर, मेरी चट्टान है, जिसका मैं शरणागत हूं, वह मेरी ढ़ाल और मेरी मुक्ति का गढ़ है।
Psa 18:3 मैं यहोवा को जो स्तुति के योग्य है पुकारूंगा; इस प्रकार मैं अपने शत्रुओं से बचाया जाऊंगा।
Psa 18:4 मृत्यु की रस्सियों से मैं चारो ओर से घिर गया हूं, और अधर्म की बाढ़ ने मुझ को भयभीत कर दिया;
Psa 18:5 पाताल की रस्सियां मेरे चारो ओर थीं, और मृत्यु के फन्दे मुझ पर आए थे।
Psa 18:6 अपने संकट में मैं ने यहोवा परमेश्वर को पुकारा; मैं ने अपने परमेश्वर को दोहाई दी। और उस ने अपने मन्दिर में से मेरी बातें सुनी। और मेरी दोहाई उसके पास पहुंचकर उसके कानों में पड़ी।
Psa 18:16 उस ने ऊपर से हाथ बढ़ाकर मुझे थाम लिया, और गहिरे जल में से खींच लिया।
Psa 18:17 उस ने मेरे बलवन्त शत्रु से, और उन से जो मुझ से घृणा करते थे मुझे छुड़ाया; क्योंकि वे अधिक सामर्थी थे।
Psa 18:18 मेरी विपत्ति के दिन वे मुझ पर आ पड़े। परन्तु यहोवा मेरा आश्रय था।
Psa 18:19 और उस ने मुझे निकाल कर चौड़े स्थान में पहुंचाया, उस ने मुझ को छुड़ाया, क्योंकि वह मुझ से प्रसन्न था।
Psa 18:20 यहोवा ने मुझ से मेरे धर्म के अनुसार व्यवहार किया; और मेरे हाथों की शुद्धता के अनुसार उस ने मुझे बदला दिया।
Psa 18:21 क्योंकि मैं यहोवा के मार्गों पर चलता रहा, और दुष्टता के कारण अपने परमेश्वर से दूर न हुआ।
Psa 18:22 क्योंकि उसके सारे निर्णय मेरे सम्मुख बने रहे और मैं ने उसकी विधियों को न त्यागा।
Psa 18:23 और मैं उसके सम्मुख सिद्ध बना रहा, और अधर्म से अपने को बचाए रहा।
Psa 18:24 यहोवा ने मुझे मेरे धर्म के अनुसार बदला दिया, और मेरे हाथों की उस शुद्धता के अनुसार जिसे वह देखता था।
एक साल में बाइबल:
- यशायाह २३-२५
- फिलिप्पियों १
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