प्रभु यीशु के क्रूस पर चढ़ाए जाने से कुछ पहले, मरियम नाम की एक स्त्री ने प्रभु के पैरों पर बहुत बहुमूल्य इत्र उँडेला, और फिर, एक और भी अनेपक्षित कार्य कर डाला, अपने बाल खोल कर वो प्रभु के पाँव पोंछने लगी (यूहन्ना 12:3)। ना केवल मरियम ने संभवतः अपनी जीवन भर की कमाई प्रभु के पाँव पर उँडेल दी, वरन उसने अपना सम्मान भी दाँव पर लगा दिया। जहाँ यह घटना घटी, अर्थात संसार के मध्य-पूर्व इलाके में, वहाँ उन दिनों की संसकृति और व्यवहार के अनुसार संभ्रांत महिलाएं सार्वजनिक स्थानों में अपने बाल कभी खुले नहीं रखती थीं। लेकिन सच्ची आराधना कभी इस बात से सीमित नहीं होती कि लोग हमारे बारे में क्या राय रखते हैं। प्रभु यीशु की आराधना के लिए मरियम को उसके प्रति बनने वाली लोगों की राय की कोई चिंता नहीं थी; प्रभु के लिए वो निर्लज्ज या दुराचारी तक समझी जानें के लिए तैयार थी।
अनेक बार हम अपने आप को सिद्ध और दोषरहित दिखाने के दबाव में रहते हैं, विशेषकर जब हम चर्च जाते हैं। हम चाहते हैं और प्रयास करते हैं कि लोग हमारे बारे में भले विचार रखें, हम किसी रीति से अनैतिक नज़र ना आएं। लेकिन एक अच्छा और सही चर्च, अर्थात प्रभु यीशु मसीह के विश्वासियों की मण्डली, वही है जहाँ हम अपने स्वाभाविक रूप में आ सकते हैं, जहाँ हमें सिद्धता के मुखौटे की पीछे अपनी कमियाँ और दोष छुपाने की आवश्यकता नहीं है। मसीही मण्डली ऐसा स्थान होना चाहिए जहाँ हम अपनी कमज़ोरियों को प्रकट कर के सामर्थ पा सकें ना कि ऐसा स्थान जहाँ हमें अपनी दुर्बलताओं को छिपाने और बलवन्त होने का नाटक करना पड़े।
परमेश्वर तो हमें अन्दर-बाहर हर रीति से भली भांति जानता है, हम उससे कुछ छिपा नहीं सकते, मुखौटे लगा कर उसे बहका नहीं सकते। इसलिए आराधना का यह उद्देश्य नहीं है कि हम अपने आप को ऐसा दिखाएं कि कहीं कुछ गड़बड़ नहीं है, सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है। वरन आराधना का उद्देश्य है अपने आप को ठीक-ठाक कर लेना - परमेश्वर के साथ भी और एक दूसरे के साथ भी। यदि प्रभु यीशु की मण्डली में हमारा सबसे बड़ा भय हमारी सही दशा के प्रकट हो जाने का है, जिसके लिए हमें फिर मुखौटे लगाने पड़ें, तो हमारा सबसे बड़ा पाप अपनी दशा को छुपा कर उस मुखौटे को लगाना ही है, क्योंकि यह परमेश्वर और मनुष्यों, दोनो को ही धोखा देने का प्रयास है।
मनुष्यों की राय से नहीं डरें वरन इस बात का ध्यान करें कि परमेश्वर कि राय आपके बारे में क्या है। मनुष्यों की राय तो परिस्थितियों और आवश्यकता के अनुसार बदलती रहती है, परन्तु परमेश्वर की राय उसके स्थिर मापदण्डों के अनुसार होती है। परमेश्वर के समक्ष अपने आप को खोल दें, अपनी भावनाओं को प्रकट होने दें और अपने किसी भी अनुचित आचरण के लिए निसंकोच पश्चातापी होकर उससे क्षमा माँग लें, और आप पाएंगे कि परमेश्वर आप के बारे में लोगों की राय भली बना देगा। - जूली ऐकैरमैन लिंक
हमारी आराधना तब ही ग्रहण योग्य होगी जब हम परमेश्वर और मनुष्यों दोनो ही के साथ सही दशा में होंगे।
तब मरियम ने जटामासी का आध सेर बहुमूल्य इत्र ले कर यीशु के पावों पर डाला, और अपने बालों से उसके पांव पोंछे, और इत्र की सुगंध से घर सुगन्धित हो गया। - यूहन्ना 12:3
बाइबल पाठ: यूहन्ना 12:1-8
John 12:1 फिर यीशु फसह से छ: दिन पहिले बैतनिय्याह में आया, जहां लाजर था: जिसे यीशु ने मरे हुओं में से जिलाया था।
John 12:2 वहां उन्होंने उसके लिये भोजन तैयार किया, और मारथा सेवा कर रही थी, और लाजर उन में से एक था, जो उसके साथ भोजन करने के लिये बैठे थे।
John 12:3 तब मरियम ने जटामासी का आध सेर बहुमूल्य इत्र ले कर यीशु के पावों पर डाला, और अपने बालों से उसके पांव पोंछे, और इत्र की सुगंध से घर सुगन्धित हो गया।
John 12:4 परन्तु उसके चेलों में से यहूदा इस्करियोती नाम एक चेला जो उसे पकड़वाने पर था, कहने लगा।
John 12:5 यह इत्र तीन सौ दीनार में बेचकर कंगालों को क्यों न दिया गया?
John 12:6 उसने यह बात इसलिये न कही, कि उसे कंगालों की चिन्ता थी, परन्तु इसलिये कि वह चोर था और उसके पास उन की थैली रहती थी, और उस में जो कुछ डाला जाता था, वह निकाल लेता था।
John 12:7 यीशु ने कहा, उसे मेरे गाड़े जाने के दिन के लिये रहने दे।
John 12:8 क्योंकि कंगाल तो तुम्हारे साथ सदा रहते हैं, परन्तु मैं तुम्हारे साथ सदा न रहूंगा।
एक साल में बाइबल:
- व्यवस्थाविवरण 29-31
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें